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गण्ड-मूल | Janiye Ki Kya Hota Hai Gand Mool | Astrologer Dr Sunil Nath Jha

गण्ड-मूल 

गण्डान्त विचारन जन्म के लिए अशुभ समय कहा गया है

गण्डान्त योग में जन्म के लिए अशुभ योग कहा गया है | वैसे जो भी योग जातक को प्राप्त होता भोगना ही पड़ता है | इस योग में जब संतान जन्म लेती है तो गण्डान्त शान्ति कराने के बाद ही पिता को देखना चाहिए | पराशर के अनुसार तिथि गण्ड में वृषभ का दान, नक्षत्र गण्ड में गोदान और लग्न गण्ड में स्वर्ण का दान करने से दोषत्व में कमी आ जाता है | गण्डान्त राशि चक्र का एक निश्चित्त बिंदु अंश है जहाँ सौर और चन्द्र मिलती है यह बिंदु मीन रेवती + मेष अश्वनी, कर्क + सिंह, वृश्चिक + धनु के बिंदु पर होता है | गण्डान्त का अर्थ संधि काल से होता हो | जन्म के ११ या १२ दिन नामकरण अथवा जन्म नक्षत्र के दिन अथवा शुभ दिन में नवग्रहों की शान्ति करनी ही चाहिए | अश्विनी, मघा तथा मूल की पहली ३ घड़ियों में दिन या रात में जन्म हो तो पिता, अपने शरीर तथा माता का नाश होता है |

गण्ड-मूल | Janiye Ki Kya Hota Hai Gand Mool | Astrologer Dr Sunil Nath Jha

गण्डान्तं त्रिविधं प्रोक्तं तिथ्यङ्गर्थवशाद् बुधैः |

पाणिग्रहादौ जनुषि प्रयाणे च विचिन्तयेत् || 

तिथि, लग्न तथा नक्षत्रा के वश त्रिविध गण्डान्त कहे गए है | यह शुभ कार्यों में वर्जित है | इनका विचार विवाहादि शुभ कार्य में, जन्म समय तथा यात्रा में भी विचार करना ही चाहिए |  

पौष्णाश्विन्योः सार्पपित्र्यक्षयोश्च यच्च ज्येष्ठामूलयोर्रतरालम् | 

तद्गण्डान्तं स्याच्चतुनोडिकं हि यात्राजन्मोद्वाहकालेष्वनिष्टम्||

जब रेवती नक्षत्र पूर्ण होकर अश्विनी नक्षत्र शुरु होता है | तब रेवती के अन्त की और अश्विनी के आदि की २,२ घटी मिलकर ४ घटी, इस प्रकार आश्लेषा और मघा की ४ घड़ी तथा ज्येष्ठा और  मूल की ४ घटी नक्षत्र गण्डान्त होता है, जो यात्रा, जन्म, विवाहादि शुभ कार्य में त्याज्य है |

सिंहकर्कटयोश्चापकीटयोर्मीनमेषयोः  |

गण्डान्तमन्तारालं तन्नाडिका निधनप्रदा ||

  कर्क और सिंह राशि की एक घड़ी (कर्क के अन्त्य की अर्ध घटी तथा सिंह के आदि की अर्ध घटी ) एवं वृश्चिक ओर धनु तथा मीन ओर मेष की एक घटी राशि गण्डान्त लग्न कहलाता है | जो अशुभ है | 

पूर्णानन्दाख्ययोस्तिथ्योः संधिर्नाडीद्वयं तथा |

गण्डान्तं मृत्युदं जन्मयात्रोद्वाहव्रतादिषु ||

इसी तरह पूर्णा तिथि ५, १०, १५  ओर नंदा तिथी १, ६, ११  के योग को २ घड़ी (पूर्णा तिथि के अंत की एक घड़ी तथा नंदा के आदि को एक घड़ी ) तिथि कहलाता जो जन्म, यात्रा  लग्न यात्रा तथा व्रतब्रंध आदि में मृत्यु कर्त्ता है |

 

गण्डान्त को यात्रा में, जन्म तथा विवाह में त्याग देना चाहिए | गण्डान्त में जन्म होने से कुल का नाश होता है | नक्षत्र गण्डान्त माता का नाश करता है, तिथि गण्डान्त होने से पिता का नाश होता है और लग्न गण्डान्त होने से बालक का नाश करता है | दिन का गण्डान्त पिता का नाश करता है, रात का गण्डान्त माता का नाशकरता है, संध्या का गण्डान्त जातक का नाश करता है यदि कन्या दिन में जन्म ले ओर बालक रात में जन्म  ले तो गण्ड दोष नहीं होता है | यदि लाभ भाव में चन्द्रमा हो अथवा केंद्र में शुभ ग्रह हो तो गण्डान्त दोष नहीं होता, यदि चन्द्रमा बलवान् हो तो तिथि गण्डान्त का दोष नहीं लगता, यदि गुरु बली हो तो लग्न गण्डान्त का दोष नहीं होता | अश्विनी, मघा तथा मूल की पहली ३ घड़ियों में दिन या रात में जन्म हो तो पिता, अपने शरीर तथा माता का नाश होता है | गण्डान्त में यदि विवाह किया जाय तो मृत्यु होती है यदि यात्रा की जाय तो धन का नाश होता है | रेवती अश्विनी, पुष्य, आश्लेषा, मघा, चित्रा, मृगशिरा तथा मूल नक्षत्रों में उत्पन्न बालक का गोप्रसव करना चाहिए | इन नक्षत्रों में जन्म होने में जन्म बालक सर्वनाश करता है |  

अन्य अरिष्ट दोष- व्यतिपात योग में जन्म  हो तो अंग हानि, वैघृति योग में जन्म हो तो पिता से वियोग, परिध योग मर जन्म हो तो स्वयं को मृत्यु तुल्य कष्ट होता है | मृत्यु योग, दग्धयोग, भद्रा, संक्रान्ति के दिन, सूर्य-चन्द्र, ग्रहण समय में, शूल योग, व्यतिपात योग, अतिगण्ड योग, वज्रयोग, तिथिक्षय, क्रान्तिसाम्य (महापात योग ,विश्वाधस्त्रपक्ष ( तिथि क्षय ) ओर क्षयमास में जन्में बालकों को कुयोग में जन्मा समझा जाता है | इनकी आयु तथा आरोग्य के लिए शास्त्रोक्त विधि- विज्ञान से ग्रह शान्ति करा देना चाहिए | जिस प्रकार सताईस नक्षत्र होते है, उसी प्रकार २८ योग होते है,इनमें व्यतिपात,वैदृति, परिध, व्याघात, अतिगण्ड, मूलवज्र ये अशुभ योग है | तिथि के आधे भाग को करण कहते है | विष्टकरण को भद्रा कहते है | तिथि, नक्षत्र, वार आदि के संयोगों से कुछ योग बनते है | जिन की सुचना पञ्चांगों में दी गयी होती है |  

जातक की आयु का विचार करना चाहिए क्योंकि शुभ अशुभ फलों को जातक को ही भोगना पड़ता है | यह तभी संभव होगा जब वह जीवित रहेगा, मृत्यु के बाद उसके शुभ ओर अशुभ को कौन भोगेगा ;- 

अयासा भरणं मूढाः प्रपश्यन्ति शुभाशुभम् | 

मरिष्यति यदा दैवात्कोऽत्र भुंक्ते शुभाशुभम् ||

अतएव जातक के आयुस्थान का ज्ञान सबसे पहले करना चाहिए | ज्योतिष शास्त्र में जन्मते ही गण्डान्त और अरिष्टों को विचरने का प्रावधान किया गया है |  बाद में जन्मारिष्ट का विच्क्स्हार करना चाहिए | बचपन में बालक स्वयं पूर्वकृत पाप से काल कलवित हो जाता है, माता पिता के पाप से भी मृत्यु को प्राप्त होता है | मुसके बाद त्रिपताकी वेध जनित दोष से जातक की मृत्यु हो जाती है | शास्त्रों में त्रिपताकी दोष से २४ वर्षों तक मृत्यु होने की बात कहीं गयी है ;- 

नवनेत्राणि वर्षाणि यावद् गच्छन्ति जन्मतः  |

तावच्छिद्रं चिन्तितव्यंं गुप्तरुपं न चान्यथा ||


गण्ड-मूल | Janiye Ki Kya Hota Hai Gand Mool | Astrologer Dr Sunil Nath Jha

त्रिपताकी चक्र का निर्माणकर जातक के जन्म लग्न की राशि चक्र में जहाँ है वहां लग्न को स्थापित कर उस स्थान की रेखा से वेध का विचार करना चाहिए | लग्न राशि से दक्षिण वाम और सम्मुख स्थित राशि का वेध होता है यह समझना चाहिए | इस तरह तीन वेध होगें | इन तीनों वेध स्थानों में ग्रह हो तो उस से वेध होता है | वेध होने पर उस स्थान में स्थित अंक के सम्मान दिन, मास या वर्ष में जातक का अरिष्ट होता है | दिन, मास या वर्ष के ज्ञान के लिए वेध कर्त्ता ग्रह यदि बली हो तो अंक सामान दिन में, मध्यम बली हो तो मास में, अल्प बली हो तो उतने वर्ष के सामान वर्ष में जातक का अरिष्ट होता है | तात्पर्य यह है कि त्रिपताकी चक्र में वेध होने पर दण्डेश पापग्रह में दक्षिण विद्ध हो तो स्थान स्थित अंक के सामान वर्ष में जातक की मृत्यु होती है, वाम वेध में भी स्थानांक समवर्ष में मृत्यु होती है | दक्षिण वाम वेध के न होने पर वेध स्थान स्थित अंक के सामान वर्ष में अरिष्ट होता है | जब लग्न दक्षिण वाम सम्मुख तीनों से पाप वेध हो तो वेध कारक तीनों में जो सबसे बली हो उसके अंक के सामान वर्ष में अरिष्ट होता है |  

चल पताकी के बीच में जन्म लग्न की राशि को स्थापित करें | उसके बाद जन्म के गतवर्ष में १ जोड़कर ९ से भाग देनेपर जो शेष अंक हो उतने अंक आगे जन्म काल की चन्द्रमा की राशि को बढ़ावें और उसमे चन्द्र का न्यास करें | पुनः गतवर्ष में १ जोड़कर ६ का भाग दें जो शेष बचे उतने अंक जन्म कालिक मंगल की राशि को आगे बढ़ाकर उसमे मंगल का न्यास करें एवं उतने अंक पीछे राहु की राशि को बढ़ाकर उसमें राहु का न्यास का न्यास करें उसके सातवें केतु का न्यास करें | गतवर्ष में १ जोड़कर ४ का भाग दें जो शेष बचें उतने अंक अन्य सभी ग्रहों सूर्य, बुध, गुरु और शुक्र को जन्म का;लीं राशि से आगे बढ़ाकर स्थापित करे इस प्रकार चलित पटकी चक्र बन जाएगा | इस चल पताकी चक्र में जब एक नाड़ी में चन्द्र और मंगल हो जाये या राहु और शनि  हो जाय तो उस वर्ष जातक की मृत्यु हो जायेगी या प्रबल अरिष्ट होगा एवं गब गुरु और राहु एक नाड़ी में जाय तो उस वर्ष अधिक कष्ट का सामना करना पड़ता है | जिस वेश में अरिष्टकर या मृत्यु प्रद वेध उपस्थित हो उस वर्ष शान्ति करनी चाहिए | इसके लिए लाल कपड़ा, पत्थर का टुकड़ा, गाय, सोना, दान, देना चाहिए | उस शूल को चन्दन फूल आदि पूजनीयोंपचारो विधि से आराधना करें | 

विप्रान्श्च भोजयेदेव दोषशान्तिः प्रजायते | 

समृद्धिश्च प्रतिदिनं नैरुज्यविभवायुषाम् ||

शुभे दिने मूलजानां द्वादशे वाह्नि जन्मनः   |

अपि वाष्ट्मवर्षान्ते  विधिवच्छान्तिमाचरेते्  || 

मूल नक्षत्रोत्पन्न जातकों की दोष शान्ति जन्म से १२ वें या शुभ दिन में या अष्टमवर्षांत में करनी चाहिए | त्रिविध गण्डान्तोत्पन्न जातक की दोष शान्ति सूतक के अंता अथवा शुभ दिन में पिता करें | शान्ति करने तक पिता जातक के मुखावलोकन नहीं करें | तिथि गण्डान्त में जन्म होने पर बैल, नक्षत्र गण्डान्त में गाय, लग्न गण्डान्त में जन्म हो तो सुवर्ण का दान दोष शान्ति के लिए करें | गण्डान्त के प्रथमार्ध में जन्म होने पर पिता के साथ जातक का और परार्ध में जन्म होने पर माता के साथ जातक का अभिषेक करना चाहिए | तिथि, नक्षत्र तथा लग्न गण्डान्त में तिथि नक्षत्र तथा लग्न की सुवर्णमयी प्रतिमा बना कर घटाग्र पर स्थित पात्र में रख पूर्ववत् षोडशोपचारपूजनम् या पञ्चोपचारैः पूजन करें | हवन और ब्राह्मणो को भोजन तथा दक्षिणा दान सहित दोष शान्ति करावें | 

 

गंडांत राशि चक्र का एक बिंदु है गाय  डांतगंडांत राशि चक्र का एक जंक्शन बिंदु है, जहां सौर और चंद्र राशियां मिलती हैं. 


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