हस्त सामुद्रिक रहस्यम्: सम्पूर्ण हस्त रेखा ज्ञान (ब्रह्म विद्या)
हस्त- सामुद्रिक रहस्यम्
ब्रह्म विद्या (रेखा)
आयुः कर्म च वित्तं च विद्या निधनमेव च |
पञ्चैतान्यापि सृज्यन्ते गर्भस्थस्यैव देहिनः ||
अर्थात् आयु, कर्म, धन, विद्या और मृत्यु ये पञ्च गर्भ में ही जातको को विधाता दे देते है |
हस्त रेखा विज्ञान का वास्ताविक नाम सामुद्रिक शास्त्र है | इसके दो भेद माने जाते है, उनमे से प्रथम भाग हाथ, अंगुली और हथेली आदि की बनावट है और दूसरा मणिबंध और मस्तक रेखा आदि पर पड़ीं रेखाओं का ज्ञान है | सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार चार प्रकार के पुरुष होते है-
अथ शशकादितुर्यपुरुषाणां जीवन चरित्राणि :- 1. शशक पुरुष सुन्दर सुविचार से युक्त ६ फिट से उपर के होते थे, 2. मृग सुडौल सुन्दर सद्विचार से युक्त ६ फिट के होते है, ३.तुरंग पुरुष माध्यम विचार और सुन्दर ५ /३० के होते है और ४.बृषभ पुरुष (अधम पुरुष) जो बहुसख्यक सामान्य सकल, अधम विचार वाले ५ - ५ 1/2 फिट के आस पास होते है |
चित्रिणी विरला देवि , पद्मिनी चाऽतिदुर्लभा |
रोमवदहस्तिनी ज्ञेया विश्वारुपा च शंखिनी ||
अथ पद्मिन्यादितुर्यमहिलानां जीवन चरित्राणि :-
नारी के रुप प्रकार, भेद, गुण और लक्षण के आधार पर १३ प्रकार के होती है | प्रमुख चार प्रकार की होती है | १. पद्मिनी जाति की स्त्री सुडौल, धर्मपरायण, सुशील, अति सुन्दर तथा सेवा करने वाली होती है | २. चित्रिणी जाति की स्त्रियाँ सुडौल, पतिव्रता , सौभाग्यवती कोमल स्वभाव तथा आनंदमयी वाली होती है | ३. हस्तिनी जाति की स्त्रियाँ का स्वभाव प्रत्येक पुरुषों के अनुकूल होती है | इसमें भोग - विलास से युक्त, हँसमुख आकर्षण युक्त शरीर वाली होती है और ४. शंखिनी स्त्रियाँ चाल-चलन सबसे अलग, बेडौल, सर्वदा अप्रसन्न, कामी आदि प्रवृत से युक्त अधम जाति की होती है | चार प्रकार की स्त्रियों का जीवन चरित्र है | इन सभी में कई भेदोपभेद है |
मेलापक विचारः
पद्मिनी शशयोर्योगश्चित्रिणीमृगयोः शुभः |
हस्तिन्याः वृषभ स्येवं शंखिनीवाजिनोरपि ||
चित्रिणीनां चतसृणां चतुर्भिस्तु मृगैः सह |
संऽगमः क्रमशो बोध्यः सुधीभिः परमोत्तमः ||
दम्पत्योरुक्त शकृत्स्नंक्रमभेदे च मध्यमम् |
हस्तिनी शङखिनीनाञ्च वृषभैस्तुरगैः सह ||
पूर्ववत् सुखसन्तानधनधान्यादिकंं भवेत् |
जाति सम्बन्धभिन्नत्वे नेष्टो योगो बुधैः स्मृतः ||
विवाह के लिए मेलापक - पद्मिनी और शशक, चित्रिणी और मृग, हस्तिनी और वृषभ, शंखिनी और तुरंग-अश्व के योग उत्तम कहते है |
स्त्रियो वामकर वामे स्वहस्ते न्यस्य वीक्ष्यते |
नरः स्त्रीप्रकृतिस्तत्करो वीक्ष्यते बुधैः ||
दक्षिणाद् बलवान् वामः पुंसः स्त्रीशीलशालिनः |
नृशीलायाः स्त्रियो वामाद् दक्षिणो बलवान् भवेत् ||
अर्थात् स्त्री या स्त्री स्वभाव वाले जातको के बाए हाथ को देखना चाहिए | तथा पुरुष स्वभाव वाली स्त्री पुरुष का दाहिना हाथ अधिक बलवान होता है |
सामुद्रिक शास्त्र में स्त्री-पुरुष दोनों में सामुद्रिक शास्त्र में हाथों को बनावट के आधार पर सात सात प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है ;- १ प्रारंभिक अथवा अविकसित हाथ, २. वर्गाकार अथवा व्यवसायिक हाथ, ३. दार्शनिक अथवा गठीला हाथ, ४. चमचाकार अथवा चपटा हाथ, ५. नुकीला अथवा कलात्मक हाथ, ६.बौद्धिक अथवा आदर्शवादी हाथ, ७. मिश्रित हाथ और आठवा भी होता है जो ८. अति विदग्धन हाथ | इन रेखाओं को देखकर भाग्य, भविष्य, विवाह, विद्या, स्वभाव तथा विचारों को भी भली भांति बताया जा सकता है :--
१. प्रारंभिक अथवा अविकसित हाथ - अविकसित हाथ वालें जातक असभ्य और मुर्ख होता है | वह किसी से ठीक ढंग से बात न करेगा | मंद बुद्धि, दुराचारी तथा नीच विचार इस हाथ वाले जातक को जन्म से प्राप्त होता है | बचपन से चोरी या अन्य दुष्कर्म करना इस हाथ वालों की प्रवृति होती है | संघर्ष पूर्ण जीवन व्यतीत करता है |
२. वर्गाकार अथवा व्यावसायिक हाथ - इस हाथ की अंगुलियाँ ऊपर से पतली होती है | व्यावसायिक हाथ वाला जातक चंचल, अस्थिर विचार, बढ़ा-चढ़ा कर बताने वाला और कला प्रेमी अर्थात् कुछ भी सीखने का प्रेमी होता है | ये विषय वास्तु को तुरन्त समझ लेते है परन्तु हर कार्य में शीघ्रता करने का विचार उसके मन में बना रहता है | ये भी संघर्ष पूर्ण जीवन व्यतीत करते है | ये जातक क्रोधी और भेद भाव पर ध्यान देने वाला भी होता है |
३.दार्शनिक अथवा गठीला हाथ- ये हाथ प्रायः लम्बा और गठीला होता है |इस हाथ की आगुलियाँ गठीली तथा जोड़ बहुत सुन्दर होते है हथेली में गढ़ा और अंगुलियाँ टेढ़ी-हो सकती है | ये धार्मिक, विद्वान और दार्शनिक विचारों का प्रतिनिध करते है | ये स्वभाव से गंभीर, इनका विचार किसी से भी नही मिलते |अपने विचारों को स्वतंत्रता तथा निर्भीकता से दूसरों पर प्रकट करना उसका स्वभाव होता है | दार्शनिक हाथ वाले जातक विशवास सब पर नही करते है |
४. चमचाकार अथवा चपटा हाथ- चमचाकार हाथ की अंगुलियाँ टेढ़ी- मेढ़ी, हाथ लम्बा, हथेली लम्बी, अंगूठा गठीला होता है ये ज्यादा परिश्रम करने वाला काम पसंद करते है |ऐसे जातक आमतौर पर क्रोध कम करते है | चपटे हाथ वाले जातक किसी के दबाब में रहना पसंद नही करते | केवल अपने काम में लगे रहते है |
५. नुकीले अथवा कलात्मक हाथ - ऐसे हाथ वाले जातक का जीवन उतर-चढ़ाव से युक्त सामान्य चलता है हाथ छोटा या माध्यम रहता है थोडा अंगुली टेढ़ी या झुका रहता है ऐसे हाथ वाल्व जातक का ह्रदय सदैव कल्पना की ऊची उड़न भाडा रहता है |हाथ की अंगुलियाँ ऊपर से पतली तथा निचे से क्रमशः मोटी होती जाती है |नुकीले हाथ वाले जातक कभी भी अच्छा व्यापारी नही बन पाते |क्योकि आलसी प्रवृति होने के कारण ये किसी भी काम में सफल नही होता है |
६. बौद्धिक अथवा आदर्शवादी हाथ - ऐसे हाथ वाले जातक का मानसिक और आध्यात्मिक पक्ष उत्तम श्रेणी के होते है | ये हाथ कम चौड़े, पतले ओए लम्बे तथा असमान बनावट वाले होते है | ऐसे हाथ वाले जातक की अंगुली पतली, लम्बी तथा कुछ नुकीली होती है |अंगूठे भी प्रायः छोटे और पतले होते है |ऐसे हाथों पर प्रथम दृष्टि पड़ते ही जातक के बौद्धिक विकास तथा अपरिश्रमी स्वभाव की छाया स्पष्ट हो जाति है | इस हाथ में लगन दृढ़ता और परिश्रम करने की शक्ति का आभाव होने के कारण इन जातक अवस्थिति होते है | यदि हथेली कठोर होती है तो इनकी सफलता की संभावना अधिक प्रबल होती है |
७. मिश्रित हाथ- मिश्रित हाथ वाले जातक स्वभाव से संदेही होते है | किसी भी व्यक्ति की बात पर ये जल्दी विश्वास नही करते है | इस हाथ में दार्शनिक, आदर्शवादी तथा व्यवसायिक हाथ के लक्ष्ण देखने को मिलता है | ये हाथ किसी विशेष आकृति का न होकर मिश्रित रुप लिए रहता है | हाथ की अंगुली के निकास स्थान के पास बहुत उठी हुई तथा चपटी होती है | इस हाथ के निचले भाग पर छोटी-छोटी लकीरें भी होती हैं जो चन्द्र स्थान के ऊपर के भाग में फैली हुई रहती है |
८. अति विदग्धन हाथ- ऐसे हाथ वाला जातक शीघ्र ही लोगों का सम्मान प्राप्त कर लेता है | इस हाथ की बनावट बहुत ही रोमांचकारी होती है | यह हाथ प्रायः लंबा और चौड़ा होता है | ये जातक कर्म प्रधान और स्वार्थ प्रधान होता है | अतिविदग्ध हाथ वाला जातक किसी किसी दुसरे जातक के झासे को समझने में बहुत चतुर होता है और अच्छा या बुरा भी समझ लेता है | परन्तु मस्ती में रहता है |
हाथ में राजयोग
क्षत्रं तामरसं धनू रथवरो जम्भोऽलि कूर्माङ्कुशाः
वापीस्वस्तिक तोरणानि चमरः पञ्चाननः पादपः |
चक्रं शङ्ख गजौ समुद्र कलशौ प्रासाद मत्स्यौ यवः
यूप स्तूप कमण्डलून्य वनिभृत् सच्चामरो दर्पणः ||
उक्ष पताका कमलाभिषेकम्, सुदाम- केकी- धनु पुण्य भाजाम् ||
सामुद्रिक शास्त्र में दो विषय है लक्ष्ण और रेखा | रेखाओं के प्रधान तीन स्थान है | कर, कपाल और चरण | भूत, वर्तमान और भविष्य इससे जन्मकालिक परिस्थिति का भी ज्ञान हो जाता है | परन्तु दैवज्ञ को सिद्धहस्त रेखाविज्ञान में होना जरूरी है वैसे सभी अपने आप को .. सिद्ध हस्त .समझते है .? | क्योकि अत्यंत गूढ़ विषय है | आपके हाथ में समय समय पर छोटी-छोटी रेखाओं का उदय होने लगता है जो थोड़े ही भेद से फलश्रुति में काफी अंतर कर देता है | मनुष्य के हाथ की बनावट से उसकी रूचि, स्वभाव, चरित्र तथा उसके अन्दर की शक्ति की विस्तृत जानकारी प्राप्त हो सकती है | प्रत्येक जातक का हाथ एक-दुसरे जातक के हाथ से अलग-अलग होता है |
हस्त ज्योतिष मूलतः हाथ की रेखाओ पर निर्भर करता है | मनुष्य के जीवन में हाथ की रेखाओं का बहुत महत्व होता है | हाथ की रेखाओं में विभिन्न लक्षण जैसे क्रॉस, सितारे , वर्ग, अर्धचंद्राकार, त्रिकोण, चतुर्भुजम्, यव, त्रिशूलं, पतली रेखा और उर्ध्वगामी रेखा इत्यादि चिन्ह जातक की विभिन्न परिस्थितियों चार पुरुष वर्ग चार स्त्री वर्ग तथा सात प्रकार के हाथों पर भविष्य की संभावनाओ से अवगत कराते हैं |
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अथ करतले दिगज्ञानम्
पूर्वाशा करशाखासु मणिबन्धे पश्चिमा करभप्रदेशे दक्षिणाऽङ्गुष्ठान्तिके चोत्तरा दिग्भवतीति |
अथ ग्रह स्थानज्ञानम्
कनिष्ठाऽनामिकामध्यमातर्जनीमूलेषु क्रमाद्बुधरविशनिगुरुस्थानान्यङगुष्ठमूलोच्चस्थाने
भृगोः स्थानं भौमस्य स्थाने द्वे प्रथमं गुरुशुक्रयोरन्तराले द्वितीयं त्वायुर्मातृरेखयोर्मध्ये चन्द्र स्थाने च करभप्रदेशस्थमातृरेखामारभ्य मणिबन्धपर्यन्तं भवतीति |
अथ राशिस्थानज्ञानम्
तर्जनी प्रथमे पर्वणि मेषः, द्वितीये वृषस्तृतीये मिथुनं एवं मध्यमायाः प्रथमे मकरः, द्वितीये कुम्भः, तृतीये मीनः, अनामिकायां क्रमशः पर्वसु कर्कसिंहकन्याः कनिष्ठापर्वसु तुलावृश्चिक धनस्थानानीति राशिस्थानानि |
अथ रेखावर्ण मुखज्ञानम्
उक्तानुक्तसमस्तरेखाः श्वेतरक्तपीतकृष्णाः स्थूलाः कुशाग्राः छिन्नभिन्नाद्यनेकरूपाः भवन्ति तत्फलन्तु फलप्रसङ्गें वक्ष्यामः |
अथ भाग्यरेखा मान ज्ञानम्
भाग्य रेखा यदि मातृ रेखा सलंग्न स्याच्छुभा तन्मानं ३५ वर्ष परिमाणं तदधो ऽनुमानात्द्वर्षप्रमाणं ज्ञेयम् | यस्य एव मातृ- रेखारभ्यभ्याऽऽयु रेखान्तं यावत् म५५ वर्ष परिमाणमायुरेखामारभ्य मध्यमा मूलपर्यन्तं शतवर्षपरिमाणं भवतीति |
अथ रेखा दर्शन नियमान्तरञ्च
महाप्रत्यूषे संध्यायां निशीथे मध्यान्हे हास्यसदसि प्रयाणरथे मार्गे लिपिमन्तरा फल पुष्प मुद्राग्रहणं बिना रेखावलोकनं न कर्त्तव्यम् | देवानां प्रियसंनिधौ पण्डित शौंण्डान्तिके वराटकानां समीपे च रेखा द्रष्टव्येति | सुदर्शनाः स्निग्धशोभनदशनाः युवानो विहसितवदनश्चेत्तर्हि सुखेन रेखा द्रष्टव्येति |
अथ रेखालङ्घन विचारः
समानरेखा खलु समाना लंघिता न भवति | यथा पुण्यया लंघिते अप्यायुष्य मातृरखे छिन्ने नोच्यते | तथैव भाग्यया मात्रायुष्यरेखे अति छिन्ने नोच्येते इत्यादि ज्ञातव्य मिति |
मस्तिष्क रेखा -
मस्तिष्क रेखा का आरंभ तर्जनी उंगली के नीचे से होता हुआ हथेली के दूसरे तरफ जाता है जब तक उसका अंत न हो । ज्यादातर, यह रेखा जीवन रेखा के आरंभिक बिन्दु को स्पर्श करती है। यह रेखा व्यक्ति के मानसिक स्तर और बुद्धि के विश्लेषण को, सीखने की विशिष्ट विधा, संचार शैली और विभिन्न क्षेत्रों के विषय मे जानने की इच्छा को दर्शाती है|
हृदय रेखा
हृदय रेखा कनिष्ठा उंगली के नीचे से हथेली को पार करता हुआ तर्जनी उंगली के नीचे गुरु पर्वत पर समाप्त होता है। यह हथेली के उपरी हिस्से में उंगलियों के ठीक नीचे होती है। यह हृदय के प्राकृतिक और मनोवैज्ञानिक स्तर को दर्शाती है। यह रोमांस कि भावनाओं, मनोवैज्ञानिक सहनशक्ति, भावनात्मक स्थिरता और अवसाद की संभावनाओं का विश्लेषण करने के साथ ही साथ हृदय संबंधित विभिन्न पहलुओं की भी व्याख्या करती है। ह्रदय रेखा का अपना विशिष्ट स्थान है | ऐसा जातक धार्मिक, न्यायाधीश, प्रोफ़ेसर, धर्म का ज्ञाता, पुजारी, राजनेता होकर सदैव प्रशन्न रहने वाला होगा | परन्तु हृदय रेखा यदि शनि पर्वत पर मुड़ जाए तो जातक निर्दयी होगा या बहुत ही दयावान होता है क्योंकि शनि मोक्ष का भी कारक है | हृदय रेखा का मिलन यदि मस्तिष्क हो जाए तो जातक मन के अनुसार चलते है और घर का जिम्मेदारी उठाता है | हृदय अशुभ टूट जाए तो कपटी, घमंडी, कठोर, मानसिक तनाव या पागल होता है |
जीवन रेखा-
जीवन रेखा अंगूठे के आधार से निकलती हुई, हथेली को पार करते हुए वृत्त के आकार मे कलाई के पास समाप्त होती है। यह सबसे विवादास्पद रेखा है। यह रेखा शारीरिक शक्ति और जोश के साथ शरीर के महत्वपूर्ण अंगों की भी व्याख्या करती है। शारीरिक सुदृढ़ता और महत्वपूर्ण अंगों के साथ समन्वय, रोग प्रतिरोधक क्षमता और स्वास्थ्य का विश्लेषण करती है।
भाग्य रेखा-
भाग्य रेखा कलाई से आरंभ होती हुई चंद्र पर्वत से होते हुये जीवन रेखा या मस्तिष्क या हृदय रेखा तक जाती है। यह रेखा उन तथ्यों को भी दर्शाती जो व्यक्ति के नियंत्रण के बाहर हैं, जैसे शिक्षा संबंधित निर्णय, कैरियर विकल्प, जीवन साथी का चुनाव और जीवन मे सफलता एवं विफलता आदि।
सूर्य रेखा-
सूर्य रेखा को सफलता की रेखा या बुद्धिमत्ता की रेखा के नाम से भी जाना जाता है। यह रेखा कलाई के पास चंद्र पर्वत से निकलकर अनामिका तक जाती है। यह रेखा व्यक्ति के जीवन में प्रसिद्धि, सफलता और प्रतिभा की भविष्यवाणी करती है।
स्वास्थ्य रेखा- स्वास्थ्य रेखा को बुध रेखा के बगल में मंगल पर्वत तक जाता है । यह कनिष्ठा के नीचे बुध पर्वत से आरंभ हो कर कलाई तक जाती है। इस रेखा द्वारा ला ईलाज बीमारी को जाना जा सकता है। इसके द्वारा व्यक्ति के सामान्य स्वास्थ्य की भी जानकारी मिलती है ये क्षैतिज रेखाएं कलाई हथेली पर ह्रदय रेखा टूट रही हो या फिर जंजीर बना हो, नाखूनों पर खड़ी रेखाए बन गई हों तो ऐसे व्यक्ति को ह्रदय सम्बन्धी शिकायतें, रक्त शोधन में अथवा रक्त संचार में व्यवधान पैदा होता है | यदि जातक का चन्द्र कमजोर हो तो उसे शीतकारी पदार्थ यथा- धी,मट्ठा, छाछ, मिठाई और शीतल पेयों से दूर रहना चाहिए | इसी तरह मंगल अच्छा न हो तो मसालेदार भोजन से बचे, तली, भुना, पराठे इत्यादि से भी परहेज रखना चाहिए | पेट की खराबी से शरीर में गर्मी बढ़ जाती है और फिर इसी वजह से रक्त विकार पैदा होते है, जो आगे चलकर कैंसर का रुप तक अख्तयार कर सहते हैं | जिस व्यक्ति के हाथ का आकार व्यावहारिक हो और साथ ही व्यावहारिक चिन्हों वाला हो तो ऐसा जातक अपने जीवन में काफी नियमित रहता है | ऐसा जातक वृद्धावस्था में भी स्वस्थ रहता है | इसी य्ढ़ विशिष्ट बनावट के हाथ या कोणीय आकर के साथ, जिसमें चन्द्र और मंगल पर शुक्र का अधिपत्य हो तो ऐसे लोग स्वादिष्ट भोजन के शौक़ीन होते है | शुक्र प्रधान होनेके कारण भोजन का समय नियमित नहीं रहता है | ऐसे में उदर विकार स्वाभाविक ही है | इस पर यदि ह्रदय रेखा मस्तिष्क रेखा और मंगल राहू अच्छे ण हों तो रक्त जनित रोगों की आशंका बढ़ जाति है | हस्तरेखा देखकर कैंसर की पूर्व चेतावनी दि जा सकती है और इस जानलेवा बीमारी के संकेत चिन्ह जगह और जीवन रेखा से किस अवस्था में होगा | कुछ महीना पहले ये अशुभ चिन्ह प्रवेश करता है | जीवन रेखा पर टूट रहता है | सहयोगी रेखा न हो तो मृत्यु निश्चित रहता है |
और हृदय रेखा के बीच हथेली के विस्तार पर स्थित है। यह रेखाएं व्यक्ति की यात्रा की अवधि की व्याख्या, यात्रा में बाधाओं और सफलता का सामना तथा यात्रा मे व्यक्ति के स्वास्थ्य की दशा को भी दर्शाती है।
विवाह रेखा
क्षैतिज रेखाएं कनिष्ठा के बिल्कुल नीचे और हृदय रेखा के ऊपर स्थित विवाह रेखाएं होती है यह रेखाए चार -चार प्रकार के स्त्री पुरुष और सात प्रकार के हाथो में एक ही जैसा फल नही मिलता है | जितने रेखा उतने विवाह ये केवल बृषभ पुरुष और शंखिनी स्त्री में १०० % देखा जा रहा है | यह रेखाएं रिश्तों में आत्मीयता, वैवाहिक जीवन में खुशी, वैवाहिक दंपती के बीच प्रेम और स्नेह के अस्तित्व को दर्शाता है। विवाह रेखा का विश्लेषण करते समय शुक्र पर्वत और हृदय रेखा को भी ध्यान मे रखना चाहिये।
करधनी रेखाएं
करघनी रेखा का आरम्भ अर्धवृत आकर में कनिष्ठ और अनामिका के मध्य में और अन्त मध्यमा अँगुली और तर्जनी पर होता है | यह व्यक्ति को अति संवेदनशील और उग्र बनाती है | जिन व्यक्तियों में शुक्र रेखा पाई जाति है वह व्यक्ति की डिहरी मानसिकता को दर्शाता है |
१. देवों का स्थान विशेष का निर्णय हो जाने के अनन्तर अब पर्वत के प्रवृति अनुसार फलादेश बनने और स्थानों का औचित्य अनौचित्य पहचानने की विधियाँ | हाथ की प्रत्येक अंगुली में एक-एक देवता वास करते है जिस जातक के हाथ में जिन देवता का मजबूती रहेगा उन देवता का स्वभाव और विचार जातक में प्रवेश करता है | जिसके अनुसार उस देवता का फल जातक को मिलता है | जिन अँगुलियों का स्थान पर्व उठा हुआ होता है | उन्हें शुभ लक्षणों में और उन्नतिशील माना जाता है |
१. तर्जनी अंगुली - बृहस्पति - बुद्धि, वाद-विवाद, लेखन, प्रवीणता, मंत्री पद तथा आपका प्रभाव जानने की शक्ति, जिस जातक के तर्जनी अंगुली और पर्व दोनों सुडौल और स्वच्छ होने से बृहस्पति देवता प्रशन्न रहते उत्तम जीवन जीते है ;- यस्य बृहस्पति स्थाने कमलं सः धनि यशस्वी |
२. माध्यम अंगुली का स्थान शनि देवता के अधिकार में रहता है | शनि से नौकरी, नीच प्रवृति, चिन्ता, गंभीरता, रुखापन, दूसरो से व्यर्थ कलह, षड्यंत्र इत्यादि | अंगुली सुन्दर और सुडौल रहने से लाभकारी सिद्ध होती है | यहाँ चक्र चिन्ह होने से समाजसेवी होते है | शनि जातक को नौकरी या जीवकोपार्जन में विशेष सहयोग करते है | शनि अगर प्रबल है तो जातक में चिड़चिडे़ स्वभाव का हो जाता है | उसमे सहन शक्ति कम होती है | जिस जातक का शनि मजबूत होगा वह प्रायः क्रूर स्वभाव वाला होगा | शनि रेखा को ही भाग्य रेखा कहते है | मध्यमा अंगुली के नीचे शनि पर्वत का स्थान है | यह पर्वत बहुत भाग्यशाली मनुष्यों के हाथों में ही विकसित अवस्था में देखा गया है | शनि की शक्ति का अनुमान मध्यमा की लम्बाई और गठन में देखकर ही लगाया जा सकता है, यदि वह लम्बीं और सीधी है तथा गुरु पर्वत है तो मनुष्य के स्वभाव और चरित्र में शनि ग्रहों के गुणों की प्रधानता होगी | ये गुण है- स्वाधीनता, बुद्धिमत्ता, अध्ययनशिलता, गंभीरता, सहनशीलता, विनम्रता और अनुसंधान तथा इसके साथ अंतर्मुखी, अकेलापन | शनि के दुर्गुणों की सूचि भी छोटी नहीं है, विषाद नैराश्य, अज्ञान,ईर्ष्या, अंधविश्वास आदि इसमें सम्मिलित है | अतः शनि ग्रह से प्रभावित मनुष्य के शारीरिक गठन को बहुत आसानी से पहचाना जा सकता है | ऐसे मनुष्य कद में असामान्य रुप में लम्बे होते है, उनका शरीर सुसंगठित लेकिन सर पर बाल कम होते है | लम्बे चहरे पर अविश्वास और संदेह से भरी उनकी गहरी और छोटी आँखे हमेशा उदास रहती है | यद्यपि उत्तेजना, क्रोध और घृणा को वह छिपा नहीं पाते | इस पर्वत के आभाव होने से मनुष्य अपने जीवन में अधिक सफलता या सम्मान नहीं प्र्राप्त कर पाता | मध्यमा अंगुली भाग्य की देवी है | भाग्यरेखा की समाप्ति प्रायः इसी अंगुली की मिलन में होती है | पूर्ण विकसित शनि पर्वत वाला मनुष्य प्रबल भाग्यवान् होता है | ऐसे मनुष्य जीवन में अपने प्रयत्नों से बहुत अधिक उन्नति प्राप्त करते है | शुभ शनि पर्वत प्रधान होंने से तथा अन्य ग्रहों के संयोग से जातक, इंजीनियर, वैज्ञानिक, जादूगर, साहित्यकार, ज्योतिषी, कृषक अथवा रसायन शास्त्री होते है | अगर शनि पर्वत शुभ हो तो स्त्री - पुरुष प्रायः माता पिता के अकेले होते है | उनके जीवन में प्रेम का सर्वोपरि महत्त्व होता है | वे स्वभाव से संतोषी और कंजूस होते है | अविकसित शनि पर्वत होने पर मनुष्य एकांत प्रिय अपने कार्यों
अथवा लक्ष्य में इतना तन्मय हो जाते है |
योग- रेखाश्रितो योगयुक्तो नरः मंद-जीव प्रदेशः समुच्चो रवेः |
शुद्धरेखा स योगी शनिस्थानगम्, स्यात्त्रिकोणं तदा योगयुक् पूज्यते ||
अर्थात् शनि और गुरु पर्वत पर उन्नत और सूर्य रेखा शुद्ध हो तो योगी, सन्यासी या इस प्रवृति वाले होकर गौरव प्राप्त करते है | अगर अशुद्ध हो तो उस वेशभूषा का दुरुपयोग करते है |
३. अनामिका अंगुली - के नीचे सूर्य देवता का स्थान रहता है | यश, कीर्ति, सफलता, आशा, फल प्राप्ति, देश-विदेश में प्रसिद्धि, संसार में अपने कार्यों से सूर्य के समान प्रभावित करे | ये पर्व सुसंपन्न हो तो सब कुछ प्राप्त करेगे | सूर्य पर्वत पर रेखा को विद्या- रेखा बताते है | अनामिका अंगुली कुछ लम्बी होगी तो जातक सौन्दर्य-प्रिय तथा यशस्वी होते है :-
अनामिकायाः प्रथमाद्धि पर्वणः तृतीपर्वावधिभाग्य रेखिका |
विशुद्धरूपेण प्रयाति चेत्तदा नरः समीचीनपदं स विन्दति ||
४. कनिष्ठिका अंगुली के नीचे बुध देव पर्व होता है | बुध से मानसिक विचार, व्यापार, विज्ञान, और धन आदि | ये अंगुली जितनी लम्बी होगी उतनी ही कला कुशल, भाषण या राजनीति में सफल माने जाते है और इनकी बात सभी लोंग मानते भी है | बुध, गुरु और सूर्य पर्व की प्रधानता जातक के बहुमुखी विकास का आधार होती है | यह सफल वकील, डॉ, साहित्यकार, नेता, अभिनेता भी हो सकता है ➖
गुरोर्बुधस्यापि रवेस्तथोच्चैः स्थानं समुत्थाय पितुस्ततोर्ध्वा |
गुरोर्गृहंं याति जनः सुविद्यापारङ्गतः संल्लभते प्रतिष्ठाम् ||
१. चन्द्र देवता का पर्व अंगूठे के सामने वाले स्थान पर रहता है | चन्द्र से नवीनता, शीतलता, विचार परिवर्तन, विचारधारा और स्वभाव का विचार किया जाता है | ये जगह जितनी उच्च और सुसंपन्न रहता है उतने प्रशन्न जीवन जीते है |
२. शुक्र देवता का पर्व अगुठे के नीचे होता है | शुक्र से साहस,चैतन्यता, वीरता तथा संघर्ष का विचार किया जाता है |इससे जातक का स्वास्थ्य यथा वीर्य शक्ति का अनुमान लगाया जाता है | किसी स्त्री- पुरुष के प्रेम के बारे में पाता लगाने के लिया उस जातक के मुख्य रुप से शुक्र पर्वत, ह्रदय रेखा को विशेष रुप से देखा जाता है | इन्हें देखकर किसी भी व्यक्ति या स्त्री का चरित्र या स्वभाव जाना जा सकता है | शुक्र पर्वत अधिक उठा हुआ होता है | उन व्यक्तियों का स्वभाव स्त्री प्रधन होता है | तथा सर्व सुख से युक्त रहते है |
३. मंगल देवता .तलहती के मध्य में मंगल स्थान है राहू के दिनों तरफ होता है | मंगल से प्रेम, भूमिपति,बहु धन-धन्य प्राप्ति की लालच, अधिक्स्त्रियों का सहवास देखा जाता है |
ललाटे लिखितं धात्रा रेखा चिह्नं शुभाऽशुभम् |
यद् ज्ञात्वा पुरुषो लोके त्रिकालज्ञो भवेद् ध्रुवम् ||
यत्र यत्राङ्किता रेखा प्रयुक्ताः सुंदर कृतिः |
तत्र तत्रापि विज्ञेयाः पुत्र-दार सहोदराः ||
सामुद्रिक शास्त्र में दो विषय है - लक्षण तथा रेखा | लक्षण से रेखा प्रधान मानी जाती है ब्रह्म विद्या का प्रपंच गुण-दोष से मिला हुआ है यथा- जन्म-मरण, हानि-लाभ, यश- अपयश, शत्रु- मित्र, दिन-रात इत्यादि | एक के अंत में दुसरे का उदय हुआ करता है | जैसे मनुष्यों को सुख के बाद दुःख और दुःख के बाद सुख का होना भी स्वाभाविक है | जिनके दाहिने हाथ पर चन्द्र पर्वत पर तारे का चिन्ह और शनि पर्वत स्वस्थ होने से धन का लाभ मिलता है | तथा जिनके बुध रेखा चन्द्र पर्वत पर चले जाय उस परिस्थिति में भी धनागम होता है |
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