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ज्योतिष, सृष्टि और उसका लय | Astrology, Creation, and Its Dissolution

ज्योतिष, सृष्टि और उसका लय      न जानामि मुक्तं लयं वा कदाचित्   लंकानगर्यामुद्याच्चभानोस्तस्यैव   बारे   प्रथमं     बभूब   मधोः सितार्छेर्दिनमास   वर्ष युगादिकानां युगपत्प्रवृतिः || सृष्टि के आदि में जब काल और व्यक्तिजनक भग्रहादि का प्रादुर्भाव होता है तब उन दोनों का दिन, मास, युगादि का एकावली प्रारंभ होता है | ज्योतिष शास्त्र काल गणना का शास्त्र है | काल का उत्पादक भचक्र है और उसमें स्थित सूर्यादि ग्रह है | बिना उसके काल की उत्पत्ति संभव नहीं है | आगमोक्त सृष्टि चक्र की पर्यालोचना से काल से अनादि और अनन्त में इस चर-अचर संसार का आविर्भाव और तिरोभाव दिग्, देश और काल के वश से होते है,जो गति विद्या के प्रमाण पथ के आधार पर स्पष्ट जाना जाता है |  लय का शाब्दिक अर्थ -चित्त की वृत्तियों का सब ओर से हटकर एक ओर प्रवृत्त होना | सृष्टि और लय शब्द का अर्थ होता है कि किसी निश्चित समय में वस्तुओं का उत्पन्न होना और कुछ समय के बाद उस का अवसान होना | क्योंकि सृष्टि गत पदार्थों का आविर्भाव एवं तिरोभाव एक निश्चित समय में होता रहता है | ...