Aapka Nakshatra Kya hai - आपका नक्षत्र क्या है?
Astrologer Dr S. N. Jha
नक्षरति गच्छतीति नक्षत्रम् अर्थात् जिसमें गति न हो वह नक्षत्र कहलाता है| हमारे महर्षियों ने आकाश मण्डल के तारों को पूर्व-पश्चिम गति से सत्ताईस भागों में विभक्त किया है तथा प्रति भाग का नाम नक्षत्र रक्खा है | चन्द्रमा एक नक्षत्र में २३/५६ का होता है | परन्तु सूर्य एक नक्षत्र में १४ दिन तक रहते है | चन्द्रनक्षत्र इन सताईस नक्षत्रों कि एक माला पृथ्वी के चारों ओर पूर्वापर पड़ी हुई है | कई तारों के समुदाय को ही नक्षत्र कहता है | उन तारों को एक दुसरे से युक्तिपूर्वक रेखा द्वारा मिला देने से कहीं अश्व, कहीं शिर, कहीं गाड़ी आदि का चित्र बन जाता है | तात्पर्य यह है कि इस भूमंडल के चारों ओर ही तारागण है जिन्हें महर्षियों ने सत्ताईस नक्षत्रों के नाम से पुकारा है उसके द्वारा आकाश मण्डल में ग्रहों कि स्थिति का ठीक-ठीक बोध होता है | यथा- सड़क पर किलो मीटर दुरी कि पता चलता है उसी तरह गणितज्ञों कि यह कहना सरल होगा कि अमुक ग्रह, अमुक समय में अमुक नक्षत्र में था या है | प्रत्येक नक्षत्र भागों में विभाजित है और उनमें हर एक को चरण कहते है | एक नक्षत्र में ३० मुहूर्त्त होते है | १५ मुहूर्त्त दिन में और १५ मुहूर्त्त रात में होते है | एक मुहूर्त्त का मान ४८ मिनट का होता है | ब्रह्म मुहूर्त्त ४/२४ मिनट से ५ /१२ मिनट तक रहता है | एक नक्षत्र में ३० मुहूर्त्त निम्नलिखित ;- १.राक्षस, २. यातुधान, ३.सोम, ४. शुक्र, ५.फणीश्वर, ६. पिता, ७. माता, ८.यम, ९.काल, १०. विश्वेदेवा, ११. महेश्वर, १२. शर्व, १३. कुबेर, १४. शुक्र १५.मेघ, १६. दिवाकर, १७. गन्धर्व, १८. यम, १९. ब्रह्मा, २०. विष्णु, २१. यम, २२. ईश्वर, २३. रुद्र, २४.पवन, २५.मुनि, २६.षण्मुख, २७. भृर्गरीटि, २८. गौरी, २९. सरस्वती और ३०. प्रजापति | जिस मुहूर्त्त में बालक उत्पन्न हो उसका फलानुसार जीवन रहता हैं | अशुभ मुहूर्त्त प्रथम, द्वितीय, षष्ठ, अष्टम, नवम, अष्टादश, त्रयोंविंश इन मुहुर्त्तों से जन्मा बालक कुल का क्षय करनेवाला होता है | परन्तु आश्लेषा नक्षत्र में विपरीत गणना कहते है | अमुक ग्रह अमुक नक्षत्र में था या है बल्कि यह भी कहा जा सकता है कि वह ग्रह उस नक्षत्र के किस चरण में थी, है या होगी | फलानि नक्षत्र दशा प्रकारेण विवृमदे अर्थात् जातक जिस नक्षत्र में जन्म लेता है उसके स्वामी ग्रह की पहली दशा होती है और बाद में दुसरे ग्रहों की दशा क्रमशः होती है |
गणयेत्कृत्तिका भाच्च यावद्वै जन्मभावधि |
नवभिश्च हरेद्भागं शेषं ग्रहदशा भवेत् ||
कृत्तिका से जन्म नक्षत्र तक गिनती करने पर जो संख्या होगी उसमे नौ से भाग देने पर शेष संख्या के अनुसार ग्रह की दशा होगी और बाद में उसी क्रम से दुसरे ग्रहों की दशा आएगी | इसकी जानकारी के लिए इस श्लोक का उपयोग किया जा सकता है ;-
रस आशाः शैला वसुविधुमिता भूपति मिला |
नवेलाः शैलेलाः नगपरिमिता विंशतिमिता ||
रवाविन्दावारे तमसि च गुरौ भानुतनये |
बुधे केतौ शुक्रे क्रमश उदिताः पाकशरदः ||
अर्थात् सूर्य ६ वर्ष, चन्द्र १० वर्ष, मंगल ७ वर्ष, राहु १८ वर्ष, गुरु १६ वर्ष, शनि १९ वर्ष, बुध १७ वर्ष, केतु ७ वर्ष और शुक्र २० वर्ष की दशा को क्रमिक उपभोग करते है | भयात और भभोग के आधार पर जन्म कालीन नक्षत्रों से जन्म कालीन ग्रह दशा का गत और शेष जानकर इसके बाद की ग्रह दशाओं को जानने का विधान किया गया है | हमारे आचार्यों ने ग्रहों के फलों के समय जानने के लिए ३२ दशाओं कि व्यवस्था अपने अपने विचार से क्षेत्रीय अनुसार कि है | जिनका उपयोग आज नहीं के बराबर है | विंशोत्तरी दशा को भारतीय आचार्यों ने फल कथन में सही पाया और उसे सर्व सम्मति से स्वीकार किया है वैसे योगिनी दशा पूर्वांचल प्रदेश,
अष्टत्तोतरिय समुद्र किनारे के प्रदेश वालों के लिए है |
मनुष्य या प्राणी अपने पूर्व जन्म के अर्जित शुभ कर्मों के द्वारा ही इस पृथ्वी पर फलोप -भोग करता है | हमारा ज्योतिष भी संचित, प्रारब्ध और क्रियमाण फलों के सूचक कुण्डली से उनके पूर्व जन्मार्जित फलों को यथा समय बतलाता है | जन्म कुण्डली मानव के पूर्व जन्म के कर्मों का मूर्तिमान स्वरूप है पुर्व्जन्मोम के कर्मों को जाननेवाली कुंजी है | उन्हें जानने के लिया हमे पूर्व में लिखित ग्रह, राशि, नक्षत्र और भावों के गुण धर्म आदि के बारे में ज्ञान प्राप्त किया जाता है | फिर यह देखना चाहिए कि किस प्रकार ग्रह, नक्षत्रों, राशियों और भावों में जाकर अपने द्वारा उनके शुभाशुभत्व को प्रकटित करता है |
जन्म नक्षत्रानुसार फल ;-
१. अश्विनी - सदैव सेवाभ्युदितो विनीतः सत्यान्वितः प्राप्तसमस्तसंपत् |
योषाविभूषात्मजभूरितोषः स्याद्श्विनी जन्मनि मानवस्य ||
अश्विनी नक्षत्र का स्वामी अश्विनी कुमार और ग्रह में स्वामी केतु होते है | मूल संज्ञक तथा अधिकार सिर होता है | अश्विनी नक्षत्र मेष राशि का 0॰ / से १३॰ /२०ं तक रहता है इसमें मेष राशि के चार नवांश व्यतीत होते है | यथा अश्विनी का प्रथम चरण या मेष का प्रथम नवांश मंगल का द्वितीय, शुक्र का तृतीय, बुध का चतुर्थ,और चन्द्र का नवांश होता है | जिस नवांश में जातक का जन्म होता है, उसके स्वामी के सदृश जातक का शारीरिक गठन होता है | यथा मंगल के नवांश में जन्म लेने पर मंगल के सदृश और शुक्र के नवांश में जन्म लेने पर शुक्र के स्वरुपाकृति एव दुसरे नवांशेष | आप बहुत ऊर्जावान और सक्रिय होगें | अश्विनि नक्षत्र वाले बाल्यावस्था में कष्ट तथा उत्तर्राध सुखमय, व्यक्ति बेहद महात्वाकांक्षी और बेचैन प्रवृति के होते है | हर काम जल्दबाजी में करना चाहते है और उसका नतीजा भी जल्दी से जल्दी चाहते है | कुछ रहस्यमय प्रकृति के होते है पहले काम कर लेते है बाद में उसके बारे में सोचते है | इस नक्षत्र का गण देव, नाड़ी आदि है | यह सव्य और आकर्षक व्यक्तित्त्व और गोल आकृति का होता है, यह भाग्यशाली, कारीगर, स्वावलम्बी, दूरदर्शी, शीलवान, आज्ञाकारी, कोमल ह्रदय, मेधावी, प्रतिभाशाली,अपने आप में व्यस्त, कार्यशील और लड़ाकू प्रवृति कि मानसिकता रखता है | इसकी पत्नी सुन्दर, धर्मशील, सुशील, पति प्रिय होती है | जातक शोधार्थी, ज्योतिषी और कलाकार होता है | इसकी आर्थिक स्थिति साधारण होती है, अनायास धन लाभ होता है | साथ ही जल या द्रव्य सम्बंधित व्यापारी होता है | इसके जातक को प्रति चरण के स्वामी के अनुरुप व्यवसाय होता है | इस जातक को नौकरी हिम्मत वाला या वर्दी पद पसन्द मिलता है | अश्विनी नक्षत्र वाले को कृत्तिका प्र चरण, मृगशिरा तृतीय और चतुर्थ चरण, पुष्य, आश्लेषा, उत्तराषाढ़ द्वि, तृ या चतुर्थ चरण तथा श्रवणा नक्षत्र से सम्बन्ध बना सकते है | इसे गुर्दे कि बीमारी, लकवा, श्वास सम्बंधित रोग, मूर्छा, बेहोशी और निद्रा में कमी होती है |
२. भरणी - सदापकीर्तिर्ति महापवादैर्नानाविनोदैश्च विनीतकालः |
जलातिभीरुश्चपलः खलश्च प्राणीप्रणीतो भरणीभजातः ||
भरणी नक्षत्र के स्वामी यमराज और ग्रह में स्वामी शुक्र है, पूजा शंकर जी की करे, मेष का १३॰ / २०े से २६॰ / ४०े तक रहता है जो मेष के पंचम नवांश से आठवें नवांश तक होता है | जिन के अधिपति क्रमशः सूर्य, बुध, शुक्र और मंगल होते है | इन नवांशों में जन्म लेने वाले जातक अपना स्वरुप नवांशाधिपति ग्रह के स्वरुप जैसा और शरीर का रंग नवांशपति के अनुरुप संभव होता है | इसका गण मनुष्य, नाड़ी आदि होता है | इस नक्षत्र के लोग काफी आकर्षक, सुन्दर, व्यवहार कुशल और मृदुभाषी होते है और इनका मिलनसार स्वभाव लोगों को आकर्षित करता है | धुन के पक्के होते है | इस नक्षत्र वाले अवसर वादी, छल कपट करने वाले होते है | परन्तु शुभ नक्षत्र होने पर सामाजिक प्रतिष्ठा और सम्मान को अपना मूल मंत्र मानने वाले ये लोग प्रेम और सद्भाव के साथ काम करना पसंद करते है | यह सव्य और पुरुष नक्षत्र है | समानतया इस नक्षत्र में जन्मेंं जातक का रंग गेहुआं, सुडौल, आकर्षक व्यक्तित्व, भाषा मधुर होता है | जातक पवित्र, स्वतंत्र प्रकृति अनुशासन प्रिय, मेधावी, चतुर और गंभीर मानसिकता वाला होता है |प्रथम चरण में जन्में जातक सूर्य का, द्वितीय चरण में जन्में जातक का बुध का, तृतीय चरण में जन्में शुक्र का और चतुर्थ चरण में जन्में जातक का मंगल का व्यवसाय होता है | ये जातक डाक्टरी इंजीयरिंग, काव्य, तर्क या आलोचक आदि होते है | जातक को व्यवसाय कि दृष्टि से आटो मोबाइल, स्टुडियों, थियेटर, कान्ट्रेक्टर आदि कार्य से जीवन निर्वाह करता है | इस नक्षत्र वाले अश्विनी, आर्द्रा, पुनर्वसु, स्वाति, उत्तराषाढ़, श्रवण से सम्बन्ध बना सकते है | ह्रदय से कमजोर, ज्वर, कर्ण दर्द, मस्तिष्क बीमारी आदि रोग से जातक को कष्ट होने कि संभावना प्रबल होती है |
३. कृतिका - क्षुधाधिकः सत्यधनैर्विहिनो वृथाटनोत्त्पन्नयतिः कृतघ्नः |
कठोरवाग्गर्हितकर्मकृत्स्याच्चेत्कृत्तिका जन्मनि यस्य जन्तोः ||
कृत्तिका नक्षत्र के स्वामी अग्नि देव और ग्रह में स्वामी सूर्य हैं | कृतिका मेष राशि का २६॰ / ४०॰ से ३०॰ तक एवं वृष राशि का ०॰ / १०॰ तक रहता है | इसमें मेष राशि का नवांश एवं वृष राशि का पहला से लेकर तृतीय नवांश तक होता है | जिनके स्वामी क्रमशः गुरु, शनि, शनि और गुरु होते है | इसका गण राक्षस, नाड़ी अन्त्य है | इस नक्षत्र के लोगों पर सूर्य का प्रभाव होता है और इनमें आत्मसम्मान का भाव बहुत ज्यादा होता है | इनमें जल्दी किसी पर भरोसा नहीं होता है इनका स्वभाव तुनक मिजाज होता है | इनमें ऊर्जा खूब होती है और कोई भी काम बहुत लगन और मेहनत से करते है | प्रेम में इनका भरोसा होता है और रिश्ते बनाने में माहिर होते है | इन नवांशों में जन्म लेने वाले जातक का स्वरुप नवांश पति के सदृश होता है | रंग चन्द्र नवांश के अनुसार होता है | यह पुरुष और सव्य नक्षत्र होता है, इसमें जन्म लेनेवाले जातक का कद मध्यम, सुन्दर, सुडौल, सहनशील, आज्ञाकारी, उद्योगी, परिश्रमी, यथार्थवादी, शत्रुपूर्ण, दयालु, सामाजिक, घमण्डी और जिद्दी होता है | दाम्पत्य जीवन साधारण, शिक्षा के क्षेत्र में जातक उच्चत्तम, कला, राजनीती, डाक्टरी कि ओर अधिक उन्मुख होता है | विज्ञान और विद्या व्यसनी बनता है, आर्थिक स्थिति साधारण होती है पर ३२ वर्ष के बाद अच्छी होती है, व्यवसाय करने में चतुर, सरकारी सेवा में, मेनेजमेन्ट में भी अच्छी सफलता है | कृत्तिका नक्षत्र वालों के लिए मृगशिरा, पुष्य, अनुराधा, ज्येष्ठ, धनिष्ठा के तृ - चतुर्थ चरण और शतभिषा से अच्छा सम्बन्ध रहता है | जातक को नेत्ररोग, ह्रदयरोग और रक्तचाप से परेशानी उठानी पड़ेगी |
४. रोहिणी - धर्मकर्मकुशलः औषोवलश्चारुशीलविलसत्कालेवरः |
वाग्विलासकर्लिताखिलाशयो रोहिणी भवति यस्य जन्मभम् ||
रोहिणी नक्षत्र के स्वामी ब्रह्माजी और ग्रह में स्वामी चन्द्रमा है | वृष राशि का १०॰ / ०े अंश से २३॰ / २०ेे कृतिका नक्षत्र का है | इसके चारों चरण के स्वामी क्रमशः मंगल, गुरु, बुध और चन्द्र है | इसका गण मनुष्य, नाड़ी अन्त्य है | यह सव्य पुरुष नक्षत्र है जो जातक इसके प्रथम चरण में जन्मेगा उसका स्वरुप मंगल जैसा, द्वितीय में गुरु जैसा, तृतीय में बुध जैसा चतुर्थ में चन्द्र जैसा होगा | जन्मकालीन चन्द्र नवांश के समान वर्ण होगा | रोहिणी नक्षत्र के लोग काफी कल्पनाशील और रोमांटिक ं स्वभाव के होते है | इस नक्षत्र का स्वामी चन्द्रमा होता है | इसमें जन्मे लोग काफी चंचल स्वभाव के होते है और स्थायित्त्व इन्हें रास नहीं आता | इनकी सबसेे बड़ी कमी यह है कि ये एक मुद्दे या राय पर स्थिर नही रहते । ये लोग स्वभाव से काफी मिलनसार तो होते ही है लेकिन साथ साठ जीवन की सभी सुख-सुविधाओं को पाने की कोशिश भी करते रहते है | समानतया जातक कि शारीरिक स्थिति आकर्षक चेहरा, सुडौल शरीर और प्रभावशाली व्यक्तित्त्व होगी | सरल स्वभाव मेधावी, ज्ञानी, सहिष्णु,आध्यात्मवादी, परोपकारी, असामाजिक, मधुरभाषी, परिश्रमी होगा | शिक्षा, कला प्रेमी, व्यापारी, विश्वसनीयता और विनय शीलता से सभी वर्ग प्रशन्न, कल्पना के बल पर काव्य संरचना और साहित्य सर्जना से लाभ उठाते है | दाम्पत्य जीवन के क्षेत्र में आप भाग्यशाली होगें | रोहिणी नक्षत्र के जातक के लिए कृत्तिका द्वि-तृृ या चतुर्थ चरण, पुष्य, पूर्वा-उत्तरा फा का प्र-चरण, अनुराधा, पूर्वा- उत्तरा भद्र आदि से सम्बन्ध अच्छा रहता है | जातक के पेशाव में विकृति, गुप्तांग में कष्ट, लिभर में शिकायत, पीलिया रोग से कष्ट होने का भय है |
५. मृगशिरा - शरासनाभ्यासरतो विनीतः सदानुरक्तो गुणिनां गुणेषुः |
भोक्ता नृपस्नेहसुखेन पूर्णः सन्मार्गवृतो मृगजातजम्माँ ||
मृगशिरा नक्षत्र के स्वामी चन्द्रमा और ग्रह मंगल है | इसमें वृष राशि का २३॰ / २०े से ३०॰ / ०े तक एवं मिथुन के ०॰ / ६॰ / ४०े तक है | मृगशिरा नक्षत्र का दो चरण और दो चरण मिथुन राशि है | वृष राशि का अष्ट और नवम नवांश का अधिपति क्रमशः सूर्य और बुध है एवं मिथुन राशि का प्रथम द्वितीय नवांश का पति क्रमशः शुक्र और मंगल है | जातक जिस नवांश में जन्म लेगा तदाधिप के अनुरूप उसका शरीर का गठन और तात्कालिक चन्द्र नवांश के अनुरूप उसका वर्ण होगा | इस नक्षत्र के लोगों पर मंगल का प्रभाव होने की वजह से वे काफी साहसी और मजबूत संकल्प वाले होते हैं। ये बेहद मेहनती होते हैं और स्थायी जीवन जीने में भरोसा रखते हैं। आकर्षक व्यक्तित्व के धनी और हमेशा सचेत रहने वाले ये लोग धोखा देने वालों को कभी माफ नहीं करते और बदला जरूर चुकाते हैं। ये लोग बुद्धिमान, मानसिक तौर पर मजबूत और संगीतप्रेमी होते हैं।इसका गण देव, नाड़ी मध्य है | यह नक्षत्र अपसव्य और पुरुष है, इसका शारीरिक स्वरुप मध्यम कद, स्वास्थ्य सुन्दर आकर्षक व्यक्तित्त्व होगा | स्वभाव कार्यशील, निडर, स्पष्टवादी, कूटनीतिज्ञ, आज्ञाकारी, सिद्धान्तवादी, ऊपर से कठोर भीतर से कोमल, मृदुभाषी होगा | इसके दाम्पत्य जीवन में अशान्ति होगी पर धीरे-धीरे अनुकूल बनेगी | पति-पत्नी में सदा अनवन रहेगा जो बाद में आपकी सौमनस्य के रूप में बदलेगा | शिक्षा में बाधायें आयेगी, निरंतर अध्ययन करते रहने से ज्ञान का विकास होगा | ये ज्योतिष, चिकित्सा, व्यवसाय, सेना या पुलिस विभाग, ड्राइवर, सिविल इंजीनियरिंग कि नौकरी हो सकती है | मृगशिरा नक्षत्र के लिए कृत्तिका द्वि- तृ- चतुर्थ चरण, रोहिणी, पुनर्वसु का चतुर्थ चरण, उत्तरफा -प्र-चरण विशाषा का चतुर्थ चरण, ज्येष्ठा, शतभिषा, पुरवा भाद्र तथा रेवती से शुभ होगा | आपके स्वास्थ्य में सिरदर्द, गुर्दा रोग, मूत्राशय रोग से कमी होगी |
६. आर्द्रा -
क्षुधाधिको रुक्षशरीरकांतिर्बंधुप्रियः कोपयुक्तः कृतघ्नः |
प्रसूतिकाल्रेे च भवेत्किलार्द्रा दयार्द्रचेता न भवेन्मनुष्यः ||
आर्द्रा नक्षत्र के स्वामी शिवजी और ग्रह में स्वामी राहु हैं | मिथुन राशि के ६॰ / ४०े से २०॰ / ०े तक है | मिथुन राशि के तृतीय नवांश से षष्ठ नवांश के अधिपति क्रमशः गुरु, शनि, शनि और गुरु है | इसमें जन्म ल्लेने पर जातक का स्वरूप क्रमशः गुरु, शनि, शनि और गुरु के समान होता है | वर्ण चन्द्र नवांश के सदृश होता है, इसका गण मनुष्य, नाड़ी आदि है | इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोगों पर पूरी जिन्दगी बुध और राहु का प्रभाव रहता है। राहु के प्रभाव की वजह से इनकी दिलचस्पी राजनीति की ओर होती है। ये दूसरों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। दूसरों के मनोविज्ञान को समझ कर ही ये अपना व्यवहार बनाते हैं, बातचीत भी उसी लहजे से करते हैं। ऐसे लोगों को बेवकूफ बनाना बेहद मुश्किल होता है। दूसरों से काम निकल वाने में माहिर इस नक्षत्र के लोग अपने निजी स्वार्थ के लिए नैतिकता को भी छोड़ देते हैं । यह सत्य और स्त्री जाति का नक्षत्र है, इसमें जन्म लेनेवाले जातक का शारीरिक गठन आकर्षक व्यक्तित्त्व, गेहुआं रंग, गोल आकृति वाले | इसका स्वभाव आज्ञाकारी, नियमित जीवन, नीति गत, भाग्यवादी, स्वीकारात्मक प्रवृति का होता है | पारिवारिक जीवन छोटी उम्र में विवाह हो जाता है, दाम्पत्य जीवन सुखमय होते है | आपकी शिक्षा विज्ञान, भूगर्भ, ज्योतिष, खान शास्त्र से सम्बंधित होती है | आर्थिक स्थिति में उतराव चढ़ाव अधिक होती है | आपका व्यापार वेद विद्या, वकालत, सरकारी नौकरी या कोर्ट के कार्य के संपादन का होगा |आर्द्रा नक्षत्र के लिए भरणी, मृगशिरा का तृ- चतुर्थ चरण, पूर्वाफा, पूर्वाषाढ़, उत्तराषाढ़ का प्र- चरण उत्तरा भाद्र तथा रेवती नक्षत्र से सम्बन्ध अच्छार्हता है | आपकों दुसरे के सहयोग और आभाव कि चिंता रहेगी जिसके चलते सिरदर्द, स्नायु कि कमजोरी, मस्तिक सम्बन्धी रोग से परेशानी होगी |
७. पुनर्वसु - प्रभूतमित्रः कृतशास्त्रप्रयत्नः सद्रत्नचामीकरभूषणाढयः |
दाताधरित्रीवसुभिः समेतः पुनर्वसुर्यस्य भवेत्प्रसूतौ ||
पुनर्वसु के स्वामी अदिति और ग्रह गुरु है | मिथुन के २०॰ / ०॰ से ३०॰ / ०॰ तक एवं कर्क का ०॰ से ३॰ / २०॰ तक रहता है | मिथुन राशि का तीन नवांश एवं कर्क का प्रथम नवांश पुनवर्सु का है | जिनके स्वामी क्रमशः मंगल, शुक्र, बुध और चन्द्र होते है | इसमें जिस जातक का जन्म होता है | उसका स्वरुप मंगल, शुक्र, बुध और चन्द्र के स्वरुप के समान होता है | उसका रंग चन्द्र नवांश के अनुरुप होता है | इस नक्षत्र में जन्म लोग आध्यात्मिक स्वभाव के होते है और इनमें कुछ देवीय प्रतिभाएं भी होती है | माना जाता है कि ये जल्दी किसी मुश्किल में नहीं फंसते और इनपर उपरवाला अक्सर मेहरवान होता है, उसे हर मुसीबत से बचाता है | आमतौर परइनके शरीर कि बनावट थुलथुली सी होती है | इनकी याद्द्दाश बेहद मजबूत होती है | काफी मिलनसार होते है और प्रेम से सबसे मिलते है | इन्हें कभी आर्थिक परेशानी नहीं होती और जीवन समृद्धि से भरपूर होता है | इसका गण देव, नाड़ी आदि है | यह सव्य और स्त्री जाति का नक्षत्र है | इसमें जन्म लेनेवाले मनुष्यों का शारीरिक गठन स्वस्थ सुन्दर, सुडौल और सशक्त होता है | इसका स्वभाव स्वतन्त्र विचार का, आध्यात्मिक, धार्मिक, मितभाषी, उच्चदर्शी, भक्त, अमज सुधर, आदर्श निष्ठ होता है | शिक्षा भाषाओँ का ज्ञाता, न्याय, वेदान्त का विशेषज्ञ होता है | क्रीड़ा और व्यायाम प्रिय होता है | इसका दाम्पत्य जीवन उत्तम होता है | आर्थिक स्थिति मजबूत होती है | लौंटरी से धनागमन का योग बनता है | आप ज्योतिष के फलादेश,वकालत, अदालत या बैंक से अर्थाजन कर सकते है | आपका स्वास्थ्य अधिक परिश्रम करने से कमजोर होगा | स्नानु, चर्मरोग से परेशानी होगी,पर आप यदि व्यायाम और क्रीड़ा में भाग लेगे तो आपका स्वास्थ्य अच्छा रहेगा |
८. पुष्य - प्रसन्नगात्रः पितृमातृभक्तः स्वर्धमभक्तो विनयानुयुक्तः |
भवेन्मनुष्यः खलु पुष्पजन्मा सन्माननानाधनवाहनाढयः |
पुष्य नक्षत्र के स्वामी बृहस्पतिजी और ग्रह शनि होते है | पुष्य नक्षत्र कर्क के ३॰ / २०े से १६॰ / ४०े तक रहता है | कर्क के द्वितीय नवांश से लेकर पञ्च नवांश तक क्रमशः सूर्य, बुध, शुक्र और मंगल अधिपति होगा | इस बीच जन्म लेनेवाला जातक का स्वरुप क्रमशः सूर्य, बुध, शुक्र और मंगल के सदृश होगा, उनका वर्ण चन्द्र नवांश पति के वर्ण के समतुल्य होगा | शनि देव के प्रभाव वाले पुष्य नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग दूसरों कि भलाई के लिए हमेशा तैयार रहते है | इनके भीतर सेवा भावना इतनी होती है | कि इसके लिए वे अपना नुक्सान भी कर लेते है | पुष्य नक्षत्र को ज्योतिष शास्त्र में सबसे शुभ माना गया है | सर्वप्रिय, विद्वान्, सर्वगुण संपन्न होते है | इसमें जन्में लोग बहुत मेहनती होते है और अपने दम पर जीने में भरोसा करते है | अपनी मेहनत कि बदौलत धीरे-धीरे ही सही लेकिन कामयाबी जरुर हासिल करते है | कम उम्र में ही कई परेशानीयों का सामना करते करते ये जल्दी परिपक्व और भीतर से मजबूत हो जाए है | इन्हें संयमित और व्यवस्थित जीवन जीना पसंद होता है | इसका गण देव, नाड़ी मध्य होगा है | यह नक्षत्र सव्य और स्त्री नक्षत्र है | इसका सुडौल शरीर, गठन मध्यम कद,सांवले रंग, आकर्षक व्यक्तित्त्व होगी स्वभाव मधुर होता है | नीतिवान, सामाजिक जीवन में दक्ष, संघर्ष जीवन तथा सरपञ्च बनता है | दाम्पत्य जीवन उत्तम होता है | आपकी शिक्षा विदेशी भाषाओँ की होगी जिसमें प्रवीणता हासिल करेगे | ये व्याकरण, सांकेतिक विद्या, हस्त कला प्रेमी होता है | अपनी इच्छित विद्या को ३० वर्ष तक पूर्ण परिश्रम कर पूरा कर लेते है | आपका व्यवसाय दास भावना से ग्रस्त रहेगा जहाँ आप कार्य करेगे वहां आपके प्रति न्याय नही होगा | अच्छे कार्य करने पर भी वहां रहने नही दिया जाएगा | पुष्य नक्षत्र के जातक के लिए अश्विनी, कृत्तिका का प्र-चरण, रोहिणी, उत्तर फा का द्वि-तृ- चतुर्थ चरण, हस्त, स्वाति,उत्तराषाढ़ का द्वि- तृ- चतुर्थ चरण से अच्छा रहेगा | स्वस्थ्य में अजीर्णरोग, दन्तरोग, स्नायुरोग होने कि अधिक सम्भावना है |
९.आश्लेषा - वृथाटनः स्याद्तिदृष्टचेष्टः कष्टप्रदश्चापि वृथा जनानाम् |
सार्प्पे सदर्त्थो हि वृथार्पितार्थेः कन्दर्पसंतप्तमना मनुष्यः ||
आश्लेषा नक्षत्र के स्वामी तक्षक सर्प और बुध होता है | आश्लेषा नक्षत्र कर्क का १६॰ / ४०े से ३०॰ / ०े अंश तक रहता है | श्लेषा का चरों चरण कर्क राशि है, कर्क का चारों नवांश षष्ठ से नवम तक श्लेषा नक्षत्र है | क्रमशः उनके स्वामी गुरु, शनि, शनि और गुरु है | इस बीच में जन्म लेने वाला जातक जिस नवांश में जन्म लेगा उस नवांश पति के अनुरुप उसका रुप होगा और चन्द्र नवांश के समान जातक का वर्ण होगा | यह एक तेज नक्षत्र है और इसमें जन्में लोगों के भीतर इस नक्षत्र का जहर कहीं न कहीं होता है | मतलब यह कि इनपर आप भरोसा नहीं कर सकते है | ऊपर से ये ईमानदार तो होते है लेकिन माना जाता है कि इनमें से ज्यादातर बेहद मौका परस्त भी होते है | अपना फायदा देखकर दोस्ती करते है और मतलब निकल जाने के बाद पहचानते तक नहीं | ऐसे लोग कुशल व्यवसायी साबित होते है और अपना काम निकलवाना बखूबी जानते है | इसका गण राक्षस और नाड़ी अन्त्य है | यह सव्य और स्त्री नक्षत्र है | आपका शारीरिक गठन उत्तम होगा | सूक्ष्म और सुन्दर नेत्र होती है, विशाल वक्षस्थल और सांवला रंग होता है | इस नक्षत्र वाले अस्थिर रहने वाला, स्वभाव तर्क वितर्क प्रवीन तेज स्मरण शक्ति, यात्रा प्रिय सामजिक कार्यकर्त्ता ललितकला के प्रति माहिर, धनी, यशस्वी, सभा- संघों में पूर्ण, सहृदय, दिखावातों से दूर, प्रशंसा, स्पष्टवादी स्वभाव के होगें | शिक्षा के क्षेत्र में बुद्धिमान, मेधावी, आलोचक, तार्किक, व्याकरण, गणित के ज्ञाता होगें | आपका दाम्पत्य जीवन साधारण होगा, व्यापारी विचार आर्थिक स्थिति अच्छी होगी | धन संग्रह करने तेज होगें, धन एकत्र करना कठिन होता है | अश्विनी, पुनर्वसु चतुर्थ चरण, पुष्य, चित्रा, धनिष्ठा प्र-द्वतीय चरण वालो से सम्बन्ध आप बना सकते है | स्वास्थ्य सामान्य रहेगा, स्वास सम्बन्धी रोग, स्नायु रोग, अजीर्ण रोग और शरीर के स्थूल होने से कष्ट होगा |
१०. मघा -
कठोरचित्तः पितृभक्तियुक्तस्तीव्रस्वभावस्त्वनवद्य्विद्यः |
चेज्जन्मभं यस्य मघानघः सन्मतिः सदारातिविघातदक्षः ||
मघा नक्षत्र का स्वामी पित्तर और ग्रह केतु होते है | सिंह के ०॰ से १३॰ / २०ेे तक रहता है | सिंह के प्रथम नवांश से चतुर्थ नवांश तक मघा नक्षत्र रहता है | क्रमशः एक से चतुर्थ नवांश का स्वामी मंगल, शुक्र, बुध और चन्द्र होते है | इनमें जन्म लेनेवाला जातक का स्वरुप नवांशपति ग्रह के अनुरुप होता है | वर्ण चन्द्र नवांश पति के अनुरुप होता है | इस वजह से इनका व्यक्त्तित्व प्रभावशली होता है | गण्डमूल नक्षत्र कि श्रेणी में रखे गए मघा नक्षत्र में जन्में लोगों का स्वामी सूर्य होता है | इस लिए ये अपना दबदबा बनाकर रखना चाहते है | ये स्वाभिमानी, कर्मठ और मेहनती होते है और किसी भी काम को जल्दी से जल्दी पूरा करने कि कोशिश करते है | ईश्वर में इनकी गहरी आस्था होती है | यह नक्षत्र राक्षस गण, अन्त्य नाड़ी का होता है | यह सव्य और स्त्री जाति है | इस नक्षत्र के जातक का शारीरिक स्वरुप गोल मुख सांवला रंग मजबूत शरीर, मध्यम कद आकर्षक व्यक्त्रित्त्व होता है | इसका स्वभाव स्वतंत्र विचार, धन के पीछे, सुख-दुःख की घटनाओं को स्वाभाविक मानकर धैर्य से सामना करते है | गलत सत्संग तथा अपने लक्ष्य तक जाने के लिए सीधे जाते है | प्रशंसकों को अधिक चाहते है | गंभीर चंचल मन अपने जनों की रक्षा के लिए प्रयत्नशील रहते है | आर्थिक कष्ट और अनायास धनार्जन होता है | उदार और वाणी चातुर्य से भी धनार्जन, शिक्षा चित्रकला, टेक्नीकल, ज्योतिष और आयुर्वेद में सफल होते है | स्वास्थ्य में चर्मरोग, स्वास, स्नायु रोग,और उदर रोग से परेशानी हो सकता है | जीवन निर्वाह से होता है | दाम्पत्य जीवन उत्तम होता है, विवाह के बाद भाग्योदय होता है | मघा वाले इन नक्षत्र वाले से सम्बन्ध बना सकते है -चित्रा के तृ- चतुर्थ चरण, अनुराधा, ज्येष्ठा, धनिष्ठा तृ - चतुर्थ चरण तथा अश्लेषा होता है | आध्यात्मिक चिंतन के कारण सांसारिक जीवन के प्रति झुकाव कम होता है | पत्नी सुन्दर सुडौल, मृदुभाषी, विनयशील, दुर दृष्टिवाली होती है |
११. पूर्व फाल्गुनी - शूरस्त्यागी साहसी भूरिभर्ता कामार्त्तोऽपि स्याच्छिरालोतिदक्षः |
धूर्त्तः क्रूरोऽत्यन्तसञ्जात गर्व्वः पूर्वाफाल्गुन्यस्ति चेज्जन्मकाले ||
पूर्व फाल्गुनी नक्षत्र का स्वामी भग (भोर का तारा) और ग्रह शुक्र होते है | सिंह राशि का १३॰/२०ेे से २६॰ / ४०े तक रहता है | सिंह राशि का पञ्च नवांश से अष्ट नवांश तक पुर्व फाल्गुनी नक्षत्र रहता है, क्रमशः नवांशों का स्वामी सूर्य, बुध, शुक्र और मंगल होते है | अगर आपका जन्म इस नक्षत्र में हुआ है तो आपको संगीत और कला से विशेष लगाव होगा | आप नैतिकता और ईमानदारी के रस्ते पर चलना चाहेगें और शान्ति से जीवन जीना चाहेगें | इस नक्षत्र के लोग कभी भी लड़ाई -झगड़ा या वाद-विवाद में नहीं पड़ना चाहते है | इनके भीतर थोड़ा अहंकार भी होता है तथा ये खुद को सबसे अलग रहते है | भौतिक सुख सुविधाये इन्हें प्रभावित करती है और आर्थिक रुप से समृद्ध रहते है | यह नक्षत्र मनुष्य गण, मध्य नाड़ी, अपसव्य और स्त्री नक्षत्र है | उक्त नवांश में जन्म लेनेवाला जातक का स्वरुप नवांश पति के सदृश होता है, वर्ण चन्द्र नवांश के अनुरुप होता है | इसमें जन्में जातक का शरीर आकर्षक व्यक्तित्त्व युक्त, वला रंग, मधुर स्वर, नीली आँखे, मुलायम घुघराले बाल होते है | यह जातक सौन्दर्य के प्रति आकर्षक मर्यादा का पालक, आभूषण का प्रेमी, कला संगीत साहित्य और समाज सेवी होता है | इस जातक शिक्षा भाषा विज्ञान, कविता, गीत, ललित कला चलचित्र नाटक के विषय में रुची रखने वाला होता है | वैद्य वृति से, विलासी वस्तुओं के व्यवसाय से धनार्जन करने का योग बनता है | पूर्वाफाल्गुनी वाले आद्रा, चित्रा के तृ - चतुर्थ चरण और पूर्वाभाद्र के प्र,द्वि या तृ चरण के साथ सम्बन्ध बना सकते है | स्वास्थ्य समानतया साधारण होता है | ह्रदय की दुर्बलता, कमजोरी, सिरदर्द, कान दर्द, गुप्त रोग, रक्त विकार से परेशानी होगी |
१२. उत्तर फाल्गुनी - दाता दयालुः सुतरां सुशीलो विशालकीर्तिर्नृपतिप्रधानः |
धीरो नरोत्यन्तमृदुस्वभावः स्यादुत्ताराफल्गुनिकाप्रसूतो ||
उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र का स्वामी अर्यमा और ग्रह सूर्य होता है | प्रथम चरण २६॰ /४०े से ३०॰ / ०े अंश तक सिंह राशि और अंतिम नवांश कन्या राशि का ०॰ से १०॰ / ०े तक द्वितीय चरण से चतुर्थ चरण तक यानी कन्या राशि का प्रथम नवांश से तृतीय नवांश तक उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र है | इन नवांशों का क्रमिक स्वामी गुरु, शनि, शनि और गुरु है | इन नवांशों में जन्में जातक नवांश स्वामी के अनुरुप शक्ल के होते है, इनका वर्ण चन्द्र राशि नवांश के अनुरुप होता है | आम तौर पर इस नक्षत्र में जन्में लोग बेहद समझदार और बुद्धिमान होते है | इस नक्षत्र वाले सेवा भाव, सुशील और उत्तम कीर्ति वाला, इनका मकसद बेहद संयम के साथ अपना लक्ष्य हासिल करना होता है | निजी क्षेत्र में ये इतने कामयाब नहीं हो पाते इसलिए सरकारी क्षेत्र को ही ये अपने कैरियर का लक्ष्य बनाना चाहते हैं | किसी भी काम को करने में इन्हें बहुत वक्त लगता है और कई बार ताल - मटोल करके काम न करने कई भी इनकी मंशा होती है | ऐसे लोग बातचीत में अपना वक्त हयादा बिताते है और इससे बने रिश्तों को लम्बें समय तक निभाते भी है | इस नक्षत्र का गण मनुष्य, नाड़ी आड़ी होता है | यह अपसव्य और स्त्री जाति का नक्षत्र है | इस नक्षत्र में जन्में जातक का शारीरिक लक्षण ऊँचा कद, सांवला रंग, सुन्दर घुंघराले बाल, आकर्षक नेत्र नुकीली नाक, मधुर भाषी होता है | इसका स्वभाव प्रशासनिक, साहसी, नायकतत्व लक्षणों से युक्त, उद्योगी, नेतृत्त्व गुण, लालची, स्वच्छ ह्रदय बिना किसी कार्य के परिश्रमी, स्वतन्त्र कार्य या उच्चाधिकारी, सामाजिक, धैर्यशील, मितभाषी होता है | इसकी शिक्षा तीव्रबुद्धि होने के कारण शीघ्र विद्या लाभ करती है | आप सुसंस्कृत, कला पोसक, राजकीय कार्यों में संलग्न रहते है | आपकी आर्थिक स्थिति कमजोर रहती है | उत्तराफाल्गुनी वाले मृगशिरा के तृ -चतुर्थ चरण, पुष्य, अनुराधा, पूर्वाषाढ़, उत्तराषाढ़ के प्रथम, उत्तरभाद्र और रेवती से सम्बन्ध बना सकते है | आपका स्वास्थ्य नेत्र, ह्रदय और रक्तचाप से गड़बड़ रहता है | आपका दाम्पत्य जीवन उत्तम चलता है |
१३. हस्त -
दाता मनस्वी सुतरां यशस्वी भूदेवदेवार्चनकृत्प्रयत्नः |
प्रसूतिकाले यदि यस्य हस्तो ह्स्तोद्गता समस्तसम्पत् ||
हस्त नक्षत्र के स्वामी सविता और ग्रह चन्द्र होता है | कन्या राशि का १०॰ /०े से २३॰ / २०े तक है | कन्या राशि का चतुर्थ नवांश तक जिसका स्वामी क्रमशः मंगल, शुक्र बुध और चन्द्र होता है | इसमें जन्म लेने वाला जातक नवांश पति के सदृश अपना स्वरुप रखता है, उसका वर्ण चन्द्र नवांश पति के अनुरुप होता है | इस नक्षत्र के लोग बुद्धिमान होते है, एक दुसरे की मदद करते हैं लेकिन किसी भी बारे में फैसला लेने में इन्हें मुश्किल होती है | ये दृढ़ चित्त, सम्मानित और असमंजस के शिकार होते है | व्यवसाय में इनकी ज्यादा दिलचस्पी होती है और अपना काम निकालना जानते है | इन्हें हर तरह की सुख - सुविधाए मिलती है और जीवन में भौतिक आनंद हासिल कर लेते है | इसका गण देव, नाड़ी आदि होता है | यह सव्य और स्त्री जातक का नक्षत्र है | इस नक्षत्र में जन्में जातक का आकर्षक व्यक्तित्त्व दूसरों को मोहित करने में निपुण, मध्यम कद, स्वस्थ्य शरीर होता है | इसका स्वभाव मेधावी, व्यापारिक, शक्तिमान्, मर्यादायुक्त, पापरहित, दयालु, सहिष्णु, दैविक शक्तियुक्त, आध्यात्मिक होता है | इसकी शिक्षा ललित कला, संगीत, नृत्य में सुशिक्षित होती होई | दाम्पत्य जीवन पूर्ण संतोष प्रद होता है | मानसिक स्थिति अच्छी होती है | आर्थिक जीवन में सफलता मिलती है | आप उच्च पद के अधिकारी होगें या उच्च व्यक्तियों के सत्संग में रहने वाले होते है | आप अपनी शक्तियों से जनप्रिय बनेगें | हस्त वाले मृगशिरा के तृ - चतुर्थ चरण, पुष्य, अनुराधा, पूर्वाषाढ़, उत्तराषाढ़ के प्रथम, उत्तर भाद्र और रेवती नक्षत्रों से सम्बन्ध बना सकते है | आपका स्वास्थ्य उदर रोग, मस्तिष्क पीड़ा और ह्रदय रोग होता है |
१४ . चित्रा - प्रतापसन्तापितशत्रुपक्षो नयेतिदक्षश्च विचित्वासः |
प्रसूतिकाले यदि यस्य चित्रा बुद्धिर्विचित्रा खलु तस्य शास्त्रे ||
चित्रा नक्षत्र का स्वामी विश्वकर्मा और ग्रह मंगल होता है | कन्या राशि का २३॰ /२०`से ३०॰ /०`तक और तुला राशि का ०॰ /०` से ६॰ /४०` तक रहता है | कन्या राशि का अंतिम अष्टम और नवम नवांश और तुला राशि का प्रथम और दूसरा नवांश का होता है | इन नवांशों का क्रमिक स्वामी सूर्य, बुध, शुक्र और मंगल होता है | इसमें जो जातक जन्म लेता है | उसका स्वरुप नवांश पति के सदृश होता है,वर्ण चन्द्र राशि के नवांशेश के अनुरुप होता है | इस नक्षत्र में जन्में लोगों पर मंगल का प्रभाव होता है | इससे रिश्ते सबसे बेहतर होते है | समाज के लिए काम करना इन्हें अच्छा लगता है | विपरीत परिस्थितियों में भी खुद को काफी संयम के साथ ले चलने में इन्हें महारथ होती है | इनकी मेहनत और हिम्मत ही इनकी ताकत है | इनकी मेहनत और हिम्मत ही इनकी ताकत है। यह नक्षत्र राक्षस गण, मध्य नाड़ी का है | यह सव्य और स्त्री नक्षत्र है | इसमें जन्में जातक का शारीरिक लक्षण व्यक्तित्त्व आकर्षक, गम्भीर, सांवला रंग, स्वस्थ्य शरीर और सुन्दर होता है | आपकी पत्नी अर्थार्जन की ओर उन्मुख होगी रुढ़ी से अलग रहती है, स्वभाव मृदु और कोमल होता है | स्वभाव धैर्यशील, साहसी, परिश्रमी, कार्यकुशल, सफलता और असफलता को ईश्वरी देन समझकर कार्य करते है | प्रवक्ता, चतुर, अधिकारीयों के साथ अच्छा व्यवहार, शीघ्रकार्य के सम्पादक होते है | आपका दाम्पत्य जीवन साधारण होता है | क्रोध पर नियंत्रण रखना आवश्यक है, नीति कुशल होगें | तीव्र बुद्धि होती है | पढ़ाई में सफलता मिलती है | आर्थिक स्थिति संतोषकजनक होती है | भाग्यशाली, व्यय करने वाला, साहसी होगें | फलतः साहसिक कार्यों के सम्पादन से जीवन निर्वाह होता है | यथा उच्च पद, सेना के कार्य, शल्य चिकित्सा के कार्य, सिविल इंजीरियरिंग कार्य और ड्राइवर पसंद करेगें | चित्रा नक्षत्र वाले के लिए कृत्तिका प्रथम,अश्लेषा, मघा, विशाषा, मूल और श्रवण से सम्बन्ध बना सकते है | आपका स्वास्थ्य अच्छा रहेगा पर यदा-कदा स्वास्थ्य गिरेगा भी, आप स्नाविक रोगों से, ज्वर से, गुर्दा रोग, से और सिरदर्द से कष्ट पायेगें |
१५ . स्वाती - कंदर्परुपः प्रभया समेतः कांतापरप्रीतिरतिप्रशन्नः |
स्वाती प्रभुतौ मनुजस्य यस्य महीपतिप्राप्तविभुक्तियुक्तः ||
स्वाती नक्षत्र का स्वामी वायु देवता ग्रह राहु होते है | तुला राशि का ६॰/ ४०े से २०॰ /०े तक रहता है | तुला राशि का तृतीय नवांश से षष्ठ नवांश तक स्वाती नक्षत्र होता है | इन नवांशों का क्रमिक स्वामी गुरु, शनि, शनि और गुरु होते है | इन नवांशों में जन्में जातक नवांश पति के सदृश अपना स्वरुप रखता है | चन्द्र नवांश के अनुरुप वर्ण होता है | यह नक्षत्र गण देव, नाड़ी अन्त्य, वर्ण शुद्र, सव्य और स्त्री जाति का है | इस नक्षत्र के जातकों में एक ख़ास किस्म की चमक होती है | अपने मधुर स्वभाव और व्यवहार से ये सबका दिल जीत लेते हैं | ऐसा माना जाता है कि इस नक्षत्र में पानी की बूंद सीप और मोती बन जाती | इनकी राशि तुला राशि होती है इसलिए स्वाती नक्षत्र के जातक सात्विक और तामसिक दोनों ही प्रवृति वाले होते है | राजनीतिक दाँव - पेंचों को समझने में माहिर ये लोग हर हाल में जीतना जानते है | इस नक्षत्र में जन्में जातक का सुडौल शरीर, गौर वर्ण, आकर्षक व्यक्तित्त्व और उत्तम सौन्दर्य होता है | इसका स्वभाव, विनयशील, आज्ञाकारी, सामाजिक, आध्या त्मिक, कार्यशील, उद्योगी और लोक कल्याण के लिए सर्वस्व त्यागी होता है | बुद्धिमान्, विद्याव्यसनी, परिश्रमी और असफलता के भय से हीनता का अनुभवी होता है | इसका दाम्पत्य जीवन बहुत मधुर होता है, जीवन के प्रारम्भ में छोटी उम्र में विवाह हो जाता है, फलतः प्रेमासक्त हो उत्तम दाम्पत्य जीवन का भोग करता है | इसकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं कही जा सकती | आर्थिक खर्चीला होने से धन का संग्रह नहीं कर पाते, पर आपका स्वभाव मृदु होने से आवश्यकता पड़ने पर धन की कमी का अनुभव नहीं हिगा | दूसरी के विकास के लिए धन संग्रह महत्वपूर्ण होता है | ये भरणी, पुष्य, पूर्व-फा, ऊफा प्र- चरण, चित्रा -तृ-चतुर्थचरण, पूर्वाषाढ़, धनिष्ठा- प्र- द्वि चरण आदि नक्षत्रों में जन्मे जातक से अच्छा सम्बन्ध | स्वाती नक्षत्र का अधिकार त्वचा, गुर्दा, हर्निया, मूत्राशय और वस्ती पर होता | अतः पापा क्रान्त होने पर इन अंग से सम्बंधित रोग की संभावना रहती है |
१६. विशाषा - सदानुरक्तोऽग्निसुरक्रियायांं धातुक्रियायामापि चोग्रसौम्यः |
यस्य प्रसूतौ च भवेद्विशाखा सखा न कस्यापि भवेन्मनुष्यः ||
विशाषा नक्षत्र स्वामी इन्द्राग्नी देव और ग्रह गुरु होता है | ब्राह्मण वर्ण, योनि व्याघ्र होता है विशाषा नक्षत्र तुला राशि का २०॰/ ०े से ३०॰ / ०े तक एवं वृश्चिक के ०॰ से ३॰/ २०े तक होता है | इनमें तुला का अंतिम तीन नवांश और वृश्चिक का प्रथम नवांश होता है | इनके अधिपति क्रमशः मंगल, शुक्र, बुध और चन्द्र होते है | इनमे जन्में जातक का स्वरुप नवांश पति के समान होता है, वर्ण चन्द्र नवांश पति के अनुरुप होता है | इसके जातक पढने लिखने में सबसे अव्वल रहते है | थोड़े आलसी तो होते है लेकिन दिमाग से बेहद तेज होते है | ये सामाजिक और महत्त्वाकांक्षी होने की वजह से ये खुद की मंजिल हासिल करने के लिए दिमागी मेहनत बहुत करते है और तमाम दांव- पेंच करना जानते हैं | इसका गण राक्षस और नाड़ी अन्त्य होता है, यह अपसव्य और नपुंसक जाति का नक्षत्र है | इस नक्षत्र में जन्म लेनेवाले जातक का सुडौल शरीर धारी होते है | इसका स्वभाव अधिकारों से सयुक्त, परिश्रमी, निष्ठु, कलह प्रिय,चतुर उच्च पद, सत्प्रवृति, समझदार, नीतिवान्, सुख-दुःख में स्थिरता, धार्मिक संस्था के संपादक, सदाचारी, आध्यात्मिक, मितभाषी होता है | इसकी ज्योतिष, साहित्य, न्याय, वेदान्त, ललित कला, शारीरिक शास्त्र, प्रशिक्षण की होती है | इसका दाम्पत्य जीवन उत्तम होता है | जातक सदाचारी, व्यवहारी, प्रणाली वद्ध जीवन यापन का अनुभवी होता है | इसकी आर्थिक जीवन सम्पन्नता से भरपूर होता है | यदा- कदा अभाव का दर्शन करना पड़ता है | पूर्वार्जित सम्पति के अभाव में भी जातक अपने परिवार के भरण पोषण का प्रबन्ध कर लेता है | व्यापार के क्षेत्र में जातक व्यायाशास्त्र, ज्योतिष, सरकारी नौकरी के दायित्त्व को निभाने का प्रयास करेगें | विशाषा नक्षत्र वाले के लिए सम्बन्ध मृगशिरा प्र-द्वि चरण, चित्रा प्र-द्वि चरण, ज्येष्ठा, धनिष्ठा या शतभिषा से कर सकते है | स्वास्थ्य के विषय में जातक के कमर में दर्द, परिश्रम के चलते स्नाविक रोग, चरम रोग की संभावना होगी | पत्नी सुन्दर, सुडौल और पूर्ण सहयोगिनी होगी |
१७. अनुराधा - सत्कान्तिकीर्तिश्च सदोत्सवः स्याज्जेता रिपूणां च कला प्रवीणः |
स्यात्सम्भवे यस्य किलानुराधा सम्पद्विशाला विविधा च तस्य ||
अनुराधा नक्षत्र का स्वामी सूर्य और ग्रह शनि होता है | वृश्चिक का ३॰/ २०े से १६॰/ ४०े तक होता है | यह वृश्चिक राशि के द्वितीय नवांश से पञ्च नवांश तक रहता है | इन नवांशों के स्वामी क्रमशः सूर्य, बुध, शुक्र और मंगल होते है, इसमें जन्म लेनेवाला जातक का स्वरुप नवांश पति के सदृश होता है | वर्ण चन्द्र नवांश पति के अनुरुप होता है | यह नक्षत्र अपसव्य और नपुंसक है | इस नक्षत्र के लोग अपने सिद्धन्तों और आदर्शों पर जीते है | ये उत्तम कीर्ति, श्रेष्ठ कीर्ति, विजयी तथा गुस्सा इन्हें बहुत आता है और कभी गुस्से में ये बेकाबू भी हो जाते है जिससे इन्हें बहुत नुकसान उठाना पड़ता है | ये लोग अपनी भावनाए दबाकर नहीं रख पातें और दिमाग से ज्यादा दिल से काम लेते है | जबान के तेज और कड़वे होने की वजह से इन्हें कई लोगो का विरोध भी झेलना पड़ता है | इसलिए इन्हें लोग कम पसन्द करते हैं | इसका गण देव और नाड़ी मध्य है | इस इस नक्षत्र में जन्म लेनेवाले जातक सुडौल शरीर धारी, आकर्षक चेहरा होता है | इसका स्वभाव सद्गुणी, शीघ्र क्रोधी, ह्रदय कोमल, होते है | विचारित कार्यों को अधुरा नहीं छोड़ते | समाज सेवी, गुढ़ भावनाओं के चलते वास्तविक भावनाओं को समझते में गलती होती है | कुछ सन्दर्भों में मध्यस्थ के समान कार्य करने वाले होते है | जीवन के विविध रुपों में कार्य करने के चलते आपसे अनेक लोग सम्बन्ध बनाते है | आपकी शिक्षा अच्छी होती है | विद्योपार्जन में परिश्रमी विविध भाषाओँ के ज्ञाता, व्याकरण, वेदान्त शास्त्र का ज्ञाता, सांकेतिक विद्याओं के अभिमानी होते है | कार्य में अनुसंधान कर उसका स्पष्टरुप निर्धारित करते है | अनुराधा वालों के लिए रोहिणी, कृत्तिका के द्वि- तृ- चतुर्थ चरण, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, विशाषा चतुर्थ चरण, उत्तराषाढ़ के द्वि-तृ या चतुर्थ चरण, मघा, श्रवण और पूर्वाषाढ़ के प्र- द्वि या चतुर्थ चरण से अच्छा सम्बन्ध बना सकते है |
१८. ज्येष्ठा - सत्कीर्तिकान्तिर्विभुतासमेतो वित्तान्वितोत्यन्तलसत्प्रतापः |
श्रेष्ठप्रतिष्ठो वदतां वरिष्ठो ज्येष्ठोद्भवः स्यात्पुरुषो विशेषात् ||
ज्येष्ठा नक्षत्र का स्वामी इंद्र और ग्रह बुध होता है | वृश्चिक राशि का १६॰/ ४०े से ३०॰ / ०े तक है | इसके प्रत्येक चरण नवांश के समान होते है | अतएव षष्ठ नवांश से नवम तक ज्येष्ठ नक्षत्र है | इन नवांश में जन्में जातक का स्वरुप नवांश पति के समान होता है, साथ ही इनका वर्ण चन्द्र नवांशेश के तुल्य होता है | नवांश पति क्रमशः गुरु, शनि, शनि और गुरु होता है | गण्डमूल नक्षत्र की श्रेणी में होने की वजह से ज्येष्ठा भी अशुभ नक्षत्र ही माना जाता है। इसमें जन्म लेने वाले लोग तुनकमिजाज होते हैं और छोटी-छोटी बातों पर लड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं। खुली मानसिकता वाले ये लोग सीमाओं में बंधकर अपना जीवन नहीं जी पाते। ये बड़ी कीर्ति, उत्तमकान्तिवाला, प्रभुतायुक्त संपन्न परन्तु लेकिन व्यावहारिक जीवन में इन्हें काफी मुश्किलें उठानी पड़ती हैं। गण राक्षस, नाड़ी आदि और अपसव्य एवं नपुसंक नक्षत्र होता है | इनमें जन्में जातक का शरीर हृष्ट पुष्ट, सांवला रंग और वाक्चातुर्य बाला होता है | आपका स्वभाव व्यापारी का होता है | समस्या समाधानी, आनन्दी, मित्रपूर्ण, आर्थिक चेतना पूर्ण, भोगी, एकान्तप्रिय, अनुपयोगी मित्र या व्यक्ति से अलग रहते है | अन्य लोगों को अपनी आवश्य कता के लिए उपयोग करते है | प्रत्येक कार्य की उपयोगिता के बारे में सोचते है, तभी उसे करते है | आपकी शिक्षा उत्तम होती है, ज्ञान की ओर सतत उन्मुख रहते है, विरोध की परिस्थिति में उसे अनुकूल बनाने की कोशिश करते है और कार्य की सिद्धि कर लेते है | स्वार्थ साधन के समय दूसरों से नहीं पूछते है | सतत अपने स्वार्थ सिद्धि का बात करते है व्याकरण, पुराण, इतिहास, योगाभ्यासी, गणित की शिक्षा में दिलचस्पी होती है | वैवाहिक जीवन सामान्य, व्यापार इच्छानुसार या अनेक व्यापार का माध्यम बन सकता है | इसे जमा करने की प्रवृति नहीं होती है | ज्येष्ठा नक्षत्र वाले अपनी सम्बन्ध कृत्तिका द्वि, तृ या चतुर्थ चरण, मघा, चित्रा प्र-द्वि चरण, विशाषा चतुर्थ चरण, अनुराधा और धनिष्ठा से बना सकते है | स्वास्थ्य स्नायु सम्बंधित रोगों से पीड़ित होगी | अजीर्ण, वाट सम्बंधित रोग, विस्मृति से स्वास्थ्य में कमी होती है |
१९. मूल - मूलं विरुद्धावयवं समूलं कुलं हरत्येव वदन्ति सन्तः |
चेदन्यथा सत्कुरुते विशेषात् सौभाग्यमायुश्च कुलाभिवृद्धिम् ||
मूलस्य पादत्रितये क्रमेण पितुर्जनन्याश्च धनस्य रिष्टम् |
च्तुर्थपादः शुभदो नितान्तं सार्पे विलोमं परिकल्पनीयमं ||
मूल नक्षत्र का स्वामी राक्षस और ग्रह केतु होता है | धनु राशि का ०॰ /०े से १३॰ / २०े तक रहता है | ये अंश धनु के प्रारम्भिक चतुर्थ नवांशों के है, जिनका स्वामी क्रमशः मंगल, शुक्र, बुध और चन्द्र होते है | इन नवांशों में जन्में जातक का स्वरुप नवांश पति के अनुसार होता है | वर्ण चन्द्र नवांशेश के अनुरुप होता है | यह नक्षत्र गण्डमूल नक्षत्र की श्रेणी का सबसे अशुभ नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्तियों को खुद तो परेशानियों का सामना करना ही पड़ता है इसका खमियाजा उसके परिवार वाले भी भुगतते हैं | प्रथम चरण पिता को दोष, द्वितीय चरण में माता जनित दोष, तृतीय चरण धन क्षय और चतुर्थ चरण में शुभ या राजा बनते है | हालाँकि ये लोग बेहद बुद्धिमान और धैर्य वाले होते है | दोस्तों और रिश्तों के प्रति इनकी वफ़ादारी भी बेमिसाल होती है | और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियां निभाने में ये कभी पीछे नहीं रहते है | इस नक्षत्र का गण राक्षस, नाड़ी आदि है | यह सव्य और पुरुष जाति का नक्षत्र है | इस नक्षत्र में उत्पन्न जातक के शरीर की आकृति सुडौल होता है | स्वभाव स्वतन्त्र व्यक्तित्त्व का, सांसारिक सुख से रहित होता है | जीवन का सुख- दुःख, उतार- चढ़ाव आदि स्वाभाविक देखकर कष्टों को सहन करते है | सम्बन्धियों के प्रति लगाव और विश्वास की रक्षा करते है | आलोचनाओं से दूर रहते है | मित्रों से सम्बन्ध साधारण रहता है, व्यक्ति का जीवन अलौकिक होता है | पाप से भय, आध्यात्मिक चिन्तन, सद्गुणी, प्रजाहितेच्छु, तीर्थ यात्रा, दानधर्म, देवालय, निर्माण करते हैं | आपकी शिक्षा अच्छी होगी, आप विद्वान् आयुर्वेद, न्याय, व्याकरण, ज्योतिष आदि क्षेत्र में ख्याति प्राप्त करते है | जल से सम्बंधित व्यापार से भी लाभ योग बनता है | मूल नक्षत्र वाले चित्रा, विशाषा के प्र, द्वि और तृ चरण, धनिष्ठा प्र और द्वि चरण और रेवती से सम्बन्ध बना सकते है | आपकों चरम रोग, पक्षाघात श्वास, नलिका से सम्बंधित रोग से स्वास्थ्य में कमी होगी |
२०. पूर्वाषाढ़ - भूयो भूयस्तोयपानानुरक्तो भोक्ता चञ्चलद्वाग्विलासः सुशीलः |
नूनं सम्पज्जयते तस्य गाढ़ा पूर्वाषाढ़ाजन्मभं यस्य पुंसः ||
पूर्वाषाढ़ नक्षत्र का स्वामी जल और ग्रह शुक्र होता है | धनु राशि का १३॰/ २०े से २६॰ / ४०े तक रहता है | इसके प्रत्येक चरण राशि का पञ्च नवांश से अष्टम नवांश तक रहता है | नवांश पति क्रमशः सूर्य, बुध, शुक्र और मंगल होते है इनमें जिस जातक का जन्म होता है, उसका स्वरुप नवांश पति के अनुरुप होता है | वर्ण चन्द्र नवांशेश के अनुरुप होता है | अगर आप इस नक्षत्र में जन्में है तो आपके व्यक्त्तित्व में इमानदारी जरुर होगी | आप खुशमिजजी होगें | कला -संसकृति और साहित्य में आपकी दिल चस्पी होगी | आपके दोस्त खूब होगें और आप दोस्ती निभाना जानते होगें | आपका पारिवारिक और दाम्पत्य जीवन खुशहाल होगा और बेशक आप मृदु भाषी भी होगें | ये सभी पूर्वाषाढ़ नक्षत्र में जन्में लोगों के खासियत होती है | इसका गण मनुष्य, नाड़ी मध्य है, यह सव्य और पुरुष नक्षत्र है | इस नक्षत्र में जन्में जातक का रंग सांवला सुडौल शरीरधारी चेहरा आकर्षक होता है | इसका स्वभाव मधुर, परोपकारी, सात्त्विक, वाक्चतुर, दया, अभिमान, सद्भावना मिश्रित होती है | आपकी शिक्षा विज्ञान की होती है | टेक्नीकल कार्य क्षेत्र से लाभ, व्यवसाय शिक्षा क्षेत्र से भी लाभ और कविता, नाटक, संगीत आदि में अभिरुचि होती है | आपका दाम्पत्य जीवन सुखी होता है | आप प्रेम के क्षेत्र में सफल होते है, साथ ही आप विलासी वस्तुओं पर अधिक व्यय करते है | पूर्वाषाढ़ नक्षत्र वाले आर्द्रा, पुनर्वसु, हस्त, स्वाती, पूर्वा - उत्तर भाद्र और रेवती से अच्छा सम्बन्ध बनता है |
२१. उत्तराषाढ़ - दाता दयावान् विजयी विनीतः सत्कर्मकर्त्ता विभुतासमेतः |
कान्तासुतावाप्तसुखो नितान्तं वैश्वे सुवेषः पुरुषोऽभिमानी ||
उत्तराषाढ़ नक्षत्र का स्वामी विश्वेदेवा और ग्रह सूर्य होता है | धनु राशि का २६॰ / ४०े से ३०॰ / ०े तक और मकर राशि के ०॰ से १०॰ तक रहता है | उत्तराषाढ़ का प्रथम चरण धनु राशि का अंतिम नवांश होता है और मकर राशि का प्रथम द्वितीय और तृतीय चरण मकर का प्रथम, द्वितीय, तृतीय नवांश ओता है | इसमें जन्म लेनेवाले जातक का नवांश पति के अनुरुप स्वरुप होता है | चन्द्र नवांश के सदृश वर्ण होता है | इसके नवांश पति क्रमशः गुरु, शनि, शनि और गुरु होते है | जिस जातक का जन्म इस नक्षत्र में होता है उसका रुप गौर वर्ण काले घुघराले बाल, सुन्दर आकर्षक, शान्त और स्वस्थ होता है | इसका स्वभाव साहसी, धैर्य शाली, सुदृढ़, आध्यात्मिक, आत्मबली, स्पष्टवादी, प्रभाव शाली व्यक्तित्त्व वाला होता है | आपकी शिक्षा ज्ञान उतामोत्तम रहता है | जातक तीव्र बुद्धि, पूर्ण समझ शक्ति संपन्न, संगीत का काव्य कला निपुण, इस नक्षत्र में जन्में जातक कभी भी निराश नहीं होते है | बेहद खुश मिजाज और आशावादी होते है | नौकरी और व्यवसाय दोनों में ही इन्हें कामयाबी मिलती है | दोस्तों के लिए कुछ भी करने के लिए ये हमेशा तत्पर रहते है | अपने सहयोगी स्वभाव की वजह से इनका दायरा बड़ा होता है और इनके जीवन में आर्थिक दिक्कतें नहीं आतीं | ये डाक्टर तथा भाषाविद होता है | वैवाहिक जीवन उतर- चढ़ाव से युक्त और आर्थिक स्थिति संतोष प्रद होती है | आपका मध्यायु में भाग्योदय, आपको राज नितिक, धार्मिक या आध्यात्मिक मार्ग से भी कार्य और धनागमन होता है | स्वास्थ्य वायु विचार से जलीय रोग से कष्ट का अनुभव करेगें | इस नक्षत्र का गण मनुष्य, नाड़ी आदि है | यह अपसव्य और पुरुष जाती का नक्षत्र है | उत्तराषाढ़ नक्षत्र वाले आर्द्रा, पुनर्वसु के प्र,द्वि और तृतीय चरण, उत्तरा फल्गुन के द्वि, तृ और चतुर्थ चरण, हस्त, पूर्वाषाढ़ द्वि, तृ या चतुर्थ चरण, पूर्वा और उत्तरभाद्र से अच्छा सम्बन्ध बना सकते है |
२२. श्रवणा - शास्त्रानुरक्तो बहुपुत्रमित्रः सत्पात्रभक्तिर्व्विजितारिपक्षः |
प्राणी पुराणश्रवण प्रवीणश्चेज्जन्मकाले श्रवणं हि यस्य ||
श्रवणा नक्षत्र का स्वामी विष्णु और ग्रह चन्द्र होता है | मकर राशि का १०॰ से २३॰ /४०े तक है | इसका प्रत्येक चरण मकर राशि का चतुर्थ नवांश से सप्तम नवांश तक है इनके स्वामी क्रमशः मंगल, शुक्र, बुध और चन्द्र है | इनके नवांशों में जिस जातक का जन्म होगा उसकी आकृति नवांश पति के सदृश होगी उनका रंग चन्द्र नवांश पति के सदृश होगा | जैसा नाम से ही लगता है कि इसके जातक अपने माता- पिता के लिए कुछ भी कर सकते है | यानी श्रवण कुमार की तरह होते है | बेहद ईमानदार अपने कर्त्तव्यों के लिए सचेत और समर्पित और मन से शान्त और सौम्य | ये लोग जिस भी काम में हाथ डालते है उसमें उन्हें कामयाबी हासिल होती है | ये फिजूलखर्ची नहीं करते जिससे इन्हें कुछ लोग कंजूस भी समझ लेते है | लेकिन सोच समझ कर चलने की इनकी यही आदत इन्हें हर सफलता दिलाती है | इस नक्षत्र का गण देव और नाड़ी अन्त्य है | यह नक्षत्र अपसव्य और पुरुष है | इस नक्षत्र में जन्म लेनेवाला जातक का रुप सुडौल शरीर धारी आकर्षक व्यक्तित्त्व होता है | इसका स्वभाव आध्यात्मिक, प्रकृति प्रेमी, सौन्दर्य पूर्ण, एकांकी, श्रृंगारिक, मधुरभाषी, स्वार्थी, आराम देह, दयालु प्रवृति होती है | इसकी शिक्षा ललित कला की होगी, कला प्रेमी, काव्य, संगीत प्रेमी होता है | साथ ही प्रेम करने में सफल होता है | इसकी आर्थिक स्थिति उतार -चढाव से युक्त रहता है | पत्नी की ओर से धन लाभ अच्छा होता है | इसका व्यवसाय सरकारी सर्विस, तथा व्यापार होता है | इसका स्वास्थ्य स्नाविक रोग, शारीरिक बल की कमी, बुद्धि बल की प्रधानता से बिगड़ता है | श्रावण नक्षत्र वाले अश्विनी, भरणी, पुनर्वसु के चतुर्थ चरण, चित्रा के तृ और चतुर्थ चरण, पूर्वा भाद्र के चतुर्थ और उत्तरभाद्र से सम्बन्ध बना सकते है |
२३. धनिष्ठा - आचारजातादरचारुशीलो धनाधिशाली बलवान् कृपालुः |
यस्य प्रसुतौ च भवेद्ध्निष्ठा महाप्रतिष्ठासहितो नरः स्यात् ||
धनिष्ठा मकर का स्वामी वसु और ग्रह मंगल होता है | राशि का २३॰ / २०े से ३०॰ तक और कुम्भ राशि का ०॰ से ६॰/ ४०े तक रहता है | इसका प्रत्येक चरण क्रमश राशि का अष्टम और नवम नवांश और कुम्भ का प्रथम एवं द्वितीय नवांश होते है | जिनका अधिपति क्रमशः सूर्य, बुध, शुक्र और मंगल होता है म| जिस जातक का जन्म उक्त नवांश में क्रमशः होता हजी | उसका स्वभाव नवांशपति के सदृश होता है, रंग चन्द्र नवांश पति के अनुरुप होता है | ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस नक्षत्र में जन्में लेने वाले लोगों को खाली बैठना कभी पसन्द नहीं आता | वे हर वक्त कुछ न कुछ नया काम करने को सोचते हैं | बेहद उर्जावान होते है और अपनी मेहनत और लगन की बदौलत अपनी मन्जिल हासिल कर ही लेते है | अपने कामकाज और बातों से ये लोग दूसरों पर अपना असर छोड़ते हैं और उन्हें प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं | इन्हें शान्त जीवन जीना पसन्द होता है | इसका गण राक्षस, नाड़ी मध्य हैं | यह नक्षत्र अपसव्य और स्त्री जाति का है | इस नक्षत्र में जन्म लेनेवाले जातक गम्भीर, सुडौल शरीर, मध्य कद वाला होता है | इसका स्वभाव धैर्यशाली, साहसी, सेवकजन्य कार्य करनेवाला, सद्गुणी, उच्चाधिकारियों से अच्छा सम्बन्ध रखनेवाल होता है | गणित, ज्योतिष आदि शास्त्र में ख्याति प्राप्त करने वाला | दाम्पत्य जीवन सामान्य होता है | पत्नी क्रोधी पर प्रेम व्यवहार में पूर्ण होती है | इसकी आर्थिक स्थिति संतोष प्रद नहीं होती है | धनिष्ठा वाले कृत्तिका के प्रथम, अश्लेषा, स्वाती, विशाषा और अनुराधा से सम्बन्ध बना सकते है | बिजली, रेलवे, सेना जोखिम भरे कार्य वाले, फैक्टरी, आदि विभाग में संपादन करने वाला | आपका स्वास्थ्य में पेट दर्द, सिर दर्द या मूत्राशय सम्बंधित रोग से होती है |
२४. शतभिषा - शीतभीरुरतिसाहसी सदा निष्ठूरो हि चतुरो नरो भवेत् |
वैरिणामतिशयेन दारुणोवारुणोडु यदि यस्य सम्भवेे ||
शतभिषा नक्षत्र का स्वामी वरुणदेव और ग्रह राहु होता है | कुम्भ राशि का ६॰ /४०े से २०॰ तक रहता है | कुम्भ राशि के तृतीय नवांश से षष्ठ नवांश तक शतभिषा नक्षत्र होता है | इनके नवांश पति क्रमशःगुरु, शनि, शनि और गुरु होते है | इसमें जन्म लेनेवाला जातक का स्वरुप नवांश पति के समान होता है | उसका रंग चन्द्र नवांश पति अनुरुप होता है | इस नक्षत्र के लोग बेहद आलसी प्रकृति के होते है | ये लोग शारीरिक श्रम में बिलकुल भरोसा नहीं करते है और चाहते है, कि वो सिर्फ दूसरों को आदेश दें और अपनी बुद्धि से अपना लक्ष्य हासिल कर लें | ये बेहद आजाद ख्यालों वाले होते है और किसी व्यवसाय में मिलकर काम नहीं करते है | इन्हें स्वत्रंत रुप से काम करना पसन्द होता है | मशीनी जीवन इन्हें पसन्द नहीं होता और हमेशा दूसरों पर हावी रहने कि कोशिश करते है | यह नक्षत्र राक्षस गण और आदि नाड़ी होती है | यह अपसव्य और नपुंसक नक्षत्र है | इस नक्षत्र में जन्म लेनेवाला जातक का शरीर सौन्दर्यपूर्ण होता है | जिससे ये दूसरों को अपनी और आकर्षित करता है | मध्यम सुडौल शरीर वाला आँखे सुन्दर और तीक्ष्ण होता है | आपका स्वभाव विनयशील, आदरणीय, मधुरवाणी, सहयोगी विचार साथ ही उदेश्य की पूर्ति के लिए सतत कार्यरत रहते है | आपका विचार स्वतन्त्र होता है | मीन को इनको प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है | शिक्षा में बाधा, अतः अधिक परिश्रम कर इच्छित वस्तुओं की पूर्ति आप कर लेते है | आपको व्यापार एवं उद्योग में सफलता मिलेगी | ज्योतिष, सरकारी नौकरी, और दूसरों के सहयोग से व्यापार करेगें | इस नक्षत्र वालेकृत्तिका, मृगशिरा के प्र या द्वितीय चरण, मघा, विशाषा चतुर्थ और धनिष्ठा के तृतीय या चतुर्थ चरण शुभ सम्बन्ध बनाने में होता है | आर्थिक स्थिति ठीक होगी | आपका स्वास्थ्य दर्द, मानसिक, कमजोरी आदि |
२५. पूर्वाभाद्र- जितेन्द्रियः सर्वकलासुदक्षो जितारिपक्षः खलु तस्य नित्यम् |
भवेन्मनीषा सुतरामपूर्वा पूर्वा यदा भाद्रप्तदप्रसूतौ ||
पूर्वाभाद्र नक्षत्र का स्वामी अज और ग्रह बृहस्पति होता है | कुम्भ राशि का २०॰ से ३०॰ तक और मीन राशि का ०॰ से ३॰ / २०े तक रहता है | कुम्भ राशि का अंतिम तृतीय नवांश और मीन राशि का प्रथम नवांश पूर्वा भाद्र होता है | उनका अधिपति क्रमशः मंगल, शुक्र , बुध और चन्द्र होते है | इस समय में जिस जातक का जन्म होता है उसका स्वरूप नवांश पति के रुपानुरुप होता है, वर्ण चन्द्र नवांशेश के अनुरुप होता है | इस नक्षत्र का स्वामी गुरु है और इसके जातक सच्चाई और नैतिकता को ज्यादा अहमियत देते है | ये लोग धार्मिक और आध्यात्मिक प्रवृति के तो होते ही हैं, इन्हें ज्योतिष में खासी दिल चस्पी होती है | इस नक्षत्र का गण मनुष्य नाड़ी आदि है | यह नक्षत्र अपसव्य और पुरुष जाति का है | इस नक्षत्र में जन्म लेनेवाला जातक का कद सुडौल मध्यम गंभीर स्वभाव और चौड़ा वक्षस्थल होता है | आपके स्वभाव का विशिष्ठ गुण सूक्ष्म निरिक्षण शक्ति है जिससे स्वतन्त्र विचार उद्भव होता है | किसी पर बिना सोचे विशवास नहीं करते, शारीरिक और मानसिक शक्ति के अनुसार प्रगति करने के चलते आपका व्यक्तित्त्व का निर्माण होता है | धैर्यशील, सहनशील, अपना उत्तरदायित्त्व का निर्वाह, बौद्धिक रुप से प्रौढ़, समाज सुधार, नीतिनिर्धारक, आध्यात्मिक चिंतन से पूर्ण और आचार्य के रुप में आप रहते है | आपकी शिक्षा उत्तम विभिन्न भाषाओँ का ज्ञाता, ज्योतिष, साहित्य, वेड, तंत्र,व्याकरण आदि शास्त्रों में निपुण और विद्वान होगें | आपकी आर्थिक स्थिति स्वकीय सूझ - बुझ पर निर्भर करेगी | आर्थिक स्थिति सामान्य रहता है | आपकी वृति वकालत, कानून के ज्ञान, बैंक कार्य, व्यापार, ज्योतिष आदि से चलती है | पूर्वा भाद्र वाले रोहिणी, मृगशिरा, पूर्वा -उत्तराषाढ़ और श्रावणा से सम्बन्ध बनाने से लाभ होता है | आपका स्वास्थ्य स्नाविक रोग, चर्मरोग, आदि से पीड़ित रहता है | आपको चाहिए कि प्रातः काल भ्रमण करें और व्यायाम करें ताकि स्वास्थ्य अच्छा रहे | दाम्पत्य सामान्य कहा जा सकता है |
२६. उत्तर भाद्र - कुलस्य मध्येधिकभूषणं च नात्युच्चदेहः शुभकर्मकर्त्ता |
यस्योत्तारा भाद्रपदा च जन्यां धन्यां लभेन्मां च भवेद्व्दान्यः ||
उत्तर भाद्र का स्वामी अतिर्बुधन्य ग्रह शनि होता है | नक्षत्र मीन राशि का ३॰ /२०े से १६॰ /४०े तक रहता है | इस नक्षत्र का चारों चरण मीन राशि का द्वितीय नवांश से पञ्चम नवांश तक रहता है | इन नवांशों का स्वामी क्रमशः सूर्य, बुध, शुक्र और मंगल होते है | इन नवांशों में जन्म लेनेवाला जातक का स्वरुप नवांश पति के अनुरुप होता है | उसका रंग चन्द्र नवांश पति के स्वरुप के अनुरुप होता है | इस नक्षत्र के लोग बेहद यथार्थवादी होते है और इन्हें जमीनी हकीकत पर भरोसा होता है | स्वप्न कि दुनिया में नहीं जीते | मेहनती बहुत होते है और इन्हें अपने कर्म पर विश्वास करते | इसलिए ये जहाँ भी काम करते हैं कामयाब रहते हैं | त्याग कि भावना इनमें खूब होती है और अपना नुक्सान उठाकर भी कई बार दूसरों के लिए काफी कुछ कर जाते है | इस नक्षत्र का गण मनुष्य और नाड़ी मध्य होता है | यह सव्य और पुरुष जाति का नक्षत्र है म| इस नक्षत्र में जन,म लेनेवाले जातक का शरीर मध्यम कद विचार एकांकी, सुडौल शरीर वाला होता है | आप अपनी शक्ति पर विश्वस्त होते है | विद्या प्रेमी, ज्ञान प्राप्त करने के लिए आप अपने उदेश्य की पूर्ति के लिए आगे पीछे नहीं देखते है | आप शिक्षा से लाभ ले सकते है | आपको ज्योतिष, व्याकरण, दर्शन और वेदान्त आदि का ज्ञान शीघ्र प्राप्त होता है | आपकी वृत्ति स्वतंत्र व्यवसाय की होगी, भूमि से सम्बन्धित व्यवसाय से लाभ, आर्थिक स्थिति सामान्यतः अच्छी होती है | आपका दाम्पत्य जीवन उत्तम रहेगा | आपका स्वास्थ्य बहुत अच्छा नहीं रहता | उत्तर भाद्र रोहिणी, आर्द्रा, पुनर्वसु के प्र, द्वि या तृतीय चरण, उत्तराफाल्गुन के द्वि, तृ या चतुर्थ चरण, हस्त, उत्तराषाढ़ और श्श्रावणा से अच्छा सम्बन्ध बनाने से लाभ होता है | जीर्णाशय सम्बंधित रोग, स्नायु सम्बंधित रोग, उदर विकार, चर्मरोग आदि से आपका स्वास्थ्य पीड़ित रहेगा |
२७.रेवती - चारुशीलविभवो जितेन्द्रयः सद्वनात्तु भवनैकमानसः |
मानवो ननु भवेन्महामती रेवती भवति यस्य जन्मभम् ||
रेवती नक्षत्र का स्वामी पूषा और ग्रह बुध होता है | मीन राशि का १६॰ / ४०े से ३०॰ तक रहता है | इस नक्षत्र के चारों चरण मीन राशि का षष्ठ नवांश से नवम नवांश तक रहते है | इन नवांशों के अधिपति क्रमशः गुरु, शनि,शनि और गुरु होते है | इनमें जन्म लेनेवाला जात्तक के नवांश पति के सदृश शरीर होता है रंग चन्द्र नवांश पति के अनुरुप होता है | रेवती नक्षत्र के जातक भी ईमानदार होते है और किसी को धोखा नहीं दे सकते है | परम्पराओं और मान्यताओं में इनकी खासी आस्था होती है और उनका पालन करते है | हालाँकि उनके व्यवहार में ये रुढ़िवादिता नजर आती और सबसे मिलकर मृदुल भाषी अंदाज में ये अपना काम करते हैं | इनकी दिलचस्पी पढने लिखने में होती है और सुझबुझ में इनका जवाब नहीं होता है | इस नक्षत्र का गण देव और नाड़ी अन्त्य है, यह सव्य और पुरुष नक्षत्र है, इस नक्षत्र में जन्म लेनेवाला जातक का स्वरुप मध्यम कद सावला होता है म| स्वभाव की दृष्टि से जातक ला-परवाह होता है | अवसरवादी, स्वतन्त्र जीवन और पक्षपाती होता है | विद्या से लाभ उठाने वाले, गणित, योगशास्त्र, इतिहास, राजनीति, व्यापार तथा शिक्षा विभाग में नौकरी से चलेगी | आर्थिक स्थिति बहुत मजबूत नहीं रहती | रेवती नक्षत्र वाले मृगशिरा के तृ और चतुर्थ चरण, आर्द्रा, पुनर्वसु, उत्तराफाल्गुनी के द्वि, तृ या चतुर्थ चरण, हस्त, मूल, पूर्वाषाढ़ और पूर्वाभाद्र के चतुर्थ चरण से अच्छा सम्बन्ध रहता है | स्वास्थ्य अच्छा रहता है, पर पेट की गड़बड़ी से धार्मिक कार्यों के संपादन के परिश्रम से स्वास्थ्य में कमी होने का अवसर आता है |
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