वास्तुशास्त्र और घर के विभिन्न प्रकार के बारे में जाने | Learn about Vastu Shastra and Different Types of Home
वास्तुशास्त्र और घर के विभिन्न प्रकार के बारे में जाने
Learn about Vastu Shastra and Different Types of Home
***** घर के विभिन्न प्रकार *****
अथैकशालं द्विगुनाणाब्धिशालं मस्तारतो लक्षणामेव तेषाम् I
यथोदितं वास्तुमते तथैव ब्रबीमि राज्ञामथवा जनानाम् II ४१ II
आप जिस घर को बनाने जा रहे है उसमें एक दिशा में एक ही कमरा (शाला) हो और अन्य दिशाओ में कोईऔर कमरा न हो और बरामदा हो, उस घर को “एकशाल” कहते है I
जिस घर में दो दिशाओं दो कमरे हो उसको “दो शाल” (दो कमरा) कहते हैI जिस घर मे तीन दिशाओ में तीन कमरे हो, उस घर को “त्रिशाल” कहते है, और जिस घर की चारो दिशाओं में चार कमरे हो, उस घर को “चतुःशाल” कहते है, या बीच में आँगन हो और चारों दिशाओं में घर बना हो उसी को ”चतुःशाल” कहते है। इस प्रकार वास्तुशास्त्र में घर के अनेक प्रकार है |
प्रथमः (एकशाल)
सर्वे मुखालिन्दसमन्विताश्च दारुद्दिवषट्कं ह्यपवर्कमध्ये I
ततश्च चूडामणिकं प्रभद्रं क्ष्रेमं तथा शेखरमुच्छ्यितश्च II४२ II
मेधं गृहं चैव मनोभवश्च सुभद्रसंज्ञं कथिता च संख्या I
इत्येकशालानि गृहाणि विद्याच्छ्तं च चत्वार्यधिकं ध्रुवादेः II४३II
हमारे वास्तुशास्त्र में जिस घर में एक दिशा में एक ही कमरा दक्षिण में तथा द्वार उत्तर में और चारों ओर बरामदा हो तो “एकशाल” कहते है I यदि एकशाल घर की चारों दिशाओं में द्वार हो तो उस घर को “विश्वमुख” कहते है ऐसा घर सभी मनोरथो की सिद्धि करनेवाला होता है I
यदि आपके घर के कमरे में पश्चिम में कोई द्वार न हो तो उस घर को “विजय” कहते है I ऐसा घर सदा धन सम्पति तथा पुत्रपौत्र की वृद्धि करने वाला होता हैI अगर उत्तर में कोई द्वार न हो तो उस घर को “सूकर” कहते है I
ऐसे घर में सूकरों से अथवा राजा से भय होता है Iआप जिस घर को बनाए है उस घर के पूर्व में कोई द्वार न हो तो उस घर को “व्याघ्रपाद” कहते है I ऐसे घर में पशु तथा चोर से भय होता है,और अगर दक्षिण में कोई द्वार न हो तो उस घर को “शेखर” कहते है I
ऐसा घर सब वस्तुओं तथा रत्नों को देनेवाला होता है I वैसे एकशाल घर १०४ प्रकार के होते है I ज्यादातर अशुभ ही है यानि गरीब या अनपढ़ लोग ऐसे घर में परिस्तिथिवश वास करते है इसी कारण अभी भी ये लोग परेशान रहते है I
द्वितीयः (द्विशाल)
अथ द्विशालालयलक्षणानि पदैस्त्रीभिः कोष्ठकरन्ध्रसंख्या I
तन्मध्यकोष्ठं परिह्रत्य युग्मं शालाश्च्तश्रो हि भवन्ति दिक्षु II ४४ II
आप अगर पश्चिम या दक्षिण दिशाओं में दो कमरे बनाते हो तो उस घर को “सिद्धार्थ” कहते है I ऐसा घर धन-धान्य देनेवाला, क्षेम की वृद्धि करने वाला तथा पुत्रप्रद होता है I
आप यदि पश्चिम और उत्तर में दिशाओं में दो कमरे बनायेगे तो उस घर को “यमसूर्य” कहते है I ऐसा घर गृहस्वामी के लिए मृत्युदायक, राजा, शत्रु,चोर और अग्नि से भय देनेवाला तथा कुलका नाश करनेवाला होता है I
आप उत्तर और पूर्व दिशाओ में दो कमरे बनाएगे तो उस घर को “दण्ड” कहते है I ऐसा घर दण्ड से मृत्यु प्राप्त करनेवाला, अकालमृत्यु देनेवाला तथा शत्रुओसे भय देनेवाला होता है I यदि पूर्व और दक्षिण दिशाओं में दो कमरे हो तो उस घर को ”वात” कहते है I
ऐसा घर सदा कलह करनेवाला, वातरोग देनेवाला, सर्प, चोर, तथा शस्त्र से भय देनेवाला तथा पराजय देनेवाला होता है I यदि आप पूर्व और पश्चिम दिशाओं में दो कमरे हो तो उस घर को “चुल्ली” कहते है I
ऐसा घर धन का नाश करनेवाला, मृत्यु देनेवाला तथा अनेक प्रकार के कष्ट देनेवाला होता है I यदि दक्षिण और उत्तर दिशाओं में दो कमरे हो तो उस घर को “काच” कहते है I ऐसा घर बंधुओं से विरोध करनेवाला तथा भयदायक होता है I इस तरह द्विशाल घर कुल ६४ प्रकार के होते है I
तृतीय (त्रिशाल)
अथ त्रिशालं त्रिदशं पणैकं स्यात्त्रैदशावाससुरूपसंज्ञे I
तथा चतुर्थ कुमुदाभिधानं ह्स्यादिभेदैः क्रमतो विधेयम् II४५ II
आप जब घर बना रहे है तो उस मकान के भीतर केवल उत्तर दिशा में कोई कमरा न हो तो उस घर को ”हिरण्य” या “धान्यक” कहते है I ऐसा घर क्षेमकारक, वृद्धिकर्क तथा अनेक पुत्र देनेवाला होता है I यदि पूर्व दिशा में कोई कमरा न हो तो उस घर को “सुक्षेत्र” कहते है I
ऐसा घर धन,पुत्र, यश और आयु को देनेवाला तथा शोक और मोह का नाश करनेवाला होता है I यदि दक्षिण दिशा में कोई कमरा न हो तो उस घर को “विशाल” कहते है I ऐसा घर धन का नाश करनेवाला, कुल का क्षय करनेवाला और सब प्रकार के रोग तथा भय देनेवाला होता है I
आप यदि घर में पश्चिम दिशा में कमरा न बना रखे है तो उस घर को ”पक्षघ्न” कहते है I ऐसा घर में मित्र, भाई-बन्धु तथा पुत्रोंका नाश करने वाला,अनेक शत्रुओ को उत्पन्न करनेवाला तथा सब प्रकार के भय देनेवाला होता है I इस तरह त्रिशाल घर २५ प्रकार के होते है I
चतुर्थ (चतुःशाल)
भवननवकमुक्तं तच्चतुःशालमध्या
न्नयनलघुमुखे स्याद्यक्षिणै केन चंद्रम्I
भवति सदनमध्ये सर्वतो दारुषट्कं
द्वितयमपि च तेषामन्तिमं युग्मयुग्मम् II४६ II
जिस घर में चारों दिशाओं में घर चार दरवाजे हो उस घर को सर्वतोमुखी घर को “सर्वतोभद्र” कहते है I ऐसा घर राजा और मन्दिर के लिए शुभ होता है,सामान्य व्यक्ति के लिए नही होता है I यदि उस महल में केवल पश्चिम दिशा में द्वार न हो तो उस महल को “नन्द्यावर्त“ महल कहते है I
अगर यदि केवल दक्षिण दिशामें द्वार न हो तो उस महल को “वर्धमान महल” कहते है I अगर यदि केवल पूर्व दिशा में द्वार न हो तो उस महल ”स्वस्तिकमहल” कहते है I और यदि केवल उत्तर दिशा में द्वार न हो तो उस महल को ”रुचकमहल” कहते है I इस तरह चतुःशाल ८ प्रकार के होते है I
वामाङगे धनवस्त्रदेवभवनं धातुश्रियो वाजिनो
भार्यास्त्वौषधभोजनस्य भवनं स्याद्वाटिका वामतः I
वव्ह्वेर्गोजलदन्तिशस्त्रसदनं स्त्रीणां तथा दक्षिणे
स्थानं माहिषमाजमौ्र्णीकमिदं याम्याग्निमध्ये शुभम् II४७ II
अर्थात् --> आप अगर सक्षम हो तो अपने इन(सदस्य) सभी के लिए अलग अलग कमरा धन, वस्त्र, देव, धातु, लक्ष्मी, अश्व, स्त्री (रानी), औषध और (रसोईघर) वाम भाग साथ ही वाटिका भी वाम भाग में ही बनाना चाहिये, और अग्नि ,गौ, जल,हाथी (गाड़ी) और शस्त्र आदि का घर दक्षिण भाग में बनाना और अन्य स्त्रियों का भी दक्षिण भाग में ही होना चाहिये, तथा भैस, बकरा और भेड़के लिए जगह अग्नि या दक्षिण कोण के बीच में बनाना चाहियेI
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धन्यवाद
बाह,बड नीक लागल।वास्तुरहस
जवाब देंहटाएंयम् किताब कोना उपलब्ध होयत से कनि बतयबाक कृपा करब।
https://ekaro.in/enkr2020081144581856
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