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Kya Aapki Kundli Me Raj-Yog Hai? राजयोग - Rajyog In Astrology By Astrologer Dr. S. N. Jha

Kya Aapki Kundli Me Raj-Yog Hai?

राजयोग - Rajyog In Astrology By Astrologer Dr. Sunil Nath Jha

   Kya Aapki Kundli Me Raj-Yog Hai? राजयोग - Rajyog In Astrology By Astrologer Dr. Sunil Nath Jha

यस्य योगस्य यः कर्त्ता बलवान् जितद्रियुतः I

अधियोगादियोगेषु स्वदशायां फलप्रदः II


अर्थात्-    योगकारक ग्रह गोचर में जब बलवान् (वर्गोत्तम) होकर और  बलवान् ग्रहों से दृष्ट या युत हो तो उसकी दशाकाल में उसके फल की प्राप्ति होती है I राजयोग का अर्थ जातक के अपने कुल, वंश या समाज में सबसे उच्च पद प्राप्त होना होता है I जो देश, काल और पात्र तथा ग्रहों के अनुसार उत्तम या उत्तमोत्तम समय काल को राजयोग कहते है I जातक के जीवन में योगों का वर्णन किया गया है जो तीन प्रकार के देखने को मिलता है प्रथम राजयोग अर्थात् सुख योग, द्वितीय दरिद्र योग अर्थात् दुःख योग और तृतीय शारीरिक कष्ट अर्थात् रोग योग I


किस जातक को कब और कौन सा योग प्राप्त होगा या नही .? वह उसके कुंडली में  ही निर्धारित रहता है कैसे कब कोई योग मिल सकता है I यदि ग्रहों का संयोग शुभ और शुद्ध होगा तो उत्तम राज योग बनता है, यदि शुभ और अशुभ ग्रहों का संयोग से बना तो पद या धन प्राप्त करने के बाद कष्ट योग मिलता है तथा बिलकुल पापी ग्रहों का ही संयोग बनता है तो उस अवस्था में उन ग्रहों के कारण कष्ट का योग बनता है I आपके कुंडली में राजयोग है कि नही I अगर है तो अपने जीवन काल में प्राप्त होगा या नही उन ग्रहों का दशा, अन्त्तरदशा, प्रत्यान्तरदशा, सूक्ष्मदशा या प्राणपद में कौन सा दशा मिलेगा.. कि ..नही ..?  

            केन्द्रेश और त्रिकोणेश का आपस मे सम्बन्ध होना 'योग' कहलाता है । 'राज' शब्द ऐश्वर्य-बोधक है इस कारण कुण्डली में कोई भी योग हो, यदि उसका फल शुभ, धनकारक, समृद्धि या उत्कर्ष करने वाला होता है तो उसे ज्योतिषियो की भाषा में 'राजयोग' कहते हैं। ऐसा राजयोग किस हद तक फल दिखायेगा यह आपकी अपनी कुण्डली की अन्य ग्रहो के बलाबल पर तथा देश, काल, पात्र पर निर्भर होता है। योगो की सख्या अपरिमित है। यहाँ केवल त्रिकोण और केन्द्र के स्वामी का योग 'राजयोग होता है, बहुत से लोग केन्द्रेश व त्रिकोणेश योग को "लक्ष्मी-विष्णु सयोग" भी कहते है। शुभ फल होना स्वाभाविक ही है। किसी भी केन्द्रेश का किसी भी त्रिकोणेश से सबन्ध हो तो वह राजयोग कारक होता है। केंद्रत्रिकोणनेतरौ दोषयुक्तावपि स्वयम् I सम्बन्धमात्राद्वलीनौ भवेतां योगकारकौ II केन्द्रेश-त्रिकोणेश मे भी तारतम्य होता है । नवमेश- दशमेश का सबन्ध जितना योगकारक हो सकता है उतना चतुर्थेश-पचमेश का नही । इसी प्रकार किसी व्यक्ति की जन्म कुण्डली मे नवमेश-दशमेश दोनो एक साथ दशम मे बैठे हों तो अधिक योगकारक होंगे। और साथ ही ये संयोग जन्माङग होने से नही के बड़ाबड़ परन्तु नवांश कुण्डली में होने से पूर्ण फल का अधिकारी आप बनते है यही दोनो ग्रह यदि एक साथ अष्टम मे बैठे हो तो उतना शुभ फल कैसे दिखा सकते हैं ? यह सब अपनीबुद्धि से ऊहापोह करके समझना चाहिए। राजयोग जन्मकुंडली और नवमांश के साथ गोचर में भी शुभ ग्रहों के स्थान या दृष्ट सम्बन्धों से फल होते है :- नवमेश मंत्री होता है किन्तु पञ्चमेश विशिष्ट मंत्री होता है i इन दोनो में परस्पर सम्बन्ध हो तो उत्पन्न व्यक्ति राजयोग के अधिकारी बनता है I ये दोनों ग्रह पञ्चमेश नवमेश की किसी भाव में संयुक्त हो अथवा सप्तम भाव में स्थित हो तो उत्पन्न जातक राजा या उच्च पद प्राप्त करता है I चतुर्थेश और दशमेश में यदि व्यत्यय सम्बन्ध हो और पंचमेश एवं नवमेश से दृष्ट हो तो राज्यप्रद होता है I लग्न,चतुर्थ पञ्चम और दशम के स्वामी यदि नवमेश से संयुक्त या दृष्ट हो तो जातक दिग्-दिगंतान्त पर्यन्त् यशः कीर्त्तिवान् वाहनादि सुख से युक्त जीवन चलता है यदि चतुर्थ और दशम भाव के स्वामी पञ्चमेश या नवमेश से युक्त हो तो राजयोग प्राप्त करते है I यदि पंचमेश और नवमेश और लग्नेश लग्न, चतुर्थ या दशम भाव में किसी भी भाव में युति बना ले तो उत्तम राजयोग बनता है I नवम भाव में गुरु की धनु राशि और शुक्र अपने ही राशि में पञ्चमेश से युक्त हो तो राजयोग बनता है I मध्य रात्रि और मध्यान्ह के उपरान्त की २/ ३० घटी ( १ घंटा ) शुभ वेला होती है I इस शुभ वेला में उत्पन्न जातक राजा या राज तुल्य ही धन-वैभवादि से युत होता है तृतीय भाव और एकादश भाव में स्थित होकर शुक्र यदि चन्द्र से परस्पर दृष्टि सम्बन्ध करते हो तो जातक वाहनादि से युक्त धनिक होता है I सर्वविद्याधिकः श्रीमान् कुटुम्बी नृपवल्लभः I राजतुल्ययशस्वी च चन्द्रद्वित्तगते गुरौ II यदि गुरु चन्द्र से द्वितीय भाव में स्थित हो तो जातक सभी विद्याओं का जानकार, लक्ष्मीसम्पन्न, परिवार से युक्त, राजा या शासन का प्रिय पात्र, राजा के ही समान यशस्वी होता है I विक्रमस्त्रीधनक्षेत्रकर्मवान् बहुवित्तवान् I

चतुष्पदाढया राज्यश्रीः सिते चन्द्रात् कुटुम्बगे II

जन्मकुंडली में चन्द्र से द्वितीय भाव में यदि शुक्र स्थित हो तो जातक पराक्रमी, स्त्रीधन से युक्त, कर्मठ,अतुल धन से संपन्न राजयोग प्राप्त करते है I नृपतुल्यकरः श्रीमान् नीतिज्ञो विक्रमान्वितः I ख्यातोदुष्टमतिश्चन्द्रे मध्यगे गुरुशुक्रयोः II जन्म कुंडली में गुरु और शुक्र के मध्य चन्द्र स्थित हो तो वह जातक राजयोग प्राप्त करता है और राजा तुल्य आचरण करने वाला, धनपति नीतिज्ञ, पराक्रमी, विख्यात और सुमति से युक्त होता है I स्वोच्चस्वमित्रभवनोपगतेषु सर्व प्राप्नोति जातमनुजो नियतं I स्वांशेषु वा निजसुहृद्गृहसंयुतेषु प्राहुस्तथैव फलमस्ति पराशारद्याः II इस योगों में यदि योगकारक ग्रह अपनी राशि अथवा अपनी उच्च राशि अथवा अपने मित्र राशि में स्थित हो तो वे कथित योग फल पूर्ण रुप से देते है I वर्गोत्तम, स्वनवांश या स्वमित्रगृह में स्थित राजयोग कारक ग्रह उससे ज्यादा या वैसा ही फल देते है I Kya Aapki Kundli Me Raj-Yog Hai? राजयोग - Rajyog In Astrology By Astrologer Dr. Sunil Nath Jha यदि लग्नेश और दशमेश दोनों एक साथ लग्न मे हों तो ऐसा मनुष्य बहुत विख्यात होता है, यदि लग्नेश और दशमेश दोनो दशम मे हो तो भी ऐसा मनुष्य बहुत विख्यात होता है, यदि लग्नेश दशम मे और दशमेश लग्न मे हो तो भी विशिष्ट राजयोग फल होता है , नवमेश, दशमेश दोनो (क) दशम मैं हों या (ख) दोनो नवम में हो या (ग) नवमेश दशम मे, दशमेश नवम में हो तो विशिष्ट राजयोग होता है। ऐसे योग वाले व्यक्ति विशिष्ट यशमान्, विजयी, पराक्रमी आदि होते हैं:- स्वगेह तुंगाश्रयकेंद्रसंस्थे रुच्चोपगैर्वावनि सूनुमुख्येः I क्रमेण योगारुचकारव्यभद्रहंसाख्यमालव्य शशाभिधानाः II केन्द्रोच्चगा यद्यपि भूसुताद्या मार्त्तण्डशीतां शुयुताम भवन्ति I कुर्वन्ति नोर्वीपतिमात्मपाके यच्छन्ति ते केवल सत्फालानि II इसी प्रकार लग्नेश व चतुर्थेश के सम्बन्ध से मनुष्य सुखी होता है। लग्नेश व पंचमेश का सम्बन्ध होने से मनुष्य विद्वान् और बुद्धिमान् होता है। लग्नेश, सप्तमेश सम्बन्ध से अच्छी पत्नी वाला और सत्कर्म करने वाला होता है। लग्नेश- सप्तमेश सम्बन्ध होने से मनुष्य भाग्यवान् होता है । पंचमेश- दशमेश सम्बन्ध से राजकार्यों मे बुद्धिमान होता है, पंचमेश- चतुर्थेश सम्बन्ध से बुद्धि का सदुपयोग करने के कारण सुखी होता है। पंचमेश- सप्तमेश सम्बन्ध से बुद्धिमती पत्नी प्राप्त होने के कारण सद्गृहस्थ होता है । नवम- चतुर्थेश सम्बन्ध होने से भाग्योदय होने के कारण सुखी होता है तथा नवमेश- सप्तमेष सम्बन्ध से भाग्यशाली पत्नी की प्राप्ति से सद्गृहस्थ होता है। नवमेश- दशमेश सम्बन्ध से भाग्यसुख और राज्यसुख प्राप्त होते हैं। ये बहुत प्रभावशाली राजयोग होता है। जब कुंडली में षष्ठ,अष्टम और द्वादश भाव के स्वामी इसी भाव में स्थित हों तो यह विपरीत राजयोग बनता है। ऐसा जातक राजनीति और प्रशासन के उच्च पद को सुशोभित करता है। जिस ग्रह से नीचभंग राजयोग बनता है, उसी ग्रह के क्षेत्र में व्यक्ति राजा होता है। यदि यह स्थिति सूर्य से बनती है तो ऐसे जातक की लोकप्रियता बहुत अधिक होती है। बहुत साधारण परिवार में जन्म लिया बच्चा भी इस योग के कारण विश्वस्तर का बन सकता है। सञ्जास्तेजस्वी गजकेसरिधनधान्यवान् I मेधावी गुणसम्पन्नो राजप्रियकरो भवेत् II जातक की कुंडली में गुरु से चंद्रमा केंद्र में या दोनों एक साथ केन्द्रस्थ हों तो गजकेसरी योग बनता है। गजकेसरी एक महान राजयोग होता है। ऐसा जातक जीवन में कोई बड़ा कार्य करता है। वह विद्वान होता है और धन, पद तथा प्रतिष्ठा की प्राप्ति करता है। जन्म के समय जो ग्रह नीच राशि में हो उस राशि का स्वामी या उसकी उच्च राशि का स्वामी लग्न में हो या चंद्रमा से केंद्र में हो तो ऐसा जातक राजा होता है। सूर्य और बुध के एक साथ होने पर बुधादित्य योग बनता है। ऐसा जातक सूर्य के समान तेजस्वी होता है। जीवन में राजनीति में बहुत सफल होता है। प्रशासनिक अधिकारी होता है। लग्न, पंचम और नवम के स्वामी एक दूसरे के घर में हों तो ऐसे जातक राजा होते हैं। जिस जातक के लग्न, पंचम और नवम में शुभ ग्रह स्थित हों, उसे भी राजयोग मिलता है। एकादश भाव में कई शुभ ग्रह एक साथ विराजमान होने पर भी राज योग बनता है। त्रिकोण के गृह स्वग्रही या उच्च के हों तो ऐसा जातक जीवन में बहुत धन अर्जित करता है और कई धार्मिक कार्य करता है। ऐसे जातक अक्‍सर विद्यालय खोलते हैं, मन्दिर और धर्मशाला बनवाते हैं। साथ ही वे बहुत ही धनी, दानी और लोकप्रिय होते हैं। कर्क लग्न के जातक बहुत सफल राजनीतिज्ञ होते हैं। शुभ ग्रह या गुरु यदि चंद्र के साथ लग्न में स्थित हो और सूर्य की स्थिति मजबूत हो तो ऐसा जातक बहुत लोकप्रिय नेता, अधिकारी, समाजसेवक या अद्वितीय कोई कार्य करते है तो विशिष्ट पुरस्कार से सम्मानित होते है। Kya Aapki Kundli Me Raj-Yog Hai? राजयोग - Rajyog In Astrology By Astrologer Dr. Sunil Nath Jha भारत के कई प्रधानमंत्री और देश विदेश में बड़े नेता कर्क लग्न वाले ही हैं। चन्द्र-शुक्र भी राजयोग बनाता है। फ‍िल्म और संगीत में लोकप्रियता और सफलता के लिए शुक्र का मजबूत होना बहुत जरूरी है। इसके ल‍िए जरूरी है क‍ि केंद्र का शुक्र हो, स्वराशि का हो, त्रिकोण में हो और तुला या वृष में स्थित हो। अपनी उच्च राशि में केंद्र या त्रिकोण में हो तो ऐसा जातक कला, फ‍िल्म, संगीत और साहित्य में विश्व स्तर पर नाम करता है। द्वितीये पञ्चमे जीवे बुधशुक्रयुतेक्षिते I क्षेत्रे तयोर्वा संप्राप्ते योगः स्यात्स कलानिधिः I जातक के कुंडली में गुरु यदि बुध और शुक्र से युक्त या दृष्ट द्वितीय या पञ्चम में या इनके भाव में स्थित हो तो भी राजयोग प्राप्त करते है I यदि दशमेश पञ्चम भाव में, बुध केंद्र भाव में तथा सूर्य अपनी राशि में बलवान् हो, चन्द्र से त्रिकोण भाव नवम या पञ्चम भावों में गुरु, बुधाधिष्ठित राशि से त्रिकोण में मंगल अथवा एकादश भाव में गुरु रहने से जातक विद्या के क्षेत्र में राजयोग यानि अलग पहचान प्राप्त करते है I Kya Aapki Kundli Me Raj-Yog Hai? राजयोग - Rajyog In Astrology By Astrologer Dr. Sunil Nath Jha षट्सु ग्रहेषूच्चगृहस्थितेषु राजाधिराजोऽखिलभूपतिः स्यात् I उच्चं गतैः पञ्चभिरिन्द्रवंद्ये लग्नस्थिते सर्वजनावनीशः II यदि कुंडली में छः ग्रह अपनी उच्च राशि के हो तो जातक जगत में उच्च पद प्राप्त करते है I अगर पाँच ग्रह अपनी उच्च राशि में हो और गुरु लग्नस्थ हो तो जातक पराक्रमी राजयोग प्राप्त करता है I अगर चार पञ्च या छः ग्रह यदि उच्च का हो और गुरु की पूर्ण दृष्टि हो तथा ग्रह पापी या पीड़ित न हो तो ये योग उत्तमोत्तम राजयोग माना जाता है I कुंडली में समस्त अपनी उच्चराशि में अथवा मूल त्रिकोण में स्थित होकर बलवान् हो तो राजवंश में उत्पन्न जातक राजा होता है I मूलत्रिकोणस्थ ग्रह भी यदि अन्य बलों से युक्त हो तो वे राजयोग कारक होते है I

Kya Aapki Kundli Me Raj-Yog Hai? राजयोग - Rajyog In Astrology By Astrologer Dr. Sunil Nath Jha

अशुभगगनवासैः स्वोच्चगैः क्रूरचेष्टं कथयति यवनेन्द्रो भूपतिं विक्र्मोत्थम् I

न तु भवति नरेन्द्रो जीवशर्मोक्तपक्षे भवति नृपतियोगैः सत्कृतो राष्ट्रपालैः II यदि कुंडली में क्रूर ग्रहों के उच्च या पापी राशिस्थ होने से जातक अत्यंत पराक्रमी किन्तु क्रूर राजा या शासक होता है I परन्तु जीवशर्मा ने तो पाप ग्रहों के इस राजयोग में उत्पन्न जातक राजा नही होता अपितु राजा के द्वारा नियोजित राजकर्मचारी ( मंत्री या सेनापति ) के रूप में राष्ट्र का कार्य करते है I

अर्थात् उच्चराशिस्थ ग्रह यदि शत्रु या नीच राशि के नवांश से संयुक्त हो तो उसकी शुभत्व या फलदातृत्व क्षमता समाप्त हो जाती है I अतः उक्त योग में यदि ऐसा कोई ग्रह हो तो वह योग फल में बाधक हो सकता है I\ उच्चस्थे दिननायके यदि धनी सेनापतिः शीतगौ मिष्टान्नम्बारभुषणः कुतनयो भूनन्दने शौर्यवान् I सौम्ये वंशविवर्द्धनो जनपतिर्धीमाञ्जितारिः सुखी जीवे वंशकरः ……केतौ चोररतस्तु हीनधरणीपालप्रियो जयते II जन्म कुण्डली में यदि सूर्य उच्च का और वर्गोत्तम है तो जातक धनवान् उच्चपद प्रसाशनिक या सेनापति पद प्राप्त करते है, यदि चन्द्र उच्च का हो तो जातक एश्वर्य से युक्त सुखी रहता है परन्तु संतान से मानसिक कष्ट रहता है, यदि मंगल उच्च का हो तो जातक शौर्य से संपन्न रहता है, यदि बुध उच्च का हो तो स्ववंश की वृद्धि करने वाला जननायक, बुद्धिमान्, शत्रुजय और सुखी होता है, यदि गुरु उच्च हो तो अपने वंश की वृद्धि करने वाला, सुशील, चालाक, विद्वान् और राजा का प्रिय पात्ररहता है, यदि शुक्र उच्च में हो तो जातक स्त्री प्रेमी, संगीत-कला प्रेमी एश्वर्य से युक्त होता हैं, यदि शनि उच्च का हो तो जातक ग्राम, पुर या प्रदेश का अधिपति होता है और स्त्रियों के प्रति आसक्त रहता है, यदि राहू उच्च का हो तो जातक चोरो का स्वामी, अपने कुल में श्रेष्ठ, धन संपन्न वाले होते है, अगर केतु उच्च का हो तो चोरो से संपर्क रखने वाला, हीन और राजप्रिय होता है I Kya Aapki Kundli Me Raj-Yog Hai? राजयोग - Rajyog In Astrology By Astrologer Dr. Sunil Nath Jha

वर्गोत्तमे वा यदि पुष्करान्शे सारेन्दुदेवेन्द्रगुरौ नृपालः I कर्मस्थिते शोभनदृष्टियुक्ते सम्पूर्णगात्रे शशिनी क्षितीशः II जातक की कुंडली में तीन ग्रह मंगल, चन्द्र या गुरु यदि वर्गोत्तमांश या पुष्करांश में स्थित हो तो भी राजयोग प्राप्त करते है I या दशम भाव में शुद्ध और सौम्य ग्रहों से दृष्ट हो तो भी राजयोग प्राप्त करते है I यदि पूर्ण चन्द्र लग्नेश से इतर ग्रह से युक्त होकर शुक्र, बुध या गुरु से दृष्टि हो तो उत्तम समय काल प्राप्त करते है I यदि गुरु, शुक्र या मंगल वर्गोत्तमांश से युत हों और केंद्र पाप ग्रहों से मुक्त हो तो जातक राजयोग का अधिकारी बनता है I वर्गोत्तमे त्रिप्रभृतिग्रहेंद्राः केन्द्रस्थिता नोऽशुभसंयुक्ताश्च I नो रुक्षधूमो न विवर्णदेहाः कुर्वन्ति राज्ञः प्रसवं प्रसन्नाः II जातक की कुंडली में कोई भी तीन या तीन से अधिक ग्रह वर्गोत्तम में होकर केन्द्रस्थ हो और क्षीण या अस्त न हो न पाप ग्रहों से युत या दृष्ट हो तो राजयोग प्राप्त करते है I मंगल अपनी उच्च राशि में होकर बलवान् (वर्गोत्तम) हो, सूर्य, चन्द्र और गुरु से दृष्ट हो तो इस योग में नीच कुल में उत्त्पन्न जातक प्रबल राजयोग लेकर उत्त्पन्न जातक उच्च कोटि का शासक होता है I विक्रमायारिगाः पापा जन्मपः शुभवीक्षितः I राजा भवति तेजस्वी समस्तजनवन्दितः II लग्ने तृतीयषष्ठे यदि पापा जन्मपस्य शुभदृष्टाः I भवति तदा धरणीशः समस्तनृपवन्दितः साधुः II यदि जातक की कुंडली में तृतीय, षष्ठ या एकादश भाव पाप ग्रहों से युक्त हो तथा लग्नेश शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो यश, धन और जन वन्दित का राजयोग बनता है I Kya Aapki Kundli Me Raj-Yog Hai? राजयोग - Rajyog In Astrology By Astrologer Dr. Sunil Nath Jha लाभे सूखे वा दशमे समंदश्चन्द्रमा यदि I जातो नृपकुले राजा तत्समो वा धनी भवेत् II धनुर्मीनतुलामेषमृगकुम्भोदये शनौ I चर्वङ्गो नृपतिर्विद्वान् पुरग्रामाग्रणीर्भवेत् II यदि कुंडली के चतुर्थ, दशम या एकादश भाव में शनि के साथ चन्द्र स्थित हो तो उच्च पद राजयोग प्राप्त करता है I यदि लग्न धनु, मीन, तुला, मेष, मकर या कुम्भ का हो उसमे शनि स्थित हो तो जातक सुन्दर स्वभाव, विद्वान्, अपने समाज में प्रतिष्ठित होते है I अतः राजयोग एक उतमोत्तम योग होता है जो केंद्र और त्रिकोण गत सभी शुभ ग्रह बलवान् (वर्गोत्तम) होकर शुभप्रद होते और तृतीय, षष्ठ और एकादश भावगत पापग्रह यदि बलवान् हो तो भी शुभप्रद होते है I ग्रह अपनी उच्च राशि में स्थित ग्रह सम्पूर्ण फल प्रदान करता है I


अपनी राशि अथवा अपनी उच्च राशि के नवांश में स्थित ग्रह मूल त्रिकोणस्थ ग्रह के समान फल देते है I मित्र राशि के नवांश में स्थित ग्रह स्व राशिगत ग्रह के समान फल देते है I उच्च राशि गत ग्रह पूर्ण फल, मूल त्रिकोणस्थ तीन चौथाई फल, मित्र गृहस्थ ग्रह अर्ध फल,शत्रु राशिस्थ ग्रह चतुर्थांश फल और अस्तंगत ग्रह निष्फल होते है I            

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