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चन्द्र लग्नं शरीरं स्यात्, लग्नं स्यात् प्राणसंज्ञकम् |
ते उमेसंपरिक्ष्यैव सर्व नाडी फलम्समृतम् ||
कुण्डली मानव जीवन के संचित प्रारब्धों की निधि है जिसमें जातक से सम्बंधित स्वास्थ्य, ज्ञान, धन, कुटुम्ब, सफलता- असफलता, उन्नति- अवन्ती, सुख- दुःख आदि का विचार राशियाँ, भावों और ग्रहों द्वारा विचार किया जाता है | चन्द्र लग्न शरीर है,लग्न प्राण है | वैसे लग्न शरीर, चन्द्र मन और सूर्य लग्न आत्मा या पराक्रम माना जाता है | इन दोनों का सम्यक् विचार करने के बाद ही कुण्डली का फल कहना चाहिए | अतः इन्हें ध्यान में रखकर जिस भाव में सूर्य और चन्द्र हो उनको भी लग्न भाव की तरह समझना चाहिए | भावादी की गणना में भी इन लग्नों को स्थान देना चाहिए तथा इससे भी वे विचार करने चाहिए जो लग्न से किये जाते है | लग्नों और राशियों को सतत परिवर्तित होते रहने से उसके फलों में भी परिवर्त्तन होता रहता है | साथ ही ग्रह भी इन भावों और राशियों को अपने प्रभाव से प्रभावित कर फलों में परिवर्त्तन लाते रहते है | इस परिवर्त्तनशील लग्न और भाव वाली कुंडलियों को चल और मेष लग्न से बनी कुंडलियों को स्थिर माना जाता है | फल का विचार करते समय स्थिर और चल कुंडलियों से विचार करना चाहिए | कुण्डली के द्वादश भावों की संरचना मेषादि द्वादश राशियों से होती है और ये मेषादि द्वादश राशियाँ और उनके स्वामी ग्रह अपना प्रभाव भावों पर सतत डालते रहते है |
मेषादि द्वादश राशियाँ लग्न में जाकर प्राणी को अपने द्वादश भावों के माध्यम से प्रभावित करती है | यथा
जब लग्न में मेष लग्न - जिसका जन्म इस लग्न में होता है वह प्रायः मंगल प्रधान होने से सुडौल शरीरधारी, दम्भी, स्पष्ट वक्ता, उद्यमी और सतत किसी न किसी कार्य में संलग्न रहने वाला होता है | परन्तु स्त्री में मेष लग्न होने से कठोर चित्त, बदला लेने में तत्पर, कठोर शब्द, बात बात में क्रोध करने तथा अपने स्वजनों से दुरी बना के चलना वाली होती है | मेष जातक पर सूर्य और मंगल का प्रभाव विशेष रुप से पड़ता है, क्योंकि मंगल लग्नेश होता है, लग्नेश से मनुष्य के सौभाग्य का विचार होता है | लग्न कि ही सबलता अथवा निर्बलता पर भाग्य कि उन्नति अथवा अवनति निर्भर है | लग्नेश को द्रव्य सम्बन्धी भावों से सम्बन्ध रहने पर भाग्य का सूर्य सर्वदा चमकता रहता है | मेष लग्न में जिसका जन्म होता है उसके लिए सूर्य सबसे सुखदायी ग्रह है गुरु भी सुखदायी है परन्तु सूर्य से कम | इसमे गुरु और शनि से सम्बन्ध होने पर भी राजयोग नही होता है | वैसे गुरु शनि संयोग से राजयोग बनता है | शनि, गुरु और शुक्र मेष लग्न वाले के लिए पाप होते है | मेष लग्न वाले के लिए मंगल अष्टमेश होने पर भी अनिष्टकारी नहीं होता है ऐसे जातक को शारीरिक और मानसिक विश्राम पर पूर्ण ध्यान देना अनिवार्य्य है | फलतः वह मनुष्य को काम करने में तेज, मेधावी, क्रूर, क्रोधी, लड़ाकू, अग्नितत्त्व, पूर्व दिशा का स्वामी, रक्तवर्ण, पित्त- प्रकृति कारक और उग्र स्वभाव प्रदान करता है | इस राशि का प्राकृतिक स्वभाव साहसी, अभिमानी और मित्रों पर कृपा रखने वाला है | अष्टमेश होने के कारण उस पर जिन जिन ग्रहों का प्रभाव पड़ेगा उनकी प्रकृति स्वभाव और तत्त्व आदि से उसकी मृत्यु होगी | चूँकि प्रमुख दो आयु स्थानों के अधिपति होने से मंगल बली होकर व्यसनशील बना देता है|
लग्न में वृष लग्न वाले का जातक मुँह गोल, गर्दन छोटी परन्तु मोटी और पुष्ट होती है उसके कंधे बलिष्ठ तथा उन्नत, बाहु छोटे और गठीले होते है | वह शान्ति प्रिय, धीर, सहिष्णु, दयालु, विद्या विवाद में चतुर, भाग्यवान् और कामी होता है | वह सर्वदा आनंद तथा सुख के अन्वेषण में रहता है | वह चित्त का बड़ा गंम्भीर गाढ़ा और दुसरे को अपना विचार ज्ञात नहीं देता है | वह विचारशील और शांत प्रकृति का होता है | उसका जीवन शान्तिमय होता है | भाग्योदय प्रायः एकाएक होता है, द्रव्य संपत्ति अथवा पृथ्वी सम्पति को प्राप्ति होती है | वृष लग्न या राशि वाले के लिए आरम्भिक जीवन में वह अनेक यंत्रणाओं से पीड़ित रहता है मध्य और अंत जीवन के शेष भाग में विजयी होकर सुख संपत्ति से आनंदित या विशेष सुखमय होता है | तब लग्न का स्वामी शुक्र बन जाता है, शुक्र एक सुन्दर आह्लादक और विलासी ग्रह है | ये राशि धन भाव है | इससे वित्त, सुख और भोजन इत्यादि का विचार होता है | स्थिर, सौम्य, स्त्री, दक्षिण दिशा का स्वामी, श्वेत वर्ण, इसका प्राकृतिक स्वभाव स्वार्थी, समझ बुझ कर काम करने वाला, परिश्रमी और सांसारिक कार्य में दक्ष होना है | अतः वह मनुष्य को अपने प्रभाव से सुन्दर आकर्षक और विलासी बनाता है | शुक्र की दूसरी राशि लग्न से षष्ठ भाव में पड़ती है, जो अन्यता का प्रतिक है | साथ ही शत्रु एवं चोर का भी प्रतिक है, अतः इसके प्रभाव से जातक गैर जाति से सम्पर्क बनाता है | लग्नेश शुक्र पर जब लग्न से आठवें और बारहवें भावों के स्वामी गुरु और मंगल का प्रभाव से वह चोट या दुर्घटना भी करेगा | शुक्र बली होकर महुष्य को परिश्रमी और कार्य करने में दक्ष बनाता है | वृष लग्न वाले जातक के लिए शनि बहुत उत्तम होता है | सूर्य भी शुभ होते है | शुक्र, चन्द्र और गुरु सामान्य होते है | कष्ट छाती और कंठ जनित रोग होते है |
लग्न में मिथुन लग्न है तब लग्नेश बुध होगा | इसके जातक लम्बे और सुडौल होते है | इसके चेहरे से तीक्ष्णता और प्रसन्नता देखे जाते है | यह कुशाग्र बुद्धि उत्तम वक्ता, अत्यन्तं उद्यमी,वार्तालाप में कुशल, बहस करने में प्रभावोत्पादक और तर्कपूर्ण होता है | वह सदा परिवर्तनशील अर्थात् किसी भी कार्य में विशेष समय तक दृढ़ तथा स्थिर नहीं रहता है | उसमें किसी विषय को व्याख्या सुगमता पूर्वक और स्पष्ट रूप से कर सकता है | वह बुध प्रतिभा और बुद्धि का प्रतीक माना जाता है | चतुर कार्य्य कुशल, परन्तु क्रोधी और अपने चरित्र तथा मेघाबल से प्रभाव तथा उन्नति प्राप्त करने वाला होता है अतः बली होकर बुद्धि को तीव्र बनाता है, निर्बल होकर बुद्धिहीन बनाता है, बुध पर पाप ग्रहों, अष्टमेश और द्वादशेश आदि का प्रभाव पड़ने पर बुद्धि विकृत होती है, बुध के साथ चन्द्र पाप प्रभावी बन बुध माता को कष्ट देता है | बुध प्रधान जातक को नौकरी में परेशानी, मंगल का प्रभाव पड़ने पर कभी भी सही विकास संभव नही | क्योंकि मंगल षष्ठ और एकादश का स्वामी बनकर अधिक अनिष्ट कारक बन जाता है दूसरी ओर बुध शुभ और शुभ दृष्टि होने पर संपन्न जातक होते है | मिथुन लग्न वाले के लिए शुक्र सबसे उत्तम गृह होता है | चन्द्र, मंगल अनिष्ट कारी होते है | शुक्र और बुध के योग से भाग्य की उन्नति होती है | शानी और गुरु का सम्बन्ध शुभदायी ण होकर प्रायः अनिष्टकारी होता है | मंगल, सूर्य और चन्द्र प्रायः मारकेश होते है | यदि चन्द्र द्वितीय भाव में हो तो शुक्र कि दशा में भाग्योनाति होती है | ऐसे जातक को फेफड़े और तंतु जनित रोग प्रायः हुआ करते है | इस कारण स्वच्छ वायु और उत्तेजना देनेवाली क्रियाओं से बचे रहना अति आवश्यक है | इस लग्न वालों की कुण्डली में मंगल चतुर्थ भाव ओर चन्द्र पर अपना प्रभाव डाले तो उसे हिंसा प्रिय बना देता है |
लग्न में कर्क लग्न - इस लग्न वाले मध्यम कद के होते है चेहरा गोल, गहुआ रंग होता है | उसका स्वामी चन्द्र है | वह स्वभाव से मिलनसार, आनंद, भ्रमण शील तथा यशस्वी होता है | चतुर्थ भाव से पैतृक धन, भूमि और वाहानादिक का विचार किया जाता है | चन्द्र माता, मृदुता, सबों के हित ओर सत्यप्रियता आदि का विचार किया जाता है | चन्द्र स्वच्छ, चंचल परिवर्त्तन का विचार इससे किया जाता है चन्द्र सर्व प्रिय अतः वह जिस भाव में रहता है उससे मानव का प्रिय सम्बन्ध बनाता है | यथा धन भाव में जाकर कुटुम्ब से पराक्रम में जाकर यश, चतुर्थ में जाकर माता, घर और वाहन आदि से अच्छा सम्बन्ध बनाता है | ऐसे जातक कर्त्तव्य परायण, श्रेष्ठ जन और गुरु तथा धार्मिकपुरुषों के प्रति भक्तिमान होता है | कुछ जातक धार्मिक होते हुए भी कपटी होने कि रुचि रखता है | और सिद्धांत रहित पुरुष होता है | ऐसा जातक जिसको चाहता है उसी कि बात को स्वीकार करता है और मानता है | ऐसा जातक हर विषय कि उपयोगिता और मोल का अनुमान उचित रीती से कर सकता है और उसको सफलता पूर्वक व्यवहार करने का प्रायः ढंग भी जनता है | ऐसे जातक के लिए मंगल सब से उत्तम फल देने वाला ग्रह होता है | मंगल, दशमेश और पञ्चमेश होने के कारण यदि पञ्चस्थ अथवा दशमस्थ हो तो बहुत हो उत्तम फल देने वाला होता है गुरु का लग्नस्थ अथवा नवमस्थ या बलवान् होना बहुत ही सुखदायी है | गुरु और मंगल का सम्बन्ध होने से उत्तम राजयोग बना देता है | शुक्र , शानी और बुध ऐसे जातक के लिए अनिष्टकारी होते है | सूर्य मारकेश होता हुआ भी प्रायः मृत्युकारी नहों होता है | बुध, शुक्र और शनि के मारकत्व प्राप्त होने पर मारकेश का बल होता है | ऐसे जातक किऔषधि का सेवन बहुत कम और सोच विचार कर करना चाहिए | ठंढक और सर्दी से अपने को सर्वदा बचाना चाहिए | ऐसे जातक को पेट का रोग संभव होता है | चित्त कि शान्ति रखने से भी पाचन शक्ति कि रक्षा होती है | रोगी को स्थान परिर्वतन करने से भी लाभ | वैसे जातक मस्ती में रहते है |
लग्न में सिंह लग्न हो तो उस जातक कि आँखे सुन्दर और भाव प्रकट करने वाली होती है | ऐसा जातक आनन्द से जीवन व्यतीत करता है | शत्रु हन्ता योग भी बनता है | धैर्यवान् और उदार होता है | जिस कार्य को करता है उसको निपुणता के साथ करता है | ऐसा जातक केवल दयालु ही नहीं होता है दुःख के समय में अपनी सूझ - बुझ के साथ निवारण करता है | शान्ति पूर्वक व्यवहार करता है | सिंह लग्न में सूर्य बलवान् का प्रभाव ज्यादा पड़ता है | इस भाव से राजानुग्रह और अकस्मात् धन लाँटरी से धन का प्राप्त होना बोध होता है | सूर्य एक तेजस्वी ग्रह है, अतः इससे प्रभावित जातक तेजस्वी होगा | सूर्य बली और शुभ प्रभाव में होकर जातक के हृदय, हड्डी, सात्त्विक प्रवृति, उदारता, प्रशासनिक क्षमता आदि को मजबूत बनाता और निर्बल बनकर आँख का रोग, अपमान, पेट का रोग और प्रशासनिक क्षमता में कमजोर बनाता है | इस लग्न वाले जीवन के शेष भाग में प्रायः विशेष सुखी और धनी होता है | ऐसा जातक कभी कभी प्रवासी होता है | और कम संतान वाले होते है | सिंह लग्न वाली कुछ स्त्री दानशील, दुबली पतली, कफ प्रधान, झगड़ालू होती है |
सिंह लग्न वाले के लिए मंगल उत्तम फलदायक होता है | मंगल और गुरु का परस्पर सम्बन्ध होने से राजयोग होता है | गुरु और शुक्र से मध्यम फल | शनि, शुक्र और बुध जातक को अशुभ फल देते है | बुध अकेले मारकेश बन जाता है | परन्तु सूर्य और बुध के संयोग से कार्य कुशल या राजयोग बना देता है | ऐसे जातक को गर्म पदार्थ तथा मादक वस्तुओं का सेवन निषिद्ध होता है | उतेजना और जल्दीबाजी से बचना चाहिए |
लग्न में कन्या लग्न हो तो उसका स्वामी बुध ग्रह होता है | इस लग्न वाले जातक कि मुख कि कान्ति से स्त्रीवर्गीय स्वभाव का झलक दिखाई पड़ती है | नियोजित कार्य करते है, सत्यवादी, न्यायप्रिय, दयालु, धैर्यवान् और स्नेही होता है | उसकी बुद्धि सुन्दर होती है | ये बातों को गुप्त रखने वाला और अपने भाव को दूसरों पर प्रकट नहीं करने वाला तथा वाणिज्य व्यवसाय में बड़ा निपुण होता है | वह मितव्ययी, सहनशील और होता है | स्त्री इस लग्न के होने से बुद्धिमती, सुशीला, मिलनसार, उदार, धार्मिक और दानशील होती है | बुध बली होकर अपने प्रभाव से जातक को बुद्धिमान्, सुन्दर, गायक, प्रसिद्ध होते है | अगर बुध अशुभ चरम रोग, बुद्धिहीनता, पेट और अतड़ी के रोग आदि से परेशान करता है | कन्या लग्न वाले के लिए शुक्र और बुध शुभदायी होते है | शुभदायित्व में बुध से शुक्र ही उत्तम होता है | बुध और शुक्र में सम्बन्ध लग्न ये गोचर में रहने से उत्तम राजयोग होता है | गुरु, चन्द्र, शुक्र और मंगल उत्तम फल नहीं परन्तु सहायक होते है | ऐसे जातक को अपनी मानसिक अवस्थाओं पर ध्यान रखना चाहिए | पेट जनित रोग प्रायः दुःख दायी होते है |
लग्न में तुला लग्न हो तो लग्नेश शुक्र बनता है | यह जातक आकृति से सुडौल, सुन्दर शरीर धरी वाला होता है | तुला लग्न शुक्र पापी होने पर थोड़ा स्थूल भी, अव्यवस्थित चित्त तथा अनिश्चित विचार का भी होता है ये मित्र प्रेमी, संगीत प्रेमी, चतुर, धार्मिक, यशवान और मेधावी होता है | वह प्रत्येक काम व्यय तथा दया के विचार से करता है | शुक्र बली होकर पूर्ण शुभ फल देता है | इस भाव से वाणिज्य, गमनागमन इत्यादि का विचार किया जाता है | शनि पाप ग्रह होकर इसके लिए अतिशुभ कारक बन जाता है | शुक्र का प्रभाव जातक को सुन्दर, विलासी, व्यसन प्रिय आदि बनाता है | इस शुक्र पर जब शुभ बुध, गुरु और चन्द्र का प्रभाव पड़ता है | तब जातक को ज्ञानी, सत्यवादी, न्यायप्रिय आदि बनाता है | शुक्र को अष्टमेश होने के कारण इस पर पड़ने वाले ग्रहों के प्रभाव से जातक की मृत्यु या कष्ट की जानकारी होगी | यानी शुक्र पर मंगल या गुरु का प्रभाव पड़े तो दुर्घटना या गोली लगने से जातक की मृत्यु होगी | ऐसे जातक के लिए शनि और बुध उत्तम फल देने वाले होते है | शनि सभी ग्रहों कि अपेक्षा तुला लग्न वाले के लिए केवल उत्तम ही फल नहीं देता किन्तु राजयोग होता है | यदि चन्द्र और बुध तथा शनि और बुध को आपस में सम्बन्ध हो तो राजयोग होता है | मंगल, सूर्य और गुरु शुभ फल नहीं देते | मंगल और शनि तथा मंगल और बुध का योग वैभवशाली होता है | सूर्य, मंगल और गुरु को मारकत्व होता है | परन्तु मंगल मारकेश के लिए बली नहों होता है | कमर, गुर्दा, मुत्रस्थली से सम्बंधित कष्ट मिलता है |
लग्न में वृश्चिकः लग्न हो तो इसका स्वामी मंगल होता है | इस लग्न वाले सुन्दर और सुडौल शरीर धारी, सतर्क, झगडालू तथा शीघ्र क्रोधी होते है | ऐसे जातक को बदला चुकाने बिना रहना कठिन होता है | अपने उचित अनुचित ध्येय के लिए अथक परिश्रम करता है | अपने कुटुम्ब तथा मित्रों से बिना कारण के झगड़ जाता है और ऐसे जातक का बर्ताव तथा व्यवहार भयावह होता है | ऐसे जातक जातक विरुद्ध यदि कोई अपना विचार प्रकट करता हो तो वह उस का शत्रु बन जाता है वह जातक बड़ा रुखा रहता उसके कतिपय परिचित ही शत्रु होते है | ये स्त्री प्रेमी होता परन्तु वैवाहिक और संतान सुख कम | मंगल उग्र ग्रह है | अतः बली होकर जातक को उग्र स्वभाव, कर्मठ, हठी, चोरी से व्यापार करनेवाला, मनमानी करनेवाला आदि बनाता है, इस जातक का मंगल और शनि दोनों मिलकर जिस भावेश और भाव से सम्बन्ध बनाता है, उससे जातक का कड़ा विरोध हो जाता है | कारण मंगल षष्ठेश और शनि तृतीयेश होकर अशुभ होता है | ऐसे जातक के लिए सूर्य और चन्द्र शुभ फल देने वाले होते है | उन दोनों का सम्बन्ध होने से उत्तम राजयोग होता है | गुरु और बुध के एकत्रित रहने से अथवा अन्योन्य दृष्टि से धन का आगमन विशेष रुप से होता है | गुरु भी शुभफल देने वाला होता है | बुध, शुक्र और शनि अच्छे फल नहीं देते है | गुरु को स्वयं मारकत्व नहीं होता है शनि और बुध को मारक्त्व से सम्बन्ध होने से मृत्युकारी योग होता है | ऐसे जातक को कंठ, कलेजों और मल- मूत्रादि में कष्ट पूर्ण ध्यान चाहिए |
लग्न में धनु लग्न - इसका अधिपति गुरु है, जो ज्ञान महत्वाकांक्षा, धर्म आदि का प्रतीक माना गया है | ये भाव भाग्य के प्रभाव का विचार होता है | इस भाव को भाग्य स्थान होता है | धनु लग्न वाले जातक सुडौल शरीर धारी, स्पष्ट विचार का होता है | न्याय और सत्य के लिए खूब परिश्रम करता है | वह निष्काम कर्म करता है | अपनी मेधा तथा गुण द्वारा ऐसा जातक शीघ्र ही उन्नति करता है | जातक उदार प्रकृति का होता है | धार्मिक तथा ज्ञान के विषयों में उसकी बड़ी अभिरुचि रहती है | बिना किसी प्रकार के आडम्बर के बिना जीवन जीते है | शुभ स्थिति में उक्त प्रतीकों का विकास करता है | अशुभ स्थिति में उनको रोकता है | शरीरिक दृष्टि से, पेट का रोग, वायु विकार आदि से पीड़ित करता है | वह बुद्धिमानों का बड़ा पक्षपाती होता है | ऐसा जातक बुद्धिमान्, योग्य और अपने कुल वंश तथा जाति में ख्याति प्राप्त करता है | ऐसे जातक को बड़े-बड़े अधिकारी एवं सम्मानित लोगों से संपन्न होते है | धनु लग्न वाले को सूर्य और मंगल बहुत ही शुभ फल देने वाले होते है | मंगल से सूर्य का फल उत्तम होता है | सूर्य और बुध का परस्पर सम्बन्ध होने से राजयोग होता है | ऐसे जातक के लिए शुक्र अनिष्टकारी होता है | गुरु साधारण या बुरा फल देता है | परन्तु मारकेश नहीं देता है | शनि को स्वयं मारकत्व नहीं होता है | शनि अगर एकादशेश हो तो उत्तम फल देता है | ऐसे जातक को बहुत परिश्रम से फल मिलता है | व्यायाम और घुमने से स्वास्थ्य के लिए बहुत ही हितकर होता है | रुधिर विकार से बचे |
लग्न में मकर लग्न- हो तो उसका स्वामी शनि होगा | इस जातक के शरीर का निचला अर्ध भाग दुबला-पतला तथा निर्बल होता है | सुडौल शरीर का गठन कठिन रुप का होता है | जातक बड़ा उत्साही तथा परिश्रमी होता है | जो कोई उसका बिगाड़ता है उससे बदला लेने में ऐसा जातक सर्वदा तत्पर रहता है | वह प्रत्येक काम सावधानी से तथा विचार पूर्वक करता है | पुण्य कर्म में तत्पर और धार्मिक तथा ईश्वर का डर रखता है | वह अपने आश्रितों से काम लेने में निपुण होता है | वह अपने काम का यार होता है | दूसरों को ठगने में उसकी रुची रहती है | वह अपनी मित्र मण्डली में प्रमुख और सम्मानित हो तथा अपनी ख्याति के लिए सदा प्रयत्न शील रहता है | ये दानशील भी हो सकते है |
शनि कुशाग्र विचार का प्रतीक है | फलतः इस लग्न के जातक का विचार अच्छा नहीं होता | शनि के बली होने से आयुष्मान दीर्घ होता है | इस लग्न का जातक छोटे वर्ग के लोगों से प्रेम करता है | ऐसे जातक के लिए शुक्र और बुध उत्तम फल देने वाले ग्रह होते है | इन दो में से शुक्र सबसे उत्तम फल देने वाला होता है | पञ्चमेश एवं दशमेश होने के कारण शुक्र स्वयं राज-योग देता है | शुक्र और बुध के योग से भी राज योग होता है | मंगल, गुरु और चन्द्र शुभ फल नहीं देते | इन सबों को मारकत्व भी होता है | शनि को भी मारकत्व होता है | सूर्य को मारकत्व नहीं होता है | सूर्य को अष्टमेश होने का भी दोष नहीं लगने के कारण साधारण फल होता है | यदि मकर राशि में मंगल बैठा हो और कर्क में चन्द्र हो अर्थात् लग्न में मंगल और सप्तम में चन्द्र हो तो मकर लग्न वाले के लिए राजयोग होता है | परन्तु यदि बुध अष्टम भाव में हो गुरु लग्न में हो और उस पर शुक्र की दृष्टि हो तो जातक स्वस्थ्य रहता है परन्तु धनाभाव रहता है | ऐसे जातक को चर्म रोग से परेशान रहते है | पेट खराब, ठंढी और गर्मी से बचे या नशों की बीमारी सम्भावना |
लग्न में कुम्भ लग्न - का स्वामी शनि है | उसका शरीर और ह्रदय सुन्दर होता है | जातक दयालु प्रकृति और परोपकारी होते है | वह दूसरों की भावना, विचार और मन की बात को जानने का सर्वदा यत्न करता है | ऐसा जातक सुख और आनन्द से जीवन व्यतीत करता है | ईश्वर, धर्म तथा ज्ञान में ऐसे जातक की प्रवृति होती है | पाप और दुराचार से ऐसा जातक दूर रहना चाहता है | यशस्वी, धनी, मिलनसार, महान्, सुगमता पूर्वक कार्य करने में निपुण, सभी से प्रीति रखनेवाला होता है | सबका सम्मान करने वाला परन्तु दम्भी होता है | अत्यंत कामी और कभी कभी परस्त्री गमन का इच्छुक होता है | बड़े बड़े लोगों से उसे मित्रता होती है | लोगों में ऐसे जातक की मान मर्यादा विशेष होती है | वाताधिक प्रकृति वाला और प्रायः या पेट की बीमारियाँ होती है | ये जातक आनन्दमय जीवन तथा शुभ सङ्गीत में जीवन व्यतीत करना | इसका शुक्र गुरु अतिशुभ होता है | उसके बाद मंगल भी होता है | मंगल और शुक्र में सम्बन्ध होने से सर्वोत्तम रहता है | बुध और शनि साधरण फल देते है | गुरु, मंगल और चन्द्र मारक ग्रह होता है | गुरु स्वयं मारकेश नहीं होता है | सूर्य और बुध के पञ्च भाव में रहने से जातक के लिए उन्नति कारक योग होता है | यदि सूर्य और शुक्र लग्न में हो, राहु दशमस्थ हो तो ऐसे भाव में गुरु और राहु की दशा में उत्तम फल होता है | ऐसे जातक का रोग कुछ देर तक चलता है | मानसिक व्यथा से बचना चाहिए | आखों पर ध्यान रखे | ये लाभ भाव है इस भाव से धन संग्रह इत्यादि का विचार होता है | वह जिस भाव से सम्बन्ध बनाता है उसे पूर्णरूप से बढ़ाता है | शनि और मंगल क्रूर ग्रह है पर क्रियात्मक निजत्व का प्रतिनिधि त्व करते है | इन दोनों का सम्बन्ध जिस किसी भाव से बनता है, उससे उसका कड़ा विरोध होता है |
लग्न में मीन लग्न हो तो उसका स्वामी गुरु है | इस जातक का शरीर सुन्दर और सुडौल होता है | ऐसा जातक पित्ताधिक होता है | वह बड़ा विलासी होता है | सुख, शान्तिमय और भोग विलासमय जीवन व्यतीत करता है | यह उसका जीवन का सिद्धांत रहता है | वह जातक लेखक, कंजूस तथा उसमें आनन्द प्राप्ति करता है | वह कभी भी समय नष्ट नही करता है | वह बहुत सी बातों को जानने वाला होता है | कीर्ति सम्मान, धूर्त्त, धन समृद्धि वाला होता है ऐसे जातक को बचपन एवं युवावस्था के प्रारम्भ में अनेक कठिनाई होती है | ऐसा जातक समय समय पर सहस से काम लेता है | ये कला प्रेम, मेधावी, बहुत ही उत्तम स्मरण शक्ति वाला और स्त्री प्रेमी, प्रसिद्ध तथा कीर्ति शाली जातक होते है | अगर बली हो तो मानी, धनी, यशस्वी, धार्मिक, राज्य सम्मान युक्त बनाता हैं | पाप प्रभाव आदि में जाकर अपमानित एवं राज्य विरोधी बनाता है | इसी तरह सूर्य और चन्द्र लग्नों से भी विचार करना चाहिए | शुक्र से सांसारिक सुखों कि प्रबलता और गुरु से द्रव्य संचय इत्यादि का विचार होता है | गुरु और मंगल के योग से राजयोग होता है | मंगल और चन्द्र के योग से उत्तम फल होता है | गुरु साधारण फल देता है शनि सबसे प्रबल मारक होता है | उसके बाद शुक्र को मारकत्व होता है | मंगल स्वयं मारक नहीं होता है | चन्द्र और मंगल उत्तम फल देने वाले होते है | शनि, शुक्र, सूर्य और बुध अच्छे फल नहीं होने देते है | शनि के द्वादशस्थ होने से जातक को संतान बहु संख्यक रहता है | इस जातक को झंझट और कलह से बचे |
इस प्रकार एक लग्न का केवल फलित है | सोलह कुंडलीयों और द्वादश भावों में सभी ग्रहों का फल का सही अध्ययन करके फलित करना है प्रत्येक राशि, लग्न भाव में आकर अपने स्वामी ग्रहों के प्रभावों से जातक पर प्रभाव डालती है | प्रत्येक कुंडली के राशि, भाव और ग्रह भिन्न- भिन्न तरह से अनेकों सम्बन्ध बनाते है | उससे नाना प्रकार के परिणाम को उत्पन्न करते है | ज्योतिष उन परिणामों का अध्ययन करता है और उसके परिणामिक रुपों को समाज के सामने मूर्तरूप में प्रस्तुत करता है मेषादि द्वादश राशियों का अपना अपना गुण, धर्म, रंग-रूप, विचार, आहार, व्यवहार जाति आदि होता है उसके अनुसार ये राशियाँ जातक पर अपना प्रभाव डालती है | लग्न और भाग्य भाव में यदि सम्बन्ध बनता है तब जातक का धर्म- कर्म और भाग्योदय दोनों का विकास होता है | यह सम्बन्ध यदि चन्द्र लग्न और सूर्य लग्न एवं उनके नवम भावों से बनता हो तो जातक महान् महात्मा वर्षों बाद बन जाता है | अष्टम भाव अन्वेषण और जान को जोखिम में डालनेवाला है | तृतीयेश शुभ ग्रह होकर जब लग्न और पञ्चम में हो तब जातक गंभीर चिन्तक होता है | ऐसे ही जातक अपनी खोज, अन्वेषण और अविष्कार से समाज सेवा करता है | यथा- माना की किसी का लग्न तुला है,उसके अष्ट्माधिपति शुक्र तथा तृतीयेश गुरु पञ्चम भाव में स्थित हो तो जातक गंभीर अन्वेषक होगा क्योंकि उसके बुद्धि स्थान का सम्बन्ध गंभीर अन्वेषक अष्टम भाव से हुआ है | शनि गंभीर ग्रह है विषय गणित, भौतिक आदि का सम्बन्ध अष्टम भाव होने से जातक गणितज्ञ होता है |
लग्नेश को अन्य भावों से सम्बन्ध द्वारा एवं एक भाव को अपने आगामी भाव से सम्बन्ध द्वारा क्या फल होता है | इसी का उल्लेख हम स्थान में किया गया | आप लोग अपनी बुद्धि पर बल देकर एवं साधारण नियमों पर ध्यान देकर अन्योन्य सम्बन्धों के विषय में फल कहने में समर्थ हो सकते है | एक बात लिखना आवश्यकता है कि फल कहने में सफलता तभी होगी जब कि हर बातों पर पूर्णतया दृष्टि डाली जाएगी | यथा कुम्भ में गुरु और शनि को अन्योन्य सम्बन्ध है | गुरु भी दो स्थानों स्वामी है और शनि भी दों स्थानों का स्वामी है | इस प्रकार चार प्रकार का फल होगा | यथा कुण्डली का लग्नेश गुरु यानि धनु लग्न है और द्वितीयेश शनि है, यह एक फल हुआ | पुनः शनि तृतीयेश भी है | इस कारण गुरु और शनि के सम्बन्ध का यह दूसरा फल होगा | पुनः गुरु चतुर्थेश भी है तो चतुर्थेश एवं द्वितीयेश के सम्बन्ध का फल यह तीसरा फल होगा | चौथा चतुर्थेश और तृतीयेश के सम्बन्ध का फल होगा | अरसे ऐसे स्थानों में हर प्रकार के फलों को जबतक विवेचना रुपी चलनी से न चल लिया जाय तबतक फल ठीक नहीं मिलेगा | एक बात और स्मरण रखने कि यह हैं कि केवल सम्बन्ध ही द्वारा फल नही विचार करना चाहिए बल्कि बलाबल के अनुसार फल में न्यूनाधिक का अनुमान करना होगा | उपर्युक्त कि संबंधों के अतिरिक्त अन्य भावों में सम्बन्ध के विचार में एक स्मरण रखने कि बात यह है कि जिन जिन भावों के सम्बन्ध होता है उन उन भावों के कारकत्वानुसार फल होता है | यथा द्वितीय भाव से धन का और पञ्चम स्थान से पुत्र एवं बुद्धि का विचार होता है | इस कारण जब पञ्चमेश और द्वितीयेश को सम्बन्ध होगा तो अनुमान करना होगा कि पुत्र द्वारा धन की प्राप्ति सूचित होती है अथवा बुद्धि द्वारा धनागमन होगा | इसी प्रकार यदि सप्तमेश को द्वितीयेश वा भाग्येश से सम्बन्ध हो तो अनुमान करना होगा कि पत्नी द्वारा भाग्योन्नति अथवा धन प्राप्ति होगी | लग्नेश और अष्टमेश में सम्बन्ध होने से जातक जुआड़ी इत्यादि होता है | परन्तु यदि द्वितीयेश पूर्ण बलि हो तो ऐसा भी देखा गया है कि जातक को किसी को मृत्यु द्वारा धन कि प्राप्ति होती है | या द्वितीयेश और सप्तमेश में अच्छा सम्बन्ध के कारण विवाह से भी धनागमन होता है यही सब ज्योतिष का रहस्य है |
आपके जन्माङ्गम या गोचर में उच्च या शुभ लग्नेश अन्य भावों में रहने से किस प्रकार का जीवन रुपी मार्ग पर असर पड़ता है |
लग्नेश लग्नगत हो तो जातक रोगहीन, बलवान, धन-युक्त, रुपवान्, अतिप्रतिष्ठा युक्त, चञ्चल, मंत्री, सुखी, विलासी, धन- युक्त, सत्त्कम- परायण, कीर्त्तिमान्, विख्यात और कभी-कभी दो भार्या वाला होता है |
द्वितीय भावगत लग्नेश हो तो जातक धनी, धार्मिक, स्थूल- शरीर, स्थानाधिपति, समर्थ, सत्कर्म परायण, दीर्घायु, कुटुम्बों से युक्त और सुशिल होता है | उसकी पत्नी गुणवती होती है |
तृतीय भाव गत हो तो जातक बान्धवों में श्रेष्ठ, मित्रों से युक्त, धर्मात्मा, पराक्रमी,दीर्घायु, स्त्री प्रेमी वाला होता है | यदि लग्नेश बलहीन हो तो अपवित्रता प्रदान करता है | यदि शुभ ग्रह कि दृष्टि हो तो मधुर भाषी होता है |
चतुर्थ भाव गत हो तो जातक राजा का प्रिय, दीर्घ जीवी, गुणी, मातृ -पितृ भक्त, सुखी, विलासी प्रवृति के होते है |
पञ्चम भाव में होने से जातक पुत्रवान्, दानी, समर्थवान्, सुकर्म, सुशील, त्यागी, विनीत, संगीत प्रिय भी होते है |
षष्ठ भाव में होने से जातक निरोग, संपत्ति संपन्न, शत्रुहन्ता, पुत्र,माता,मामा एवं पशु प्रिय तथा पराक्रमी होता है ये अपने वाचा, मन, शरीर द्वारा शत्रु को उत्पन्न करता है |
सप्तम भाव में होने से जातक तेजस्वी, शीलवान् और रुपवान् होता है | उसकी पत्नी शीलवती, रुपवती एवं तेजस्विनी होती है | ज्यादातर देखा गया है कि पति के सामने पत्नी कि मृत्यु होती है |
अष्टम भाव गत होने से जातक कृपण, धनसञ्चयी और दीर्घायु होता है | यदि शुभ दृष्ट हो तो बुद्धिमान्, मान और सौम्य स्वभाव होता है |
नवम भाव गत हो तो जातक विद्वान, तेजस्वी, सुखी, शीलवान्, पुण्यात्मा, यशस्वी, राज्य तुल्यं जीव, आदर्श व्यक्ति होते है |
दशम भाव में होने से जातक विद्वान्, सुखी, शीलवान्, आदर्श, परिवार और समाज से समानित होता है |
एकादश भाव में होने से जातक विशिष्ट व्यक्ति, पुत्रवान्, अर्थशास्त्रीय, तेजस्वी, दीर्घजीवी, सुख संपन्न, विवेकी- विचारवान्,होता है | परन्तु यदि लग्नेश बलहीन हो तो विपरीत फल होता है |
द्वादश भाव गत हो तो जातक विदेश में, अपने लोगों से दुरी बना रहता है | सामान्य जीवन जीने वाला होता है |
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