Kya Palm-Reading Sahi Hoti Hai?
हस्त-सामुद्रिकरहस्यम् - Palm Reading, Astrology by Dr. S. N. Jha
ब्रह्म विद्या (रेखा)
हस्त रेखा विज्ञान का वास्ताविक नाम सामुद्रिक शास्त्र है | इसके दो भेद माने जाते है, उनमे से प्रथम भाग हाथ, अंगुली और हथेली आदि की बनावट है और दूसरा मणिबंध और मस्तक रेखा आदि पर पड़ीं रेखाओं का ज्ञान है | सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार चार प्रकार के पुरुष होते है- अथ शशकादितुर्यपुरुषाणां जीवन चरित्राणि:- शशक पुरुष सुन्दर सुविचार से युक्त ७ फिट के होते थे, मृगपुरुष सुडौल सुन्दर सद्विचार से युक्त ६ फिट के होते है, तुरंग पुरुष माध्यम विचार और सुन्दर ५ /३० के होते है और बृषभ पुरुष (अधम पुरुष) जो बहुसख्यक सामान्य सकल, अधम विचार वाले ५ फिट के आस पास होते है |
अथ पद्मिन्यादितुर्यमहिलानां जीवन चरित्राणि :- स्त्री भी चार प्रकार के होते है | पद्मिनी जाति की स्त्री सुडौल, धर्मपरायण, सुशील,अति सुन्दर तथा सेवा करने वाली होती है | चित्रिणी जाति की स्त्रियाँ सुडौल, पतिव्रता, सौभाग्यवती कोमल स्वभाव तथा आनंदमयी वाली होती है | हस्तिनी जाति की स्त्रियाँ का स्वभाव प्रत्येक पुरुषों के अनुकूल होती है | इसमें भोग-विलास से युक्त, हँसमुख आकर्षण युक्त शरीर वाली होती है, और शंखिनी स्त्रियाँ चाल-चलन सबसे अलग, बेडौल, सर्वदा अप्रसन्न, कामी आदि प्रवृत से युक्त अधम जाति की होती है |
चार प्रकार की स्त्रियों का जीवन चरित्र है | इन सभी में कई भेदोपभेद है | स्त्री-पुरुष दोनों में आठ-आठ प्रकार के हाथ भी होते है | इन रेखाओं को देखकर भाग्य, भविष्य, विवाह, विद्या, स्वभाव तथा विचारों को भी भली भांति बताया जा सकता है:--
१. प्रारंभिक अथवा अविकसित हाथ - अविकसित हाथवालें जातक असभ्य और मुर्ख होता है | वह किसी से ठीक ढंग से बात न करेगा | मंद बुद्धि, दुराचारी तथा नीच विचार इस हाथ वाले जातक को जन्म से प्राप्त होता है | बचपन से चोरी या अन्य दुष्कर्म करना इस हाथवालों की प्रवृति होती है | संघर्ष पूर्ण जीवन व्यतीत करता है |
२.वर्गाकार अथवा व्यावसायिक हाथ - इस हाथ की अंगुलियाँ ऊपर से पतली होती है | व्यावसायिक हाथ वाला जातक चंचल, अस्थिर विचार, बढ़ा-चढ़ा कर बताने वाला और कला प्रेमी अर्थात् कुछ भी सीखने का प्रेमी होता है | ये विषय वास्तु को तुरन्त समझ लेते है परन्तु हर कार्य में शीघ्रता करने का विचार उसके मन में बना रहता है | ये भी संघर्ष पूर्ण जीवन व्यतीत करते है | ये जातक क्रोधी और भेद भाव पर ध्यान देने वाला भी होता है |
३.दार्शनिक अथवा गठीला हाथ- ये हाथ प्रायः लम्बा और गठीला होता है |इस हाथ की आगुलियाँ गठीली तथा जोड़ बहुत सुन्दर होते है हथेली में गढ़ा और अंगुलियाँ टेढ़ी-हो सकती है | ये धार्मिक, विद्वान और दार्शनिक विचारों का प्रतिनिधि करते है | ये स्वभाव से गंभीर, इनका विचार किसी से भी नहीं मिलते |अपने विचारों को स्वतंत्रता तथा निर्भीकता से दूसरों पर प्रकट करना उसका स्वभाव होता है | दार्शनिक हाथ वाले जातक विश्वास सब पर नहीं करते है |
४. चमचाकार अथवा चपटा हाथ - चमचाकार हाथ की अंगुलियाँ टेढ़ी- मेढ़ी, हाथ लम्बा, हथेली लम्बी, अंगूठा गठीला होता है ये ज्यादा परिश्रम करने वाला काम पसंद करते है |ऐसे जातक आमतौर पर क्रोध कम करते है | चपटे हाथ वाले जातक किसी के दबाब में रहना पसंद नहीं करते | केवल अपने काम में लगे रहते है |
५.नुकीले अथवा कलात्मक हाथ - ऐसे हाथ वाले जातक का जीवन उतर-चढ़ाव से युक्त सामान्य चलता है हाथ छोटा या माध्यम रहता है थोडा अंगुली टेढ़ी या झुका रहता है ऐसे हाथ वाल्व जातक का ह्रदय सदैव कल्पना की ऊची उड़न भाडा रहता है |हाथ की अंगुलियाँ ऊपर से पतली तथा निचे से क्रमशः मोटी होती जाती है |नुकीले हाथ वाले जातक कभी भी अच्छा व्यापारी नहीं बन पाते, क्योंकि आलसी प्रवृति होने के कारण ये किसी भी काम में सफल नहीं होता है |
६.बौद्धिक अथवा आदर्शवादी हाथ - ऐसे हाथ वाले जातक का मानसिक और आध्यात्मिक पक्ष उत्तम श्रेणी के होते है | ये हाथ कम चौड़े, पतले ओ लम्बे तथा असमान बनावट वाले होते है | ऐसे हाथ वाले जातक की अंगुली पतली, लम्बी तथा कुछ नुकीली होती है |
अंगूठे भी प्रायः छोटे और पतले होते है |ऐसे हाथों पर प्रथम दृष्टि पड़ते ही जातक के बौद्धिक विकास तथा अपरिश्रमी स्वभाव की छाया स्पष्ट हो जाति है | इस हाथ में लगन दृढ़ता और परिश्रम करने की शक्ति का आभाव होने के कारण इन जातक अवस्थिति होते है | यदि हथेली कठोर होती है तो इनकी सफलता की संभावना अधिक प्रबल होती है |
७. मिश्रित हाथ- मिश्रित हाथ वाले जातक स्वभाव से संदेही होते है | किसी भी व्यक्ति की बात पर ये जल्दी विश्वास नहीं करते है | इस हाथ में दार्शनिक, आदर्शवादी तथा व्यावसायिक हाथ के लक्षण देखने को मिलता है | ये हाथ किसी विशेष आकृति का न होकर मिश्रित रुप लिए रहता है | हाथ की अंगुली के निकास स्थान के पास बहुत उठी हुई तथा चपटी होती है | इस हाथ के निचले भाग पर छोटी-छोटी लकीरें भी होती हैं जो चन्द्र स्थान के ऊपर के भाग में फैली हुई रहती है |
८. अति विदग्धन हाथ- ऐसे हाथ वाला जातक शीघ्र ही लोगों का सम्मान प्राप्त कर लेता है | इस हाथ की बनावट बहुत ही रोमांचकारी होती है | यह हाथ प्रायः लंबा और चौड़ा होता है | ये जातक कर्म प्रधान और स्वार्थ प्रधान होता है | अतिविदग्ध हाथ वाला जातक किसी-किसी दूसरे जातक के झाँसे को समझने में बहुत चतुर होता है और अच्छा या बुरा भी समझ लेता है | परन्तु मस्ती में रहता है |
सामुद्रिक शास्त्र में दो विषय है लक्ष्ण और रेखा | रेखाओं के प्रधान तीन स्थान है | कर, कपाल और चरण | भूत, वर्तमान और भविष्य इससे जन्म-कालिक परिस्थिति का भी ज्ञान हो जाता है | परन्तु दैवज्ञ को सिद्धहस्त रेखा विज्ञान में होना जरूरी है वैसे सभी अपने आप को .. सिद्ध हस्त .समझते है .? | क्योंकि अत्यंत गूढ़ विषय है |
आपके हाथ में समय समय पर छोटी-छोटी रेखाओं का उदय होने लगता है जो थोड़े ही भेद से फलश्रुति में काफी अंतर कर देता है | मनुष्य के हाथ की बनावट से उसकी रुचि, स्वभाव, चरित्र तथा उसके अन्दर की शक्ति की विस्तृत जानकारी प्राप्त हो सकती है | प्रत्येक जातक का हाथ एक-दुसरे जातक के हाथ से अलग-अलग होता है |
हस्त ज्योतिष
हस्त ज्योतिष मूलतः हाथ की रेखाओ पर निर्भर करता है | मनुष्य के जीवन में हाथ की रेखाओं का बहुत महत्व होता है | हाथ की रेखाओं में विभिन्न लक्षण जैसे क्रॉस, सितारे , वर्ग, अर्धचंद्राकार, त्रिकोण, चतुर्भुजम्, यव, त्रिशूलं, पतली रेखा और उर्ध्वगामी रेखा इत्यादि चिन्ह जातक की विभिन्न परिस्थितियों चार पुरुष वर्ग चार स्त्री वर्ग तथा सात प्रकार के हाथों पर भविष्य की संभावनाओ से अवगत कराते हैं |- मस्तिष्क रेखा -
मस्तिष्क रेखा का आरंभ तर्जनी उंगली के नीचे से होता हुआ हथेली के दूसरे तरफ जाता है जब तक उसका अंत न हो । ज्यादातर, यह रेखा जीवन रेखा के आरंभिक बिन्दु को स्पर्श करती है। यह रेखा व्यक्ति के मानसिक स्तर और बुद्धि के विश्लेषण को, सीखने की विशिष्ट विधा, संचार शैली और विभिन्न क्षेत्रों के विषय मे जानने की इच्छा को दर्शाती है|
हृदय रेखा हृदय रेखा कनिष्ठा उंगली के नीचे से हथेली को पार करता हुआ तर्जनी उंगली के नीचे समाप्त होता है। यह हथेली के उपरी हिस्से में उंगलियों के ठीक नीचे होती है। यह हृदय के प्राकृतिक और मनोवैज्ञानिक स्तर को दर्शाती है। यह रोमांस कि भावनाओं, मनोवैज्ञानिक सहनशक्ति, भावनात्मक स्थिरता और अवसाद की संभावनाओं का विश्लेषण करने के साथ ही साथ हृदय संबंधित विभिन्न पहलुओं की भी व्याख्या करती है।
जीवन रेखा- जीवन रेखा अंगूठे के आधार से निकलती हुई, हथेली को पार करते हुए वृत्त के आकार मे कलाई के पास समाप्त होती है। यह सबसे विवादास्पद रेखा है। यह रेखा शारीरिक शक्ति और जोश के साथ शरीर के महत्वपूर्ण अंगों की भी व्याख्या करती है। शारीरिक सुदृढ़ता और महत्वपूर्ण अंगों के साथ समन्वय, रोग प्रतिरोधक क्षमता और स्वास्थ्य का विश्लेषण करती है।
भाग्य रेखा- भाग्य रेखा कलाई से आरंभ होती हुई चंद्र पर्वत से होते हुये जीवन रेखा या मस्तिष्क या हृदय रेखा तक जाती है। यह रेखा उन तथ्यों को भी दर्शाती जो व्यक्ति के नियंत्रण के बाहर हैं, जैसे शिक्षा संबंधित निर्णय, कैरियर विकल्प, जीवन साथी का चुनाव और जीवन मे सफलता एवं विफलता आदि।
सूर्य रेखा- सूर्य रेखा को सफलता की रेखा या बुद्धिमत्ता की रेखा के नाम से भी जाना जाता है। यह रेखा कलाई के पास चंद्र पर्वत से निकलकर अनामिका तक जाती है। यह रेखा व्यक्ति के जीवन मे प्रसिद्धि, सफलता और प्रतिभा की भविष्यवाणी करती है।
स्वास्थ्य रेखा-
स्वास्थ्य रेखा को बुध रेखा के रूप में भी जाना जाता है । यह कनिष्ठा के नीचे बुध पर्वत से आरंभ हो कर कलाई तक जाती है। इस रेखा द्वारा लाइलाज बीमारी को जाना जा सकता है। इसके द्वारा व्यक्ति के सामान्य स्वास्थ्य की भी जानकारी मिलती है ये क्षैतिज रेखाएं कलाई और हृदय रेखा के बीच हथेली के विस्तार पर स्थित है। यह रेखाएं व्यक्ति की यात्रा की अवधि की व्याख्या, यात्रा में बाधाओं और सफलता का सामना तथा यात्रा मे व्यक्ति के स्वास्थ्य की दशा को भी दर्शाती है।
विवाह रेखा क्षैतिज रेखाएं कनिष्ठा के बिल्कुल नीचे और हृदय रेखा के ऊपर स्थित विवाह रेखाएं होती है यह रेखाए चार -चार प्रकार के स्त्री पुरुष और सात प्रकार के हाथो में एक ही जैसा फल नही मिलता है | जितने रेखा उतने विवाह ये केवल बृषभ पुरुष और शंखिनी स्त्री में १०० % देखा जा रहा है | यह रेखाएं रिश्तों में आत्मीयता, वैवाहिक जीवन में खुशी, वैवाहिक दंपती के बीच प्रेम और स्नेह के अस्तित्व को दर्शाता है। विवाह रेखा का विश्लेषण करते समय शुक्र पर्वत और हृदय रेखा को भी ध्यान मे रखना चाहिये।
करधनी रेखाएं
करधनी रेखा का आरंभ अर्धवृत्त आकार में कनिष्ठा और अनामिका उंगली के मध्य में और अंत मध्यमा उंगली और तर्जनी पर होता है। इसे गर्डल रेखा या शुक्र का गर्डल भी कहते हैं। यह व्यक्ति को अति संवेदनशील और उग्र बनाती है। जिन व्यक्तियों मे गर्डल या शुक्र रेखा पाई जाती है वह व्यक्ति की दोहरी मानसिकता को दर्शाता है। देवों का स्थान विशेष का निर्णय हो जाने के अनन्तर अब पर्वत के प्रवृति अनुसार फलादेश बनने और स्थानों का औचित्य अनौचित्य पहचानने की विधियाँ | हाथ की प्रत्येक अंगुली में एक-एक देवता वास करते है जिस जातक के हाथ में जिन देवता का मजबूती रहेगा उन देवता का स्वभाव और विचार जातक में प्रवेश करता है | जिसके अनुसार उस देवता का फल जातक को मिलता है | जिन अँगुलियों का स्थान पर्व उठा हुआ होता है | उन्हें शुभ लक्षणों में और उन्नतिशील माना जाता है | तर्जनी अंगुली - बृहस्पति - बुद्धि, वाद-विवाद, लेखन, प्रवीणता, मंत्री पद तथा आपका प्रभाव जानने की शक्ति, जिस जातक के तर्जनी अंगुली और पर्व दोनों सुडौल और स्वच्छ होने से बृहस्पति देवता प्रशन्न रहते उत्तम जीवन जीते है ;- यस्य बृहस्पति स्थाने कमलं सः धनि यशस्वी | माध्यम अंगुली का स्थान शनि देवता के अधिकार में रहता है | शनि से नौकरी, नीच प्रवृति,चिन्ता, गंभीरता,रूखापन, दूसरो से व्यर्थ कलह, षड्यंत्र इत्यादि | अंगुली सुन्दर और सुडौल रहने से लाभकारी सिद्ध होती है | यहाँ चक्र चिन्ह होने से समाजसेवी होते है | शनि जातक को नौकरी या जीवकोपार्जन में विशेष सहयोग करते है | शनि अगर प्रबल है तो जातक में चिड़चिडे़ स्वभाव का हो जाता है | उसमे सहन शक्ति कम होती है | जिस जातक का शनि मजबूत होगा वह प्रायः क्रूर स्वभाव वाला होगा | शनि रेखा को ही भाग्य रेखा कहते है | अनामिका अंगुली - के नीचे सूर्य देवता का स्थान रहता है | यश,कीर्ति, सफलता, आशा, फल प्राप्ति, देश-विदेश में प्रसिद्धि, संसार में अपने कार्यों से सूर्य के समान प्रभावित करे | ये पर्व सुसंपन्न हो तो सब कुछ प्राप्त करेगे | सूर्य पर्वत पर रेखा को विद्या- रेखा बताते है | अनामिका अंगुली कुछ लम्बी होगी तो जातक सौन्दर्य-प्रिय तथा यशस्वी होते है | कनिष्ठिका अंगुली के नीचे बुध देव पर्व होता है |बुध से मानसिक विचार, व्यापार, विज्ञान, और धन आदि | ये अंगुली जितनी लम्बी होगी उतनी ही कला कुशल, भाषण या राजनीति में सफल माने जाते है और इनकी बात सभी लोंग मानते भी है | बुध की प्रधानता जातक के बहुमुखी विकास का आधार होती है | यह सफल वकील,डॉ, साहित्यकार, नेता,अभिनेता भी हो सकता है | चन्द्र देवता का पर्व अंगूठे के सामने वाले स्थान पर रहता है | चन्द्र से नवीनता, शीतलता, विचार परिवर्तन, विचारधारा और स्वभाव का विचार किया जाता है | ये जगह जितनी उच्च और सुसंपन्न रहता है उतने प्रशन्न जीवन जीते है | शुक्र देवता का पर्व अगुठे के नीचे होता है | शुक्र से सहस, चैतन्यता, वीरता तथा संघर्ष का विचार किया जाता है |इससे जातक का स्वास्थ्य यथा वीर्य शक्ति का अनुमान लगाया जाता है | मंगल देवता - तलहती के मध्य में मंगल स्थान है राहू के दिनों तरफ होता है | मंगल से प्रेम, भूमिपति,बहु धन-धन्य प्राप्ति की लालच, अधिक्स्त्रियों का सहवास देखा जाता है | सामुद्रिक शास्त्र में दो विषय है - लक्षण तथा रेखा |लक्षण से रेखा प्रधान मानी जाती है ब्रह्म विद्या का प्रपंच गुण-दोष से मिला हुआ है यथा- जन्म-मरण, हानि-लाभ, यश- अपयश, शत्रु- मित्र, दिन-रत इत्यादि |एक के अंत में दूसरे का उदय हुआ करता है |जैसे मनुष्यों को सुख के बाद दुःख और दुःख के बाद सुख का होना भी स्वाभाविक है |
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