कुण्डली में षड्वर्ग विचार - Kundli Me Shadvarg Vichaar गृहं होरा च द्रेष्कणो नवांशो द्वादशान्शकः | त्रिंशांशचेति षड्वर्गास्ते सौम्य ग्रहजाः शुभाः || समस्त ब्रह्माण्ड गोलाकार रुप में विद्यमान है | जिसमें ३६०ं अंश माने गये है | इन अंशों के द्वादश भाग और तीस अंश का एक लग्न माना गया है | अथ षोडशवर्गेषु विवृणोमि विवेचनम् , लग्ने देहस्य विज्ञानं होरायां सम्पदादिकम् | द्रेष्काणेे भ्रातृजं सौख्यं तुर्यांशे भाग्यचिन्तनम् , पुत्रपौत्रादिकानां वै चिन्तनं सप्तमांशके || नवमांशे कलत्राणां दशमांशे महत् फलम् , द्वादशांशे तथापित्रोंश्चिन्तनं षोडशांशके | सुखासुखस्य विज्ञानं वाहनानां तथैव च , उपासनासा विज्ञानं साध्यं विंशति भागके || विद्या या वेद वाह्वेशे भांशे चैव बलावलम् , त्रिंशांशके रिष्ट्फलं खवेदांशे शुभाशुभम् | अक्षवेदविभागे च षष्टयंशेऽखिलमीक्षयेत् , यत्र कुत्रापि सम्प्राप्तः क्रूरषष्टयं...
मैं सुनील नाथ झा, एक ज्योतिषी, अंकशास्त्री, हस्तरेखा विशेषज्ञ, वास्तुकार और व्याख्याता हूं। मैं 1998 से ज्योतिष, अंक ज्योतिष, हस्तरेखा विज्ञान, वास्तुकला की शिक्षा और अभ्यास कर रहा हूं | मैंने राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान तथा लखनऊ विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य | मैंने वास्तुकला और ज्योतिष नाम से संबंधित दो पुस्तकें लिखी हैं -जिनके नाम "वास्तुरहस्यम्" और " ज्योतिषतत्त्वविमर्श" हैं | मैंने दो पुस्तकों का संपादन किया है - "संस्कृत व्याकर-सारः" और "ललितासहस्रनाम" |