धर्म और व्यक्ति की जीवन धारा
Dharm Aur Vyakti Ki jeevan Dhaara By Astrologer Dr. S. N. Jha
आपका
चेहरा या शक्ल जिस कुण्डली से मिले उस कुंडली से आप फलित प्राप्त करेगें | चाहे लग्न
कुण्डली, चन्द्र कुण्डली या सूर्य कुंडली से ये सारे गुण जिस कुण्डली से प्राप्त
करेगें | वैसे सभी दैवज्ञ लग्न कुण्डली से ही बता देते है| चाहे फलित मिले या न
मिले, दो ही बात हो सकता है चाहे उतना षोडशः वर्ग का ज्ञान नहीं है या उतना मेहनत
नही करना चाहते है I
धर्मेण हन्यते व्याधिः धर्मेण हन्यते ग्रहः I
धर्मेण
हन्यते शत्रुर्यतोधर्मस्ततो जयः II
धर्म क्या है ? | Dharm Kya Hai ?
हमें इसका
विवेचन तो यहाँ करना नहीं है केवल तात्पर्य समझकर अपने लक्ष्य की पूर्ति करनी है
इसलिए लिखते है कि धार्मिक कृत्य करते रहने से शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक तीनों प्रकार के कष्ट दूर हो
जाते है| अर्थात् अनेक प्रकार की आधि-व्याधियों का नाश हो जाता है I धार्मिक कर्म, ग्रहों
के दुष्परिणामों को समाप्त करके शुभफल प्रदान करते है I
शुभ ग्रहों के शुभ फलों को बढ़ोतरी करके शुभ फल प्रदान करता है, और यही धार्मिक
कृत्य, शत्रुओं द्वारा किये गये दुर्व्यवहार के दुष्परिणाम को समूल नष्ट करके मन
को सुख शांति पहुँचाते है I जहाँ धर्म का निवास होता है वहाँ प्रत्येक कार्य में
सफलता मिलती है यही धर्म की विजय है I यज्ञ-हवन-पूजा-पाठ धार्मिक ग्रंथों का
स्वाध्याय, इष्ट देव की कीर्तन, आराधना, नित्य नियमित से प्रार्थना, और संन्मार्ग
पर चलने से जीवन का लक्ष्य सफल रहता है I
अर्थात् कोई भी मनुष्य जो संसार में सुखी
जीवन व्यतीत करना चाहता है उसे किसी भी आत्मा को कष्ट न दे और न अपने व्यवहार से दुसरे
के मन को उद्विग्न न करे I इसका मुख्य कारण पूर्वजन्म के शुभाशुभ कर्मों का फल है, जो
प्रारब्ध के रुप में अपने साथ लाते हुए ठीक उसी शुभ या अशुभ समय, नक्षत्र, तिथि, वार, घटी,
पल, पर जन्म लेता है, जिसके आधार पर किसी को आजन्म सुख, किसी को सुख-दुःख या किसी
को आजन्म दुःख ही मिलता हैI
यह उसके पूर्वजन्म कृत पुण्य या पाप कर्मों का फल है
I प्रारब्ध की प्राप्ति ईश्वर से नहीं, अपनें कर्मों से ही होती हैI प्रत्येक
मनुष्य को जो वर्तमान समय में शारीरिक, आर्थिक या संसारिक सुख या दुःख अधिकांश
प्रमाण पर जन्म से मरण तक भोगने का प्रसंग आता है I कुंडली से मनुष्य को भविष्य
में आने वाले परिस्थिति की पूर्ण कल्पना होती है I तात्पर्य प्राचीन महर्षियों ने
अपने आत्मतत्व या तपोबल द्वारा इनका पूर्ण विचार कर राशि, ग्रह, नक्षत्र, योगादिक
के आधार पर उनका सूक्ष्म शुभाशुभ फलित लोगों के कल्याण हेतु अपने शास्त्रों में
वर्णन किया है I
जन्म कुंडली का फलित वर्तना यह जटिल प्रश्न है, परन्तु फलित
वर्तते समय इन बातों पर ध्यान रखे :- कुंडली के शुद्धाशुद्ध का विचार, जन्म समय
आकाशस्थ ग्रहों की शुभाशुभ स्थिति, फलित वर्तते समय ग्रहों की गति या राशियों का
भ्रमण, जन्म समय के तथा वर्तमान ग्रह(गोचर) की दशा पर ध्यान देकर भविष्य कथन करना
हम उचित या अति जरुरी भी समझते है I
आपके
कुंडली में सारे महादशा जन्म नक्षत्र से चलता है परन्तु नैसर्गिक दशा में होती है
I उसका भोग काल इस प्रकार है :-
१.
जन्म दिन से १ वर्ष तक चन्द्रमा में ( सर्दी-जुकाम)
की दशा चलती है I
२. १ वर्ष से ३ वर्ष तक मंगल में ( चोट लगने) की
दशा चलती है I
३.
३ वर्ष
से १२ वर्ष तक बुध में (ज्ञान ) की दशा चलती है I
४. १२ वर्ष से ३२ वर्ष तक शुक्र में ( नौकरी ,
भोग-विलास ) की दशा चलती हैI
५. ३२ वर्ष से ५० वर्ष तक गुरु में (कर्म का ) दशा
चलती है I
६. ५० वर्ष से ७० वर्ष तक सूर्य में (यश का ) दशा
चलती है I
७. ७० वर्ष से उत्तरार्ध १२० वर्ष तक( मोहभंग
का)दशा चलती है I
कुछ
आचार्यों का कुछ भिन्न मत है जो निम्न :-
जन्म कुंडली में यदि गुरु या अन्य ग्रह बलवान्
या शुभ फल देने वाला हों अर्थात् किसी अशुभ ग्रह से युक्त या दृष्ट न हों तो जातक
को इन अवस्थाओं में उत्तमोत्तम फल मिलेगा :--
१.
गुरु
से १६ वर्ष से उत्तम फल मिलेगा I
२. सूर्य से २२ वर्ष से उत्तम फल मिलेगा I
३.
चन्द्र
से २४ वर्ष से उत्तम फल मिलेगा I
४. शुक्र से २५ वर्ष से उत्तम फल मिलेगा I
५. मंगल से २८ वर्ष से उत्तम फल मिलेगा I
६. बुध से ३२ वर्ष से उत्तम फल मिलेगा I
७. शनि से ३६ वर्ष से उत्तम फल मिलेगा I
८. राहु से ४२ वर्ष से उत्तम फल मिलेगा I
९. केतु से ४८ वर्ष से उत्तम फल मिलेगा I
दशा फल में यह काल उन्नति या भाग्योदय के लिए अत्यन्त
श्रेष्ठ समझना चाहिये क्योंकि किसी दशा का पूर्ण प्रभाव पड़ना तो असम्भव है I यदि
शुभ ग्रह की दशा हों तो अधिक श्रेष्ठ फल मिलना संभव हैI प्रथम, षष्ठ और अष्टम भाव
में पाप ग्रह हों अथवा पाप ग्रह की दृष्टि हों या जन्म लग्न स्वामी निर्बल हों तो शरीर
को आरोग्य सुख मिलना कठिन होता है I सूर्य और मंगल की इन स्थानों में युति हों तो
रक्त, पित्त दोष,उष्णता के विकार या रक्त नाश का रोग बनता है I मंगल हों तो आपरेशन
का प्रसंग आवेगा I
चन्द्र, बुध और शुक्र से अशुभ सम्बन्ध हों तो शीत-ज्वर विकार, शुक्र
से शुक्रदोष या गुह्य पीड़ा, गुरु से कफ-विकार, शनि, राहु केतु से त्रिदोष विकार उत्पन्न
होता है I दशा समाप्त होते ही कष्ट निवारण होता है I आकाशस्थ ग्रह अपने मार्ग या गति
से सदैव भ्रमण करते एक राशि से दुसरे राशि से दुसरे में प्रवेश करते है I जन्म समय
जो ग्रह भ्रमण करते हुए जिस राशि में स्थित
रहते है उन्हें जन्म-कालीन ग्रह कहते है और वर्तमान समय में अपने गति से जिस राशि में
भ्रमण करते हुए दीखते हों उन्हें गोचर ग्रह कहते है I
जन्म ग्रहों के फल मनुष्य को
अपनी ग्रह दशा पर मिलती है परन्तु गोचर ग्रहों के फल जितने माह के लिए आये है उतने
समय के लिए होता है शुभाशुभ I अतः इन दशाओं से भिन्न दशा विंशोत्तरी दशा होती है जो जन्म नक्षत्रों से चला करती
है जो सब को पता है |
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