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Astrology and the Path of Human Life - ज्योतिष और मानव जीवन मार्ग

 ज्योतिष और मानव जीवन मार्ग  मानव मस्तिष्क सतत्  कार्यशील, जाग्रत और प्रगतिशील रहता है, वह नित्य नई नई भावनाओं और कल्पनाओं को जन्म देता रहता है तथा उसको मूर्त्त रुप देने के लिए सतत् प्रयत्नशील रहता है | कर्म हम उसे कहते है जो कर्म वर्त्तमान क्षण तक किया गया है | चाहे वह इस जन्म में किया गया हो या पूर्व जन्मों में ये सभी कर्म संचित कहलाता है | जन्म जन्मान्तरों के संचित कर्मों को एक साथ भोगना संभव नहीं है | अतः उन्हें एक एक कर भोगना पड़ता है, क्योंकि इनसे मिलने वाले फल परस्पर विरोधी होते है | उन संचित कर्मों में से जितने कर्मों के फल का पहले भोगना प्रारम्भ होता है, उसे प्रारब्ध कहते है | ध्यान देने योग्य बात यह है कि जन्म जन्मान्तरों के संचित कर्मों को प्रारब्ध नहों कहते, अपितु उनसे जितने भाग का फल भोगना प्रारब्ध हुआ है, उसे ही प्रारब्ध कहते है | देश, काल, जाति  के अनुसार सबों की अपनी संस्कृति होती है, जिसके अनुसार मानव अपना जीवन संचालित रखता है | सदियों से आयी हुई प्रत्येक देश, काल आदि की अपनी रीति- रिवाज, रहन- सहन, संस्कार, पूजा-पाठ आदि जिन नियमित तौर तरीकों से होते ह...

आपका राशि फल क्या है ? - By Astrologer Dr Sunil Nath Jha

आपका राशि फल क्या है ? - By Astrologer Dr Sunil Nath Jha यद्व्यक्तात्मको विष्णुः कालरूपो जनार्दनः | तस्याङ्गानि निबोध त्वं क्रमान्मेषादिराशयः || मेषो वृषश्च मिथुनः कर्क सिंह कुमारिकाः |  तुलालिचापमकराः कुम्भमीनौ यथाक्रमम् || रविश्चद्रो  धरापुत्रः  सोमपुत्रो  वृहस्पतिः | भृगुः शनैश्चरो  राहुः केतुश्चैते ग्रहाः नव || जन्म कालिक चन्द्र जिस राशि में रहता है उसको चन्द्र  राशि कहते है | जब चन्द्र राशि का स्वामी और चन्द्रमा शुभ और बली होते है तो नीचे लिखे हुए जन्म राशि फल भी ठीक ठीक मिलेगा | जातक का राशि या मन किस प्रकार के होते है |  काल स्वरूपं जो अव्यक्तात्मा जनार्दन विष्णुः है | उन्हीं के अंग मेषादि राशियाँ है | वे द्वादश राशियाँ मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ तथा मीन है सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, वृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु ये नव ग्रह है |  ;- वृत्ताताम्रदृगुष्णशाकलधुभुक्  क्षिप्रप्रसादोऽटनः  कामी दुर्बलजानुरस्थिरधनः शुगेऽङ्गनावल्लभः |  सेवाज्ञः कुनखी व्रणांंकितशिरा मानी सहोत्थाग्रजः  श...

ज्योतिष, सृष्टि और उसका लय | Astrology, Creation, and Its Dissolution

ज्योतिष, सृष्टि और उसका लय      न जानामि मुक्तं लयं वा कदाचित्   लंकानगर्यामुद्याच्चभानोस्तस्यैव   बारे   प्रथमं     बभूब   मधोः सितार्छेर्दिनमास   वर्ष युगादिकानां युगपत्प्रवृतिः || सृष्टि के आदि में जब काल और व्यक्तिजनक भग्रहादि का प्रादुर्भाव होता है तब उन दोनों का दिन, मास, युगादि का एकावली प्रारंभ होता है | ज्योतिष शास्त्र काल गणना का शास्त्र है | काल का उत्पादक भचक्र है और उसमें स्थित सूर्यादि ग्रह है | बिना उसके काल की उत्पत्ति संभव नहीं है | आगमोक्त सृष्टि चक्र की पर्यालोचना से काल से अनादि और अनन्त में इस चर-अचर संसार का आविर्भाव और तिरोभाव दिग्, देश और काल के वश से होते है,जो गति विद्या के प्रमाण पथ के आधार पर स्पष्ट जाना जाता है |  लय का शाब्दिक अर्थ -चित्त की वृत्तियों का सब ओर से हटकर एक ओर प्रवृत्त होना | सृष्टि और लय शब्द का अर्थ होता है कि किसी निश्चित समय में वस्तुओं का उत्पन्न होना और कुछ समय के बाद उस का अवसान होना | क्योंकि सृष्टि गत पदार्थों का आविर्भाव एवं तिरोभाव एक निश्चित समय में होता रहता है | ...