Kundli Se Mahatvapoorna Vichaar - कुंडली से महत्वपूर्ण विचार Horoscope And Astrology रोगीरिव्यसनक्षतानि वसुधापुत्रारितश्चिन्तये- दुक्तं रोगकरं तदेव रिपुगे जीवे जितारिभवेत् I षण्ढोऽरीशबुधौ विधुन्तुदयुतौ लग्नेशसम्बन्धिनौ लिङ्गस्यामयकृद् व्रणेन रुधिरः षष्ठे सलग्नाधिपः II कुण्डली के षष्ठ भाव से रोग विचार किया जाता है I इससे रोग, शत्रु, व्यसन और क्षत (चोट) आदि रोग का कारक ग्रह षष्ठ भाव, शनि, मंगल और राहु होते है I ये रोग देने वाले होते है I उसका स्वामी जब लग्नेश से सम्बन्ध बनाता है तो शरीर से संबंधित कष्ट मिलता है I षष्ठ भाव में यदि गुरु स्थित हों तो जातक शत्रुञ्जयी होता है I यदि षष्ठ भाव का स्वामी बुध और राहु के साथ युत हों और लग्नेश का सम्बन्ध हों तो नपुंसक होता है I वैसे कष्ट कई प्रकार के होते है और सभी कष्ट बड़ा -बड़ होता है यथा मानसिक कष्ट, आर्थिक कष्ट, सामाजिक कष्ट, भौतिक कष्ट, पारिवारिक कष्ट, नैतिक कष्ट, व्यवहारिक कष्ट, सांसारिक कष्ट, धार्मिक कष्ट और बहुत सारे कष्ट होते है I ये पाँच बातें भाव को कम-जोर करते है I जितनी अधिक पापी ग्रह स्थिति होगी उतना ही उस भाव ...
मैं सुनील नाथ झा, एक ज्योतिषी, अंकशास्त्री, हस्तरेखा विशेषज्ञ, वास्तुकार और व्याख्याता हूं। मैं 1998 से ज्योतिष, अंक ज्योतिष, हस्तरेखा विज्ञान, वास्तुकला की शिक्षा और अभ्यास कर रहा हूं | मैंने राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान तथा लखनऊ विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य | मैंने वास्तुकला और ज्योतिष नाम से संबंधित दो पुस्तकें लिखी हैं -जिनके नाम "वास्तुरहस्यम्" और " ज्योतिषतत्त्वविमर्श" हैं | मैंने दो पुस्तकों का संपादन किया है - "संस्कृत व्याकर-सारः" और "ललितासहस्रनाम" |