आपका वास्तु विचार - Janiye Apna Vastu Vichaar मानश्चक्षुषोर्यत्र संतोषो जयते भूवि | तत्र कार्यगृहं सर्वैरितिगर्गादि सम्पतम् || जिस मनुष्य को जहाँ की भूमि पसन्द हो वहन घर बनाकर बसे | गर्ग समकालीन आचार्यों ने इसे स्वीकार किये होगे | वास्तु भूमि की लम्बाई उत्तर-दक्षिण होनी चाहिए अथवा चौकोर भूमि में वास करना चाहिए | जिससे सकून मनः शान्ति बना रहता है | पूर्व-पश्चिम लम्बाई में अशुभ फल मनः अशान्ति रहता हैं | लम्बाई- चौड़ाई के योग में से भाग देने पर शेष १में दाता, २में भूपति, ३मे नपुंसक, ४में चोरी, ५ में विचक्षण उत्तम, ६ में भोगी, ७ में धनाढ्य, ८में दरिद्र और ९ में कुबेर मण्डलेश होता है | पूर्व-पश्चिम लम्बा मकान सूर्य - वेधी होता है, उत्तर- दक्षिण लंबा मकान चन्द्र - वेधी होता है | चन्द्र वेधी और चौकोर घर परम शुभ होता है धन और कुल की वृद्धि होती है | परन्तु सूर्य -वेधी मध्यम होता है इधर जलाशय होनी चाहिए | बाग़-बगीचा दोनों में शुभ रहता है | मन्दिर देवालय में इनका विचार नहीं होता है | ब्राह्मण वर्ण पूर्व- दिशा, क्षत्रिय वर्ण को उत्तर-द...
मैं सुनील नाथ झा, एक ज्योतिषी, अंकशास्त्री, हस्तरेखा विशेषज्ञ, वास्तुकार और व्याख्याता हूं। मैं 1998 से ज्योतिष, अंक ज्योतिष, हस्तरेखा विज्ञान, वास्तुकला की शिक्षा और अभ्यास कर रहा हूं | मैंने राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान तथा लखनऊ विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य | मैंने वास्तुकला और ज्योतिष नाम से संबंधित दो पुस्तकें लिखी हैं -जिनके नाम "वास्तुरहस्यम्" और " ज्योतिषतत्त्वविमर्श" हैं | मैंने दो पुस्तकों का संपादन किया है - "संस्कृत व्याकर-सारः" और "ललितासहस्रनाम" |