शिवलिंग क्या है ? शैव सम्प्रदाय क्या है ?
शिव के दस अवतार? क्या शिवलिंग में रेडिएशन होता है ?
शैव संप्रदाय; हिंदू धर्म की 4 प्रमुख संप्रदायों में से एक है। शैव सिद्धांत जो शैव संप्रदाय की प्रमुख परम्पराओं में से एक है उसमें भगवान शिव की 3 परिपूर्णताएँ: परशिव, पराशक्ति और परमेश्वर बताई गई हैं। शिवलिंग का ऊपरी अंडाकार भाग परशिव का प्रतिनिधित्व करता है व निचला हिस्सा यानी पीठम् पराशक्ति का प्रतिनिधित्व करता है।
परशिव परिपूर्णता में भगवान शिव मानव समझ और समस्त विशेषताओं से परे एक परम् वास्तविकता है। इस परिपूर्णता में भगवान शिव निराकार, शाश्वत और असीम है। पराशक्ति परिपूर्णता में भगवान शिव सर्वव्यापी, शुद्ध चेतना, शक्ति और मौलिक पदार्थ के रूप में मौजूद है। पराशक्ति परिपूर्णता में भगवान शिव का आकार है परन्तु परशिव परिपूर्णता में वे निराकार हैं।
सामान्यतः पत्थर, धातु व चिकनी मिट्टी से बना स्तम्भाकार या अंडाकार शिवलिंग भगवान शिव की निराकार सर्वव्यापी वास्तविकता को दर्शाता है। भगवान शिव का प्रतीक शिवलिंग - सर्वशक्तिमान निराकार प्रभु की याद दिलाता है। शैव हिन्दू सम्प्रदाय के मंदिरों में शिवलिंग कोमल व बेलनाकार होता है।
यह सामान्यतः मंदिर के केंद्र यानी गर्भगृह में शक्ति का प्रतिनिधित्व करते गोलाकार पीठम् पर खड़ा दिखाया जाता है। भारतीय समाज में पारंपरिक रुप से शिवलिंग को भगवान शिव की ऊर्जा का रूप भी माना जाता है।भगवान शिव तथा उनके अवतारों को मानने वालों को शैव कहते हैं। शैव में शाक्त, नाथ, दसनामी, नाग आदि उप संप्रदाय हैं।
महाभारत में माहेश्वरों शैव के चार सम्प्रदाय बतलाए गए हैं: (i) शैव (ii) पाशुपत (iii) कालदमन (iv) कापालिक। शैवमत का मूलरूप ॠग्वेद में रुद्र की आराधना में हैं। 12 रुद्रों में प्रमुख रुद्र ही आगे चलकर शिव, शंकर, भोलेनाथ और महादेव कहलाए।
शैव धर्म से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी और तथ्य भगवान शिव की पूजा करने वालों को शैव और शिव से संबंधित धर्म को शैवधर्म कहा जाता है। शिवलिंग उपासना का प्रारंभिक पुरातात्विक साक्ष्य हड़प्पा संस्कृति के अवशेषों से मिलता है।
ऋग्वेद में शिव के लिए रुद्र नामक देवता का उल्लेख है। अथर्ववेद में शिव को भव, शर्व, पशुपति और भूपति कहा जाता है। लिंगपूजा का पहला स्पष्ट वर्णन मत्स्यपुराण में मिलता है। महाभारत के अनुशासन पर्व से भी लिंग पूजा का वर्णन मिलता है। वामन पुराण में शैव संप्रदाय की संख्या चार बताई गई है:--
(i) पाशुपत
(ii) काल्पलिक
(iii) कालमुख
(iv) लिंगायत
पाशुपत संप्रदाय शैवों का सबसे प्राचीन संप्रदाय है। इसके संस्थापक लवकुलीश थे जिन्हें भगवान शिव के 18 अवतारों में से एक माना जाता है। पाशुपत संप्रदाय के अनुयायियों को पंचार्थिक कहा गया, इस मत का सैद्धांतिक ग्रंथ पाशुपत सूत्र है।
कापालिक संप्रदाय के ईष्ट देव भैरव थे, इस सम्प्रदाय का प्रमुख केंद्र 'शैल' नामक स्थान था। कालामुख संप्रदाय के अनुयायिओं को शिव पुराण में महाव्रतधर कहा जाता है। इस संप्रदाय के लोग नर-कपाल में ही भोजन, जल और सुरापान करते थे और शरीर पर चिता की भस्म मलते थे। लिंगायत समुदाय दक्षिण में काफी प्रचलित था।
इन्हें जंगम भी कहा जाता है, इस संप्रदाय के लोग शिव लिंग की उपासना करते थे। बसव(दक्षिण के गुरु) पुराण में लिंगायत समुदाय के प्रवर्तक वल्लभ प्रभु और उनके शिष्य बासव को बताया गया है, इस संप्रदाय को वीरशिव संप्रदाय भी कहा जाता था।
दसवीं शताब्दी में मत्स्येंद्रनाथ ने नाथ संप्रदाय की स्थापना की, इस संप्रदाय का व्यापक प्रचार प्रसार बाबा गोरखनाथ के समय में हुआ। दक्षिण भारत में शैवधर्म चालुक्य, राष्ट्रकूट, पल्लव और चोलों के समय लोकप्रिय रहा। नायनारों संतों की संख्या 63 बताई गई है जिनमें उप्पार, तिरूज्ञान, संबंदर और सुंदर मूर्ति के नाम उल्लेखनीय है।
पल्लवकाल में शैव धर्म का प्रचार प्रसार नायनारों ने किया I ऐलेरा के कैलाश मंदिर का निर्माण राष्ट्रकूटों ने करवाया। चोल शालक राजराज प्रथम ने तंजौर में राजराजेश्वर शैव मंदिर का निर्माण करवाया था।
कुषाण शासकों की मुद्राओं पर शिव और नन्दी का एक साथ अंकन प्राप्त होता है। शिव पुराण में शिव के दशावतारों के अलावा अन्य का वर्णन मिलता है। ये दसों अवतार तंत्रशास्त्र से संबंधित हैं:--
(i) महाकाल (vi) छिन्नमस्तक गिरिजा
(ii) तारा (vii) धूम्रवान
(iii) भुवनेश (viii) बगलामुखी
(iv) षोडश (ix) मातंग
(v) भैरव (x) कमल
शिव के अन्य ग्यारह अवतार हैं:
(i) कपाली (ii) पिंगल
(iii) भीम (iv) विरुपाक्ष
(v) विलोहित (vi) शास्ता
(vii) अजपाद (viii) आपिर्बुध्य
(ix) शम्भ (x) चण्ड
(xi) भव
शैव ग्रंथ इस प्रकार हैं:--
(i) श्वेताश्वतरा उपनिषद (ii) शिव पुराण
(iii) आगम ग्रंथ (iv) तिरुमुराई
शैव तीर्थ इस प्रकार हैं:
(i) बनारस (ii) केदारनाथ
(iii) सोमनाथ (iv) रामेश्वरम
(v) चिदम्बर (vi) अमरनाथ
(vii) कैलाश मानसरोवर
शैवसम्प्रदाय के संस्कार इस प्रकार हैं:--
शैव संप्रदाय के लोग एकेश्वरवादी होते हैं। इसके संन्यासी जटा रखते हैं। इसमें सिर तो मुंडाते हैं, लेकिन चोटी नहीं रखते। इनके अनुष्ठान रात्रि में होते हैं। इनके अपने तांत्रिक मंत्र होते हैं।
यह निर्वस्त्र भी रहते हैं, भगवा वस्त्र भी पहनते हैं और हाथ में कमंडल, चिमटा रखकर धूनी भी रमाते हैं। शैव चंद्र पर आधारित व्रत उपवास करते हैं। शैव संप्रदाय में समाधि देने की परंपरा है। शैव मंदिर को शिवालय कहते हैं जहां सिर्फ शिवलिंग होता है।
यह भभूति तीलक आड़ा लगाते हैं। शैव साधुओं को नाथ, अघोरी, अवधूत, बाबा, औघड़, योगी, सिद्ध कहा जाता है।
क्या शिवलिंग रेडियोएक्टिव होता है ?
शिवलिंग रेडियोएक्टिव होते हैं सभी ज्योतिर्लिंगों के स्थानों पर सबसे ज्यादा रेडिएशन पाया जाता है। शिवलिंग भी एक प्रकार के न्युक्लियर रिएक्टर्स ही तो हैं, तभी तो उन पर जल चढ़ाया जाता है, ताकि वो शांत रहें।
महादेव के सभी प्रिय पदार्थ जैसे कि बिल्व पत्र, आकमद, धतूरा, गुड़हल आदि सभी न्युक्लिअर एनर्जी सोखने वाले है, क्यूंकि शिवलिंग पर चढ़ा पानी भी रिएक्टिव हो जाता है इसीलिए तो जल निकासी नलिका को लांघा नहीं जाता। भाभा एटॉमिक रिएक्टर का डिज़ाइन भी शिवलिंग की तरह ही है।
शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ जल नदी के बहते हुए जल के साथ मिलकर औषधि का रूप ले लेता है। तभी तो हमारे पूर्वज हम लोगों से कहते थे कि महादेव शिवशंकर अगर नाराज हो जाएंगे तो प्रलय आ जाएगी।
महाकाल उज्जैन से शेष ज्योतिर्लिंगों के बीच का सम्बन्ध दूरी देखिये :-
उज्जैन से सोमनाथ- 777 किमी है |
उज्जैन से ओंकारेश्वर- 111 किमी है |
उज्जैन से भीमाशंकर- 666 किमी है|
उज्जैन से काशी विश्वनाथ- 999 किमी है |
उज्जैन से मल्लिकार्जुन- 999 किमी है |
उज्जैन से केदारनाथ- 888 किमी है |
उज्जैन से त्रयंबकेश्वर- 555 किमी है |
उज्जैन से बैजनाथ- 999 किमी है |
उज्जैन से रामेश्वरम्- 1999 किमी है |
उज्जैन से घृष्णेश्वर - 555 किमी है |
हिन्दू धर्म में कुछ भी बिना कारण के नहीं होता था। उज्जैन पृथ्वी का केंद्र माना जाता है, जो सनातन धर्म में हजारों सालों से मानते आ रहे हैं।
इसलिए उज्जैन में सूर्य की गणना और ज्योतिष गणना के लिए मानव निर्मित यंत्र भी बनाये गये हैं करीब 2050 वर्ष पहले और जब करीब 100 साल पहले पृथ्वी पर काल्पनिक रेखा (कर्क) अंग्रेज वैज्ञानिक द्वारा बनायी गयी तो उनका मध्य भाग उज्जैन ही निकला।
आज भी वैज्ञानिक उज्जैन ही आते हैं सूर्य और अन्तरिक्ष की जानकारी के लिये।
ज्योति
एम0ए0, साहित्याचार्य, व्याख्याता लखनऊ
विश्वविद्यालय, लखनऊ
वायव्य ( North-West ) और प्राण || मुख्य प्राण || उपप्राण
वस्तुरहस्यम् का प्राक्कथन || Summary To Vasturashyam
अत्यंत ज्ञान वर्धक, आप को प्रणाम
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