Shani Aur Saadhesati Ke Baare Me Jaane - शनि की साढ़े साती और ढैय्या पर एक दृष्टि By Astrologer Dr. S.N. Jha
Shani Aur Sadhesati Ke Baare Me Jaane
शनि की साढ़े साती और ढैय्या पर एक दृष्टि By Astrologer Dr. S.N. Jha
चतुर्भुजः सुर्यसुतः प्रशांतो वरप्रदो मेऽस्तु स मन्दगामी II
शनि भगवान् नील आभा वाले, शूल और मुकुट धारण करनेवाले,गृध्र पर विराजमान,जगत को रक्षा करनेवाले, धनुष को धारण करनेवाले,चार भुजा वाले, शान्तस्वभाव एवं मन्द गतिवाले है , ये सूर्य पुत्र शनि मेरे लिए वर दे I
भगवान् :”सूर्य और चन्द्र” पर ग्रहण “राहु” लगाता है तो मनुष्य के जीवन में ग्रहण “शनि” लगाते है जो जीवन काल में कई बार लगाते है बड़े काल को साढेसाती और छोटे काल को ढैया कहते है I
अगर शनि ग्रह शुभ है तो आशा से ज्यादा लाभ मिलेगा, परन्तु अगर शनि अशुभ है तथा आप से कोई जीवन में बड़ा गलती हो गई तो फिर आपकों पुर्णतः चक्रव्यूह में फसा करके अन्तिम काल तक नाना प्रकार के कष्ट देते रहेग,
जब तक कष्ट पूरा नही हो जाता तब तक मृत्यु नही होने देते है I आपकों देवी-देवतओं द्वारा दिया हुआ कष्ट है तो पूजा-पाठ से कम कर सकते है परन्तु स्वार्जित कष्ट को भोगना ही पड़ता है उस पर पूजा-पाठ का कोई असर नही पड़ता है I
जन्मे
रसे रूद्रसुवर्णपादौ द्विपंचनंदा रजतः शुभः स्यात् I
त्रिःसप्तदिक् चेद्यदि ताम्रपादश्चतुर्थमकार्ष्टमलोहपादः II
शनि प्रत्येक राशि में ढाई वर्ष भ्रमण करने पर अगले राशि में भ्रमण करना आरम्भ करता है I गोचर वश शनि जब जन्म राशि से ४/८/१२ भाव में रहता है तब विशेष रुप से अनिष्ट फल देता है I
शनि जब १२ भाव में आता है तब से प्रारंभ कर द्वितीय भाव तक अर्थात १२/१/२ भाव में जब तक रहता है उसको लोग शनि की साढ़े साती कहते है I इस प्रकार जब शनि की दशा शुरू होती है तब गोचर वश चन्द्र यदि १/६/११ भाव में हो तो सुवर्ण पाद, २/५/९ भाव में हो तो रौप्य पाद, ३/७/१० भाव में हो तो ताम्र पाद तथा ४/८/१२ भाव में हो तो लोह पाद होता है I यदि शनि की दशा रौप्य या ताम्र पाद से शुरू हो तो शुभ, यदि सुवर्ण पाद से हो तो मध्यम तथा लोह पाद से शूरः हो तो अत्यंत अशुभ होता है I यदि जन्म कुण्डली में शनि अशुभ फलद हो और गोचर में भी लोह पाद हो तो साढ़े साती जातक को बहुत ही ज्यादा कष्ट यानि “सर्वनाश योग” कहा जाता है I
आपके कुंडली में जब भी चंद्र राशि से गोचर वश कुण्डली में शनि द्वादश, लग्न और द्वितीय भाव में विचरण करते है तो साढ़ेसाती (७ वर्ष /६ महिना ) कहलाती है I तथा चन्द्र राशि कुण्डली से चतुर्थ और अष्टम भाव में जब शनि विचरण करने पर ढैय्या (२वर्ष/६ महिना ) का प्रवेश होता है |
यह सामान्यतया शारीरिक, मानसिक और आर्थिक कष्ट देता है | परन्तु शनि और राहु कभी भी किसी जातक को कष्ट नही देते है बल्कि ये दोनों ग्रह आपके द्वारा शुभाशुभ कर्म को परिभाषित करते हुए दण्ड देते है अगर अच्छा कर्म करेगे तो पुरस्कार देगे नही तो आर्थिक, मानसिक, राज्य से दण्ड या “बंधन योग” भी बना देते है |
द्वादशे
जन्मगे राशौ द्वितीये च शनैश्चरः I
सार्द्धानि सप्तवर्षाणि तदा दुःखैर्युतो भवेत् II
शनि जन्मराशि में हो तो प्रथम सिर में, द्वितीय ह्रदय में, तृतीय में होने से पैर पर उतरता है I चतुर्थ भाव (सुख का भाव ) और अष्टम ( गुप्त भाव ) दोनों जगह भी शनि महाराज अपनी तीक्ष्ण दृष्टि से देखते जिसे ढ़ैया कहते है I जातक के जीवन में दो या तीन बार साढ़े साती का प्रवेश होता है I जिसका प्रभाव इस तरह से होता है :-----
१ . प्रथम साढ़ेसाती का प्रभाव विद्या, उसकी विचार धारा, मानसिक और माता-पिता पर पड़ता है |
२ . द्वितीय साढ़ेसाती का प्रभाव कार्यक्षेत्र, आर्थिक स्थिति और परिवार पर प्रभाव पड़ता है |
३ . तृतीय साढ़ेसाती का प्रभाव स्वास्थ्य पर अधिक पड़ता है |
जन्म राशि से प्रत्येक राशि में शनि ढाई वर्ष की गति से बारह राशि का भ्रमण ३० वर्ष में पूरा करता है I परन्तु सूक्ष्म दृष्टि से विचार करने पर सुज्ञ पाठकों को यह ज्ञात होगा कि जन्म समय चन्द्र जितने अंश में हो उतने ही अंश पर अर्थात् प्रत्येक मास में एक अंश पूरा करते जब वह पहुचता हो उसी दिन से शनि की साढ़े साती सूक्ष्म दृष्टि से आरम्भ हुई, ऐसा समझना चाहिये और इसी अंश पर पहुचने पर शनि अपना शुभ या अशुभ फल देना आरम्भ करता है I यह फलित करते समय ध्यान में अवश्य रखना चाहिये I
स्थूल मान से शनि की साढ़े साती समाप्त होने पर वह जन्म राशि से तीसरे भाव में प्रयाण करते ही साढ़े साती समाप्त हुई ऐसा समझना गलत है परन्तु सूक्ष्म दृष्टि से तीसरे भाव में प्रवेश करने के पश्चात् जब शनि का भ्रमण चन्द्र के अंश तक पहुचने के पश्चात् साढ़े साती यथार्थ में समाप्त हुई ऐसा फलित के दृष्टि से समझना ही योग्य है I
यथा मान लो कर्क(२०° पर ) राशि है तो मिथुन,कर्क और सिंह (९०°) हुआ ही आप मानते है या जानते हैI जन्म समय कर्क राशि में चन्द्र २०° का है तो शनि मिथुन राशि २०° प्रवेश से लेकर कन्या राशि के २० अंश तक यानी ९०° हुआ I मिथुन राशि २०° उसी दिन से साढ़ेसाती आरम्भ समझी जायगी कन्या राशि के २० अंश पर समाप्त होगा Iजो अर्थात् १ वर्ष आठ महीने के पश्चात् वह समाप्त हुई, ऐसा समझना उचित होगा I तात्पर्य मिथुन राशि२०° बीत चूका है तो बाकी १०°+ कर्क३०°+सिंह ३०°+ कन्या२०° = ९०° हुआ I १०° का अर्थ १० महिना हुआ+कर्क का ३० महिना +सिंह का ३० महिना+कन्या का २० महिना भ्रमण करने से साढ़ेसाती वर्ष पूरा हुआ I ऐसा समझना शास्त्र शुद्ध है I वैसे आपको यही पता है कि कर्क राशि है तो मिथुन,कर्क और सिंह हुआ परन्तु सूक्ष्म विचार या यु कहे सही विचार अंश से ही होता है I तो कन्या के २०° तक गया है I
जन्म कुंडली में शनि यदि अशुभ फलदाई हो और अपने साढ़े साती के काल में अशुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो चाहे वे जन्म गोचर ग्रह हो तो वह जातक को इतना भयानक अशुभ फल देगा कि जिसका उसे आजन्म स्मरण रहेगा I भले ही वह नास्तिक मत का क्यों न हो परन्तु शनि की साढ़े साती आरम्भ होते ही अपने शुभ या अशुभ फल से उसके परिस्थिति में इतना परिवर्तन निर्माण करता है कि अंत में वह विश्वास करने के लिए बाध्य होता है I मनुष्य के जीवन काल में ऐसे दो विकट समय आते है कि उसे आकाशस्थ ग्रहों के शुभाशुभत्व पर पूर्ण रुप से विश्वास प्रकट करना होता है और यह दो प्रसंग एक शनि की साढ़े साती और दुसरे लड़की की शादी है I
प्रत्येक पिता के हृदय में अपने लड़की के प्रति यह इच्छा होना स्वाभाविक है कि उसका विवाह सुविद, रुपवान, गुणवान्, धनवान, तथा भाग्यवान वर से हो और इस दिशा में भरसक प्रयत्न करने के पश्चात् यश प्राप्त करने पर जब लड़की को दुर्भाग्यवश वैधव्य प्राप्त होता है तब वह अपने प्रयत्न या इच्छा को वृथा या शक्तिहीन समझ कर भाग्य, दैव, नसीब, प्रारब्ध, तकदीर,ईश्वरीय इच्छा या पूर्वजन्म के अशुभ कर्मादिक फल आदि शब्दों का आश्रय लेकर अपने मन का बोध कर लड़की के मन को समाधान देने का प्रयत्न करता हैI इसके विपरीत गरीबी लड़की अपने से अच्छे ऊचें कुलोत्पन्न, सुविद्य वर से विवाहित होने पर सुख एवं वैवभ युक्त करते हुए पाते है तब वे अपने विपरीत परिस्थिति एवं प्रयत्न पर विचार करके लड़की के भाग्य का विचार करते हुए इस निष्कर्ष पर पहुचते है कि वे केवल जन्म देने के अधिकारी है, कर्म देने के लिए नहीं जो कि किसी अदृश्य एवं अद्वितीय शक्ति या परमात्मा से उसके पूर्व जन्म के कर्मानुसार उसे प्राप्त हुई है जिसमें यह आचार शक्ति विद्यमान है
इसी तरह शनि अपनी दशा या साढ़े साती के अशुभ काल में पहाड़ इतना ऊंचा प्रयत्न करने पर, राई समान अल्प फल मिलता है I परिस्थति विपरीत होकर घोर प्रयत्न निष्फल हो जाते है एवं राजा को भी एक क्षण में रंक बनाकर वह जब अपना प्रभाव मनुष्य को दिखाते है I तब उसे आकाशस्थ ग्रहों में अद्वितीय एवं आचार शक्ति है यह मान्य करना पड़ता है परन्तु शनि यदि शुभ हो तो वह अपने साढ़े साती के काल में निर्धन को धनी भी बनाकर पर्वत के शिखर पर बैठाते है ऐसे कई उदाहरण है I
आकाशस्थ ग्रहों के सब ग्रहों में शनि ग्रह सबसे प्रबल और बुद्धिमान है कि वह अपने शुभाशुभ का परिचय या प्रमाण मानवीय प्राणी को ही नही किन्तु ईश्वरीय विभूतियों, महर्षियों, देवताओं, या प्रतापी राजाओं को भी दिखाया है I यथा शनि महाराज अपने साढ़े साती काल में श्रीराम, रावण, महर्षि वशिष्ठजी के शतपुत्रों का नाश, श्रीकृष्णजी को स्यमन्तक का कलंक,गुरु बृहस्पति को, भगवान् शंकर को कैलाश में छिपने के लिए बाध्य किया I अपने पिता भगवान् सूर्य को भी उन्होंने ने छोड़ा नही I
शनि ग्रह मार्गद्रष्टा होते है जो भी सृष्टि में अपने मार्ग से भटक जाते है उनको सही मार्ग पर केवल शनि अपने दण्ड से जो जातक कितना भी बड़ा हो अगर कुमार्ग पर चला तो उतना उसको दण्ड देकर सही मार्ग पर लाते ही है यथा शनि ग्रह अशुभ फल दिखने के पूर्व ही शूरों की शूरता, वीरों की वीरता, अधिकारियों की सत्ता, विद्वानों की बुद्धिमत्ता, विचारवान् लोगों का मन, धनिकों का धन आदि का हरण कर अकल्पित भयानक परिस्थिति का निर्माण कर जातक को इतना विचार शून्य कर देता है तथा अंत में उसे घोर संकट में डालकर जर्जर करते हुई राजदण्ड भोगने का भी भागी बनाते है I
अगर शनि महाराज शुभ होगा तो जातक को अपने साढ़े साती के काल खण्ड में सुख, शान्ति, समृधि एवं ऐश्वर्य के शिखर पर पहुचाकर उसे हर प्रकार के सुख, ऐश्वर्य, संतति, पद, धन, आभूषण, घर-द्वार, सब उच्च कोटि प्रदान कर एक श्रेष्ठ जातक बना देते है I
जन्म कुण्डली में कोई भी ग्रह अशुभ (मारक या मारकेश), पापी या कष्टदायी है परन्तु यदि नीच या कमजोर हो गया तब तो वह पाप फल यानि कष्ट नही दे पायेगा क्योंकि कमजोर हो गया I परन्तु अगर ये उच्च, बलवान, या अपनी दशा काल में गोचर वश बलवान हो गया तो बहुत ही ज्यादा कष्टदायी समय होगा और वह कष्ट जिस भाव का स्वामी होगा I उस भाव से सम्बंधित कष्ट प्रदान करेगा I
परन्तु कुण्डली में शनि ग्रह उच्च अंश, राशि, भाव, मित्र से युक्त, या दृष्टि होने से जातक सहन शील, सूक्ष्म विचार, तुलनात्मक बुद्धि, दूरदर्शी, निश्चयात्मकता, निष्पक्षता, तत्त्व ज्ञान, न्याय आदि सद्गुणों का केन्द्र स्थान बनकर नियम, कायदा, कर्त्तव्य बुद्धि का नम्रतापूर्वक पालन करने वाले होते है I
शनि प्रधान जातक तत्त्व ज्ञानी रहता है वह अपने गुणों से प्रत्येक सांसारिक मनुष्य के नेत्र पर मोह-माया जाल में ढका मन और आत्मा रुपी बुद्धि को प्रज्वलित कर उस जातक को आत्मोन्नति की दिशा में ले जाते है जिसे बाद में एक सिद्ध हस्त मनुष्य बन समाज को आगे ले जाते है I इस प्रकार शनि एक अपार शक्तिमय ग्रह के प्रति श्रधा मात्र से सब काम बन जाता है I
संसार के मायाजाल में फसे हुए मनुष्य को शनि ग्रह अपने तीक्ष्ण दण्डों के प्रहार से पहले मानसिक कष्ट, उतरोत्तर सामाजिक कष्ट, जातक को दे कर समझाते है उसके बाद और ज्यादा कष्ट, मृत्युतुल्यं कष्ट, सन्तति कष्ट, सम्पत्ति धन कष्ट, स्त्री नाश कर उसे जागृत करता है यानी जातक जैसे समझे वैसे समझाने का शनि ग्रह प्रयास कर ऐश्वर्य से दूर करते करते उसका ध्यान ईश्वर की ओर आकर्षित करने के लिए सहायता प्रदान करते है I जिसे ९९ % मनुष्य कष्ट कहते है I दुसरे दृष्टि से विचार करने पर सुज्ञ पाठकों को यह ज्ञात होगा कि शनि सब ग्रहों में एक ही ऐसा ग्रह है जो कि ऐहिक सुख से पारमार्थिक सुख तथा स्वार्थ की अपेक्षा परमार्थ का सबक सिखाकर उसका भविष्य जीवन अधिक उज्जवल करता है I
इस तरह शनि ग्रह मानवी जीवन को ऊंचा करने के लिए अशुभ फल द्वारा ऊंचा कार्य करता है I दूसरी दृष्टि से विचार किया जाय तो यह मनना होगा कि जो धर्म कार्य और अटूट श्रद्धा धर्म ग्रन्थ या धर्मो-पदेशक द्वारा काफी समय तक मनुष्य के मन में उत्पन्न नही किया जा सकता उस कार्य को यह शनि ग्रह पृथ्वी से काफी दूर होते हुए भी अपने साढ़े साती के काल में एक ही क्षण में पूर्ण करने का सामर्थ्य रखता है और उसका वर्त्तमान या भावी आयुष्य भी अत्यंत श्रेष्ठ बना देता है इससे यह स्पष्ट सिद्ध होता है I
शनि ग्रह मनुष्य को अपनी पूर्व जन्म के पाप कर्मों के फल भोगने के लिए उसने यह जन्म पाया है यह विवेक बुद्धि उसके मन में उत्पन्न कर उसे शान्त चित्त से भोगने के लिए धैर्य और शक्ति प्रदान करता है I पूर्व जन्म के पाप कर्मों का संचित्त फल नाश हो रहा है इस आनन्दित वृत्ति से दुखों को सहन करना और काल-क्रमण करना यह श्रेष्ठ विचार इस ग्रह के द्वारा ही मनुष्य को प्राप्त होता है I
अगर जातक के कुंडली शनि कष्ट दायी हो तभी इस प्रभाव को कम करने के लिए जन्मतः या गोचर या साढ़े साती किसी भी कुंडली में अशुभ फलदायी हो तो इसका ज्ञान ज्ञानी ज्योतिषियों द्वारा पूर्व से ही प्राप्त कर उसके अशुभ फल को निष्फल या छोटा आकार करने के उदेश्य से अपने वेदानुसार( आप किस वेद के इलाका के है उसके चारों वेदों का अपना अपना क्षेत्र है यथा ऋग्वेद वाले-अथर्ववेद न करे ऋग्वेद से ही मन्त्र करने से ज्यादा लाभ होगा ) शास्त्रोक्त मंत्र, तंत्र, उपवास, तथा हनुमानजी का दर्शन नित्य या शनिवार के दिन करना आवश्यक होता है I
शनि का द्वादश राशि साढे साती का प्रभाव :----
शनि के साढ़े साती के काल में अर्थात् ७
वर्ष ६ महिना के काल में से कौन-सा काल शुभ या अशुभ फलदायी होगा I ये शुभाशुभ फल
तात्कालिक (जन्म कुण्डली ) से भावगत केंद्र या त्रिकोण में है उससे भी फल पर असर
पड़ता है I केवल राशि से ही नही विचार करनी है I वैसे नीचे राशि गत है :---
१. मेष राशि-का जातक का हो तो मीन राशि का पहला ढाई वर्ष का काल शुभ, मध्यकाल ढाई वर्ष अत्यंत अशुभ ( शारीरिक या द्रव्य हानि तथा अंतिम ढाई वर्ष साधारणतः शुभ दायी रहता है I
२. वृष राशि – मेष राशि का ढाई वर्ष अशुभ,वृष राशि का ढाई वर्ष शुभ और मिथुन राशि का ढाई वर्ष धन लाभ का समय होता है I
३. मिथुन राशि-वालो के लिए साढ़े साती शुभ तीनों चरण शुभ होता है अर्थात मिथुन लग्न और राशि के लिए शनि ग्रह शुभ होता है I
४. कर्क राशि-मिथुन राशि ढाई वर्ष शुभ, कर्क राशि ढाई वर्ष शुभ परन्तु सिह राशि का ढाई वर्ष अशुभ रहता है I
५. सिंह राशि -कर्क राशि का ढाई वर्ष अशुभ, सिंह राशि का ढाई वर्ष अशुभ तथा कन्या राशि का ढाई वर्ष शुभ रहता है I
६. कन्या राशि-सिंह राशि का ढाई वर्ष अशुभ, कन्या राशि का ढाई वर्ष शुभ और तुला राशि का ढाई वर्ष प्रबल शुभ रहता है |
७.तुला राशि- कन्या राशि ढाई वर्ष शुभ, तुला राशि का ढाई वर्ष उत्तम काल और वृश्चिक राशि का अत्यंत अशुभ फल दे सकता है I
८. वृश्चिक राशि- तुला राशि का ढाई वर्ष अत्यंत श्रेष्ठ, वृश्चिक का अनिष्ट फल तथा धनु का ढाई वर्ष सामान्य फल मिलता है I
९. धनु राशि-वृश्चिक राशि का ढाई वर्ष अशुभ, धनु का ढाई वर्ष शुभ तथा मकर राशि का ढाई वर्ष सामान्य फल देते है I
१०. मकर राशि- धनु राशि का ढाई वर्ष शुभ, मकर राशि का उत्तम फल और कुम्भ राशि का उत्तमोत्तम फल देता है I
११. कुम्भ राशि- धनु राशि का ढाई वर्ष साधारण, कुंभ एवं मीन राशि का ढाई वर्ष उत्तम काल होता है I
१२. मीन राशि- कुम्भ राशि का ढाई वर्ष शुभ, मीन राशि का ढाई वर्ष शुभ तथा मेष राशि ढाई वर्ष अशुभ रहता है I
उपर्युक्त साढ़ेसाती बारह राशियों में जो बताएं है यह सामान्य नियम है परन्तु हरेक जातक के कुण्डलीं का फल अलग अलग रहेगा क्योंकि ग्रहों का अंश, भाव, शुभाशुभ ग्रहों की दृष्टि, युति आदि का विचार करने के उपरान्त ही आप सही फल बता पाएगे I
यह सुयोग्य पाठकों को ध्यान में रखना चाहिये कि चन्द्र के साढ़ेसाती के अतिरिक्त लग्न और सूर्य लग्न से भी साढ़ेसाती के समय जातक को शुभाशुभ फल मिलता है I लग्न के साढ़े साती के काल अर्थात् साढ़े सात वर्ष में शुभाशुभ ग्रहों के युति या दृष्टि के अनुसार शुभाशुभ फल शारीरिक सुख, आरोग्य, बीमारी, हानि-लाभ, यश-अपयश मिलना स्वाभाविक है I
उसी तरह सूर्य के साढ़ेसाती के काल में शनि का भ्रमण रहते तक उद्योग-धन्धा, अधिकार, मान-सम्मान, सुख-दुख, यश-अपयश प्रत्येक जातक को मिलता है I इसका पूर्ण ध्यान रख कर आप फलित करे मैंने तो कई कुंडली में सूर्य और लग्न के आगे पीछे शनि निकलते समय बहुतों को परेशान होते हुए और पूर्ण कष्ट पाते हुए पाया हूँ I
जातक के कुण्डली में गुरु की पूर्ण दृष्टि शनि पर हो तो साढ़े साती का काल प्रायः शुभदायी होता है I शनि की साढ़े साती जिस तरह अशुभ फलदायी है उसी प्रकार वह शुभदायी भी होती है I
जातक के कुण्डली में शनि यदि ६/८/१२ भाव में हो या अशुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तो साढ़े साती का फल अशुभ मिलेगा I चन्द्र कुण्डली में २ या १२ वे भाव सूर्य, मंगल, राहु से युक्त हो तो अशुभ फल मिलेगा I
चन्द्र यदि कुण्डली में निर्बली हो या शुभ ग्रहों से दृष्ट न हो तो साढ़ेसाती का फल अशुभ मिलना निश्चित है I चन्द्र यदि शत्रु या वृश्चिक राशि का हो या मंगल, राहु, केतु के साथ हो, या दृष्ट हो तो साढ़े साती ख़राब उस पर दृष्टि हो तो साढ़ेसाती शुभ रहेगा I साथ ही चन्द्र बुध, गुरु, शुक्र से युक्त या दृष्ट हो तो भी साढ़ेसाती शुभ फल देगा I चन्द्र शनि से दृष्ट या युक्त हो तो तामसी वृत्ति का तथा मंगल से दृष्ट न हो तो शुभ फल मिलेगा I दूसरे ग्रहों द्वारा कष्ट देने पर ध्यान नही देना या सावधान नही होना उसके बाद शनि जो दंडाधिकारी है सारे जिम्मेदारी लेकर जातक को तब अपनी दशा काल में पूर्ण कष्ट देने आते है I
शान्त्यर्थ---शनि को शान्ति या शमन करने के लिए आप
अपने धर्म के अनुसार लौकिक, वैदिक या तांत्रिक रूप से सूर्य भगवान् का आराधना, श्रीहनुमानजी
की आराधना, या अपने कुलदेवता या इष्टदेवता का आराधना करने से पूर्ण और जल्दी लाभ
प्राप्त करेगे I वैसे शनि महाराज के पूजा करने से शनि और बलवान हो जायेगे जिससे परिस्थितियां
या कष्ट और ज्यादा भयानक न हो जाय I आप अपने समाज या पद्धति के अनुसार शान्त्यर्थ जो
संभव हो जरुर करें I
ज्योतिर्विज्ञान
विभाग,
लखनऊविश्वविद्यालय,
लखनऊ|
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