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Palmistry - हस्त ज्योतिष - सामुद्रिकरहस्यम् By Astrologer Dr. Sunil Nath Jha

हस्त-ज्योतिष - PALMISTRY सामुद्रिकरहस्यम् ज्योतिष विद्या वह दिव्य विज्ञान है जो भूत, वर्त्तमान और भविष्य तीनों कालों को जानने की कला सिखलाता है | उस में से एक “ हस्त-रेखा ” या “ सामुद्रिकरहस्यम् ” भी  है मनुष्य में भविष्य जानने की इच्छा होती है I जातक की भविष्य देखेने की भिन्न भिन्न विधायें  भिन्न भिन्न देश , काल व सस्कृति के कारण भिन्न भिन्न रूप में परिष्कृत हुई ,परन्तु आज भी मानव सस्कृति-सभ्यता के सामने अनुत्तरित खड़ा है |  वह यह है कि भविष्य को जान लेने के बाद क्या भविष्य बदला जा सकता है तो मैं यह कह सकता हूं कि:-  भगवान् ! “आत्मा”- को जिस कुल ,जाति और धर्म में भेजते है उसका निर्धारण “गर्भधारण” के समय जो निर्धारित (कुंडली या हस्त में) करते है वैसे ही “शीर्षोदय” के बाद जीवन भर शुभाशुभ भोगना पड़ता है :---   “ आयुः कर्मं च वितं च विद्यानिधन मेव I पंञ्चैतान्यायं सृज्यन्ते गर्भस्थस्यैव देहिनः II अर्थात् -- इसका अर्थ है कि आपको वर्त्तमान (तात्कालिक)  समय कुण्डली या हाथ में सब कुछ निर्धारित कर दिया गया हैं | उसके माध्यम से सारे कार्यक्रम मिल गया है | इस कुंडली य...

Vasturahasyam - वास्तुरहस्यम् | ARCHITECTURE & IMPORTANT POINTS (2) By Astrologer Dr. Sunil Nath Jha

Vasturahasyam -वास्तुरहस्यम् ARCHITECTURE & IMPORTANT POINTS (2) By Astrologer Dr. Sunil Nath Jha “ श्रीवास्तुदेवताभ्योनमः“ ↈ वास्तुरहस्यम् ↈ ARCHITECTURE & IMPORTANT POINTS  “ श्रीनमश्चण्डिकायैः“ ↈↈↈ ↈↈ ↈ   लेखक :--संकलनकर्ता   तथा संपादक डॉ सुनील नाथ झा , ज्योतिषाचार्य गणित एंव फलित , एम 0 ए 0,  साहित्याचार्य , व्याख्याता- ज्योतिर्विज्ञानविभाग , लखनऊ विश्वविद्यालय ,  लखनऊ | प्राक्कथन   वास्तु विद्या   बहुत प्राचीन विद्या है । विश्व के प्राचीनतम ग्रन्थ ऋग्वेद में भी इसका उल्लेख मिलता है। वास्तु से वास्तु विशेष की क्या स्थित होनी चाहिए। उसका विवरण प्राप्त होता है। श्रेष्ठ वातावरण और श्रेष्ठ परिणाम के लिए श्रेष्ठ वास्तु के अनुसार जीवनशैली और गृह का निर्माण अति आवश्यक है। जिस देवताओं ने उसको अधोमुख करके दबा रखा था , वह देवता उसके उसी अंग पर निवास करने लगा। सभी देवताओं के निवास करने के कारण वह वास्तुनाम से प्रसिद्ध हुआ। इनके ये अठारह वास्तुशास्त्र केउपदेषटा है:----   “ भृगुरत्रिर्वसिष्ठविशवकर्म...