ज्योतिष में योग शब्द से अभिप्राय ग्रहों के संबन्ध से है, यह सम्बन्ध ग्रहों की युत्ति, दृ्ष्टि संबन्ध्, परिवर्तन तथा अन्य कई कारणों से बन सकता है I जिस प्रकार धर्म में बुद्धि और शरीर का योग, आयुर्वेद में दो या दो से अधिक औषधियों का योग मंगलकारी होता है I
ठीक उसी प्रकार ग्रहों का दो जब बुध, गुरु, शुक्र लग्न या चन्द्रमा से षष्ठ, सप्तम और अष्टम भाव में एक साथ या अलग-अलग हो तो अधियोग बनता है अधियोग व्यक्ति को धनवान बनाता है यह शुभ योग है I
देवी लक्ष्मी को धन की देवी के रुप में जाना जाता है। धन हमारे जीवन में रख रखाव और प्रगति के लिए महत्वपूर्ण है। यह सिर्फ पैसे होने से कईं ज़्यादा है। इसका अर्थ है ज्ञान, कौशल और प्रतिभा में प्रचुरता। लक्ष्मी वह ऊर्जा है जो व्यक्ति के पूर्ण आध्यात्मिक और भौतिक कल्याण के रुप में प्रकट होती है।
अपने १६ रुपों में धन प्रदान करती है, यथा लक्ष्मी से:- ज्ञान, बुद्धि, बल, शौर्य, सौंदर्य, विजय, प्रसिद्धि, महत्वाकांक्षा, नैतिकता, सोना और अन्य धन, अन्न, परमानंद, सुख, स्वास्थ्, दीर्घायु, और पुण्य( सुपुत्र) संतान की देवी माना जाता है।
इस योग के शुभ प्रभाव से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति सुदृ्ढ होती है, व्यक्ति दीर्घायु, समृ्द्धिशाली बनता है, उसकी आत्मा श्रेष्ठ होती है, वह साहसिक और ऊर्जावान होता है I
गुरु मंगल योग शुभ योगों की श्रेणी में आता है. यह योग तब बनता है, जब मंगल और गुरु की युति हो रही होती है. यह योग होने पर व्यक्ति शहर का मुखिया होता है I यह योग धन योगों में आता है, इस योग वाला व्यक्ति स्वतन्त्र प्रकृ्ति का होता है, उसका शरीर गठा हुआ होता है I
व्यक्ति में अत्यधिक व्यय करने की प्रवृ्ति होती है I उसे विभिन्न स्त्रोतों से आय प्राप्त होती है I विभिन्न प्रमुख ज्योतिषीय ग्रन्थों में बृहतपराशर होराशास्त्र, बृहतजातक, जातकतत्व, होरासार, सारावली, मानसागरी, जातक परिजात आदि विभिन्न-विभिन्न माध्यम से धन योगों का विवरण प्राप्त होता है। परन्तु उनमें मुख्य जो अक्सर जन्म कुंडलियों में पाये जाते हैं :-----
सूर्य :-- दशम भाव में स्थित मेष, कर्क, सिंह या धनु राशि का सूर्य सैन्य या पुलिस अधिकारी बनाता है जबकि वृश्चिक राशि का सूर्य चिकित्सा अधिकारी बनाता है।
चन्द्रः--इस भाव में यदि शुभ चंद्र बली होकर बैठा है तो जातक को दैनिक उपयोग में आनेवाली वस्तुओं का व्यापार करना चाहिए उससे वह लाभ प्राप्त करेग, लेकिन यदि मंगल या शनि की युति हो तो असफलता मिलेगी।
मंगल:-- मेष, सिंह, वृश्चिक या धनु राशि का मंगल जातक को चिकित्सक और सर्जन बनाता है लेकिन यदि मंगल का सूर्य से संबंध हो तो व्यक्ति सुनार या लोहार का कार्य करेगा। मंगल से सम्बंधित कार्य करने से पूर्ण लाभ मिलता है I
बुध:-- लग्नेश, द्वितीयेश, पंचमेश, नवमेश या दशमेश होकर कन्या या सिंह राशि का बुध गुरु से दृष्ट या युत हो तो व्यक्ति शिक्षा के क्षेत्र में अच्छी सफलता अर्जित करता है। वह प्रोफेसर या लेक्चरर बन सकता है, हालांकि बुध के प्रभाव से जातक बैंककर्मी या बैंक से संबंधित कार्य भी कर सकता है। लेकिन यदि बुध शुक्र के साथ या शुक्र की राशि में हो तो जातक फिल्म या विज्ञापन से संबंधित व्यवसाय करता है। वैसे बुध से सम्बंधित कार्य कर सकते है I
बृहस्पति:-- बृहस्पति का संबंध नवम भाव से है, लेकिन यदि वह दशम भाव में स्थित है तो वह नीच का माना जाता है। बृहस्पति का संबंध जब नवमेश से हो तो व्यक्ति धार्मिक कार्यों द्वारा धन अर्जित करता है। बृहस्पति यदि बलवान और राजयोगकारक हो तो जातक को न्यायाधीश बना देता है। लेकिन बृहस्पति मंगल के प्रभाव में हो तो जातक फौजदारी वकील बनता है।
शुक्र:--दशम भाव में स्थित शुक्र जातक को सौंदर्य प्रसाधन सामग्री, फैंसी वस्तुओं आदि का निर्माता या विक्रेता बनाता है। शुक्र का संबंध द्वितीयेश, पंचमेश या बुध से हो तो जातक गायन और वादन के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है।
शनि:-- यदि दशम भाव में बलवान शनि का मंगल से संबंध हो तो जातक इलेक्ट्रॉनिक फिल्म में कार्य करता है। यदि बुध से संबंध हो तो मैकेनिकल इंजीनि यर बनता है।
शनि का संबंध यदि चतुर्थ भाव या चतुर्थेश से हो तो जातक तेल, कोयला, लोहा आदि के व्यापार से धन अर्जित करता है। लेकिन यदि शनि का राहु से संबंध हो तो व्यक्ति चमड़े, रैक्जीन, रबर आदि के व्यापार में सफल होता है।
राहु:-- यदि मिथुन राशि का होकर दशम भाव में स्थित हो तो जातक राजनीति, सेना, पुलिस या रेलवे के क्षेत्र में कार्य करता है।
केतु:--दशम भाव का केतु धनु या मीन में हो तो जातक व्यापार में सफलता प्राप्त कर खूब वैभव, धन और यश कमाता है, बशर्ते कि उसके शत्रु ग्रह उसके साथ न हो या वह शत्रु ग्रहों से दृष्ट न हो। तथा फलदायी भी हैं।
नारायण बोले – “ इन्द्र ! (लक्ष्मी-प्राप्ति के लिये) तुम लक्ष्मी-कवच (श्रीयन्त्रं) ग्रहण करो। यह समस्त दुःखों का विनाशक, परम ऐश्वर्य का उत्पादक और सम्पूर्ण शत्रुओं का मर्दन करने वाला है। ”
पूर्वकाल में जब सारा संसार जलमग्न हो गया था, उस समय मैंने इसे ब्रह्मा को दिया था। जिसे धारण करके ब्रह्मा त्रिलोकी में श्रेष्ठ और सम्पूर्ण ऐश्वर्यों से सम्पन्न हो गये थे। इसी के धारण से सभी मनु लोग सम्पूर्ण ऐश्वर्यों के भागी हुए थे।
देवराज ! इस सर्वैश्वर्यप्रद कवच के ब्रह्मा ऋषि हैं, पंक्ति छन्द है, स्वयं पद्मालया लक्ष्मी देवी हैं और सिद्धैश्वर्यप्रद के जपों में इसका विनियोग कहा गया है।
इस कवच के धारण करने से लोग सर्वत्र विजयी होते हैं। पद्मा मेरे मस्तक की रक्षा करें। हरिप्रिया कण्ठ की रक्षा करें। लक्ष्मी नासिका की रक्षा करें। कमला नेत्र की रक्षा करें। केशवकान्ता केशों की, कमलालया कपाल की, जगज्जननी दोनों कपोलों की और सम्पत्प्रदा सदा स्कन्ध की रक्षा करें।
“ ऊँ श्री कमलवासिन्यै स्वाहा ” - मेरे पृष्ठभाग का सदा पालन करे |
“ ऊँ श्री पद्मालयायै स्वाहा ” वक्षःस्थल को सदा सुरक्षित रखे। श्री देवी को नमस्कार है, वे मेरे कंकाल तथा दोनों भुजाओं को बचावें।
“ ऊँ ह्रीं श्रीं लक्ष्म्यै नमः ” चिरकाल तक निरन्तर मेरे पैरों का पालन करे।
“ ऊँ ह्रीं श्रीं नमः पद्मायै स्वाहा ” नितम्ब भाग की रक्षा करे।
“ ऊँ श्री महालक्ष्म्यै स्वाहा ” मेरे सर्वांग की सदा रक्षा करे।
“ ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै स्वाहा ” सब ओर से सदा मेरा पालन करे।
श्री अष्ट लक्ष्मी
अष्टलक्ष्मी का अर्थ है, लक्ष्मी के आठ विशेष रुप है I श्रीलक्ष्मी के वैसे हजारों भेदोपभेद है उसमें महत्त्वपूर्ण आठ रुप ये हैं- आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, सन्तानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी I
श्रीआद्यलक्ष्मी
आदि लक्ष्मी
सुमनस वन्दित सुन्दरि माधवि,चन्द्र सहोदरि हेममये
,
मुनिगण वन्दित मोक्षप्रदायिनि, मंजुल भाषिणी वेदनुते।
पंकजवासिनी देव सुपूजित, सद्गुण वर्षिणी शान्तियुते
,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी, आद्यलक्ष्मी परिपालय माम् ।।
श्रीआदिलक्ष्मी (श्री महालक्ष्मी, गृहलक्ष्मी)-
आदिलक्ष्मी देश और समाज का कल्याण करती हैं I इनकी आराधना से मन में शक्ति और शांति का वास होता है I इनका सबसे पहला अवतार है आदि लक्ष्मी या महालक्ष्मी।
यह ऋषि भृगु की बेटी के रूप में है। श्रीमद्देवीभागवत पुराण के अनुसार, महालक्ष्मी ने ही त्रिदेवों को प्रकट किया है और इन्हीं से ही महाकाली और महासरस्वती ने आकार लिया।
जीव-जंतुओं को प्राण प्रदान करने वाली आदि लक्ष्मी ही हैं। इनसे जीवन की विषयी वस्तुओं या उत्पत्ति हुई है। हमारे मूल का ज्ञान, स्रोत का यह ज्ञान हो जाना ही आदि लक्ष्मी है, तब नारायण बहुत पास ही है।
जिस व्यक्ति को
स्रोत का ज्ञान हो जाता है, वह सभी भय से मुक्त हो जाता है और संतोष और
आनंद प्राप्त करता है।
ये आदि लक्ष्मी है। आदि लक्ष्मी केवल ज्ञानीओं के पास होती है और जिनके पास आदिलक्ष्मी हुई समझ लो उनको भी ज्ञान हो गया। आदि लक्ष्मी अपने भक्त को मोक्ष की प्राप्ति कराती हैं। आदि देवी लक्ष्मी चार भुजाओं वाली है कमल और श्वेत् ध्वज धारण करने वाली होती है I अन्य दो हाथ अभय मुद्रा और वरदा मुद्रा में है I
गृहलक्ष्मी के रूप में माँ लक्ष्मी की आराधना करने से स्वयं के घर का सपना पूरा होता है। इसके अलावा घर संबंधी अन्य समस्याओं का हल भी शीघ्र ही हो जाता है । मूल शब्द 'लक्ष' से लक्ष्मी शब्द की उत्पत्ति हुई है जिसका अर्थ है लक्ष्य या उद्देश्य । लक्ष्य प्राप्त करने का मतलब है उद्देश्य प्राप्त करना। लक्ष्मी मंत्र का जप अपने उद्देश्य को जानने और उसकी पूर्ति के लिए किया जाता है ।
ऐसा कहा जाता है कि लक्ष्मी मंत्र का जाप करने से जाप करनेवाले की आभा में आवृत्ति होती है जिससे वह धन की प्राप्ति करते हैं। लक्ष्मी जी सभी की अवतार है जो सौभाग्य, समृद्धि और सौंदर्य लाती है।
लक्ष्मी मंत्र के लिए प्रयोग की जाने वाली जप माला :-कमलगट्टा माला, स्फटिक माला, लक्ष्मी मंत्र के लिए प्रयोग किए जाने वाले फूल:-गुलाब और कमल के फूल I लक्ष्मी मंत्र के लिए कुल जप संख्या 11000 बार, लक्ष्मी मंत्र जप का श्रेष्ठ समय या मुहूर्त शुक्ल पक्ष, पूर्णिमा तिथि, चन्द्रावली, शुभ नक्षत्र I
श्रीलक्ष्मी मंत्र की देवी माता लक्ष्मी है। वह भगवान विष्णु की गतिशील ऊर्जा है। वह धन, सम्पदा, शान्ति और समृद्धि की देवी मानी जाती है I वह धन की कमी के कारण उत्पन्न सभी दुखों को दूर करती है। उनकी उपासना अलग-अलग नामों से की जाती है: पद्मा, कमला, कल्याणी, विष्णुप्रिया, वैष्णवी इत्यादि।
श्रीलक्ष्मीजी की चार हाथ आदमी के जीवन के चार लक्ष्यों का प्रतिनि धित्व करता है: धर्म ( धर्म और कर्तव्य ), अर्थ (धन और समृद्धि), काम (सांसारिक इच्छा ) और मोक्ष (मुक्ति) । वह अपने हाथ में कमल लिए हुए हैं जो सौंदर्य हुए चेतना का प्रतिक है। उनकी हथेलियां हमेशा खुली है और उस से धन की वर्षा हो रही है जो धन , समृद्धि और प्रचुरता का प्रतिक है I
श्रीलक्ष्मी मंत्र के नियमित रुप से सामान्य जातक सामान्य जाप लक्ष्मी लक्ष्म्यै नमः है I इस जाप से व्यक्ति को धन-सम्पदा, समृद्धि, सौंदर्य और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। लक्ष्मी मंत्र का नियमित जप स्वास्थ्य, वित्त और संबंधों में बहुतायत मिलता है।
नौकरी में पदोंनति पाने के लिए नियमित रुप से जप कर सकते हैं; व्यवसाय में लाभ को बढ़ाने के लिए उपयोग कर सकते है और व्यापार में नए ग्राहकों को आकर्षित करने से लाभ प्राप्त कर सकते हैं ।
श्रीलक्ष्मी मंत्र का नियमित जप करने से मन की शांति मिलती है और अपने जीवन में नकारात्मक प्रभावों को दूर करता है।
अगर आप दीक्षित है तो इस मंत्र को नित्यनियमति से जाप करने पर आप शक्तिशाली धन, यश और शारीरिक रुप से सफलता प्राप्त करेगे :---
(१) तीव्र स्पंदन ऊर्जा उत्पादित होती है जो एक ऊर्जा क्षेत्र का निर्माण करके बाहुल्य और भाग्य को आकर्षित करती है :--
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं त्रिभुवन महालक्ष्म्यै अस्मांक दारिद्र्य नाशय
प्रचुर
धन देहि देहि क्लीं ह्रीं श्रीं ॐ ।
(२) इस लक्ष्मी मंत्र का दिवाली के दिन जप
किया जात है:--
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौं ॐ ह्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स ल ह्रीं सकल ह्रीं सौं
ऐं क्लीं ह्रीं श्री ॐ।
अपने कार्यालय जाने से पहले इस लक्ष्मी मंत्र का
प्रतिदिन
जप करें :--
ॐ ह्री श्रीं क्रीं श्रीं क्रीं क्लीं श्रीं महालक्ष्मी मम गृहे धनं पूरय पूरय चिंतायै
दूरय दूरय स्वाहा ।
(३) देवी महालक्ष्मी से धन और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए महालक्ष्मी मंत्र का जप करते हैं :-
ॐ सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो, धन धान्यः सुतान्वितः।
मनुष्यो
मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः ॐ ।
(४) लक्ष्मी गायत्री मंत्र के जप से व्यक्ति को समृद्धि और सफलता मिलती है
:--
ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी
प्रचोदयात् ॐ।
(५) लक्ष्मी बीज मंत्र :--- ॐ श्रीं श्रियें नमः ।
(७) ज्येष्ठ लक्ष्मी बीज मंत्र:--
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ज्येष्ठ लक्ष्मी स्वयम्भुवे ह्रीं ज्येष्ठायै नमः ।
(८)
ज्येष्ठ लक्ष्मी मंत्र :--
महालक्ष्मी यक्षिणीविद्या मंत्र ॐ ह्रीं क्लीन महालक्ष्म्यै नमः ।
श्री लक्ष्मी नृसिंह मंत्र:--
ॐ ह्रीं क्ष्रौं श्रीं लक्ष्मी नृसिंहाय नमः ।
ॐ क्लीन क्ष्रौं श्रीं लक्ष्मी देव्यै नमः ।
(१०) श्री लक्ष्मी नृसिंह मंत्र :--एकादशाक्षर सिध्दा लक्ष्मी मंत्र:--
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं सिध्द लक्ष्म्यै नमः ।
(११) द्वादशाक्षर महालक्ष्मी मंत्र:--
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौ: जगात्प्रसुत्यै नमः ।
ॐ ह्रीं श्री क्रीं क्लीं श्री लक्ष्मी मम गृहे धन पूरये, धन पूरये, चिंताएं दूरये-दूरये स्वाहा: I
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्री सिद्ध लक्ष्म्यै नम: !
(१४) इस मंत्र के जाप से घर में अन्न और धन्न की कमी कभी न होती. इस मंत्र का जाप स्टफीक की माला से करना चाहिए :--
पद्मानने पद्म पद्माक्ष्मी पद्म संभवे तन्मे भजसि पद्माक्षि येन सौख्यं लभाम्यहम् I
(१५) इस मंत्र का जाप कोई भी शुभ कार्य करने से पहले या किसी काम के लिए घर से बाहर निकलने से पहले करना चाहिए:--
ॐ ह्रीं
ह्रीं श्री लक्ष्मी वासुदेवाय नम:!
(१६) इस मंत्र का जाप करने से मां लक्ष्मी घर में वास करती हैं. इस मंत्र का जाप कुशा के आसन पर बैठकर करना चाहिए:-
ॐ लक्ष्मयै नम: I
(१७) इस मंत्र का जाप पति-पत्नि के
रिश्तों को मजबूत करने के लिए करना चाहिए क्यों इसमें मां लक्ष्मी और नारायण यानि
भगवान विष्णु का नाम एक साथ आता है: --
लक्ष्मी नारायण नम: I
(१८) इस मंत्र का जाप पति-पत्नि के
रिश्तों को मजबूत करने के लिए करना चाहिए क्यों इसमें माँ लक्ष्मी और नारायण यानि
भगवान विष्णु का नाम एक साथ आता है:---
धनाय
नमो नम: ॐ धनाय नम: ॐ I
इस रूप में माँ संपदा प्रदान करती है। मत मतांतर से अष्टलक्ष्मी के भिन्न-भिन्न नाम व रुपों के बारे में बताया गया है, जो इस प्रकार भी हैं – (1) धनलक्ष्मी या वैभव-लक्ष्मी
(2) गजलक्ष्मी
इसके अलावा कहीं-कहीं पर (1) आद्यलक्ष्मी (2) विद्यालक्ष्मी
(3) सौभाग्यलक्ष्मी (4) अमृतलक्ष्मी (5) कामलक्ष्मी
(6) सत्यलक्ष्मी (7) विजयालक्ष्मी (8) भोगलक्ष्मी एवं योगलक्ष्मी के रूप में
पूजा जाता है I
इनकी सफलता के लिए ध्यान मंत्र :-
ॐ
गृहलक्ष्म्यै नम:
श्री धन लक्ष्मी –
धिमिधिमि धिन्दिमि धिन्दिमि,
दिन्धिमि दुन्धुभि नाद सुपूर्णमये,
घुमघुम घुंघुम घुंघुंम घुंघुंम, शंख निनाद सुवाद्यनुते।
वेद पुराणेतिहास सुपूजित, वैदिक मार्ग प्रदर्शयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
धनलक्ष्मी रूपेणा पालय माम्।।
अष्टलक्ष्मी नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि।
विष्णु वक्ष:स्थलारूढ़े भक्त मोक्ष प्रदायिनी।।
शंख चक्रगदाहस्ते विश्वरूपिणिते जय:।
जगन्मात्रे च मोहिन्यै मंगलम् शुभ मंगलम्।।
श्री धन लक्ष्मी –धन और स्वर्ण की देवी है I जिन्हें वैभव के नाम से भी जानी जाती है I धन लक्ष्मी जो व्यक्ति को धन और वैभव से परिपूर्ण कराती हैं। कहा जाता है कि एक बार कुबेर से भगवान विष्णु ने धन उधार लिया था जो वो समय पर चुका नहीं पाए थे। तब धन लक्ष्मी ने ही विष्णु जी को कर्ज से मुक्त करवाया था। इनके पास धन से भरा कलश मौजूद है।
इनके एक हाथ में कमल है। इनकी पूजा से आर्थिक परेशानियों और कर्ज से मुक्ति दिलाती है।धन का अर्थ-धन, भाग्य, और आय बना रहे I आप जब तक इनका भावना से प्रार्थना करते रहेगें तब तक उस घर और उस व्यक्ति के पास वास करती है, हर कोई धन लक्ष्मी के बारे में जानते ही है। धन की चाह से और अभाव से ही आदमी अधर्म करता है।
धन की चाह के कारण कई लोग हिंसा, चोरी, धोखाधड़ी जैसे गलत काम करते हैं मगर जाग के नहीं देखते की मेरे पास है। जोर जबरदस्ती के साथ धन लक्ष्मी आती नहीं है अगर आती भी है तो वो आनंद नहीं देती सिर्फ दुःख ही दुःख देती है। कुछ लोग केवल धन को ही लक्ष्मी मान लेते हैं और धन एकत्रित करना अपना लक्ष्य बना लेते हैं।
मरते दम तक पैसा इकट्ठा करो और बैंक में पैसा रखकर मर जाओ। धन को लक्ष्य बनाने वाले दुःखी रह जाते है। कुछ लोग होते है जो धन को दोषी ठहराते है। पैसा नहीं है ये ठीक हैं, पैसा अच्छा नहीं है, पैसे से ये खराब हुआ, ये सभी गलतफहमी है। धन का सम्मान करो, सदुपयोग करो तब धन लक्ष्मी ठहरती हैं। लक्ष्मी की तरह उसकी पूजा करो।
कहते है लक्ष्मी बड़ी चंचल होती है यानी वो चलती रहती है। चली तो उसका मूल्य हुआ चलती नहीं है बंद रहती है तो फिर उसका कोई महत्व नहीं है। इसलिए धन का सदुपयोग करो,सम्मान करो।
जो समृद्ध और सुखी जीवन जीने में पूर्ण सफल रहते है I इसका प्रभाव हमारे भविष्य संतान हमारी आतंरिक इच्छा शक्ति, चरित्र और गुण है I कमल लाल, लाल वस्त्र, पद्मासना एक पाँव धरती स्पर्श करने वाली मुद्रा माँ का दिव्य दृश्य है I
लक्ष्मी मां, धनलक्ष्मी के रूप में अपने भक्तों की आर्थिक समस्याओं और दरिद्रता का नाश कर उसे धन-दौलत से परिपूर्ण कर घर में बरकत देती हैं। धन लक्ष्मी धनलक्ष्मी की कृपा प्राप्ति से व्यर्थ का व्यय, कर्ज और समस्त आर्थिक परेशानियों से मुक्ति मिलती है।
ध्यान मंत्र --- >
ॐ धनलक्ष्म्यै नम:
श्रीधान्यलक्ष्मी
अयिकलि कल्मष नाशिनि कामिनी,
वैदिक रूपिणि वेदमये,
क्षीर समुद्भव मंगल रूपणि, मन्त्र निवासिनी मन्त्रयुते।
मंगलदायिनि अम्बुजवासिनि, देवगणाश्रित पादयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी, धान्यलक्ष्मी परिपालय माम्।।
श्रीधान्य लक्ष्मी - धन-धान्य लक्ष्मी धनवान् होने का मतलब है कि हमारे पास प्रचुर मात्रा में भोजन हैं जो हमें पोषित और स्वस्थ रखता है I धन्य का अर्थ अनाज होता है। धन्य लक्ष्मी अनाज की दात्री हैं। इन्हें माता अन्नपूर्णा का स्वरूप भी माना जाता है। हर यह देवी अन्न स्वरूप में विराजमान होती हैं। धन्य लक्ष्मी को प्रसन्न करने का सबसे आसान तरीका है कि कभी-भी अन्न की बर्बादी न करें।
जिन घरों में अन्न का निरादर नहीं होता है वहीं अन्न का भंडार रहता है।धन लक्ष्मी हो सकती है मगर धान्य लक्ष्मी भी हो यह ज़रूरी नहीं। धन तो है मगर कुछ खा नहीं सकते- रोटी, घी, चावल, नमक, चीनी खा नहीं सकते। इसका मतलब धन लक्ष्मी तो है मगर धान्य लक्ष्मी का अभाव है। गांवों में आप देखें खूब धान्य होता है।
वे किसी को भी दो-चार दिन तक खाना खिलाने में संकोच नहीं करते। धन भले ही ना हो पर धान्य होता है। गाँवों में लोग खूब अच्छे से खाते भी है और खिलाते भी है। शहर के लोगों की तुलना में ग्रामीणों द्वारा खाया जाने वाला भोजन गुणवत्ता और मात्रा में श्रेष्ठ है। उनकी पाचन शक्ति भी अच्छी होती है। धान्य का सम्मान करें ये है धान्य लक्ष्मी।
दुनिया
में भोजन हर व्यक्ति के लिए आव्यशक है। भोजन को बर्बाद नहीं करना या खराब नहीं
करना। कई बार भोजन जितना बनता है उसमें आधे से ज्यादा फेंक देते हैं औरों को भी
नहीं देते। ये नहीं करना। भोजन का सम्मान करना ही धान्य लक्ष्मी है।माँ धान्य लक्ष्मी
की कृपा से व्यक्ति को सभी आवश्यकता पोषक तत्त्व मिलता है I
श्रीधैर्यलक्ष्मी
जयवरवर्षिणी वैष्णवी भार्गवि, मन्त्रस्वरूपिणि मन्त्रमये,
सुरगण पूजित शीघ्र फलप्रद, ज्ञान विकासिनी शास्त्रनुते।
भवभयहारिणी पापविमोचिनी, साधु जनाश्रित पादयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी, धैर्यलक्ष्मी परिपालय माम्।।
श्रीधैर्य लक्ष्मी- धैर्य लक्ष्मी से हम रणनीति, योजना, निष्पक्षता और धैर्य प्राप्त करते है I यह शक्ति हमें आसानी से अच्छे और बुरे समय का सामना करने की आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करती है I घर में सब है, धन है, धान्य है, सब संपन्न है मगर डरपोक है। अक्सर अमीर परिवार के बच्चे बड़े डरपोक होते है।
हिम्मत यानी धैर्य एक संपत्ति है। नौकरी में हमेशा ये पाया जाएगा लोग अपने अधिकारियों से डरते है। बिजनेस मेन हो तो इंस्पेक्टरों से डरते रहते है। हम अक्सर अधिकारियों से पूछते हैं कि आप किस प्रकार के सहायक को पसंद करते हैं ? - जो आपके सामने डरता है या जो धैर्य से आपके साथ संपर्क करता हैं ? जो आपसे डरता है वह आपको कभी सच नहीं बताएगा, झूठी कहानी बता देगा।
ऐसे व्यक्ति के साथ आप काम कर ही नहीं पाओगे। आप वहीं सहायक पसंद करते हो जो धैर्य से रहे और ईमानदारी से आपसे बात करे। मगर आप क्यों डरते हो आपके अधिकारियों से? क्यों? क्योंकि हम अपने जीवन से जुड़े नहीं है। हमको ये नहीं पता है की हमारे भीतर ऐसी शक्ति है एक दिव्यशक्ति है जो हमारे साथ हमेशा के लिए है। यह धैर्य लक्ष्मी की कमी हो गई। धैर्य लक्ष्मी होने से ही जीवन में प्रगति हो सकती है नहीं तो नहीं हो सकती। जिस मात्रा में धैर्य लक्ष्मी होती है उस मात्रा में प्रगति होती है। चाहे बिजनेस में हो चाहे नौकरी में हो।
धैर्य लक्ष्मी की आवश्यकता होती ही है। यह हमारे सभी कार्यों में योजना और रण-नीति के महत्त्व को दर्शाता है I ताकि हम सावधानी से आगे बढ़ सके और हर बार अपने लक्ष्य तक पहुँच सकें I माँ लक्ष्मी का यह रुप,असीम साहस और शक्ति का वरदान देती है I वें जो अनंत आन्तारिक शक्ति के साथ है हम हमेशा जीत के लिए बाध्य है I
जो लोग धैर्य
लक्ष्मी की पूजा करते है I वें बहुत ही धैर्य और आतंरिक स्थिरता के साथ जीवन जीते
है I
श्रीगजलक्ष्मी
जय जय दुर्गति नाशिनि कामिनि, सर्वफलप्रद शास्त्रमये,
रथगज तुरगपदाति समावृत, परिजन मण्डित लोकनुते।
हरिहर ब्रह्म सुपूजित सेवित, ताप निवारिणी पादयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
गजरूपेणलक्ष्मी परिपालय माम्।।
श्रीगज लक्ष्मी- पशुधन कृषि प्रधान लक्ष्मी हैI गज लक्ष्मी कमल पुष्प के ऊपर हाथी पर विराजमान हैं। इन्हें कृषि और उर्वरता की देवी भी कहा गया है। इन्होंने भगवान इंद्र को सागर की गहराई से हासिल करने में मदद की थी।
इन्हें राजलक्ष्मी भी कहा गया है क्योंकि
ये राज को समृद्धि प्रदान कराती हैं। जो लोग कृषिक्षेत्र से जुड़े हैं और जिनकी
संतान की इच्छा है, उन्हें इनकी पूजा करनी चाहिए।
जिसमे लक्ष्मी दो हाथी जल से भरा कलश लिए हुए, अभय मुद्रा और वरदा मुद्रा तथा दो कमल धारण करने वाली गज पद्मासना रहती है I
श्रीसंतानलक्ष्मी
अयि खगवाहिनि मोहिनी चक्रिणि, राग विवर्धिनि ज्ञानमये,
गुणगणवारिधि लोकहितैषिणि, सप्तस्वर भूषित गाननुते।
सकल सुरासुर देवमुनीश्वर, मानव वन्दित पादयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी, सन्तानलक्ष्मी परिपालय माम्।।
श्रीसंतान लक्ष्मी- लक्ष्मीनारायण की संयुक्त योग को संतान लक्ष्मी है I इस संतान लक्ष्मी, मां लक्ष्मी का स्वरूप हैं। यह बच्चों और अपने भक्तों को लम्बी उम्र प्रदान करने का रूप है। श्रीमद्देवीभागवत पुराण के अनुसार, सनातना देवी अपनी गोद में बालक कुमार स्कंद को लिए बैठी हैं। इनका स्वरूप स्कंदमाता जैसा है।
इनकी 4 भुजाएं हैं जिनमें दो भुजाओं में कलश धारण और बाकी की दो में तलवार और ढाल है। यह अपने भक्तों की रक्षा अपने संतान जैसे करती हैं। व्यक्ति की कुंडली में ग्रहों की मौजूदगी और संयोजन से कई ऐसे योग बनते हैं जो इंसान के जीवन को बदलने की क्षमता रखते हैं।
कई बार हम खुद ही इन योगों से अंजान बने रहते हैं, लेकिन इन योगों का प्रभाव हमारे जीवन पर अवश्य ही पड़ता है। आज बात करते हैं कुंडली के दो ऐसे ही बेहद शुभ योग, लक्ष्मी-नारायण योग की, और दूसरे, कलानिधि योग की और जानने की कोशिश करते हैं इन योगों का व्यक्ति के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है।
ऐसे बच्चे हो जो प्यार की पुंजी हो, प्यार का संबंध हो, भाव हो, तब वो संतान लक्ष्मी हुई। जिस संतान से तनाव कम होता है या नहीं होता है वह संतान लक्ष्मी। जिस संतान से सुख, समृद्धि, शांति होती है वह है संतान लक्ष्मी। और। जिस संतान से झगड़ा, तनाव, परेशानी, दुःख, दर्द, पीड़ा हुआ वह संतान संतान लक्ष्मी नहीं होती।
भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार लक्ष्मी नारायण योग जन्म-कुंडली में स्थित शुभ बुध और शुक्र ग्रह की युति से बनने वाला योग है। जिसका फल राजयोग कारक होता है। बुध बुद्धि-विवेक, हास्य का कारक है तो शुक्र सौंदर्य, भोग विलास का कारक है।
लक्ष्मी योग में बुध को विष्णु शुक्र को लक्ष्मी की श्रेणी दी गई है। इन दोनों ग्रहो का आपसी संबंध जातक को रोमांटिक और कलात्मक प्रवृत्ति का बनाता है। यह योग जैसे की नाम से ही पता चल रहा है, एक बहुत शुभ योग है। कुंडली में मौजूद योगों में यह योग सुख सौभाग्य को बढ़ाने वाला योग है।
लक्ष्मी नारायण योग पर गुरु की दृष्टि सोने पर सुहागा जैसी स्थिति होती है। लग्न, पांचवें, नौवें भाव में शुक्र बुध से बनने वाले श्रीलक्ष्मीनारायण योग के प्रभाव से जातक किसी न किसी कला में विशेष दक्ष होता है। पांचवें भाव में बनने से बली लक्ष्मी नारायण के प्रभाव से जातक विद्वान् भी होता है। शुक्र के साथ बुध और बुध के साथ शुक्र की युति इन दोनों के शुभ प्रभाव को बहुत ज्यादा बढ़ा देती है।
धन-धान्य योगों में से यह योग एक योग है। जन्मकुंडली के अनुसार यह लक्ष्मी-नारायण योग मेष, धनु, मीन लग्न में ज्यादा अच्छा प्रभाव नही दिखाता। बल्कि यह योग वृष, मिथुन, कन्या, तुला राशि में बहुत बली होता है। इसी तरह बारहवें भाव का शुक्र कन्या राशि के आलावा किसी भी राशि में हो तब एक तरह से “भोग योग” बनाता है।
यह योग शुक्र से सम्बंधित शुभ फलो में वृद्धि करके जातक को ज्यादा से ज्यादा
शुक्र
संबंधी शुभ फल मिलते हैं। शुक्र की स्थिति से कई राजयोग भी बनते है जिसमे शुक्र वर्गोत्तम या अन्य तरह से बलशाली होने पर अकेला राजयोगकारक होता है। यह योग कुछ ही लग्नों में कारगर होते है जैसे कि, कन्या लग्न में शुक्र भाग्येश धनेश
होकर योगकारक है। इसी तरह मकर, कुम्भ
लग्न की कुंडलियो में यह विशेष राजयोग कारक होता है।
इन दोनों मकर, कुम्भ लग्न में किसी भी तरह से यह अकेला भी बलशाली और पाप ग्रहों के प्रभाव से रहित होता है तो राजयोग बनाता है जिसके फल शुभ फल कारक होते है। इनकी पूजा करने से घर में सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है।स लक्ष्मी से परिवार, मित्र, शुभचिंतक तथा मनुष्य के सामाजिक स्वरूप का वर्णन है I संतान लक्ष्मी से मनुष्य के भविष्य का ज्ञान प्राप्त होता है I
जो
व्यक्ति मन से कार्य करने या प्रेम से आराधना करने से उन्हें माँ लक्ष्मी की कृपा
प्राप्त होती है I और अच्छे स्वास्थ्य और लम्बें जीवन के साथ वांच्छ्नीय बच्चों के
रुप में धन प्राप्त करते है I
संतानहीन दंपत्ति द्वारा संतानलक्ष्मी की आराधना करने से संतान की प्राप्ति होती है और उसका वंश वृद्धि करता है। संतानलक्ष्मी के रूप में देवी मां इच्छानुसार संतान देती है। सफलता के लिए ध्यान मंत्र-
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