सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

Khud Janiye Kundli Se Vivah Ki Jaankari - कुण्डली से विवाह विचार By Astrologer Dr. S. N. Jha

Khud Janiye Kundli Se Vivah Ki Jaankari

कुण्डली से विवाह विचार By Astrologer Dr. S. N. Jha

Khud Janiye Kundli Se Vivah Ki Jaankari - कुण्डली से विवाह विचार By Astrologer Dr. S. N. Jha

अष्ट कूट और अमांगलिक दोष (खराब कुंडली ) निवारण –

 मांगलिक का अर्थ होता शुभ I विवाह संस्कार अगर भारतीय संस्कृति और समाजिक संस्कार से संपन्न होने पर वैवाहिक जीवन 90% सफलतम व्यतीत करते है I गणितीय पद्धति ( मिलान ) से विवाह करने से आपका वैवाहिक जीवन तभी सफल होगा I

जब अष्ट कूट मिलान से 10% मात्र+ नवांश और त्रिशांश से मिलान पर 80 % और शेष ईश्वरीय शक्ति से 10 % आप वैवाहिक जीवन जी पायेगे I 


अष्ट कूट (कुण्डली) मिलान

ये मिलान केवल विवाह ही के लिए नही है ?

मित्रता, व्यवसाय साथी, नौकर आदि भी दों के बीच सम्बन्ध देखने के लिए आगे कैसा और किस प्रकार चलेगा I  

 

वर्णो वश्यं तथा तारा योनिश्च ग्रह मैत्रकम्।

गणमैत्रं भकूटं च नाड़ी चैते गुणाधिका ।।

कुंडली मिलान में अष्टकूट मिलान ही काफी नहीं है। मंगल दोष भी देखना जरुरी है, फिर लग्न, सप्तम भाव, सप्तमेश, सप्तमस्थ ग्रह, सप्तम और सप्तमेश को देख रहे ग्रह सप्तम भाव का कारक ग्रह और सप्तमेश की युति आदि भी देखी जाती है। विवाह मानव जीवन का सबसे महत्वपूर्ण संस्कार है I

 

  इस संस्कार मे बंधने से पूर्व वर एवं कन्या के जन्म नामानुसार गुण मिलान करने की परिपाटी है I विवाह पूर्व कुंडली मिलान या गुण मिलान को अष्टकूट मिलान या मेलापक मिलान कहते हैं। इसमें लड़के और लड़की के जन्मकालीन ग्रहों तथा नक्षत्रों में परस्पर साम्यता, मित्रता तथा संबंध पर विचार किया जाता है। 

 

शास्त्रों में मेलापक के 2 भेद बताए गए हैं। एक ग्रह मेलापक तथा दूसरा नक्षत्र मेलापक। इन दोनों के आधार पर लड़के और लड़की की शिक्षा, चरित्र, भाग्य, आयु तथा प्रजनन क्षमता का आकलन किया जाता है। नक्षत्रों के 'अष्टकूट' तथा 9 ग्रह (परंपरागत) इस रहस्य को व्यक्त करते हैं। अष्टकूट मिलान में वर्ण, वश्य, तारा, योनि, राशीश (ग्रह मैत्री), गण, भकूट और नाड़ी का मिलान किया जाता है। अष्टकूट मिलान ही काफी नहीं है। 

कुंडली में मंगल दोष भी देखा जाता है, फिर सप्तम भाव से विवाह देखा जाता है और द्वितीय भाव को स्व (अपना) भाव भी कहा जाता है वैवाहिक सुख इसी भाव से, सामान्य सुख चतुर्थ भाव से, सप्तमेश, सप्तम भाव में बैठे ग्रह, सप्तम और सप्तमेश को देख रहे ग्रह और सप्तमेश की युति तथा अष्टम भाव से आयु आदि देखी जाती है। 

परन्तु जातक का स्वभाव सबसे सही विचार नवांश कुंडली और त्रिशांश कुण्डली देखने के बाद ही आप किसी भी जातक के विवाह के लिए आदेश दे सकते है I इस पर विस्तृत विचार अगले अंक में इस पर दिया जा रहा है I आप समझने में थोड़ा भी कोताही करेगे तो दोनों बच्चे का जीवन नर्क हो जायेगा I

वर्ण - Varna Kya Hota Hai?

 वर्ण का अर्थ होता है स्वभाव और रंग। वर्ण चार होते हैं- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। अपने वर्ण में विवाह करने से जीवन में कष्ट तो आएगी I परन्तु अलगाव नही होगा I दुसरे वर्ण में विवाह करने से देखा जा रहा है कि ज्यादा से ज्यादा तीन साल तक विवाह संबंध चल पा रहा है I परन्तु वर्त्तमान समय में तो लड़के या लड़की की जाति कुछ भी हो विवाह कर रहे है I 

जिसका प्रभाव जातक को स्वयं, परिवार और समाज पर पड़ रहा है I लेकिन उनका स्वभाव और रंग उक्त 4 में से 1 होगा। कर्क, वृश्चिक और मीन राशियों का ब्राह्मण I मेष, सिंह और धन राशियों का क्षत्रिय I   

वृष, कन्या और मकर राशियों का वैश्य और मिथुन, तुला, कुम्भ राशियां शुद्र वर्ण में आती हैं, वर तथा कन्या के वर्ण से उच्च स्तरीय अथवा समान वर्ण होने पर एक गुण मिलता है यदि दोनो में से कोई भी मिलान नहीं हो तो शून्य गण होगा I 

यदि वर की राशि का वर्ण कन्या की राशि वर्ण से हीन हो परंतु राशि का स्वामी उत्तम वर्ण का हो तो वर्ण मिलान शुभ माना जाता है I 

 

वर का वर्ण वधू से श्रेष्ठ होने की स्थिति में ही वह अपनी वधू को नियंत्रित करने में तथा मार्गदर्शन करने में सफल हो पाता है I मिलान में इस मानसिक और शारीरिक मेल का बहुत महत्व है। यहां रंग का इतना महत्व नहीं है जितना कि स्वभाव का है।

कुण्डली से विवाह विचार - Horoscope & Marriage

वश्य - Vashya Kya Hota Hai?

 वश्य का संबंध भी मूल व्यक्तित्व से है। वश्य पाँच प्रकार के होते हैं- द्विपाद, चतुष्पाद, कीट, वनचर और जलचर। कुंडली में वश्य से यह जाना जाता है कि जातक के जीवन में परस्पर कितना प्रेम और आकर्षण होगा I इसमें 12 राशियों को पाँच अलग-अलग भागों में बाँटा गया है I 

 

मिथुन, कन्या, तुला तथा धनु राशि का 0 से 15 डिग्री तक का पहला भाग, कुम्भ राशि द्विपद है I मेष, वृष, धनु का 15 डिग्री से 30 डिग्री तक का बाद का भाग, मकर का 0 से 15 डिग्री तक का पहला भाग चतुष्पाद में आता है I  कर्क, मकर राशि का 15 से 30 डिग्री तक का बाद का भाग, मीन राशि जलचर में आती है I 

सिंह राशि वनचर में आती है और वृश्चिक राशि कीट मानी जाती है I इस मिलान को 2 अंक प्रदान किए गए हैं I लड़के तथा लड़की का एक ही वश्य होने पर दो अंक मिलते हैं I एक वश्य और दूसरा शत्रु होने पर एक ही अंक मिलता है I एक वश्य और एक भक्षक होने पर आधा अंक मिलता है I 

एक शत्रु और एक भक्षक होने पर कोई अंक नहीं मिलता I जिस प्रकार कोई वनचर जल में नहीं रह सकता, उसी प्रकार कोई जलचर जंतु कैसे वन में रह सकता है I इन वश्यों को भी वर्णों की भाति ही श्रेष्ठता से निम्नता का क्रम दिया गया है I 

वर एवं कन्या की राशियों से उनके वश्य का निश्चय करके फिर उनके स्वभाव के अनुसार उनमे वश्य भाव, मित्र भाव, शत्रु भाव या भक्ष्य भाव पर ध्यान देना चाहिये I

कुण्डली से विवाह विचार - Horoscope & Marriage

तारा - Taara Se Kundli Ka Sambandh

 तारा का संबंध दोनों के भाग्य से है। जन्म नक्षत्र से लेकर 27 नक्षत्रों को 9 भागों में बांटकर 9 तारा बनाई गई है- जन्म, संपत, विपत, क्षेम, प्रत्यरि, वध, साधक, मित्र और अमित्र । तारा मिलान तीसरे स्थान पर आता है I इसके तीन अंक होते हैं I 

इस मिलान में वर तथा कन्या के जन्म नक्षत्रों का एक-दूसरे से आंकलन किया जाता है I वर के नक्षत्र से कन्या के नक्षत्र तक गणना की जाती है I इसी प्रकार कन्या के नक्षत्र से वर के नक्षत्र तक गणना की जाती है I 

दोनो संख्याओं को को अलग - अलग 9 से भाग किया जाता है और शेष में यदि 3, 5 और 7 बचे तो यह अशुभ तारा मानी जाती है I वर-कन्या के दोनों ताराओं में यदि अशुभ तारा हो तो कोई अंक नहीं मिलता I 

एक में तारा शुभ और दुसरे में अशुभ हो तो डे़ढ़ अंक मिलता है और यदि दोनों में तारा शुभ हो तो पूरे ३ तीन अंक मिलते हैं I वर के नक्षत्र से वधू और वधू के नक्षत्र से वर के नक्षत्र तक तारा गिनने पर विपत, प्रत्यरि और वध नहीं होना चाहिए, शेष तारे ठीक होते हैं।

कुण्डली से विवाह विचार - Horoscope & Marriage

योनि - Yoni Kya Hoti Hai?

योनि का संबंध संतान या संभोग से होता है। जिस तरह कोई जलचर का संबंध वनचर से नहीं हो सकता, उसी तरह से ही संबंधों की जांच की जाती है। कुंडली मिलन में योनी मिलन को ४ अंक प्राप्त है I  इससे जातक के स्वभाव तथा व्यवहार में उसकी योनी की झलक अवश्य दिखाई देती है I 

नक्षत्रों के आधार पर व्यक्ति की योनी ज्ञात की जाती है I कई योनियाँ एक-दुसरे की परम शत्रु होती है I यथा-मार्जार (बिल्ली) और मूषक (चूहा ), गौ और व्याघ्र के आपस में शत्रुता है I इनका आपस में कभी भी सही नहीं हो सकता है I 

विभिन्न जीव-जंतुओं के आधार पर 13 योनियां नियुक्त की गई हैं-अश्व, गज, मेष, सर्प, श्‍वान, मार्जार, मूषक, महिष, व्याघ्र, मृग, वानर, नकुल और सिंह। हर नक्षत्र को एक योनि दी गई है। इसी के अनुसार व्यक्ति का मानसिक स्तर बनता है। 

विवाह में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण योनि के कारण ही तो होता है। शरीर संतुष्टि के लिए योनि मिलान भी आवश्यक होता है।

कुण्डली से विवाह विचार - Horoscope & Marriage

राशि या मैत्री - Jaaniye Rashi (Maiytri) Ke Baare Mein

ग्रह मैत्रीं परस्पर संबंधों को स्पष्ट करती है I राशि का संबंध व्यक्ति के स्वभाव से है। लड़के और लड़कियों की कुंडली में परस्पर राशियों के स्वामियों की मित्रता और प्रेमभाव को बढ़ाती है और जीवन को सुखमय और तनावरहित बनाती है, वर तथा वधु की चन्द्र राशियों के स्वामी के आपसि मिलान को ग्रह मैत्री कहा जाता है I 

वर तथा कन्या की चन्द्र राशियों के स्वामी का आपस में मित्र होना आवश्यक है I दोनों के मित्र होने या एक ही राशि होने पर आपस में विचारों में भिन्नता नहीं रहती है I जीवन सुचारु रुप से चलाने में सफलता मिलती है I कलह-क्लेश कम होते हैं I 

दोनों की चन्द्र राशियों के स्वामी यदि आपस में शत्रु भाव रखते हैं तब पारीवारिक जीवन में तनाव रहने की अधिक संभावना रहती है I  इस मिलान को पाँच अंक प्रदान किए गए हैं I वर तथा वधु की एक राशि है या दोनों के राशि स्वामी मित्र है तब पूरे पाँच अंक मिलते हैं I 

यदि एक का राशि स्वामी मित्र तथा दूसरे का सम है तब चार अंक मिलते हैं I दोनों के राशि स्वामी सम है तब तीन अंक मिलते हैं I एक की चन्द्र राशि का स्वामी मित्र तथा दूसरे का शत्रु है तब एक अंक मिलता है I 

एक सम और दूसरा शत्रु है तब आधा अंक मिलता है I यदि दोनों के राशि स्वामी आपस में शत्रु है तब शून्य अंक मिलता है I 

कुण्डली से विवाह विचार - Horoscope & Marriage

गण - Gan Kya Hota Hai?

 गण का संबंध व्यक्ति की सामाजिक स्थिति को दर्शाता है। गण 3 प्रकार के होते हैं- देव, राक्षस और मनुष्य। गण मिलान वर तथा कन्या के जन्म नक्षत्र के आधार पर उनके गणों का निर्धारण किया जाता है I इस मिलान को ‍छह अंक दिए गए हैं I 

इस मिलान का भी अत्यधिक महत्व माना गया है I यदि आपका गण देव है और आपके साथी का गण राक्षस है तब आप दोनों के व्यवहार में बहुत भिन्नता होगी I इसी भिन्नता के कारण आपका तालमेल जमने में परेशानी हो सकती है I 27 नक्षत्रों को तीन बराबर भागों में बांटा गया है I 

इस मिलान में देव गण, मनुष्य गण तथा रा़क्षस गण में 27 नक्षत्रों को बाँटा गया है. एक गण में नौ नक्षत्र आते हैं I देव गण:-इसमें अश्विनी, मृगशिरा, पुनर्वसु, पुश्य, हस्त, स्वाति, अनुराधा, श्रवण, रेवती नक्षत्र आते हैं I मनुष्य गण:-इसमें भरणी, रोहिणी, आर्द्रा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, पूर्वाषाढा़, उत्तराषाढा़, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद नक्षत्र आते हैं I 

 

राक्षस गण:-इसमें कृतिका, आश्लेषा, मघा, चित्रा, विशाखा, ज्येष्ठा, मूल, धनिष्ठा, शतभिषा नक्षत्र आते हैं I वर-कन्या का एक ही गण होने पर छह अंक मिलते हैं विवाह उत्तम माना जाता है I वर का देवग और कन्या का मनुष्य गण हो तो भी छह अंक मिलते है I कन्या का देवगण और वर का मनुष्य गण होने पर पांच अंक मिलते हैं I 

 

एक का देव गण और दूसरे का राक्षस गण हो तो कोई अंक नहीं मिलता यह अशुभ माना जाता है I राशि स्वामियों में परस्पर मित्रता हो या राशि नवांशपति में भिन्नता हो तो गणदोष नहीं माना जाता है I 

ग्रह मैत्री तथा वर एवं कन्या के नक्षत्रों की नाड़ियों में भिन्नता हो तो गणदोष होने पर भी गणदोष नहीं माना जाता है I इसके अतिरिक्त तारा, वश्य, योनि, ग्रह मैत्री तथा भकूट की शुद्धि होने पर कोई दोष नहीं माना जाताI 

कुण्डली से विवाह विचार - Horoscope & Marriage

भकूट - Kundli Se Bhakoot Ka Sambandh

भकूट का संबंध जीवन और आयु से होता है। विवाह के बाद दोनों का एक-दूसरे का संग कितना रहेगा, यह भकूट से जाना जाता है। दोनों की कुंडली में राशियों का भौतिक संबंध जीवन को लंबा करता है और दोनों में आपसी संबंध बनाए रखता है। 

इसे राशि कूट भी कहा जाता है I इस मिलान में सात अंक मिलते हैं I भकूट मिलान बहुत ही महत्वपूर्ण होता है I यह वर तथा वधु की चन्द्र राशियों पर आधारित है I इसमें वर तथा वधु की कुण्डलियों में परस्पर चन्द्रमा की स्थिति का आंकलन किया जाता है I 

वर-कन्या की जन्म राशि परस्पर षष्ठ और अष्टम में हो तो षडाष्टक दोष होता है I वर-कन्या की जन्म राशि परस्पर पञ्चम-नवम हो तो नव-पञ्चम दोष होता है I यदि दोनों की राशियां परस्पर द्वितीय और द्वादश भाव हो द्विद्वादश दोष बनता है I वर तथा कन्या की एक ही राशि होने पर पूरे सात अंक मिलते हैं I 

दोनों के चन्द्रमा एक-दूसरे से परस्पर 1/7, 3/11 अथवा 4/10 अक्ष पर स्थित है तब भी सात अंक मिलते हैं I वर तथा वधु का चन्द्रमा एक-दूसरे से 2/12, 5/9 अथवा 6/8 अक्ष पर स्थित होने पर शून्य अंक मिलता है I 

नव-पञ्चम दोष में कन्या का चन्द्रमा वर के चन्द्र से पञ्चम है तो ज्यादा खराब है I वर सांसारिकता से विमुख हो सकता है I  यदि दोनों में ग्रह मैत्री है तो कुछ ठीक है I यदि कन्या का चन्द्र वर के से नवम भाव में आ रहा है तब कन्या संसार को त्याग सकती है I 

षडाष्टक योग में वर तथा वधु के चन्द्र राशियों के स्वामी भी आपस में शत्रुता रखते हैं तब परेशानी और बढ़ सकती हैं I घर में किसी ना किसी रुप में बाधा आती रहती है I धन संबंधी परेशानी व्यक्ति को आये दिन रहती है I 

अचानक होने वाली घटनाओं का सामना करना पड़ता है I प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष शत्रु किसी ना किसी रुप में परेशान कर सकते हैं I 

 Check Out The Following Points:-

शिवलिंग क्या है?

शनि की साढ़े साती और ढैय्या पर एक दृष्टि

वास्तुशास्त्र और महत्त्वपूर्ण विचार

ज्योतिषशास्त्र और एक दृष्टी

जानिये की क्या आपकी कुंडली में धन लक्ष्मी का योग है ?

नाड़ी - Naadi

 नाड़ी का विचार कफ-आदि या आद्य नाड़ी- ज्येष्ठा, मूल, आर्द्रा, पुनर्वसु,उत्तरा फाल्गुनी,हस्त, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद और अश्विनी नक्षत्र की गणना इस नाड़ी में की जाती है।

 पित्त-मध्यनाड़ी:- पुष्य, मृगशिरा, चित्रा, अनुराधा, भरणी, घनिष्ठा, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वा फाल्गुनी और उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र की गणना मध्य नाड़ी में होती है। और

वात-अन्त्य नाड़ी :- स्वाति, विशाखा, कृतिका, रोहिणी, अश्लेषा, मघा, उत्तारषाढ़ा, श्रवण और रेवती नक्षत्रों की गणना अन्त्य नाड़ी में की जाती है I इसका मतलब खून या संतान से नहीं है I यथा लड़का पित्त( क्रोध) और लड़की भी पित्त हो जाय तो दोनों झगड़ा ज्यादा करेगे I स्वास्थ्य ख़राब रहेगा इस कारण एक नाड़ी नही होनी चाहिए I 

 

वैसे आधुनिक विचार निम्न है :-नाड़ी का संबंध खून या संतान से है। परन्तु दोनों के शारीरिक संबंधों से उत्पत्ति कैसी होगी, यह नाड़ी पर निर्भर करता है। शरीर में रक्त प्रवाह और ऊर्जा का विशेष महत्व है। दोनों की ऊर्जा का मिलान नाड़ी से ही होता है। वर तथा वधु की कुण्डलियों में उनके जन्म नक्षत्र के आधार पर उनकी नाड़ियों का वर्गीकरण किया जाता है I 

नक्षत्रों को तीन भागों में बांटा जाता है I आदि, मध्या तथा अन्त्या नाडी़ ही नाडी़ मिलान या नाडी़ दोष कहलाता है I इसमें वर तथा वधु की नाडी़ एक ही होने पर दोष माना जाता है I नाडी़ मिलान को सबसे अधिक आठ अंक दिए गए हैं I 

स्त्री तथा पुरुष की एक ही नाडी़ नहीं होनी चाहिए I गुण मिलान के क्रम में नाडी़ दोष अंतिम होता है I यह भी अत्यधिक महत्वपूर्ण मिलान जाना जाता है I इस मिलान को सर्वाधिक आठ अंक दिए गए हैं I इस मिलान के विषय में शास्त्रों में बहुत से मत दिए गए हैं कि यह क्यों आवश्यक है I 

कई मतानुसार इस मिलान को संतान प्राप्ति के अवश्यक माना जाता है I कई विद्वानों यह भी मत है कि वर तथा वधु की एक सी नाडी़ होने पर उनके भीतर के छिपे कुछ रोग उनकी संतान में प्रकट हो सकते हैं I 

 किन स्थितियों में निरस्त हो जाता है नाड़ी दोष यदि संभावित वर और वधू का जन्म नक्षत्र समान हो, लेकिन दोनों के चरण अलग-अलग हों तो नाड़ी दोष नहीं लगता है। 

 

यदि दोनों की राशि समान हो, लेकिन जन्म नक्षत्र अलग-अलग हों तो नाड़ी दोष नहीं लगता है। यदि दोनों के जन्म नक्षत्र समान हों, लेकिन राशि अलग-अलग हों तो नाड़ी दोष नहीं लगता है I नाडी़ मिलान में एक नाडी़ नहीं होनी चाहिए I 

यदि एक ही नाडी़ है लेकिन नक्षत्र भिन्न हैं तब विवाह कर सकते हैं I जैसे वर तथा वधु की मिथुन राशि होने से उन दोनों की आदि नाडी़ होती है I लेकिन मिथुन राशि में एक का आर्द्रा तथा दूसरे का पुनर्वसु नक्षत्र होने से नाडी़ दोष नहीं होगा I 

 

कई विद्वानों का मत है कि एक नक्षत्र होने पर यदि उनके चरण भिन्न है तब भी नाडी़ दोष नहीं होता है I नाडी़ दोष के अन्तर्गत यदि पुरुष का नक्षत्र स्त्री केनक्षत्र से अगला ही है, तब इसे नृदूर दोष माना जाता है जो नहीं होना चाहिए I

 

कुण्डली से विवाह विचार - Horoscope & Marriage

कुण्डली मिलान गुण आधारित मेलापक की यह विधि पूर्णतया कारगर नहीं है। हमारे अनुसार गुण का कोई महत्व नहीं है क्योंकि २८-३२ गुण वाले विवाह-विच्छेद करते है I ३-७-८ गुण वाले अच्छे जीवन जी रहे है I अर्थात् स्वभाव का मिलन होनी चाहिये I 

हमारे अनुसार विवाह में कुंडलियों का मिलान करते समय गुणों के अतिरिक्त अन्य महत्वपूर्ण बातों का भी विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। भले ही गुण निर्धारित संख्या की अपेक्षा कम मिलें हो परन्तु दाम्पत्य सुख के अन्य कारकों से यदि दाम्पत्य सुख की सुनिश्चितता होती है तो विवाह करने में कोई बाधा नहीं होनी चाहिए। 

 

मेलापक करते या करवाते समय गुणों के अतिरिक्त किन विशेष बातों का ध्यान रखा जाना आवश्यक है। विवाह का उद्देश्य गृहस्थ आश्रम में पदार्पण के साथ ही वंश वृद्धि और उत्तम दाम्पत्य सुख प्राप्त करना होता है। प्रेम व सामंजस्य से परिपूर्ण परिवार ही इस संसार में स्वर्ग के समान होता है।

 

 इन उद्देश्यों की पूर्ति की संभावनाओं के ज्ञान के लिए मनुष्य के जन्मांग चक्र में कुछ महत्वपूर्ण कारक होते हैं। ये कारक हैं-सप्तम भाव एवं सप्तमेश, द्वादश भाव एवं द्वादशेश, द्वितीय भाव एवं द्वितीयेश, पंचम भाव एवं पंचमेश, अष्टम भाव एवं अष्टमेश के अतिरिक्त दाम्पत्य का नैसर्गिक कारक ग्रह शुक्र (पुरुषों के लिए) व गुरु (स्त्रियों के लिए)। 

 

दाम्पत्य सुख प्राप्ति के लिए सप्तम भाव का विशेष महत्व होता है। सप्तम भाव ही साझेदारी का भी होता है। विवाह में साझेदारी अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। अतः सप्तम भाव पर कोई पाप ग्रह का प्रभाव नहीं होना चाहिए। सप्तम भाव के अधिपति का सप्तमेश कहा जाता है। 

 

सप्तम भाव की तरह ही सप्तमेश पर कोई पाप प्रभाव नहीं होना चाहिए और ना ही सप्तमेश किसी अशुभ भाव में स्थित होना चाहिए। सप्तम भाव के ही सदृश द्वादश भाव भी दाम्पत्य सुख के लिए अहम माना गया है। द्वादश भाव को शैय्या सुख का अर्थात्‌ यौन सुख प्राप्ति का भाव माना गया है। 

 

अतः द्वादश भाव एवं इसके अधिपति द्वादशेश पर किसी भी प्रकार के पाप ग्रहों का प्रभाव दाम्पत्य सुख की हानि कर सकता है। विवाह का अर्थ है एक नवीन परिवार की शुरुआत। द्वितीय भाव को धन एवं कुटुम्ब भाव कहते हैं। द्वितीय भाव स्व भाव अपना भाव भी है इससे पारिवारिक सुख का पता चलता है। 

 

अतः द्वितीय भाव एवं द्वितीय भाव के स्वामी पर किसी पाप ग्रह का प्रभाव दंपत्ति को पारिवारिक सुख से वंचित कर सकता है I शास्त्रानुसार जब मनुष्य जन्म लेता है तब जन्म लेने के साथ ही वह ऋणी हो जाता है। इन्हीं जन्मजात ऋणों में से एक है पितृ ऋण। 

जिससे संतानोपत्ति के द्वारा मुक्त हुआ जाता है। पंचम भाव से संतान सुख का ज्ञान होता है। पंचम भाव एवं इसके अधिपति पंचमेश पर किसी पाप ग्रह का प्रभाव दंपत्ति को संतान सुख से वंचित करता है। विवाहोपरान्त विधुर या वैधव्य भोग किसी आपदा के सदृश है। 

 

अतः भावी दम्पत्ति की आयु का भलीभांति परीक्षण आवश्यक है। अष्टम भाव एवं अष्टमेश से आयु का विचार किया जाता है। अष्टम भाव एवं अष्टमेश पर किसी पाप ग्रह का प्रभाव दंपत्ति की आयु क्षीण करता है। वैसे मृत्यु का काल निर्धारित होते है I 

 

इन कारकों के अतिरिक्त दाम्पत्य सुख से नैसर्गिक कारकों जो वर की कुण्डली में शुक्र एवं कन्या की कुण्डली में गुरु होता है, पर पाप प्रभाव नहीं होना चाहिए। यदि वर अथवा कन्या की कुण्डली में दाम्पत्य सुख के नैसर्गिक कारक शुक्र व गुरु पाप प्रभाव से पीड़ित हैं या अशुभ भावों यानि अष्टमस्थ गुरु स्थित है तो सर्वसुख के साथ दाम्पत्य सुख को नष्ट करता ही है I 

Khud Janiye Kundli Se Vivah Ki Jaankari - कुण्डली से विवाह विचार By Astrologer Dr. S. N. Jha

यथा:- सप्तम भाव में मिथुन राशि थी और उसमें सूर्य हों, दशम भाव से शनि सप्तम भाव को देख रहे हों, एकादश भाव में स्थित केतु सप्तम को देख रहे हों, यह सब एक निश्चित तलाक योग बनता है और दुनिया की कोई ताकत इस कन्या को विवाह सुख नहीं दिला सकती है। एक छत के नीचे रहकर भी परदेशियों की तरह रहेंगे और वैवाहिक जीवन के जो भी दारुण दु:ख हो सकते हैं, वो इसके जीवन में आएंगे। 

जातक की कुंडली के सप्तम भाव में वक्री शनि हों और कुण्डली के चतुर्थ भाव में मंगल हों तो, इससे भी वैवाहिक जीवन में परेशानियों का संकेत मिलता है। सप्तम भाव के सूर्य परित्यक्त योग बनाते हैं और वर या कन्या को आक्षेप झेलने प़डते है I 

 

केवल नक्षत्र मिलान से कुण्डली मिला देना बहुत ब़डी गलती है। आयु, स्वास्थ्य, शरीर सुख, आपसी प्रेम इत्यादि अष्टकूट और दशकूट मेलापक पद्धतियों में देखा जाता है परन्तु नक्षत्र मिलान के बाद भी जन्मपत्रिका में प़ड गए विशेष योग शून्य नहीं हो जाते। सप्तम भाव में बैठे वक्री ग्रह, चाहे कुछ भी हो जाए वैवाहिक परिस्थितियों को कठिन बनाते ही हैं। चरित्र दोष के सारे योग देखने ही चाहिएं। 

 

शनि और बुध की सप्तम भाव मे स्थिति व्यक्ति के जीवनसाथी की मानसिक नपुसंक ता या स्नायविक दौर्बल्य की सूचना देती है। सूर्य और केतु का सप्तम भाव से संबंध तलाक की संभावनाएं बढ़ाता है। सूर्य, मंगल और केतु जैसे ग्रह सप्तम भाव में हों तो वैवाहिक जीवन में बहुत खराब परिस्थितियां ला देते हैं। 

सप्तम भाव के राहु व्यक्ति के जीवनसाथी के स्वभाव में मायावी आचरण ला देते हैं I सप्तम भाव का अतिबलवान होना शुभ परिणाम नहीं देता है। सप्तम भाव का पापकर्तरि में होना जीवन में दुर्भाग्य लाता है। सप्तमेश का पापकर्तरि में होना भी वैवाहिक जीवन में दुर्भाग्य ला देता है। ऩाडी दोष को अत्यन्त गंभीरतापूर्वक लेना चाहिए। 

 

शास्त्रों में मिलता है कि ब्राह्मणों में विशेष रुप से देखा जाना चाहिए। मेरा मानना है कि इसे सभी के मामलों में देखा जाना चाहिए। ऩाडी दोष की समानता तो नहीं करता परन्तु अमेरिका में रक्त का R.H. Factor मिलान करना इसी प्रक्रिया का एक अंग है। 

कुण्डली से विवाह विचार - Horoscope & Marriage

ऩाडी दोष वस्तुत: एक-दूसरे के शरीर को स्वीकार करने की प्रक्रिया का विश्लेषण है। कई बार इस दोष के होने पर व्यक्ति को पता भी नहीं चलता और वे अपनी शारीरिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए अन्यत्र कहीं देखने लगते हैं। इस दोष के कारण मध्य जीवन में भटकाव देखने को मिलता है।अष्टम भाव स्थित राहु, कमजोर बुध या दूषित मंगल तथा दूषित शुक्र व्यक्ति के मन में अपने अंगों के प्रति हीनभावना भर देते हैं। 

व्यक्ति अपने किसी भी अंग को लेकर अपने आप को हीन समझने लगता है। वह उसी से त्रस्त हो जाता है। इसके बाद शनि और बुध का परस्पर संबंध उसे अपने उज्ज्वल पक्षों के होते हुए भी निराशाजनक पक्षों के बारे मे ही सोचने को बाध्य कर देता है। 

 

इससे मनोवैज्ञानिक दुर्बलता आती है। कुछ योगों के आधार पर विवाह का इनकार कर देना उचित नहीं है तथा इसी प्रकार किसी विवाह के इस आधार पर असफल होने पर विद्वान ज्योतिषी को उसका मनोबल बढ़ाकर उचित चिकित्सक के पास भेज देना चाहिए। 

 

प्राय: मेरे पास बहुत सारे व्यक्ति हाथ दिखाते समय दो विवाह रेखाओं को लेकर चिंता करते हैं। हस्त रेखाओं में पहली पत्नी की मृत्यु देखने के लिए विवाह रेखा का ह्वदय रेखा तक मु़डकर पहुंचना जरूरी है। यही रेखा तलाक भी करा सकती है। 

विवाह रेखा का टूटना, विवाह रेखा का द्विजिह्वाकार होना या विवाह रेखा अनियमित आकार की होकर, किसी पर्वत मे या अंगुली के पोरुए में ऊपर जाकर घुस जाए तो विवाह टूटना देखा जा सकता है। 

 

एक से अधिक विवाह रेखाओं का अर्थ यह हो सकता है कि विवाह के अतिरिक्त भी उस स्त्री या पुरूष के अन्य संबंध हों। इस ओर व्यक्ति को इशारा किया जा सकता है। 

जन्मपत्रिका के सप्तम भाव में जितने ग्रह हों उतनी पत्नियां होती हैं, ऎसा शास्त्रों में लिखा मिल जाता है। आजकल यह पूर्ण सच नहीं हैं। 

एक नियमित विवाह के अतिरिक्त अन्य संबंध देखने को मिल सकते हैं। मैंने बहुत सारे मामलों में परीक्षण किया और यह पाया कि कॉलेज जीवन में साल-दो साल चला अफेयर विवाह में नहीं बदल पाता परन्तु सप्तम भाव मे स्थित ग्रह या सप्तमेश के साथ बैठा हुआ ग्रह, इस बात की सूचना दे देता है। 

यह बात इतनी व्यापक हो गई है कि अगर उस ग्रह की अन्तर्दशा निकल गई हो तो ज्योतिषी को बिना बताए निर्णय ले लेना चाहिए। मैं ऎसे सभी मामलों में यह निर्णय देता हूं कि जिसका विवाह किया जाना है उससे शत-प्रतिशत स्वीकृति आनी ही चाहिए। 

 

मां-बाप अगर किसी रिश्ते को थोप देंगे तो उसका दुष्परिणाम आगे चलकर आता ही है।क्योंकि जिस कुंडली में बहू विवाह या बहू सम्बन्ध का योग है तो लड़का या लड़की हो सम्बन्ध बनाते ही है या बनेगा ही I अब पिछले संबंध से निवृत्ति का उत्तरदायित्व व्यक्ति पर स्वयं पर आ जाता है। 

इन मामलों में जोर-जबर्दस्ती शुभ परिणाम नहीं देती। डॉक्टर बी.वी. रमन षष्ठ भाव मे मंगल की स्थिति को वैवाहिक जीवन में शुभ नहीं मानते थे। इससे तनाव देखने को मिलता है। षष्ठ भाव में कोई भी पाप ग्रह वैवाहिक जीवन में तनाव बनाए रख सकता है। 

 

बृहस्पति का सप्तम भाव मे होना वैवाहिक जीवन को टिकने नहीं देता। वही बृहस्पति अगर कहीं से नवांश में केंद्रगत हो, सप्तम भाव या सप्तमेश को दृष्टिपात करें तो यह अमृत दृष्टि होती है और वैवाहिक जीवन उत्तमोत्तम चलती है। 

अब तक के विश्लेषण में यह सामने आया कि सप्तम भाव में बृहस्पति, सूर्य, केतु, मंगल इत्यादि विवाह की असफलता में कारण बनते हैं। शनि विवाह को बचा ले जाते हैं। बृहस्पति की दृष्टि भी बचा ले जाती है। सप्तम भाव पर राहु की दृष्टि भी बंधन कारक होती है और तलाक नहीं होने देती । 

सप्तम भाव का संबंध शनि से होने पर दम्पति की परस्पर उम्र मे कुछ अंतर मिलता है परन्तु ऎसे मामलों में जिसकी उम्र अधिक है उसके यह देखा जाना चाहिए कि लग्न पर मंगल का प्रभाव हो, इससे वो उम्र से भी कम दिखेगा और उसकी अधिक आयु मिलती है।

 कुण्डली का मिलान करते समय जिस कूट के परिणाम कम आएं उससे संबंधित विषय वाले ग्रह का विशेष परीक्षण जन्म पत्रिका में किया ही जाना चाहिए। उस कूट की प्राप्ति के लिए उपाय अवश्य बताने चाहिएं ।

कुण्डली से विवाह विचार - Horoscope & Marriage

 

 इस निबंध में कुछ त्रुटि हो सकता है I उस पर आप प्रकाश डालें I

                            --------------------

 Check Out The Following Points:-

शिवलिंग क्या है?

शनि की साढ़े साती और ढैय्या पर एक दृष्टि

वास्तुशास्त्र और महत्त्वपूर्ण विचार

ज्योतिषशास्त्र और एक दृष्टी

जानिये की क्या आपकी कुंडली में धन लक्ष्मी का योग है ?

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

Kon The Maharishi Parashara? Janiye Parashar Muni Ke Baare Mein | Maharishi Parashara: The Sage of Ancient India

Kon The Maharishi Parashara? Janiye Parashar Muni Ke Baare Mein  Maharishi Parashara: The Sage of Ancient India  INTRODUCTION Maharishi Parashara, the Sage of ancient India, is a famous figure in Indian history, revered for his contributions to Vedic astrology and spiritual teachings . As the luminary of his time, Maharishi Parashara left an indelible mark on the spiritual and philosophical realms of ancient India. His deep wisdom and understanding continue to move through the generations, attracting the minds and hearts of seekers even today. In this blog, we embark on a journey to discover the life and teachings of Maharishi Parashara, exploring the aspects that made him a sage of ancient India. By examining his background and origins, we gain a deeper understanding of the influences that shaped his character and paved the way for his remarkable contributions. We then entered the realm of Vedic Astrology, where the art of Maharishi Parashara flourished, studying its importa...

त्रिपताकी चक्र वेध से ग्रहों का शुभाशुभ विचार - Astrologer Dr Sunil Nath Jha | Tripataki Chakra Vedh

       त्रिपताकी चक्र वेध से ग्रहों का शुभाशुभ विचार Tripataki Chakra Vedh अ यासा भरणं मूढाः प्रपश्यन्ति   शुभाशुभ | मरिष्यति यदा दैवात्कोऽत्र भुंक्ते शुभाशुभम् || अर्थात्  जातक के आयु का ज्ञान सबसे पहले करना चाहिए | पहले जन्मारिष्ट को विचारने का प्रावधान है उसके बाद बालारिष्ट पर जो स्वयं पूर्वकृत पाप से या माता-पिता के पाप से भी मृत्यु को प्राप्त होता है | उसके बाद त्रिपताकी वेध जनित दोष से जातक की मृत्यु हो जाती है | शास्त्रों में पताकी दोष से २९ वर्षों तक मृत्यु की बात है -  नवनेत्राणि वर्षांणि यावद् गच्छन्ति जन्मतः | तवाच्छिद्रं चिन्तितव्यं गुप्तरुपं न चान्यथा ||   ग्रहदानविचारे तु   अन्त्ये मेषं विनिर्दिशेत् | वेदादिष्वङ्क दानेषु मध्ये मेषं पुर्नर्लिखेत् || अर्थात् त्रिपताकी चक्र में ग्रह स्थापन में प्रथम पूर्वापर रेखा के अन्त्य दक्षिण रेखाग्र से मेषादि राशियों की स्थापना होती है | पुनः दो-दो रेखाओं से परस्पर क्रम से कर्णाकर छह रेखा लिखे अग्निकोण से वायव्यकोण तक छह तथा ईषाण कोण से नैऋत्य कोण तक ...

Praano Ke Bare Me Jaane - प्राणों के बारे में जाने | वायव्य ( North-West) और प्राण By Astrologer Dr. Sunil Nath Jha

  Praano Ke Bare Me Jaane - प्राणों के बारे में जाने वायव्य ( North-West ) और प्राण By Astrologer Dr. Sunil Nath Jha                   उत्तर तथा पश्चिम दिशा के मध्य कोण को वायव्य कहते है I इस दिशा का स्वामी या देवता वायुदेव है I वायु पञ्च होते है :-प्राण, अपान, समान, व्यान, और उदान I  हर एक मनुष्य के जीवन के लिए पाँचों में एक प्राण परम आवश्यकता होता है I   पांचो का शरीर में रहने का स्थान अलग-अलग जगह पर होता है I हमारा शरीर जिस तत्व के कारण जीवित है , उसका नाम ‘प्राण’ है। शरीर में हाथ-पाँव आदि कर्मेन्द्रियां , नेत्र-श्रोत्र आदि ज्ञानेंद्रियाँ तथा अन्य सब अवयव-अंग इस प्राण से ही शक्ति पाकर समस्त कार्यों को करते है।   प्राण से ही भोजन का पाचन , रस , रक्त , माँस , मेद , अस्थि , मज्जा , वीर्य , रज , ओज आदि सभी धातुओं का निर्माण होता है तथा व्यर्थ पदार्थों का शरीर से बाहर निकलना , उठना , बैठना , चलना , बोलना , चिंतन-मनन-स्मरण-ध्यान आदि समस्त स्थूल व सूक्ष्म क्रियाएँ होती है।...