Kya Aap Jaante Hain Aapki Kundli Mai Konsa Dosh Hai...जानिये कुंडली के योग दोषों के बारे में By Astrologer Dr. S. N. Jha
आप की कुंडली में कोन-सा योग-दोष है?
भास्कराद्याः
खगाः पूर्वं ये मया नव वर्णिताः I
प्रभावितं
जगदिदं समस्तमपि तैः सदा II
तदधीनं
प्राणिनां तु सुखदुःखमतो
जनः I
तच्छान्तिधनवृष्टय्यायुः-कमस्तद्यज्ञमाचरेत् II
पराशरमुनि ने कहा :-
जो मैंने सूर्यादिक नवग्रह के बारे कहा उन्हीं ग्रहों से सारा संसार प्रभावित है और उन्हीं के अधीन प्राणियों का सुख-दुःख निहित है I अतः मनुष्य को ग्रह शान्ति, धन तथा वृष्टि तथा आयुः कामना से ग्रहों का यज्ञ करना चाहिये I सृष्टिकर्त्ता परमेश्वर ने सर्वप्रथम आकाशस्थ ग्रहों को निर्माण किया तत्पश्चात् यह सृष्टि निर्माण की I
आकाशस्थ ग्रहों का परिणाम पृथ्वी के प्रत्येक प्राणी पर पड़ता है यह निर्विवाद है परन्तु अन्य प्राणियों की अपेक्षा मनुष्य प्राणी सर्वश्रेष्ठ होने के कारण उसने यह जानने का अथक प्रयत्न किया कि जगत् के कल्याण के लिए ज्योतिष शास्त्र द्वारा यह सिद्ध कर दिखाया जाय कि ये ग्रह अपना गुण-धर्म, रुप-रंग, स्वभाव आदि शिशु-पिण्ड पर गर्भावस्था से ही दिखाते है तब जन्म होने से मरण समय तक इनका प्रभाव शुभ और अशुभ यदि मनुष्य प्राणी पर नित्य पड़ता हो तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं I
इन्हीं ग्रहों के शुभाशुभ भाव के कारण, इस जगत्
में नाना प्रकार के रुप-रग, गुण-स्वभाव दिखायी पड़ते है I साथ ही उत्तम स्वास्थ्य
का तथा रोग का होना यह भी ग्रहों के स्वभाव स्थिति पर अवलम्बित है जातक के
जीवन में अनेक प्रकार के शुभाशुभ योग प्राप्त
करते है I उनमें ग्रहों के अलावा और अन्य कारण
कष्ट के होते है जिनमें :-
१. कुंडली नवग्रह जनित कष्ट :- (क) भाव-जनित कष्ट
(ख) राशि-जनित कष्ट
२.नक्षत्र
जनित कष्ट :-(क)
गण्डान्त और मूल
(ख) एक नक्षत्र (माता, पिता और भाई)
३.
तिथि जनित कष्ट:- (क) कृष्ण चतुर्दशी,
(ख) अमावास्यां
४.
संक्रान्ति दोष
५.
ग्रहण दोष
६. त्र्यन्य जनन दोष
(तीन बच्चे के बाद जन्म दोष)
७. प्रसूति विकृति दोष ( समय से पहले जन्म या समय के बाद जन्में
जातक बहुत कष्टदायी, आँधी, वर्षा, भूकम्प, मृत्यु के दिन, आवाज़ देकर जन्में, हस्ते
हुये जन्में, स्थान
आदि और बहुत से कारण होते है |)
८. वास्तुशास्त्र जनित कष्ट:- (क) स्थान दोष
(ख) दिशा दोष
९. नकारात्मक शक्ति जनित कष्ट:- भूतप्रेतादिक कष्ट I
प्रबल कष्टदायी योग :-
(१ ) मर्म वेध --- लग्न में पापी ग्रह होने से - ( मृत्यु )
(२)
कण्टक वेध ---नवम और पञ्चम में पाप ग्रह होने से
(
कुल का नाश )
(३) शल्य वेध ----चतुर्थ और दशम भाव में पाप ग्रह
होने से
( राजा से भय )
(४)
छिद्र वेध -सप्तम
भाव में पाप ग्रह होने से ( पुत्र का नाश )
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