आपका वास्तु विचार - Janiye Apna Vastu Vichaar
मानश्चक्षुषोर्यत्र संतोषो जयते भूवि |
तत्र कार्यगृहं सर्वैरितिगर्गादि सम्पतम् ||
जिस मनुष्य को जहाँ की भूमि पसन्द हो वहन घर बनाकर बसे | गर्ग समकालीन आचार्यों ने इसे स्वीकार किये होगे | वास्तु भूमि की लम्बाई उत्तर-दक्षिण होनी चाहिए अथवा चौकोर भूमि में वास करना चाहिए | जिससे सकून मनः शान्ति बना रहता है | पूर्व-पश्चिम लम्बाई में अशुभ फल मनः अशान्ति रहता हैं | लम्बाई- चौड़ाई के योग में से भाग देने पर शेष १में दाता, २में भूपति, ३मे नपुंसक, ४में चोरी, ५ में विचक्षण उत्तम, ६ में भोगी, ७ में धनाढ्य, ८में दरिद्र और ९ में कुबेर मण्डलेश होता है | पूर्व-पश्चिम लम्बा मकान सूर्य-वेधी होता है, उत्तर- दक्षिण लंबा मकान चन्द्र- वेधी होता है | चन्द्र वेधी और चौकोर घर परम शुभ होता है धन और कुल की वृद्धि होती है | परन्तु सूर्य -वेधी मध्यम होता है इधर जलाशय होनी चाहिए | बाग़-बगीचा दोनों में शुभ रहता है | मन्दिर देवालय में इनका विचार नहीं होता है | ब्राह्मण वर्ण पूर्व- दिशा, क्षत्रिय वर्ण को उत्तर-दिशा, वैश्य वर्ण दक्षिण दिशा और शुद्र वर्ण उत्तर- दिशा शुभ रहता है | मकान के जिस दिशा में द्वार देना हो उस भाग के ९ भाग करके ५ भाग दक्षिण और तीन भाग उत्तर दिशा में छोड़कर शेष ९ भाग में द्वार स्थिर करें | वाम दक्षिण का अर्थ मकान से निकलते समय का होना चाहिए | घर से निकलते समय दहिना भाग अधिक होना चाहिए | वासभूमि के मध्य में कूप गढ्ढा होने से ध्न्नाश, ईशान कोण में पुष्टि, पूर्व में संपत्ति की वृद्धि, अग्नि- कोण में पुत्र नाश, दक्षिण में स्त्री का नाश,नैऋृत्य कोण में मरण, पश्चिम में संपत्ति, वायव्य कोण में शत्रु से पीड़ा और सौख्य होता है |
वास्तुशास्त्र के अनुसार पूर्व दिशा में स्नान का, अग्निकोण में भोजन बनाने का, दक्षिण या पूर्व में शयन का, पश्चिम में भोजन करने का, वायव्य में अन्न रखने का, उत्तर में भंडार गृह और ईशान या मध्य में मन्दिर उत्तम होता है | दक्षिण और नैऋत्य में स्नान घर, नैऋत्य और पश्चिम के बीच विद्याध्ययन का, ईशान और पूर्व के बीच भंडार घर बनाना चाहिए | आपके घर पर किसी पेड़ या मकान का छाया से आच्छादित हो तो उसमें वास करने से उच्चाटन होता है | दिन के प्रथम या चतुर्थ प्रहार की छाया दोष युक्त नहीं है, किन्तु द्वितीय और तृतीय प्रहार की छाया दुःख दायिनी होती है | अतः ऐसे घर को छोड़ देना चाहिए |
*ↈ वास्तुशास्त्र के कुछ महत्वपूर्ण विचारणीय विन्दु :---ↈ
वास्तुशास्त्र के अनुसार गृहनिर्माण के समय घर का सीमा चौकोर में रहने से शकुन महसूस होता है। सर्वप्रथम मन्दिर का स्थान ईशान कोण में या ब्रह्म (बीच) स्थान में, उसके बाद माता-पिता के लिए, उसके बाद रसोई घर, तब अपना कमरा होने से सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है।
१ . शयन कक्ष में मन्दिर नही होनी चाहिये। अगर जगह की असुविधा हो तो छोटे बाल-बच्चे एवं बुजुर्ग व्यक्ति यहाँ सो सकते है। पश्चिम या दक्षिण में शयन कक्ष होना उत्तम है।
२ . पूर्व या उत्तर में शय्या गृह हो तो नव दम्पति वहां न सोए । अविवाहिता सो सकते है।
३ . आप जब गृह निर्माण करे है तो दरबाजे एक ही कतार में दो से अधिक नही होने चाहिये। दरबाजे और खिड़की घर में सम संख्या में शुभ होता है २, ४, ६, ८, १०, १२ सम संख्या है।
४ . खिड़की में अर्च या परदा जरुर रखे, मुख्य दरबाजे के उपर भी परदा( छ्ज्जी) दे। उससे आप की मान सम्मान, यश बनी रहती है।
५ . आप घर बनाने के लिए जिस भूखण्ड चयन करे आस पास के रास्ते भी देखे भूखंड के उत्तर, पूर्व, पूर्व उत्तर या ईशान में रास्ते हो तो मकान के लिए अच्छा समझना चाहिये।
६ . आप अपने घर में पैंखाना, सीढ़ी, पानी टंकी, स्वीमिंग पूल आदि भूखंड के ईशान कोण में न हो ।
७ . आप गृह निर्माण का कार्य नैऋत्य से प्रारम्भ करे। पश्चिम या दक्षिण में तथा उत्तर एवं पूर्व में खुली जगह अधिक होनी चाहिये।
८ . आप पूजा स्थान ईशान कोण के कमरे में होना चाहिए। कमरे में पूर्व दिशा की दीवार पर तथा पूजा करने वाले का मूह पूर्व की ओर एवं देवताओं के मुहँ पश्चिम दिशा की ओर हों ।
९ . आपका रसोई घर आग्नेय दिशा में होना चाहिए, खाना बनाते समय रसोई में काम करने वाले का मुहँ पूर्व दिशा में हो ।
१० . आप वायव्य दिशा के कमरे में मुख्य रूप से मेहमान और अविवाहित को ही रहना चाहिए ।
११ . आपके घर में लाँकर को नैऋत्य में उत्तर की होना चाहिए ।
१२ . आप अपने घर में या अपने कमरे में भी पैंखाना दक्षिण या पश्चिम में बनाना चाहिये और पैंखाना का दरबाजा पूर्व या आग्नेय में हो ।
१३ . आप जब रसोई बनावे तो द्वार मध्य भाग में रखे। बाहर से आने वाले को चूल्हा दिखाई नही देना चाहिए।
१४ . आपके घर पर उत्तर या पूर्व से सूर्य का किरण आनी चाहिये । १५ . घर के उत्तर या पूर्व में चारदीवारी कम चौरी एवं उँची होनी चाहिये।
१६ . आपका स्नानघर या स्नान पूर्व या उत्तर मुहँ करके नहाना चाहिये।
१७ . आप जहाँ पर गृह निर्माण कर रहे है उसके इर्द गिर्द किसी भी दिशा में गढ़ा नही होना चाहिये। परिसर मध्य भाग में भी गढ़ा नही होना चाहिये I
१८ . आपके घर के सामने रास्ता का अंत नही होना चाहिए । वीथी शूल योग (T,प्वान्ट) लग जाने से शकुन (मानसिक सुख) नही रह सकता है ।
१९ . आपके घर के सामने किसी भी मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा या कोई भी दिव्य जगह हों या दृष्टि परे तो बिलकुल खराब माना जाता है यानि वंश पर भी असर पड़ता है।
२० . आप जहाँ भी गृह निर्माण हेतु भूमि ले । तो जैसे श्मशान, कब्र, या कोई अशुभ जगह हो या खंडहर हो या अभिसप्त जगह हो तो उसको कभी भी नही लेना चाहिए । आपको कभी भी किसी का जबरदस्ती से जमीन नही लेना चाहिए । या बैंक के माध्यम से मकान नही लेना चाहिए ये नकारात्मक प्रभाव सन्तान पर पड़ता है। यानी सन्तान सुख नही मिलता ।
२१ . आप जब भी गृह निर्माण करे उसमे अहाता (बरामदा) जरुर होना चाहिए। नही तो शकुन नही होगा।
२२ . घर की मुख्य सीढ़िया दक्षिण या पश्चिम की ओर होनी चाहिये। ईशान में नही होनी चाहिये। वायव्य, आग्नेय, दिशा में भी ठीक है।
२३ . आप जब भी वैसे सीढिया दे दक्षिण, पश्चिम या नैऋत्य में ही लाभ प्रद होता है।
२४. आप सीढ़ियों के नीचे कभी भी न कमरा सोने के लिए या मन्दिर या कैश बॉक्स भी वहा न बनाने का कष्ट करें ।
२५. आप रसोंई में चूल्हा आग्नेय में ही स्थापित करे। आप पूर्व या पश्चिम दिशा में मुहँ करके खाना पका सकते हैं ।
२६. आप पैंखाना पूर्व या उत्तर सिट लगा सकते है। तथा इसी दिशा में नल भी लगाने ज्यादा लाभ । आग्नेय या नैऋत्य में नल न हो।
२७. आप के घर का पानी का बहाव उत्तर दिशा से होनी चाहिये । आपके घर का जो भी पानी निकले उत्तर दिशा से ही तभी बरकत होगा।
२८. आप स्नान घर में धोए हुए वस्त्र वायव्य में रखे । आईना (दर्पण ) पूर्व या उत्तर के दीवार में हो, हीटर, गीजर या स्विच बोर्ड आग्नेय में लगाए । और कपड़ा फ़ैलाने के लिए जो व्यवस्था है उस पर आप पूर्व से पश्चिम या उत्तर से दक्षिण की ओर फैलाना चाहिये ।
२९ . आपके भोजन या बैठने का कमरा का दरबाजा उत्तर या पूर्व में होना चाहिये ।
३०. आप जब भी दक्षिण मुखी घर या जमीन ले तो बहार के बरामदे पर पश्चिम मुखी दरबाजा बिलकुल नही रखना है नही तो आपके वंश पर असर पड़ेगा ।
३१. आपके घर में कोई भी दरबाजा खोलते या बंद करते समय अगर उससे ध्वनि निकले तो मानसिक, आर्थिक कष्ट मिलता है इसे “स्वर वेध“ कहते है।
३२. आपके घर के दरबाजे के सामनेअगर सीढि हो तो वेध में ही आता है ।
३३. आपका घर ईच्छा अनुसार न हो तो भी मानसिक सुख नही मिलता ।
३४. आप जिस घर का निर्माण कार्य करने जा रहे है या आप जहाँ रह रहे है उस घर में चार कोण से ज्यादा कोण हो तो वहां पर लोग रोगी, वंश का क्षय तथा अशुभ बना रहता है।
३५. आप पुराने घर को बनाना चाहते है तो पुराने नीवं पर ही काम करे नहीं तो दिशा वेध होगा ।
३६. आपका गृहारंभ का मुहूर्त पर ध्यान दे,यानि लग्न में सूर्य, चन्द्र, या गुरु हो, शुक्र स्वगृह या उच्च हो तो, ऐसे लग्न में आपका घर का आयु (दीर्घ) पूर्ण होगा। यानि केंद्र या त्रिकोण में शुभ ग्रह हो ।
३७. आप जब भी गृहनिर्माण करे तो कुछ और विचार कर सकते है (क) पूर्व या दक्षिण पश्चिम में स्नानघर हो और पुर्व या उत्तर दिशा में स्नान करने की व्यवस्था हो, (ख) आग्नेय में रसोईघर हो, (ग) दक्षिण में शयनकक्ष, गृहस्थी सामग्री हो। (घ) नैऋत्य में माता-पिता या बड़े भाई का घर, शौचालय हो।(च ) पश्चिम में भोजन का स्थान हो।(छ) वायव्य में अन्न-भंडार घर, पशुगृह या शौचालय रहना चाहिये।(ज) उत्तर में देव गृह, जल, भंडार, तथा उत्तर पूर्व में सब वस्तुओं का संग्रह करने का स्थान होता है (स्टोर रूम)। :------ निम्न चित्र में जहॉ पर घिरा हुआ जो जगह है उसमें आप मन्दिर नही बना सकते है।16 कोण होते है उसमें पुर्व उत्तर कोणNE(ईशाण)सर्वोत्तम होता है ।
३८. पूर्व, उत्तर या ईशान की तरफ तहखाना बनाना चाहिये ।
३९ . भारी सामान नैऋत्य दिशा में रखनी चाहिए।
४० . जिस कार्य में अग्नि का आवश्यकता पड़े, वह सभी कार्य आग्नेय दिशा में ही करना चाहिये ।
४१ . आप जब भी दिया जलाये दिन में पूर्व और रात में उत्तर दिशा में दीप जलाये। वैसे पूर्व में जलाने से आयु की वृद्धिः होती है। उत्तर में धन की वृद्धिः, पश्चिम में जलाने से दुःख, दक्षिण में जलाने से हानी ।
४२ . आप जब भी पूजा करे तो दिन में पूर्व दिशा (देवता पूर्व में बास करते) में मुहँ करके और रात में उत्तर दिशा (रात में देवता उत्तर में बास करते) में मुहँ करके पूजा करने से पूर्ण लाभ होता है।
४३ . आप जब भी ऑफिस बनाये तो पूर्व या उत्तर मुहँ करके बैठेगे तो सब कार्य आसानी और शांति पूर्ण होगा। दुकान की समान वायव्य दिशा में रखने से शीघ्र बिकेगा। भारी मशीन आदि पश्चिम या दक्षिण में रखनी चाहिये।
४४ .नैऋत्य कमरे में अतिथि या किरायेदार को नही ठहराना या देना चाहिये। क्योंकि वह स्थायी रूप से रहने लगे। इस कारण वायव्य भाग में ठहराना चाहिये।
४५ .आपको सदा पूर्व या दक्षिण की तरफ सिर करके सोना चाहिये। उत्तर दिशा में बाहर सोने में (घर में सोने से दोष नहीं ) या पश्चिम सिर करके सोने से आयुक्षीण होती है। वैसे पूर्व दिशा में सोने से शकुन महशुस होता है :----
नोत्तराभिमुखःसुप्यात पश्चिमाभिमुखो न च I
उत्तरे पश्चिमे चैव न स्वपेद्धि कदाचन II
स्वप्रदायुःक्षयं याति ब्रह्महा पुरुषो भवेत् I
न कुर्वीत ततः स्वप्नं शस्तं च पूर्वदक्षिणमू II
“ प्राच्यां दिशि शिरश्शस्तं याम्यायामथ वा नृप I
सदैव स्वपतः पुंसो विपरीतं तु रोगदम II
“ प्राकशिरः शयने विद्याधनमायुश्च दक्षिणे I
पश्चिमे प्रबला चिन्ता हानिमृत्युरथोत्तरे II
वास्तुशास्त्र के अनुसार पूर्व की ओर सिर करके सोने से विद्या प्राप्त होती हैं। दक्षिण में सिर करके सोने से धन तथा आयु की वृद्धि होती है। पश्चिम में सिर करके सोने से प्रबल चिन्ता होती है। उत्तर की तरफ सिर करके सोने से हानी तथा मृत्यु होती है।
४६. आप वास्तुशास्त्र के अनुसार घर में पत्थर की मूर्तियों का तथा मंदिर का निर्माण निषेध करते है। वास्तव में मूर्तिका का निषेध नही है प्रत्युत एक बित्ते से अधिक ऊंची मूर्तिका ही घर में निषेध है :- अँगुष्ठपर्वादारभ्य वितस्तिर्यावदेव तु I
गहेषु प्रतिमा कार्या नाधिका शस्यते बुधैः II
४७. “ शैली दारुमयीं हैमीं धात्वाद्याकारसंभवाम् I
प्रतिष्ठाम वे प्रकुर्वीत प्रासादे वा गृहे नृप II
वास्तुशास्त्र के अनुसार आप पत्थर, काष्ठ, सोना या अन्य धातुओं की ६ इंच से बड़ा मूर्तियों की प्रतिष्ठा प्रासाद (देवमन्दिर) में करनी चाहिये । घर में (कैम्पस) मन्दिर बनाने से सन्तान हानी या सन्तति आगे नही होती।
४८. वास्तुशास्त्र में धन सम्पति चाहने वाले मनुष्य को भण्डारघर, गायघर, गुरुघर, रसोईघर और देवताघर (मन्दिर) के ऊपर या आस-पास नही सोना चाहिये या कमरा नही बनाना चाहिये। काफी नुकसान हो जाता है।
४९. आपको भोजन सदा पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके करना चाहिये :----- ‘ प्रागंमुखोदग्न्मुखो वापि’ II प्रान्ग्मुखअन्नानि भूज्जीत“ II
५०. आप दक्षिण की ओर मुख करके भोजन करने से भोजन में राक्षसी प्रभाव आ जाता है यानि माता-पिता के मृत्यु के बाद दक्षिण मुख करके भोजन करना चाहिये :- “भुज्जीत नैवेह च दक्षिणामुखो, न च प्रतीच्यामभिभोजनीयम II
५१ . प्राच्यां नरो लभेदायुर्याम्यां प्रेतत्वमश्रुते I
वारुणे च भवेद्रोगी आयुर्वित्तं तथोत्तरे II
पूर्व की ओर मुख करके खाने से मनुष्य की आयु बढती है, दक्षिण की ओर मुख करके खाने से प्रेतत्व की प्राप्ति होती है, पश्चिम की ओर मुख करके खाने से मनुष्य रोगी होता है, और उत्तर की मुख करके खाने से आयु तथा धन की प्राप्ति होती है।
५२. आप जब भी घर ले या बनाना हो तो वास्तुशास्त्रियों से वास्तु का ज्ञान लेकर बनाने का प्रयास करे । अगर एक बार वास्तुदोष लग गया तो कितना भी पूजा-पाठ कराएगे तो भी कुछ बनने बाला नही । केवल मनः शान्ति होगी । बाधा सब वैसे का वैसे ही रहेगा ।
५३. आपको निर्मित मकान में तोड़-फोड़ नही करनी चाहिये । अगर आप करते ही है तो वास्तु पूजा करने से पहले ही तोड़-फोड़ करें । इसी को ”वास्तु भंग दोष” कहा जाता है। ऐसे में मानसिक सुख नहीं मिलता। :----
“जीर्णं गेहं भित्तिभंगं विशीर्ण , तत्पातव्यं स्वर्णनागस्य दन्तैः I
गोश्रृंग्नैर्वाशिल्पिना निश्चयेन, पूजां कृत्वा वास्तुदोषो न तस्य”II
५४. आपको वास्तुदोष दूर करने के लिए आप घर में अखण्ड रूप से श्रीरामचरितमानस का पाठ, श्रीदुर्गासप्तशती सम्पुटपाठ या आपके समाज में जो शांति सम्बन्धी नियम या व्यवस्था हो उस माध्यम से नवग्रह और वास्तुदोष की पूजा गृहप्रवेश के समय जरुर कराये, तभी शकुन और मनः शांति होगी । आप पवित्र तीर्थो का दर्शन करे या पवित्र नदियों में शुद्ध स्नान (नाभि भर पानी के अन्दर जाने पर शुद्ध माना जाता है ) करें।
५५. आपको किसी प्रसिद्ध जगह, मन्दिर, राजमार्ग, बड़ी इमारतें, आदि के नजदीक घर नही लेना या बनाना चाहिये । मानसिक सुख नही मिलता है I
भविष्यपुराण का कथन :-- आप अगर छल कपट से घर बनाएगे या लेगे तो धन की हानी, धूर्त का घर होने से पुत्र नाश, मन्दिर के नजदीक होने से अशान्ति, या हर काम में बाधा, चौराहे पर होने से अपयश लगता है ।
५६. आप वास्तुशास्त्र के अनुसार बेल, दाड़िम, आम, केला, अशोक, केसर, कटहल, नारियल, नीबू, श्रृंगारहार(शेफालिका), सिरिष, मल्लिका आदि वृक्ष घर के नजदीक लगाना शुभदायक होता है I
५७. आप इन वृक्षों को घर के नजदीक नही लगा सकते है मालती, चंपा, केतकी, पीपल, पाकड़, बड़गद, कोटर (वृक्ष में गड्ढा दूधवाला वृक्ष, और कांटवाला वृक्ष, ब्रह्मवृक्ष आदि अशुभ है। वैसे स्वयं उत्पन्न वृक्ष में खजूर, दाड़िम, केला, बेर, आदि अशुभ करने वाला होता है I
५८. आप जब इन मीन लग्न में शुक्र ,या कर्क का गुरु चतुर्थ भाव हो, या तुला का शनि एकादश में अगर तब गृहप्रवेश करेगे तो धन धान्य और श्रीलक्ष्मी युक्त होकर दीर्घकाल तक वास करेगी I
स्वोच्चवर्तिनि भृगौ विलग्नगे देवमंत्रिनि रसातलेडथवा I
स्वोच्चगे रविसुतेअथ वायगे स्यात्स्थितिश्च सुचिरं सह श्रिया II
५९. आप जब भी लग्न मुहूर्त निकालने जाय तो पूर्ण ध्यान से ज्ञानी विद्वान से गृहप्रवेश का मुहूर्त निकवाना चाहिये। लग्न के नवांश में सप्तम व दशम भाव में पापी ग्रह रहने से जल्दी ही घर दुसरे के हाथ चला जाता I
एको ग्रहश्चेत्परभागवर्ती जापागतःकर्मगतऽथवा स्यात् I
करोति गेहं परहस्तयातं वर्षाद्विमध्ये विबलःसखेटः II
६०. आप जब अपने लिए घर बनायेगे तो उसमे मुख्य प्रवेश द्वार पूर्वोत्तर या ईशान्य में होना चाहिये। पश्चिम, आग्नेय, वायव्य द्वार भी ठीक है किन्तु नैऋत्य, पूर्व-आग्नेय, दक्षिण-आग्नेय एवं दक्षिण में मुख्य प्रवेश नही होना चाहिये I यानि आप जब भी जमीन ले तो सोच समझ कर ले । उसका मुख्य द्वार इन जगहों पर नही होना चाहिये ।
६१. स्नान घर में पूर्व दिशा होकर स्नान करने से मन प्रशन्न और शुभ माना गया है। यानी पूर्व दिशा में या दीवार में नल रहेगा I तभी पूर्वाभिमुख करके स्नान कर पायेगें I
६२. आप जब घर में सीढियॉं दे तो दक्षिण या पश्चिम की ओर होनी चाहिये । वायव्य,आग्नेय दिशा में भी ठीक है। परन्तु ईशान को नही होना चाहिऐ।
६३. आप जब भी घर में कमरे दे तो उत्तरी कमरे दक्षिण में स्थित कमरों से बड़े होने चाहिये। तथा ड्राइंगरुम और बैठक के कमरे का दरबाजा उत्तर या पूर्व में होना चाहिये। इससे आप को शकुन यानि आनन्द महसूस करेगें।
६४. आप अपने ड्राइंग रुम या किसी भी कमरे में उत्तर या पूर्व के दीवार पर देवी-देवताओं की तस्वीर अवश्य लगाएं। पश्चिम की दीवार पर प्राकृ-तिक दृश्य ही लगाना चाहिए तथा दक्षिण के दीवार पर केवल पूर्वजों (मृत्यु वाले लोगो का) का ही तस्वीर लगाना चाहिये। चाहे घर, आँफिस या कार्या-लय हर जगह जो मृत्यु प्राप्त कर चुके उनका ही केवल दक्षिण में तस्वीर होने चाहिये। जो वर्तमान में पदासीन है उनका सामने या उत्तर के दीवार पर।
६५. आप जब भी रसोंईघर बनाये तो प्रवेश द्वार (Main Gat) से दिखाई न दे। अगर ऐसा होगा तो उस घर में मानसिक सुख नही प्राप्त होगा।
६६ .आप सूर्य के स्थान पर तिजोरी रख सकते है। इस स्थान पर “श्रीयन्त्र“ भी रखा जाता है। जिससे लक्ष्मी उस घर पर सदा प्रसन्न रहती है।
६७ .नैऋत्य राहू का स्थान है जिसमें पितरों का निवास होता है। यहाँ पर आप टायलेट्, जुआखाना, शराब आदि रखने की जगह है।
६८. पश्चिम में वरुण का वास होता है। वरुण देवता के स्थान पर टंकी (जल) रख सकते है।
६९. पूर्व के देवता इंद्रा है, पश्चिम का अर्थ है “बाद में“ अस्त होता है। इस दिशा में कोई भी कार्य आगे नही बढ़ पाता ।, उत्तर दिशा का स्वामी कुबेरजी है इसका अर्थ है आने वाली या होनेवाली घटना पर नियंत्रण एवं हमेशा बढ़ोतरी करने वाला। इस दिशा में देवता हर समय वास करते है, दक्षिण दिशा का स्वामी “यम“ है। यह सूर्य पुत्र है मानव जीवन को क्षीण बनाने बाला यह दिशा है इस दिशा में अशुभ कार्य किये जाता है।
७०. आप ईशान दिशा शिव या किसी भी देवता का ध्यान स्मरण करने से मनुष्य में कई गुण उत्पन्न होते है। यानि सिद्धि प्राप्त होती है I
७१. आप शय्या (पलंग) जब भी बनाये तो इन लकड़ियों का उपयोग कर सकते है जैसे :--सागवान का पलंग बनायेगे तो कल्याण कारक होगा, चन्दन से शत्रुनाशक और सुखदायक और शिरीष श्रेष्ठ होता है, श्रीपर्णी (गंभारी) धनदायक तथा आसन (कुश, कम्बल या अन्य कोई भी) पर सोने से रोगनाशक और मनःशांति बनी रहती है I
७२. आप जब भी घर बनायेगे तो उसमें तीन प्रकार से ज्यादा लकड़ी का उपयोग न करे I शांति नही मिलेगी I
७३. आप जब भी लकड़ी ले तो उस वृक्ष मे किसी प्रकार का जीव जन्तु का वास न हो I नही तो लोभ लालच बस आप मानसिक कष्ट में फस सकते हैं I
७४. आप जब घर लकड़ी का उपयोग करे तो उसमे काँटवाले वृक्ष से शत्रु भय, दूध वाले से धननाश, फलवाले वृक्ष से संतान नाश करनेवाले होते है I
७५. आप जहाँ घर बनाये है या घर बनाने जा रहे उसके समीप अशुभ कोई वृक्ष लगे हो और काटने में कठिनाई हो तो अशुभ वृक्ष और घर के बीचमें शुभ फल देने वाला वृक्ष लगा देने चाहिए I उससे दोष कम हो जायेगा I
७६. आप जब घर बनाये तो उसमे तुलसी का स्थान आगन में या आगे ईशान कोण में निर्धारित पहले करके रखे I घर के भीतर लगाई हुई तुलसी मनुष्यों के लिए कल्याणकारिणी, धन पुत्र प्रदान करनेवाली, पुण्यदायिनी, तथा हरिभक्ति देनेवाली होती है I प्रातःकाल तुलसी का दर्शन करने से सुवर्ण दान का फल प्राप्त होता है I अपने घर से दक्षिण की ओर तुलसी वृक्ष का रोपण नही करना चाहिये I
७७. आपको घर के मध्य भाग में द्वार नही बनाना चाहिये I मध्य भाग में द्वार बनाने से कुल का नाश, धन-धान्य का नाश, स्त्री के लिए दोष तथा आपस में लड़ाई-झगड़ा होता रहता है I
७८. आप जब भी छत पर सीढी के उपर कमरा बनायेगे तो दरवाज़ा पूर्व या दक्षिण की ओर शुभदायक होता है I सीढ़ी मकान के पश्चिम या उत्तर भाग में होनी चाहिए I दक्षिणावर्ती सीढियाँ शुभ होती है I
७९. अगर आप के घर में सीढियाँ (पग), खम्भे, शहतीर, दरवाजे, खिड़की याँ आदि की कुल संख्या को तीन से भाग देने पर यदि एक शेष बचे तो “इन्द्र”, दो शेष बचे तो “काल” (यम), और तीन शेष बचे तो “राजा” संज्ञा होती है I ‘”काल” आने पर संख्या अशुभ समझनी चाहिये I दूसरे शब्दों में सीढियों आदि की इन्द्र-काल-राजा इस रुप में गणना कीजिएगा I यदि अंत में काल आये तो अशुभ माना जाएगा I
८०. आप जब भी घर बनाये तो खम्भे(पिल्लर) सम संख्या में ही रखे उत्तम कहे गये हैं I और उसका श्रेणी अनुसार रखे जिससे शकुन होगा I
८१. आप जब भी आवास में इन चित्रों को स्थापित (लगाये) नही करने चाहिये :-रामायण, महाभारत, पक्षीयुद्ध, इन्द्रजाल चित्र, भूतप्रेत, रोते मनुष्य जीवजन्तु, सिंह, सियार, सूअर, साँप, गिद्ध, उल्लू, कबूत्तर, कौआ, बाज, बगुला बन्दर, ऊँट, बिल्ली आदि के चित्र अशुभ फलदायक होते है I तथा इतिहास और पुराणों में वृतांत चित्र सब भी गृहस्थी जीवन से दूर जगह पर लगनी चाहिये I
८२. आप जब भी घर बना रहे है या घर ले रहे तो उस समय द्वारदोष (वास्तुदोष) को पूर्ण ध्यान देकर, काम शुरु करे नही तो द्वार-वेध कहते है I घर के सामने (T.) सड़क समाप्त होने से मृत्यु, बन्धन, या अनेक रोग सम्भव होते है I
८३. आपके घर के सामने वृक्ष हो तो बालकों में दोष, एश्वर्य में कमी तथा मानसिक कष्ट मिलता है I द्वार के सामने कीचड़ होने से व्यर्थ खर्च, घर के सामने जल होने से मिर्गी (मानसिक, भय कष्ट मिलता है और द्वार के सामने मन्दिर हो तो बालकों को दुःख, विनाश कराता है I
८४.आपके द्वार के सामने अगर अपवित्र जगह या वस्तु होने से वन्ध्या, द्रव्य और रोगी बना के रखेगा I द्वार के सामने द्वार या दिवार हो तो धन धान्य का विनाश होता है I द्वार के सामने या आस पास श्मशान हो तो भूतप्रेत या अनहोनी होनी की संभावना बना रहता है साथ ही पूजा पाठ से काम बनने वाला नही भी होती है I
८५. आप किसी का भूमि जबरदस्ती प्राप्त करते है तो अगर ब्राह्मण का घर या भूमि होने से कुल का नाश, उत्तरोतर जाति यश का नाश, धन धान्य का नाश होता ही है(शुक्रनीति)I
८६ . आप घर के आस पास जलाशय (टंकी,बोरिंग) बनाना चाहते है तो दिशा का ध्यान जरुर देखे जैसे :--अगर आप के घर से पूर्व जलाशय होगा तो पुत्रहानी, आग्नेय दिशामे अग्निभय, दक्षिण दिशामे जलाशय हो तो शत्रु भय या विनाश होता हैंI नैऋत्य से स्त्री कलहः, पश्चिम दिशा में हो तो स्त्रियों में दुष्टता आती है I वायव्य से निर्धनता आती है I उत्तर या ईशान दिशा में जलाशय बनायेगे तो धन और पुत्र की वृद्धि होती है I
८७. आपके घर से जल गिरने या निकासी से भी स्थान पर भी अच्छा बुरा प्रभाव होता है I अगर जल पूर्व दिशा में छत से गिरे तो धन की प्राप्ति होती है I आग्नेय से धन का नाश तथा मृत्यु भी करा सकता है I दक्षिण में गिरने से निर्धनता, रोग या प्राण संकट उत्पन्न, नैऋत्य दिशा में जल गिरने का जगह होने से प्राणघातक, कलह, तथा क्षय करता हैI पश्चिम में गिरने से पुत्र की हानी होती हैI वायव्य दिशा में हो तो सुख की प्राप्ति होती है I उत्तर दिशा में गिरने से राज्य सम्पति तथा सर्वसिद्धि की प्राप्ति होती है I और ईशान दिशा में हो तो धन तथा सुख सम्पति की प्राप्ति होती हैI
८८. आप के लिऐ गृह प्रवेश माघ, फाल्गुन, वैशाख, और ज्येष्ठ मास सर्वोत्तम होगा I कार्तिकऔर मार्गशीर्ष में गृह प्रवेश माध्यम माना जाता हैI परिस्तिथि वश मास में आ सकता है लेकिन इन्ही छः मास में ही करना चाहिये I श्रावण और आश्विन में कुछ समाज में लोग करते हैI वैसे करने क्या जाएगा परन्तु शकुन (शान्ति) नही मिलेगा I घर में कलह का स्थान बन जाएगा कुछ ही वर्षो के बाद नष्ट I
८९ .आपके घर के मुख्य द्वार (मेन गेट) का जमीन फट जाय या चौकठ से केवाड़ी या दिवाल गिर जाय, दीमक, मधुमखी लगे तो घर के स्वामी का मृत्यु सम्भव होता है I
९० .आप अपने भूमि पर इन पौधा पीपल, नीम, वट, एक इमली, दश आवला, तीन या पांच आम के वृक्ष लगाएये तो आप का जीवन शुभ प्रद होगा I
९१.आप जब भी घर बनाये तो उसमें सबसे बड़ा माता-पिता के लिए उसके बाद उससे थोड़ा छोटा अपने लिए, उससे थोड़ा छोटा बच्चे के लिए और उससे थोड़ा छोटा अतिथि के लिए और सबसे छोटा नौकर के लिए होने घर में शकुन बना रहता है I वैसे भी राजाओं के लिए उतरोत्तर छोटा होता चला जाता है I
९२. आप सप्त सकार योग. शनिवार, स्वातीनक्षत्र, सिंहलग्न, शुक्लपक्ष, सप्तमीतिथि, शुभयोग, और श्रावण मास, में गृह निर्माण करने से हाथी, घोड़ा, धन सम्पति की प्राप्ति के साथ पुत्र पौत्र आदि की वृद्धि होगी है I
९३. श्रावण, वैशाख और अगहन (मार्गशीर्ष) के महीने गृहनिर्माण के लिए सर्वोत्तम माने गये है I
९४.आप जब भी राजा या बड़े अधिकारी से मिलने जाय तो उस दिन या उस समय श्रवण, धनिष्ठा, उतरातीनों, मृगशिरा, पुष्य, अनुराधा, रोहिणी, रेवती, अश्विनी, चित्रा, स्वाती नक्षत्रों में और रवि, सोम, बुध, गुरु, शुक्र वारों में राजा या अधिकारी से मिलना शुभद होगा I
९५. आप जब भी रोग से मुक्त हो तो जल्दी शुभ मुहूर्त में स्नान करे :-अश्विनी, भरणी, कृतिका, मृगशिरा, आर्द्रा, हस्त, चित्रा, पुष्य, ज्येष्ठा, धनिष्ठा, मूल विशाखा नक्षत्र और रवि, मंगल और गुरु वारों में तथा रिक्ता तिथियों में शुभ एवं स्वस्थ होगे I
९६. आप जब भी गृहनिर्माण करे तो उसमे वृषवास्तु चक्र पर ध्यान दें I आपके सूर्य के नक्षत्र से ८वे से -१८ वें तक जो भी नक्षत्र पड़े उन नक्षत्रों में गृहारंभ होने से घर बहुत दिनों तक स्थिर और लक्ष्मी की प्राप्ति होती है I
९७. आप जब भी गृहनिर्माण करे तो “वास्तुशांति”के समय “वास्तु-पुरुष” की प्रतिमा भूमि की पूर्व दिशा में उचित स्थान (ईशान) पर विधि- पूर्वक स्थापित करें I जिसे उस घर का निरंतर समृर्धि, सुख और सुरक्षा करने की जिम्मेदारी होती है I
९८. वास्तु-पुरुष अपनी दिशा हर तीन महीनें में बदलता रहता है I परन्तु जब वह देवलोंक से मृत्युलोंक में आते है उस समय उनका मस्तक ईशान की ओर तथा पैर नैऋत्य दिशा में रहता है I
९९. आप जब भी शिलान्यास करे तो उस समय अश्विनी, चित्रा, विशाषा, धनिष्ठा नक्षत्र और शनिवार हो या आर्द्रा और शुक्रवार हो तो उस दिन शिलान्यास-नींव का मुहूर्त से धन-धान्य और शुभद होगा I
१००. आप अगर वृहस्पतिवार और तीनों उत्तरा, मृगशिरा, श्रवण, आश्लेषा नक्षत्रों में शिलान्यास करने से पुत्र और राज्य सुख की प्राप्ति योग बनेगा I
१०१. आप जिस व्यक्ति से शिलान्यास का कार्य करा रहे है तो उस व्यक्ति की राशि में गोचर चन्द्र ६, ८, १२ वे भाव स्थानों में नही होना चाहिए I और ये कार्य प्रातःकाल (अर्ध-प्रहर1.1/2) के बाद और मध्यान्ह से पहले करना चाहिए I
१०२. आप जब भी जगह लेने या देखने जाय तो अगर ऊसर भूमि हो तो धन का नाश करनेवाली है I चूहे के बिलोंवाली भूमि भी धन का नाश करनेवाली होती है I दीमक वाली भूमि पुत्र का नाश करनेवाली होती है I फटी हुई भूमि मरण देने वाली होती है I शल्यों (हड्डियों ) से युक्त भूमि क्लेश देनेवाली होती है I ऊंची-नीची भूमि शत्रु बढ़ानेवाली होती है I गड्ढों वाली भूमि विनाश करने वाली होती है I टीलों वाली भूमि कुल में विपत्ति लाने वाली होती है I टेढ़ी भूमि बंधुओं का नाश करनेवाली होती है I दुर्गन्ध युक्त भूमि पुत्र का नाश करनेवाली होती है I
१०३. आप भूमि का परिक्षण इस प्रकार से भी कर सकते है I भूखंड के मध्य में एक हाथ लम्बा, चौड़ा एक हाथ और एक हाथ (चौबीस अंगुली ) गहरा गड्ढा खोदे I फिर खोदी हुई सारी मिटटी पुनः उसी गड्ढे में भरें I यदि गड्ढा भरने से मिट्टी शेष बचे तो वह श्रेष्ठ भूमि है I उस भूमि में निवास करने से धन संपत्ति की वृद्धि होती है I यदि मिटटी गड्ढे के बराबर निकलती है तो वह मध्यम भूमि है I यदि मिट्टी गड्ढे से कम निकलती है तो वह अधम भूमि है I उस भूमि में निवास करने से सुख-सौभाग्य एवं धन-संपत्ति की हानि होती है I
१०४. आप उस भूमि में एक गड्ढा खोदकर उसमे पानी भर दें I आप आधे घंटा के बाद यदि गड्ढे में पानी उतना ही रहे तो वह श्रेष्ठ भूमि है I यदि पानी कुछ कम या आधा रहे तो वह मध्यम भूमि है I यदि पानी बहुत कम रह जाय तो वह अधम भूमि है I यदि उस गड्ढे में कीचड़ दिखे तो उस स्थान में निवास करने से मध्यम फल होगा I यदि गड्ढे में दरार दिखे तो उस स्थान में निवास करने से हानि होगी I
१०५. आप जिस भूमि को लेने जा रहे है उस भूखंड में जुतवाकर सर्वबीज ( ब्रीहि, शाठी, मूंग, गेहूँ, सरसो, तिल, जौ ) बो दें I यदि वे बीज तीन रात में अंकुरित हों तो भूमि उत्तम है I पाँच रात में अंकुरित हों तो भूमि मध्यम है I और सात रात में अंकुरित हों तो भूमि अधम है I
१०६. आप जिस भूमि को लेने जा रहे है उस भूमि में उन वस्तुओं का परीक्षण गड्ढा खोदने पर अथवा हल जोतने पर भस्म, हड्डियाँ, केश, कोयला आदि निकलें वह भूमि अशुभ होने से त्याज्य है I यदि भूमि से लकड़ी निकले तो अग्निका भय, हड्डियाँ निकले तो कुल का नाश, सर्प निकले तो चोर का भय, कोयला निकले तो रोग या मृत्यु, भूसी निकले तो धन का नाश होता है I यदि भूमि से पत्थर, इट, कंकड़, शंख आदि निकलें तो उस भूमि को शुभ समझना चाहिये I
१०७. यदि घर के समीप अशुभ वृक्ष लगे हों और उनको काटने में कठिनाई हो तो अशुभ वृक्ष और घर के बीच में शुभ फल देनेवाले वृक्ष लगा देने चाहिए I यदि पीपल का वृक्ष घर के पास हों तो उसकी सेवा-पूजा करते रहना चाहिए I
१०८. घर के अन्दर वास्तु दोष हों तो मुख्य द्वार के ऊपर सिंदूर से स्वस्तिक का चिह्न बनाएं I यह चिह्न नौ अंगुल लम्बा तथा नौ अंगुल चौड़ा होना चाहिये I घर में जहाँ-जहाँ वास्तुदोष हो, वहाँ- वहाँ यह चिह्न बनाया जा सकता है I
१०९. नारदपुराण के अनुसार –पूर्व, उत्तर और ईशान दिशा में नीची भूमि सब मनुष्यों के लिए अत्यंत वृद्धिकारक होती है I अन्य दिशाओं में नीची भूमि सब के लिए हानि कारक होती है I
११०. आँगन में फलदार वृक्ष लगाने से संतान नही होता या संतान की अकाल मृत्यु होती है I इसलिए बादाम, केला,नीबू, पीपल, बड़, आम, अंगूर, बेर आदि के पेड़ आँगन में न लगाएं I
१११. देवताओं के वृक्ष भी आँगन में नही लगाने चाहिये I केला गन्धर्व का पेड़ है, तो लाल कनेर सूर्यदेव का I शिवजी के बेलपत्र I इसलिए ऐसे वृक्ष आँगन में नही होने चाहिये I
११२. आँगन में दूध वाले वृक्ष धन नाशक होते है I इसलिए पीपल, बरगद, आक आदि का पेड़ कभी नही लगाना चाहिये I इन वृक्षों पर भूत-प्रेत्त की पीड़ा उत्पन्न करता है I तथा कर्त्ता को सदा भयभीत रखता है I
११३. मकान पर मन्दिर या मन्दिर की ध्वजा की छाया नहीं पड़नी चाहिये वह ध्वजा वेध या दोष उत्पन्न करती है I मन्दिर परिसर के सौ फीट यानी १०८ हाथ तक आवास नही होनी चाहिये देवदोष लगता है I नजदीक रहने वालों को अनेकों पीड़ा यथा-रोजी-रोटी, ह्यदय-रोग, मंदबुद्धित्व, पागलपन, शरीर में देवता का आवेश, पित्त-वायु रोग, लकवा आदि से परेशान होना पड़ता है I मन्दिर और मकान के बीच आम रास्ता या दीवार हों तो ध्व्जावेध का मामूली असर होता है I
११४. किसी भी मन्दिर या शिव मन्दिर में भी रहना कष्टदायी होता है I सबसे ज्यादा मानसिक सुख नहीं मिलता है I रूद्र के साथ उनके गण भूत-प्रेत भी मन्दिर में निवास करते है I वे मन्दिर के पास रहनेवालों को कई प्रकार की पीड़ाऍ देते है I रुद्रदेव के उग्र होने से शिवालय के पास रहनेवालों का स्वभाव भी रूद्र जैसा उग्र होता है I परिवार में भाई-भाई, पिता-पुत्र में कलह होता है I
११५. श्रीहनुमानजी के मन्दिर के पास रहनेवालों को शोक, दुःख, मृत्यु, एवं दरिद्रता का शिकार होना पड़ता है I इर्द-गिर्द के मकान जीर्ण होकर गिर जाते है श्रीहनुमानजी शनि के अंश है I इसलिए श्रीहनुमानजी के मन्दिर के आस-पास मकान रहने से शनि के दोष उनमे आकर रहने वालों को सताते है I यानी किसी भी मन्दिर या द्विय स्थान या सिद्ध स्थान के नजदीक रहने से शांति नही ही मिलेगी Iवहा पर पण्डा या साधक भी कुछ ही समय के लिए साथ रहते है I क्योंकि देवता, राजा या बड़े पद धारी लोगों का आवागमन नही देखा जाता है या नही देखना चाहिये I उससे बहुत नुकसान होता सबसे ज्यादा मानसिक, शारीरिक तब आर्थिक नुक-सान करते है I मन्दिर वाले मकान में या मन्दिर के नजदीक घर में रहने वाले कई लोगों की कुण्डली में शापित योग या अशुभ योग देखने को मिलता है I मन्दिर के आस-पास रहने वालों के यहाँ जन्म लेनेवालों की कुण्डलियों में भी ऐसे हानिकारक योग पाए जाते है I
११६. आप घर का गटर या इस्तेमाल किए पानी का पाइप दक्षिण में नही होना चाहिए I ड्रेनेज पाइप नैऋत्य की ओरे से न लें I अगर वहाँ हों तो बहुत साफ़ जगह होना चाहिये I स्नान गृह में धोने ने के कपड़े वायव्य में रखें I आईना (दर्पण) पूर्व या उत्तर में होना चाहिये I हीटर (गीजर) या स्विच बोर्ड आग्नेय में लगाएं I
११७. आप अन्दर के कमरे में या ड्राईंगरुम की दीवारों को लाल, काला नही रंगवाना चाहिये I लाईट कलर या सफेद, पीला, नीला, हरा, या गुलाबी रंग ठीक रहेगा I शयन कक्ष में ड्रेसिंग टेबल उत्तर-पूर्व की ओर होना चाहिये I
११८. वास्तुशास्त्री ( Architecture) लोग आज-कल अटैच्ड टॅायलेट-बाथ का प्रचलन बना रखा है I जो यह अनिष्टकारक है I सुख मिलता है परन्तु शान्ति नही मिलेगी I अगर ऐसा है तो टॅायलेट की सीट पश्चिम दिशा के वायव्य में होनी चाहिए I
११९. गृहारंभ (खात) मुहूर्त्त की कुंडली में केन्द्रस्थान में गुरु, शुक्र, जैसे शुभ ग्रह एवं शनि, मंगल, सूर्य जैसे पाप ग्रह कुंडली के ३, ६, ११ भावों में हो एवं चन्द्र दसवें स्थान में हों तो ऐसे ग्रह योगों पर बना मकान दीर्घायु होता है I उसमें भी गुरु और शुक्र उच्च के हो, षष्ठ भाव में स्थित सूर्य, शनि, या मंगल भी उच्च के हों तो मकान काफी लम्बें समय तक टिका रहता है I
१२०. आप जब भी भूमि देखने जा रहे है तो पूर्व, उत्तर और ईशान दिशा में नीची भूमि सब दृष्टियों से लाभ प्रद होती है I आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य, पश्चिम, वायव्य और मध्य में नीची भूमि रोगों को उत्पन्न करने वाली होती है I
१२१. आपकों नींव खोदते समय यदि भूमि के भीतर से पत्थर या ईट निकले तो आयु की वृद्धि होती है I यदि राख, कोयला, भूसी, हड्डी, लोहा आदि निकले तो रोग तथा दुःख की प्राप्ति होती है I
१२२.वास्तुपुरुष का ह्रदय को ब्रह्म स्थान या अतिमर्म स्थान कहते है इस जगह पर दीवार, खम्भा आदि का निर्माण नही करना चाहिए I इस जगह पर आप झूठे बर्तन या अपवित्र पदार्थ भी नही रखने चाहिये I ऐसा करने पर अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न होते है I
१२३. आप पानी का व्यवस्था कुआँ या भूमिगत टंकी पूर्व, पश्चिम, उत्तर अथवा ईशान दिशा में करनी चाहिये I जलाशय या ऊर्ध्व टंकी उत्तर या ईशान दिशा में होनी चाहिये I
१२४. आप यदि घर बनाने जा रहे है तो उसमें केवल एक कमरा पश्चिम में और एक कमरा उत्तर में हों तो वह गृहस्वामी की लिए मृत्युदायक होता है I या पूर्व या उत्तर दिशा में केवल कमरा हों तो आयु का ह्रास होता है I पूर्व और दक्षिण दिशा में कमरा हों तो वात रोग होता है I यदि पूर्व, पश्चिम और उत्तर दिशा में कमरा हों, पर दक्षिण में कमरा न हों तो सब प्रकार के रोग होते है I यानी दक्षिण के साथ किसी और दो दिशा में कमरा होनी चाहिये I
१२५. आप जिस दिशा में द्वार को बनाने जा रहे है उस ओर की दिशा की भूमि की लम्बाई को बराबर नौ भागों में बाँटकर पाँच भाग दायें और तीन भाग बाएं छोड़कर शेष (बायीं ओर से चौथे ) भाग में द्वार बनाना चाहिये I दायाँ और बायाँ भाग उसकों माने जो घर से बाहर निकलते समय हो I पूर्व या उत्तर में स्थित द्वार से सुख-समृद्धि देनेवाला होता है I दक्षिण दिशा में द्वार से स्त्रियों के लिए दुःखदायी होता है I
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