Kya Aawaz Se Jyotish Ho Sakti Hai - By Astrologer Dr. Sunil Nath Jha | Kya Apki Voice Batayegi Aapka Bhavishya
Kya Aawaz Se Jyotish Ho Sakti Hai - By Astrologer Dr. Sunil Nath Jha
पञ्च स्वर
स्वर विज्ञान
आवाज से फलित
ज्योतिश्च्क्रे तु लोकस्य सर्वस्योक्तं शुभाशुभम् |
ज्योतिर्ज्ञानं तु यो वेद स याति परमाङ्गतिम् ||
जातक स्कन्ध का ही एक भाग स्वर शास्त्र है जिसके अंतर्गत पञ्च स्वर आता है | वैसे वेदों में चिरंतन काल से उदात्त अनुदात और स्वरित जैसे उच्चारण भेदों से स्वरों के भेद की विवेचना मिलती है | लैकिक संस्कृत के परिनिष्ठित स्वरुप आने के पूर्व पाणिनि के व्याकरण में वर्णित १४ महेश्वर सूत्रों में मूल ९ स्वरों को स्वीकार किया है | पतञ्जलि के महाभाष्य में ऋकरेऽपि इकारो गृहितः |
इन मूल स्वरों की संख्या पञ्च अ इ उ इ ओ स्थिर होती है | स्वर शास्त्रीय ज्योतिष में फलित निकलने के मुख्यतः ८ स्वर चक्रों का वर्णन मिलता है | अनेक स्वर चक्रों का वर्णन मिलता है | यामल ग्रंथों में ८१-८४ तक मिलती है | नरपतिजय चर्या में २० स्वर चक्रों का वर्णन मिलता है किन्तु मूलतः स्वर चक्रों की संख्या आठ ही है | स्वर शास्त्रीय ज्योतिष की पद्धति में नाम स्वरों के अनुसार ही जन्म से मृत्यु पर्यन्त उन नामों से शुभाशुभ उन्नति अवन्ती का फलादेश किया जाता है | नाम से ही मनुष्य कीर्ति यश धन और अनेक समृद्धियों को प्राप्त करता है | हिन्दू शास्त्रों में इसीलिए नवजात शिशु का नामकरण संस्कार मनु के अनुसार नवजात के जन्म से ११ वे या १२ वे दिन में किया जाता है ;-
नामाखिलस्य व्यवहार हेतुः शुभावहं कर्म सुभाग्य हेतुः
नाम्नैव कीर्ति लभते मनुष्यः ततः प्रशस्तं खलु नाम कर्म |
अ- बाल स्वर - फल–सफलता,
इ - कुमार स्वर- फल- अधिक सफलता,
उ- युवा स्वर - फल- पूर्ण सफलता,
ए - वृद्ध स्वर - फल- प्रायः असफलता ,
ओ - मृत्यु स्वर - फल- विफलता या अनिष्ट की सम्भावना होती है |
इन स्वर चक्रों की उपादेयता न केवल आठ कालों में फलादेश में होती है अपितु जीवन की अनेकानेक समस्याओं के सुलझाने में से स्वर चक्र अत्यधिक उपादेय सिद्ध होते है |
किसी कार्य के प्रारम्भ के पहले सिद्धि या असिद्धि का विचार इन स्वर चक्रों द्वारा किया जाता है | निश्चित कार्यों के शुभ अनुष्ठानों के लिए भी इस स्वर चक्रों से उनकी सफलता का विचार और बाधक तत्वों की शांति के लिए तंत्र मन्त्रों का आदेश किया जाता है | अतः कुछ कार्य के लिए स्वर चक्र का उपयोग इस प्रकार है ;-
१.मंत्र यन्त्र साधन में – मात्रास्वर चक्र से विचार |
२. किसी भी कार्य में – वर्णस्वर चक्र से विचार |
३. मरण, मोहन स्तम्भन, उच्चाटन,
विनोद विद्या विग्रह घात आदि में — ग्रहस्वर चक्र से विचार |
४.भोज, वस्त्र, अलंकारः, विद्यारम्भ, विवाह में - जीवस्वर चक्र से विचार |
५. उद्यापन,उपवन, देवस्थान, राज्याभिषेक आदिक - राशिस्वर चक्र से विचार |
६.शान्तिक, पौष्टिक, यात्रा,बीज बप, स्त्रीविवाह और सेवा में - नक्षत्र स्वर चक्र से विचार |
७.श्त्रुच्छेद, सेनाध्यक्षता, मंत्री नियुक्ति में - पिण्ड स्वर चक्र से विचार |
८.देह की अवस्थाओं का ज्ञान,योग ज्ञान में - योग स्वर चक्र से के अनुसार शुभाशुभ विचार किया जाता है |
१. द्वादश संवत्सर स्वर से १२ वर्ष तकन विचार,
२.सम्बत्सर स्वर से एक वर्ष तक,
३. अय्न्स्वर से ६ मास की,
४. ऋतु स्वर से २ मास १२ दिन की,
५.मास स्वर से ३० दिन की,
६. पक्ष स्वर से १५ दिन की,
७. दिन स्वर से २४ घंटा अहोरात्र अहर्निशं,
८. घटी स्वर से ६० पल या १ घटी २४ मिनट की विचार किया जाता है |
काल से भी भविष्य विचार किया जाता है | स्वर शास्त्रियों ने ज्योतिष में फलादेश के लिए समय को आठ भेदों में बाँटा है यथा :-
१. मात्रा स्वर - तत्काले मात्रिको ग्राह्य: - पाँच स्वरों में प्रथम वर्ण जो स्वर प्रयुक्त होता है उसके अनुसार मान्य स्वर चक्र के अनुरूप उसका मात्रा स्वर निकलते है | भोगेन्द्र नाम से मात्रा स्वर जानना हो तो मात्रा भ+ओ =भो में ओ स्वर चक्र में मात्रा स्वर ओ होता है | यही ओ स्वर मात्रा स्वर की दृष्टि से बाल स्वर हुआ उसके बाद का अ कुमार, इ युवा, उ वृद्ध, और ए मृत्यु स्वर हुआ |
चक्र - बाल, कुमार, युवा, वृद्ध, मृत्यु
क, कि, कु, के, को
च, चि, चु, चे, चो
ट, टि, टु, टे, टो
त, ति, तु, ते, तो
प, पि, पु, पे, पो
य, यि, यु, ये, यो
मात्रा स्वर का उपयोगिता तत्काल फलादेश करने में होती है | मात्रा स्वर से उसके नाम के अनुसार उसका प्रधान स्वर निश्चित करते है और बाद के स्वरों की उसी क्रम में रखते है | यथा सुनील - सु में उ मात्रा स्वर हुआ |
2. वर्ण स्वर - दिने वर्ण स्वरस्तथा - किसी भी कार्य में शुभाशुभ का फलित निकालने के लिए वर्ण स्वर के अनुसार किसी नाम की निश्चित स्वर दशा का ज्ञान करते है | मूल पांच स्वरों में जिस एक स्वर कि दशा में नाम का पहला वर्ण आयेगा फिर उसके बाद वाले स्वरों को उसी बाल, कुमार, युवा, वृद्ध और मृत्यु रहेगा |
चक्र - बाल, कुमार, युवा, वृद्ध, मृत्यु
क, ख, ग, घ, च
छ, ज, झ, ट, ठ
ड, ढ, त, थ, द,
ध, न, प, फ, ब
भ, म, य, र, ल
व, श, ष, स, ह
वर्ण स्वर यथा - जीवनाथ में जीव में ज ई स्वर में है | ई बाल स्वर, उ-कुमारस्वर, ए- युवा स्वर, ओ-वृद्ध स्वर और अ- मृत्यु स्वर |यथा - सुनील -वर्ण स्वर ए से, बाल, ओ -कुमार |
३. ग्रह स्वर- पक्षे ग्रह स्वरों ज्ञेय - ग्रह स्वर के अनुसार किसी नाम के प्रथम अक्षर अबकह्डा चक्र में नाम स्वर युक्त वर्ण किस नक्षत्र के किस चरण में पड़ता है | उससे उसकी राशि निर्धारित कर उसके राशि स्वामी ग्रह का वही स्वर हने से ग्रह स्वर कहा गया है —-
स्वर - अ इ उ ए ओ
अवस्था - बाल कुमार युवा वृद्ध मृत्यु
ग्रह - मंगल-सूर्य, बुध-चन्द्र, गुरु शुक्र शनि
राशि - मेष-वृश्चिक, मि-कन्या,धनु-मी,वृष-तु, मकर- कुम्भ
सिंह |
यथा- सुनील इस नाम में अबकह्डा शतभिषा नक्षत्र चतुर्थ चरण में पड़ता है जिसकी कुम्भ राशि हुई राशि ग्रह शनि है | ग्रह स्वर के अनुसार कुम्भ राशि के पञ्च स्वर शनि ग्रह है और पञ्चम स्वर ओ हुआ जो बाल स्वर हुआ | सुनील नाम में बाल स्वर ओ हुआ, उसके बाद अ कुमार, इ युवा, उ- वृद्ध, ए मृत्यु हुआ |
४. जीव स्वर - मासे जीव स्वरस्तथा - जीव स्वर का शुभाशुभ उपयोग केवल एक मास के लिए ही विचार किया जाता है | यथा - नाम के आदि स्वर + व्यजनों में ५ से भाग देने पर शेष १ अ स्वर, २ से इ, ३से उ, ४ से ए और ५ से शून्य से सर्वत्र ओ स्वर माना जाता है | यथा - सुनील -स् - उ स्वर में ३ सन्ख्या है, सु में उ ओ स्वर की संख्या ५ है, नी में न ओ स्वर संख्या ५ है, नी में इ उ स्वर संख्या ३ होता है, ल में उ स्वर संख्या ३ है | इसी प्रकार सुनील नाम का = स् ३+उ ५+ न ५+ इ ३ +ल ३ = १९ में ५ से भाग देने पर ४ शेष बचा है | इसमें ४ जीव स्वर में ए स्वर सिद्ध होता है | आपको जिस मास का भविष्य विचार करना हो इस नाम के जीव स्वर ए बाल,ओ कुमार,अ युवा, इ वृद्ध और उ मृत्यु आदि समझने चाहिए |
| अ | इ | उ | ए | ओ |
| बाल | कुमार | युवा | वृद्ध | मृत्यु |
+------+-------+------+------+-------+
| अ१ | आ२ | इ३ | ई४ | उ५ |
+------+-------+------+------+-------+
| ऊ ६ | ऋ ७ | ऋ् ८ | ल्र्९ | लृ१० |
+------+-------+------+------+-------+
| ए११ | ऐ१२ | ओ१३ | औ१४ | अं१५ अः१६ |
------+-------+------+------+-------+
| क | ख | ग | घ | ङ |
+------+-------+------+------+-------+
| च | छ | ज | झ | ञ |
+------+-------+------+------+-------+
| ट | ठ | ड | ढ | ण |
+------+-------+------+------+-------+
| त | थ | द | ध | न |
+------+-------+------+------+-------+
| प | फ | ब | भ | म |
+------+-------+------+------+-------+
| य | र | ल | व | ४ |
+------+-------+------+------+-------+
| श | ष | स | ह | ४ |
+------+-------+------+------+---
५. राशि स्वर चक्र - ऋतौ राश्यंशको गृह्यः - अबकहड़ा चक्र में वह नाम किस राशि के जितने अंश उसी के अनुसार उस नाम का राशि स्वर स्थिर किया जाता है |ऋतु पर्यन्तं काल में किसी नाम के अनुसार फलाफल का विचार करने में इस राशि स्वर का प्रयोग किया जाता है | यथा -सुनील नाम का आदि वर्ण शतभिषा नक्षत्र के चतुर्थ चरण होने से कुम्भ राशि होती है | जिसका स्वर चक्रानुसार ओ स्वर सिद्ध होता है |
अ इ उ ए ओ
भ ९ं मि ३ं कन्या ९ं वृश्चिक ६ंं मकर ३ं
वृ ९ंं क.९ंं तु ९ं ध ९ं कु. ९ं
मि.६ं सि.९ंं वृश्चिक३ं मकर.६ंं मी.९ंं
६.नक्षत्र स्वर चक्र - षण्मासे नक्षत्र सम्भवः -जिस जातक का नाम का आदि वर्ण अबकह्डा चक्र में जिस नक्षत्र में पड़े और वह नक्षत्र जिस नक्षत्र स्वर में पड़े वाही उसका नक्षत्र स्वर होता है | ६ महीने तक इस नक्षत्र स्वर से काम लिया जाता है | यथा- सुनील में सु -शतभिषा नक्षत्र में पड़ा और नक्षत्र स्वर में ओ स्वर हुआ |
अ इ उ इ ओ
बाळ कुमार युवा वृद्ध मृत्यु
रे पुनर्व उ.फ अनु श्रवण
अ पु हस्त ज्येष्ठ धनिष्ठ
भ श्लेष चित्रा मूल शतभिषा
कृ,रो म स्वाती पु.षा पु.भा
मृ,आ पु फ विशाषा उ.षा उ.भा
७.पिण्ड स्वर चक्र - अब्दे पिण्डस्वरो ज्ञेयः -
अ इ उ इ ओ
१ २ ३ ४ ५
किसी नाम के सम्पूर्ण वर्णों तथा स्वरों के वर्ण स्वर संख्या तथा मात्रा स्वर संख्या निकलकर सम्पूर्ण वर्ण स्वरों के योग औरमात्रा स्वरों के योग को एक साथ जोड़कर उसमे संख्या ५ से भाग देने पर शेष फल के अनुसार पिण्ड स्वर का निर्धारण किया जाता है |
शेष १ होने पर अ स्वर, २ होने पर इ स्वर, ३ से उ स्वर, ४ से इ स्वर और ५ या ० से ओ स्वर की पिण्ड स्वर प्राप्त किया जाता है | किसी नाम के अनुसार तात्कालिक वर्ष भर के शुभाशुभ विचार के लिए पिण्ड स्वर चक्र की प्रयोग किया जाता है |
पिण्ड =नाम के वर्ण स्वरों की संख्या +नाम के मात्रा स्वरों कीसंख्या —------------------------------------------------------------ = शेष
५
यथा - सुनीलनाथ - स+उ+न+ई +ल +न+आ+थ+अ = उ ई आ अ के मात्रा स्वर क्रमशः उ ३+ई २
+आ १+अ १ = ७ अभीष्ट नाम में स्वर संख्या ७ हुई |
अब वर्ण स्वर = स= उ ३,न ओ ५,ल उ ३, न ओ ५, थ ४ =२० हुई यह अभीष्ट नाम के अंशों के वर्ण स्वर की संज्ञा संख्या हुई | इसलिए मात्रा स्वर = ७ +वर्ण स्वर २० = २७/५भागा
= शेष २ पिण्ड स्वर इ की सिद्धि हुई |
८. योग स्वर चक्र -योगो द्वादश वार्षिके - जातक के नाम में सभी स्वर चक्र को जोड़ कर ५ से भाग देने पर शेष फल के अनुसार योग स्वर चक्र के स्वर का निर्धारित करते है |यथा- शेष १से अ स्वर,२ से इ स्वर,३ से उ स्वर, ४ से ए स्वर और ० या ५ से ओ स्वर को योग स्वर के रूप में माना जाता है | इससे जन्म से १२ वर्ष तक शुभाशुभ का विचार किया जाता है | यथा-
सुनील -मात्रा | वर्ण | ग्रह | जीव | राशि | नक्षत्र | पिण्ड | योग
उ ३ | ए ४ |ओ ५| ए ४ |ओ ५ | ओ ५ | इ २ | २८ /५ = शेष ३ उ योग स्वर हुआ | उ- युवा स्वर - फल- पूर्ण सफलता |
१. बाल स्वर की १२ अवस्थायेंं - १, मूल, २. बाल, ३.शिशु, ४. हसिका, ५. कुमारिका, ६. यौवन, ७. राज्यदा, ८.क्लेश, ९. निदया, १०. ज्वरिता, ११. प्रवास,और १२. मृता |
२. कुमार स्वर की १२ अवस्थायें - १. स्वस्थ, २. शुभा, ३. मोघा, ४. अतिहर्षा, ५. वृद्धि, ६. महोदया, ७. शंतिकारी, ८. सुदर्पा, ९.मंदा, १०.शमा, ११. शान्त गुणोदया और १२. मांगल्यदा |
3. युवा स्वर की १२ अवस्थायें -१. उत्साह, २.धैर्य, ३. उग्रा, ४.जया, ५.बला, ६.संकल्प योगा, ७.सकामा, ८.तुष्टि, ९.सुखा, १०.सिद्धा, ११. धनेश्वरी, और १२. शान्ताभिधा |
४. वृद्ध स्वर की १२ अवस्थायें -१. वैकल्या, २. शोशा, ३. मोघा,४.च्युतेंद्रिया, ५. दुखिता, ६. रात्रि, ७.निद्रा, ८.बुद्धि प्रभंगा, ९.तपा, १०.क्लिष्टा, ११.ज्वार, और १२.मृता |
५. मृत्यु स्वर की १२ अवस्थायें - १. छिन्ना, २. बन्धा, ३. रिपुघातकारी, ४. शोशा, ५.मही, ६.ज्वलना, ७.कष्टदा, ८.व्रणांंङ्किता, ९. भेद्कारी, १०. दाहा,११. मृत्यु और १२. क्षया |
इन स्वरों की दशाओं में से किस नाम की कौन स्वर दशा बाल कुमार आदि यह स्वर चक्रों के अनुसार किसी कालांश के स्वर चक्र की स्वर दशा से विचार किया जाता है | आयन स्वरों के क्रमशः बार-बार आगमन में उनकी बारह अवस्थाओं के अनुसार तत्तत् रुप में फलित घटेगा |इन दशाओं की १२ अवस्थाओं का नामकरण उनके तत्तत् परिवर्तनों को लक्ष्य कर ही किया जाता है |
इस प्रकार ५स्वरो की स्थिति के आधार पर १२ अवस्थाओं का अवांतर भेद करने पर ५ स्वरों की दशाओं के अवांतर ५ गुणा १२ =६० प्रभेद निष्पन्न होते है |जिसके पूर्णतः विवेक से ही स्वर शास्त्री फलादेश करता है |
ज्योतिष में स्वर शास्त्र के अनेक ग्रन्थ वर्तमान में रुद्र यामल, विष्णु यामल, ब्रह्म यमल, नरपतिजयचर्याम् और समर सार उपलब्ध है | इस प्रकार के ज्योतिष ग्रंथों का सदुपयोग प्राचीन काल में राज्य सञ्चालन परम्पराओं के युद्ध महायुद्ध आदि में बाहुल्येन होता रहा है | युद्ध में विजय प्राप्ति के लिए स्वर शास्त्र का ज्ञान विशेष महत्त्व रखता है -
पत्यश्वगजभूपालैः सम्पूर्णा यदि वाहिनी |
तथापि भंगमायाति नृपः हीनबलोदयी ||
इसी के अनुसार वह कब,कहाँ और किस स्थान पर कार्य सिद्धि होगी इसका स्पष्ट फलादेश करता है | उदित स्वर के पूर्णबली मुहूर्त्त ज्ञान से ही शुभ तिथि, ग्रह, नक्षत्र का निश्चय किया जाता है | कार्य सिद्धि के लिए शकुन तंत्र-मंत्र का भी प्रयोग स्वर शास्त्री द्वारा किये जाते है | इसके अतिरिक्त स्वर शास्त्रीय को रणाभिषेक, दीक्षा, रण चर्या, रणकंकण, वीरपट्ट, रणपट्ट, जयपट्ट, बंधन, मेरवला, मुद्रा, रक्षा, औषध, तिलक, घुटिका, कपर्दिका, शस्त्ररक्षा, शस्त्रलेप, मोहन, स्तम्भन, उच्चाटन जैसी तांत्रिक क्रियाओं का भी ज्ञान पताका, पिच्छक आदि का भी ज्ञान आवश्यक है |
जिसकी सहायता से ही उसे अनेकानेक विषम परिस्थिति यों पर विजय प्राप्त करने में सहायता प्राप्त होती है | उपर्युक्त विद्याओं से युक्त स्वर शास्त्री के द्वारा कोई भी राजा अपने अजेय शत्रु को सरलता से जीत सकता है
बलान्येतानि यो ज्ञात्वा संग्रामं कुरुते नृपः |
असाध्यस्तस्य वै नास्ति शत्रुः कोऽपि महीतले ||
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